"शायद नितिन कुछ जानता होगा?"- यह सोचकर मेल्विन उस रेस्टोरेंट की तरफ बढ़ चला क्योंकि उसे शकील से कुछ भी नहीं पता चला था। उसने अपने जेब से तुरन्त फोन निकाला जिसमें न जाने उसके कितने दोस्तों के मिस कॉल पढ़े हुए थे। उसने सभी को नजरअंदाज करके नितिन को फोन करने की कोशिश की पर बार बार कोशिशों के बाद भी नितिन का फोन नहीं लग रहा था। तभी उसकी जेब में रखा फोन फिर से वाइब्रेट हुआ। वह कलिज़नेव का कार्ड निकालने वाला था, पर स्क्रीन पर एक जाना-पहचाना नाम चमक रहा था: मिस्टर कपूर।

मेल्विन ने दिनों से किसी का फोन नहीं उठाया था, खासकर जब से यह सब शुरू हुआ था। उसे डर था कि अगर उसने मिस्टर कपूर से बात की, तो उसे अपनी सारी परेशानी बतानी पड़ेगी, और वह किसी को भी इस दलदल में नहीं खींचना चाहता था। पर मिस्टर कपूर लगातार फोन कर रहे थे, जैसे उन्हें किसी अनहोनी का आभास हो गया हो।

मेल्विन ने एक गहरी साँस ली और फोन उठा लिया। उसकी आवाज़ थकान और उदासी से भरी हुई थी। 

"हेलो, मिस्टर कपूर।"

दूसरी तरफ से मिस्टर कपूर की चिंता भरी आवाज़ आई, जिसमें एक बॉस की गंभीरता और एक दोस्त की फ़िक्र दोनों थी। 

"मेल्विन! कहाँ हो अभी तुम? तुम इतने दिनों से फोन क्यों नहीं उठा रहे हो?"

 उनकी आवाज़ में साफ चिंता झलक रही थी।

मेल्विन का गला सूख गया। वह अपनी माँ की मौत की खबर मिस्टर कपूर को कैसे देता? उसने एक पल के लिए अपनी आँखों में आए आँसुओं को रोका। 

"मैं... मैं ठीक हूँ, सर। बस थोड़ा काम में व्यस्त था।" उसकी आवाज़ लड़खड़ा रही थी।

"काम में व्यस्त?" मिस्टर कपूर ने लगभग डांटते हुए कहा। "तुम्हारी आवाज़ कैसी हो गई है? मुझे तुम्हारी बहुत चिंता हो रही है। मुझे याद है कि तुम कितने होशियार और मेहनती थे, पर अब... तुम्हारी आवाज़ में वो जोश नहीं है। तुम मुझसे कुछ छुपा रहे हो।"

मेल्विन की चुप्पी ने मिस्टर कपूर की चिंता को और बढ़ा दिया। "मेल्विन, मुझे आज सुबह तुम्हारी माँ के बारे में एक फोन आया था..." मिस्टर कपूर की आवाज़ में दुख था। "मुझे बताया गया है कि... मुझे बहुत अफ़सोस है मेल्विन।"

मेल्विन की आँखों से आँसू बहने लगे। उसकी माँ की मौत की खबर फैलने लगी थी। उसे लगा जैसे उसका दर्द अब पूरी दुनिया को पता चल गया है। "हाँ, मिस्टर कपूर। माँ... माँ अब नहीं रहीं।" उसकी आवाज़ टूट गई।

"मुझे पता है। मुझे पता है।" मिस्टर कपूर ने कहा, उनकी आवाज़ में भी नमी थी। "मैं तुरंत तुम्हारे घर आ रहा हूँ। तुम कहाँ हो?"

"नहीं, नहीं, मिस्टर कपूर। आप मत आओ।" मेल्विन ने कहा, उसकी आवाज़ में एक अजीब सी जल्दबाज़ी थी। वह नहीं चाहता था कि मिस्टर कपूर इस खतरनाक खेल में फँसें। "मैं... मैं ठीक हूँ। मुझे बस कुछ अकेला समय चाहिए।"

 "अकेला समय?" मिस्टर कपूर ने लगभग डांटते हुए कहा। "तुम्हारी माँ नहीं रहीं, और तुम अकेले रहना चाहते हो? मैं तुम्हें इस हालत में अकेला नहीं छोड़ सकता! तुम कहाँ हो, मैं वहीं आ रहा हूँ।" उनकी आवाज़ में एक दृढ़ता थी जो मेल्विन को पता थी कि वह टाल नहीं सकता।

