"हाँ मेल्विन।"- रेबेका ने फोन पर से कहा।
"रेबेका। उन्होंने कम्पटीशन के लिए हामी भर दी है। और इतना ही नहीं, उन्होंने मुझे जज के रूप में भी स्वीकार है।"- मेल्विन ने कहा।
"क्या? सच? मुझे यह सुनकर बेहद खुशी हुई मेल्विन। मैं तुम्हारे लिए बहुत खुश हूँ। तो बताओ, कब जा रहे हो दिल्ली?"- रेबेका ने पूछा।
"बस इसी हफ्ते। मुझे अभी बहुत सारी तैयारियाँ करनी हैं। वैसे मुझे पता नहीं क्यों ऐसे सफर करने में पहली बार अजीब सा लग रहा है। "- मेल्विन कहा।
"होता है, कभी कभी! अपना ख्याल रखना। और अपने ऊपर लगे सारे दागों को मिटाना।"- रेबेका ने कहा।
"हाँ। मैं पूरी कोशिश करूँगा।"- इतना कहकर मेल्विन ने फोन काट दिया।
मेल्विन ने अपने दिल्ली जाने की खबर को मम्मी और रेबेका दोनों को बता दिया था दोनों इस खबर से खुश थे वहीं मेल्विन अपने नए सफर की तैयारियां शुरू कर चुका था वहीं दूर कहीं कुछ और ही खिचड़ी पक रही थी। रघु भी चुप नहीं बैठा था।
"ओए वो तेरा खास आदमी चुप क्यों हो गया? कहाँ गए मेरे पैसे? कब मिलेंगे मुझे वो 500 करोड़ रुपये।"- रघु ने कहा।
"जल्द ही बॉस। सुनने में खबर आई है कि मेल्विन अभी किसी कम्पटीशन के लिए दिल्ली जा रहा है। उसको लगता है कि अगला सिराज उसे भी दिल्ली में ही मिलेगा। इसलिए उस पर नजर बनाने के लिए वो भी दिल्ली जा रहा है।"- उस आदमी ने कहा।
"जो भी करना है जल्दी करो। मुझे सिर्फ पैसों को देखने से मतलब है।"- उसने कहा।
"बिल्कुल बॉस।"- उस आदमी ने कहा।
यहाँ कोई अलग षड्यंत्र चल रहा था तो वहीं कहीं और दिल्ली जाने की तैयारी हो रही थी।
सुबह के पाँच बज चुके थे, लेकिन मुंबई एयरपोर्ट की रौनक वैसी ही थी जैसी किसी जागे हुए शहर की होती है। हल्की-हल्की ठंडी हवा, अनाउन्स्मेन्ट की आवाज़ें, ट्रॉली पर चलते बैगों की खड़खड़ाहट और यात्रियों के चेहरों पर थकी हुई लेकिन उम्मीद से भरी मुस्कानें। मेल्विन ने अपनी जैकेट की ज़िप ऊपर की और एक गहरी साँस लेते हुए कहा, “बस अब कुछ घंटों की बात है पीटर, और फिर हम दिल्ली में होंगे… जहाँ से असली काम शुरू होगा।”
पीटर मुस्कुराया और बोला, “बिलकुल, उन बच्चों की आँखों में जो उम्मीद दिखेगी, वही इस प्रोजेक्ट की असली जीत होगी।” उनके साथ खड़े लक्ष्मण, लीला, सोफिया और देव भी अपना हैंड बैगेज ठीक कर रहे थे, लक्ष्मण को छोड़कर वे लोग भी मैगज़ीन में अलग अलग क्रिएटिव काम देखते थे, उनकी आँखों में एक अलग सी चमक थी—वो चमक जो किसी उद्देश्य की शुरुआत से पहले होती है।
घोषणा हुई—“Flight 6E 342 to Delhi is now boarding from Gate B12.” टीम ने एक-दूसरे की तरफ़ देखा, हल्की मुस्कानें बांटीं और बोर्डिंग गेट की ओर बढ़ चले। एस्केलेटर पर चढ़ते हुए लीला ने मोबाइल से एयरपोर्ट की तस्वीर ली और बोली, “ये सफर हमें याद रहेगा।” विमान के अंदर जब सभी ने अपनी सीटें संभाल लीं, तो मेल्विन ने अपना लैपटॉप निकाला और प्रोजेक्ट रिपोर्ट खोल ली। वहीं पीटर ने खिड़की के पास बैठकर बाहर देखने लगा—जहाँ रनों पर रौशनी की लकीरें दौड़ रही थीं और धीरे-धीरे प्लेन ने गति पकड़ ली।
टेकऑफ़ के कुछ ही पलों बाद, ज़मीन सिकुड़ने लगी, और आसमान ने अपनी गोद में सफेद बादलों की चादर फैला दी। पूरी टीम चुप थी, लेकिन सबके भीतर एक तूफान था—उत्साह का, ज़िम्मेदारी का, और उस विश्वास का जो उन्होंने बच्चों के भविष्य में लगाया था। फ्लाइट के दो घंटे मेल्विन के लिए रणनीतियाँ सोचने में बीते, जबकि पीटर अपनी डायरी में कुछ नोट्स लिख रहा था—“हमें बस एक मुस्कान की ज़रूरत है बच्चों के चेहरे पर, और सारी मेहनत सफ़ल हो जाएगी।”
जब पायलट ने घोषणा की, “हम दिल्ली में लैंड करने वाले हैं, बाहर का तापमान 17 डिग्री सेल्सियस है,” तो टीम ने एक-दूसरे की तरफ़ देखा और जैसे कोई अदृश्य हौसला सबमें समा गया। खिड़की से बाहर झाँकते ही दिल्ली के लंबे फ्लाईओवर, हरियाली, छोटे-छोटे मकान और दूर-दूर तक फैले हुए भवन नज़र आ रहे थे। सूरज की हल्की-हल्की रौशनी बादलों से छनकर आ रही थी, और लगता था जैसे शहर खुद उनका स्वागत कर रहा हो।
विमान की लैंडिंग के साथ हल्की थरथराहट हुई, और फिर धीरे-धीरे प्लेन रनवे पर दौड़ा। इंजन की आवाज़ अब थम चुकी थी, और यात्रियों ने अपनी सीट बेल्ट खोल ली। मेल्विन ने एक लंबी साँस ली और बोला, “Welcome to new beginnings.”
जैसे ही टीम टर्मिनल 3 से बाहर निकली, सामने था इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा—एक आधुनिक और भव्य संरचना जो किसी पाँच सितारा होटल से कम नहीं लगती। चमचमाती ज़मीन, शीशे की दीवारों से छनती धूप, और हर तरफ़ साफ़-सुथरा माहौल। एयरपोर्ट पर बने विशाल आर्ट वर्क्स, खासकर वो दीवार जिसमें हाथों की अलग-अलग मुद्राएँ बनी थीं—उसने सबका ध्यान खींचा। पीटर रुक गया और बोला, “ये सिर्फ एक दीवार नहीं, एक पहचान है... हमारी भारतीय विरासत की।” मेलविन ने वहाँ खड़े होकर फ़ोन से तस्वीर ली और बोला, “इसे हमें NGO में भी दोहराना चाहिए, बच्चों को कला से जोड़ना चाहिए।”
सामने स्टारबक्स था, जहाँ अमन ने चाय ली, सोफिया ने कॉफ़ी और सबने एक छोटी ब्रेक ली। बाहर आते ही दिल्ली की सर्द हवाओं ने सबका स्वागत किया, ठंडी-ठंडी हवा चेहरों से टकराई और एक स्फूर्ति-सी भर गई शरीर में। पीटर ने कहा, “दिल्ली की सर्दी में एक अलग ही बात है, ना?” लीला ने काँपते हुए कहा, “और गरम चाय की बात ही क्या!”
एयरपोर्ट से बाहर निकलते ही उन्हें एक NGO की वैन मिली, साथ में कुछ रिपोर्टर भी थे। क्योंकि मेल्विन अब फेमस हो चुका था इसलिए उसकी हर हरकतों पर दुनिया की नजर थी। वे लोग उस गाड़ी में बैठे जो उन्हें सीधा बच्चों के केंद्र तक लेकर गई। रास्ते में मेलविन ने टीम को योजना समझाई, “हम अलग-अलग कैटेगरी में प्रतियोगिता कराएंगे—डांस, गायन, कविता, ड्राइंग और एक्टिंग। लेकिन ये कोई प्रतियोगिता नहीं होगी जिसमें कोई हारेगा… हर बच्चा यहाँ जीत के लिए नहीं, खुद को दिखाने के लिए भाग लेगा।”
जोनाथन जो प्रतियोगिता के हेड के रूप में अलग से शामिल हुए था, उसने हँसते हुए कहा, “मतलब सबको ट्रॉफी मिलेगी?”
“नहीं,” मेल्विन मुस्कराया, “सबको एक एहसास मिलेगा… कि वो कुछ भी कर सकते हैं।”
जब वे NGO पहुँचे, तो वहाँ बच्चों की खलबली और खुशियाँ स्वागत कर रही थीं। मासूम चेहरे, गुदगुदाते हँसी के पल और भाग-दौड़ करते नन्हे कदम। कुछ बच्चे तुरंत टीम से घुलमिल गए, तो कुछ थोड़े झिझक रहे थे।
टीम की तरफ से लाए गए गिफ्ट्स सभी बच्चे बड़े ही खुशी के साथ ले रहे थे लेकिन उनके बीच एक बच्चा ऐसा था जो उनमें जरा सी भी दिलचस्पी नहीं दिखा रहा था।वहीं एक कोने में बैठा था एक दुबली-पतली लड़की—शांत, गुमसुम, लेकिन उसकी आँखों में कुछ खास था।
मेल्विन ने उसके पास जाकर पूछा, “क्या नाम है तुम्हारा?”