 मेल्विन ने हार मान ली। उसने मिस्टर कपूर को कुछ देर तक सब कुछ बताया – नितिन के बारे में, ‘मी’ के बारे में, सिंडिकेट के बारे में, डिकोस्टा के बारे में, और आखिर में अपनी माँ की मौत के बारे में भी। वह सब कुछ बताते हुए रो रहा था। मिस्टर कपूर ने चुपचाप उसकी बात सुनी, उनके चेहरे पर गंभीरता बढ़ती जा रही थी, आँखें लगातार सिकुड़ रही थीं।

"यह सब बहुत अजीब है, मेल्विन।" मिस्टर कपूर ने कहा, जब मेल्विन शांत हुआ। "तुम्हारी माँ की मौत... और यह माया इवानोवना।" उन्होंने मेल्विन के कंधे पर हाथ रखा। "पर तुम्हें हार नहीं माननी चाहिए। खासकर अपनी माँ के लिए।"

मेल्विन ने सिर उठाया। "पर मैं क्या करूँ, मिस्टर कपूर? मुझे कोई रास्ता नहीं दिख रहा। डिकोस्टा का कोई पता नहीं, सिंडिकेट का कोई सुराग नहीं। शकील भी कुछ नहीं जानता।" उसकी आवाज़ में बेबसी थी।

मिस्टर कपूर ने अपनी आँखें बंद कीं, जैसे कुछ सोच रहे हों। "तुम्हारे पिता... वो हमेशा कहते थे कि हर समस्या का कोई न कोई रास्ता होता है। और वो अपने काम में बहुत माहिर थे, खासकर उन गुप्त चीज़ों को खोजने में।"

"हाँ, पर अब वे मर चुके हैं।" मेल्विन ने उदास होकर कहा।

"हाँ। पर अभी भी एक चीज़ है जो तुम कर सकते हो।" मिस्टर कपूर ने अचानक अपनी आँखें खोलीं, उनकी आवाज़ में एक नई चमक थी, जो मेल्विन के लिए आशा की किरण लेकर आई। "मेल्विन क्या तुमने अपने पिता के डायरी के सारे पन्ने ढूंढ लिए थे?"- उन्होंने पूछा। 

"हां, शायद। क्योंकि हमें उस 500 करोड़ का पता तो लग चुका था।"- मेल्विन ने जवाब दिया। 

"लेकिन वे पन्ने सिर्फ पैसों के लोकेशन तक ही सीमित थोड़ी थे। एक बार मेरी तुम्हारी माँ से बात हुई थी तब उन्होंने कहा था हमारे पापा ने तस्करों के साथ कई दिनों तक काम किया था। उनदोनो के उस संगठन के साथ बहुत अच्छे सम्बन्ध भी थे। शायद उन्होंने इस बारे में भी कुछ लिखा हो। शायद उन्हें रहा हो कि वे लोग कौन थे या फिर उनसे जुड़े ऐसे राज़ जो हम अभी तक न जानते हो।"- मिस्टर कपूर ने कहा। 

"हाँ, पर इस बात की क्या गारंटी होगी की उन्होंने इस बारे में कुछ लिखा ही हो।"- मेल्विन ने निराशा के साथ कहा।  

"उन्होंने लिखा था, मेरे पिता ने इस बारे में एक बार मेरे सामने ही आपत्ति जताई थी कि उस संगठन के बारे में उन्हें कुछ नहीं लिखना चाहिए। तो शायद उन्होंने इस बारे में कुछ ऐसा जरूर लिखा होगा जो हमारे काम आ सकता है। तुम्हें वे पन्ने ढूंढने चाहिए।"- मिस्टर कपूर ने कहा।

इतना सुनते ही मेल्विन के आंखों में उम्मीद की एक किरण जाग गयी। उसे लगा कि अभी भी सब कुछ खत्म नहीं हुआ था। अभी भी वह इस मामले में कुछ कर सकता था। लेकिन अभी फिलहाल भूख से मेल्विन की हालत बहुत खराब होती जा रही थी। 

उसका पेट भूख से गुड़गुड़ा रहा था, पर उसकी आत्मा भूख से भी ज़्यादा खाली थी। उसे कुछ खाने की ज़रूरत थी, ताकि वो अपने दिमाग को शांत कर सके और आगे की सोच सके। वह बिना किसी योजना के भटकता हुआ उसी प्रचार वाले कागज में बताए गए उस एक छोटे से, पुराने रेस्टोरेंट में पहुँच गया। यह एक ऐसी जगह थी जहाँ बहुत ज़्यादा भीड़ नहीं थी, जहाँ वो थोड़ी देर शांति से बैठ सके। उसे बस कुछ पल का सुकून चाहिए था।  

उसने एक कोने वाली टेबल चुनी और मेनू देखने लगा, पर उसके दिमाग में एक भी चीज़ नहीं बैठ रही थी। उसे सिर्फ़ अपनी माँ का चेहरा और ‘मी’ का सवाल दिख रहा था। उसकी आँखों के सामने अँधेरा छा रहा था। तभी एक वेटर आया, उसके चेहरे पर एक अजीब सी, चिपचिपी मुस्कान थी, जो मेल्विन को असहज कर रही थी।

"सर, क्या लेंगे?" वेटर ने पूछा, उसकी आवाज़ ज़रूरत से ज़्यादा दोस्ताना थी।

"एक... एक प्लेट बिरयानी," मेल्विन ने बेमन से कहा, उसकी आवाज़ में थकावट थी।पर भूख भी तो बहुत ज्यादा थी। 

"ठीक है सर! और क्या आप हमारे आज के स्पेशल ऑफर के बारे में जानना चाहेंगे? हमारे पास अभी लिमिटेड टाइम ऑफर है, सर। अगर आप दो बिरयानी लेते हैं, तो आपको एक कोल्ड ड्रिंक फ्री मिलेगी! या अगर आप हमारा डील ऑफ़ द डे लेते हैं, जिसमें बिरयानी के साथ शाही पनीर और नान है, तो आपको 20% डिस्काउंट मिलेगा!" वेटर ने एक ही साँस में ऑफर्स की झड़ी लगा दी। उसकी आवाज़ तेज़ और उत्साहित थी, जैसे वह कोई सेल्समैन हो, वेटर कम।

मेल्विन ने खीझकर वेटर की ओर देखा। उसकी आँखें लाल थीं, और चेहरा तनाव से तना हुआ था। "नहीं, बस एक बिरयानी।" उसकी आवाज़ में अब झुंझलाहट साफ झलक रही थी।

"पर सर, ये ऑफर सिर्फ़ आज के लिए है! और अगर आप हमारे लॉयल्टी कार्ड के लिए साइन अप करते हैं, तो आपको हर बार 10% कैशबैक मिलेगा और अगले महीने की शुरुआत में आपके लिए एक एक्सक्लूसिव पार्टी होगी!" वेटर ने अपनी पेशकश जारी रखी, जैसे उसे मेल्विन की परेशानी दिख ही न रही हो, या शायद वो जानबूझकर उसे परेशान कर रहा हो। वह मेल्विन के बिल्कुल पास झुक आया था, उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी।

 

मेल्विन का दिमाग अब पूरी तरह खराब हो चुका था। वो वैसे ही इतना परेशान था, और ऊपर से ये लगातार ऑफर्स। उसे लगा जैसे उसका सिर फट जाएगा। 

"भाई, बस एक बिरयानी! और कुछ नहीं। और प्लीज, मुझे अकेला छोड़ दो।" उसने अपनी आवाज़ थोड़ी तेज़ कर दी, जिसमें अब गुस्सा साफ था।

वेटर एक पल के लिए चुप हुआ, उसकी चिपचिपी मुस्कान धीरे-धीरे उसके चेहरे से गायब हो गई। उसकी आँखों में एक अजीब सी, ठंडी चमक आ गई। 

"ठीक है सर। जैसा आप कहें।" वह मुड़ा और चला गया, पर मेल्विन को लगा जैसे उसकी आँखों में एक अजीब सी झलक थी, जैसे वह समझ रहा था कि मेल्विन कितने तनाव में है, या शायद वो उसकी प्रतिक्रिया का मज़ा ले रहा था। मेल्विन को एक अजीब सी बेचैनी हुई, जैसे उसने कोई गलती कर दी हो। उसे लगा जैसे उस वेटर ने उसे बहुत देर तक, कुछ ज़्यादा ही ध्यान से देखा हो।

मेल्विन ने सिर पकड़ लिया। उसे लगा जैसे पूरी दुनिया ही उसे परेशान करने पर तुली है। सिंडिकेट, पुलिस, और अब ये अनचाहे ऑफर्स। उसे सच में लग रहा था कि वो पागल हो जाएगा।

कुछ देर बाद बिरयानी आई। मेल्विन ने एक-दो निवाले खाए, पर उसे स्वाद का कोई एहसास नहीं था। उसकी आँखें रेस्टोरेंट में घूम रही थीं, हर कोने को, हर चेहरे को स्कैन कर रही थीं। उसकी बेचैनी कम नहीं हो रही थी।

तभी, उसकी नज़र उस वेटर पर पड़ी। वह अब किचन की ओर जा रहा था, और अचानक उसने अपनी यूनिफॉर्म का कॉलर थोड़ा नीचे किया। मेल्विन की आँखें चौड़ी हो गईं। वेटर की गर्दन पर, चमड़ी के ठीक नीचे, एक छोटा सा, काला टैटू दिख रहा था। यह एक अजीब सा प्रतीक था – तीन उलझी हुई रेखाएँ, एक दूसरे से जुड़ी हुईं। मेल्विन ने इस प्रतीक को पहले भी देखा था... अपने पिता की डायरी के उन पन्नों में, जहाँ सिंडिकेट का ज़िक्र था।

मेल्विन के पूरे शरीर में बिजली दौड़ गई। उसकी बिरयानी का निवाला उसके गले में अटक गया। वो वेटर... वो साधारण वेटर नहीं था! उसकी चिपचिपी मुस्कान, उसके लगातार ऑफर्स, उसकी तेज़ आवाज़—सब कुछ एक जाल था। वह उसे परेशान नहीं कर रहा था, बल्कि उसे देख रहा था, उसे पहचान रहा था। वह सिंडिकेट का आदमी था!

मेल्विन के दिमाग में एक झटके में सब कुछ साफ हो गया। सिंडिकेट को पता था कि वो कहाँ है। उन्हें पता था कि वह पुलिस स्टेशन से निकला है। वे उसके हर कदम पर नज़र रख रहे थे। उस वेटर की आँखों में जो अजीब सी चमक थी, वह पहचान की चमक थी, एक शिकारी की चमक। यानी वे प्रचार के पर्ची जानबूझकर शकील के ऑफिस के बाहर बाँटे गए थे। वे जानते थे कि मेल्विन वहाँ जरूर जाएगा। वे मेल्विन के हर व्यवहार को समझते थे, वे समझते थे कि मेल्विन कब और कैसे बर्ताव करेगा। यह सिर्फ एक रेस्टोरेंट नहीं था, यह एक और जाल था, और मेल्विन खुद उसमें चला आया था। 

 

पूरी दुनिया उसके खिलाफ थी। वह अकेला था, और अब उसे पता था कि दुश्मन हर जगह था, हर आम चेहरे के पीछे छिपा हुआ।

मेल्विन ने तुरंत अपनी बिरयानी की प्लेट एक तरफ धकेली और उठकर वेटर की ओर लपका, जो अब किचन के दरवाज़े तक पहुँच चुका था। मेल्विन ने उसे कॉलर से पकड़ा और उसे दीवार से सटा दिया, उसकी आँखों में वही ज्वाला थी जो उसने अपनी माँ के लिए देखी थी। 

"तुम कौन हो? तुम्हें सिंडिकेट के बारे में सब पता है! मुझे सच बताओ! अभी!" -मेल्विन की आवाज़ तेज़ और गुस्सैल हो चुकी थी।

वेटर ने घबराकर चारों ओर देखा, जैसे डर गया हो, पर उसके चेहरे पर अभी भी 'मासूमियत' का मुखौटा था। 

"सर, आप क्या कर रहे हैं? मुझे छोड़िए! मैं बस एक वेटर हूँ!"

"झूठ मत बोलो!" मेल्विन ने उसे और ज़ोर से पकड़ा, उसकी पकड़ इतनी मज़बूत थी कि वेटर का गला घुटने लगा। "मैंने तुम्हारी गर्दन पर वो टैटू देखा है! सिंडिकेट का प्रतीक! तुम्हें सब पता है! डिकोस्टा कहाँ है? मेरी माँ को उन्होंने मारा है! मुझे सच बताओ, वर्ना मैं तुम्हें यहीं मार डालूंगा!"

वेटर का चेहरा लाल पड़ गया, उसकी आँखें डर से फैल गईं। उसने अपनी बांहें उठाईं, जैसे आत्मसमर्पण कर रहा हो।

"सर,, मुझे माफ़ कर दीजिए। मुझसे गलती हो गयी। आप जरूरी मेरे ऑफर से नाराज होंगे। ठीक है, मेरी गलती है, मुझे आपको तंग नहीं करना चाहिए था। इसलिए माफी के तौर पर मैं आपको डिस्काउंट देता हूँ। अगर आप अभी एक प्लेट बिरयानी और ऑर्डर करें तो हम आपको 20%...!"

"चुप कर बे। ज्यादा नाटक मत कर। मुझे अच्छे से पता है कि तू कौन है। चुप चाप अपने असली रूप में आ, वरना सब कुछ तो खो ही चुका हूँ, मुझे एक जान लेकर जेल जाने में कभी परहेज नहीं होगा। 

मेल्विन झूठ नहीं कह रहा था यह बात उस दर्द से कराहरहा वेटर भी जानता था।

"ठीक है।"- वेटर ने सिर्फ इतना कहा, पर उसने यह बात बिल्कुल शांत और ठंडे दिमाग से कहा। उसकी आँखों में कोई भय नहीं था और उसने यह बात मेल्विन के आंखों में आंखें डालते हुए अपने चेहरे में एक हल्की मुस्कान के साथ कहा। 

मेल्विन ने अपनी पकड़ थोड़ी ढीली की, पर उसकी आँखें उस पर गड़ी हुई थीं। वह एक-एक शब्द सुनना चाहता था।

वेटर ने एक गहरी साँस ली, और अचानक उसके चेहरे पर एक अजीब सी शांति आई। उसकी आँखों में जो डर था, वह एक पल में गायब हो गया, उसकी जगह एक गहरी, खतरनाक चमक आ गई। उसकी चिपचिपी मुस्कान पूरी तरह से गायब हो चुकी थी। उसकी आवाज़, जो अब तक पतली और विनम्र थी, अचानक गहरी और दृढ़ हो गई, जैसे एक स्विच ऑन हो गया हो। उसकी भाषा, उसका लहजा, सब कुछ बदल गया, मानो वह किसी और ही व्यक्ति में बदल गया हो। यह बदलाव इतना अचानक और नाटकीय था कि मेल्विन भी एक पल के लिए हक्का-बक्का रह गया।

"इतना गुस्सा ठीक नहीं है, मेल्विन।" वेटर ने कहा, उसकी आवाज़ अब किसी और की लग रही थी – शांत, नियंत्रित, और बेहद खतरनाक। उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी, जो पहले छिपी हुई थी। वह अब बिल्कुल भी वेटर नहीं लग रहा था। "बोस। तुम्हारी इन हरकतों से नाराज हो जाएंगे।"- उसने कहा। 

मेल्विन की पकड़ ढीली पड़ गई, वह पूरी तरह से स्तब्ध था। "क्या... क्या बकवास कर रहे हो?"

"तुमने अपनी माँ को खोया है, इसका अफ़सोस हमें भी है।" वेटर ने कहा, उसकी आवाज़ में अब भी वही अजीब सी तटस्थता थी, जैसे वह किसी मशीन की तरह बोल रहा हो। "पर ये सब तुम्हारी गलतियों का नतीजा है। तुमने उन लोगों के साथ खेल खेला जिन्हें तुम समझते नहीं थे।"

मेल्विन को समझ नहीं आया कि यह क्या हो रहा है। वह आदमी, जो कुछ देर पहले तक एक सीधा-सादा वेटर था, अचानक ऐसे बोल रहा था जैसे वह कोई बॉस हो, या बॉस का दाहिना हाथ।

वेटर ने मेल्विन के कंधे पर हाथ रखा, उसकी पकड़ अब मज़बूत और आत्मविश्वास से भरी थी। “बॉस तुमसे बात करना चाहते हैं, मेल्विन। उन्होंने तुम्हारी पूरी कहानी सुनी है।”

आखिर कौन है वेटर का बॉस और ऐसी कौन सी बात करने वाला था? क्या मेल्विन उनके बिछाए हुए जाल में फंस चुका था? जानने के लिए पढिए कहानी का अगला भाग। 

 

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