बच्चा धीरे से बोला, “मी।”
“मी?”
“हाँ, सब मुझे मी बुलाते हैं। मैं प्रतियोगिता में नहीं भाग सकती”
“क्यों?”
“मेरी आवाज़ बहुत धीमी है, और किसी को समझ में नहीं आती।” मेल्विन ज़मीन पर बैठ गया। उसकी आँखों में अपनापन था, “मी… जब आवाज़ दिल से निकले, तो ज़ोर से बोलने की ज़रूरत नहीं होती। तुम्हारी आवाज अगर धीमी है तो तुम धीमे ही बोलना। क्या पता इस कम्पटीशन में तुम कुछ ऐसा दे सको जो सबसे अनोखा हो। तो मेरे अनोखे जादूगर, क्या तुम मेरे दोस्त बनोगी?”
मी ने पहली बार आँखों में चमक के साथ सिर हिलाया।
"तो यानी अब हम दोस्त हैं। तो वैसे मी। मुझे बताओ तुम्हारा असली नाम क्या है?" - मेल्विन फिर पूछा।
"पता नहीं। कब से बडी हुई तब से मी ही सुना। मुझे यह नाम कब और कैसे मिला मुझे याद नहीं। बस यही एक नाम है जो मुझे याद है।'- मी ने कहा।
इसके बाद मेल्विन सीधा NGO के कर्मचारियों की तरफ देखने लगा। उसमें से एक ने कहा।
"मी को लेकर हमें भी कोई खास जानकारी नहीं है। इसे इसके मां बाप यहाँ छोड़ गए थे। फिर उन्होंने फिर हमसे कोई सम्पर्क नहीं साधा।"- उन्होंने कहा।
"अरे कैसे मां बाप हैं जो अपने बच्चे को यूं ही अकेला छोड़ दे। आप के पास उनकी कोई फ़ाइल है?"- मेल्विन ने पूछा।
"हाँ वो है तो जरूर। लेकिन हमने उनके साथ एक सीक्रेट क्लाउस साइन किया है कि हम उनसे दोबारा कभी भी सम्पर्क नहीं साधेंगे। तो हमे माफ कीजिए। हमारे हाथ बंधे हुए हैं।"- उन्होंने कहा।
"बड़ी अजीब बात है।"- मेल्विन अपने आप से कहा।
खैर ऐसे ही कुछ दिन और बिते। अगले कुछ दिन रिहर्सल और तैयारी में बीते। मेल्विन और टीम बच्चों को सिखाते, प्रेरित करते और उन्हें खुद पर भरोसा करना सिखाते। मी हमेशा थोड़ा दूर रहता, लेकिन हर बात ध्यान से सुनता। लेकिन मेल्विन और मी के बीच दोस्ती गहरी होती चली गयी। एक दिन उसने मेलविन को अपनी कॉपी में बनाई एक तस्वीर दिखाई—एक लड़का पतंग उड़ाते हुए आसमान को देख रहाथा।
"मेल्विन अंकल। यह ड्राइंग कैसी है? माना कि मैं आपकी तरह सुंदर ड्राइंग नहीं बनाता पर आपके गाइडेंस में जरूर सिख जाऊंगी।"- मी ने कहा।
"अरे मी। तुमसे किसने कहा की तुम अच्छा नहीं बनाते। तुम तो मुझसे भी अचछा ड्राइंग बनाते हो। बस थोड़ा सुधार हो जाए तो पक्का तुम मेरी नौकरी भी खा जाओगे।"- मेल्विन ने मुस्कुराते हुए कहा।
"सच अंकल?"- मी के चेहरे में मुस्कान थी- "लेकिन मैं आपका जॉब नहीं खाना चाहता वरना आप काम क्या करोगे?"- मी ने अचानक से घबराहट के साथ कहा। जिसे सुनकर मेल्विन मुस्कुरा सा उठा।
"अरे नहीं नहीं। ऐसी कोई बात नहीं है। तुम मेरी नौकरी नहीं खाओगी। मेरे कहने का मतलब हुआ कि तुम इतना अच्छा बनाने लगोगी की तुम्हें भी मेरे जैसा काम मिलने लगेगा।" इसके बाद मेल्विन ने फिर से ड्राइंग को देखा। उसमें नीचे लिखा था, "मैं उड़ना चाहता हूँ।" मेल्विन को कुछ कहने की ज़रूरत नहीं पड़ी। उसने बस मी के सिर पर हाथ रखा और कहा, “तुम उड़ोगे… ज़रूर उड़ोगे।”
प्रतियोगिता का दिन आया। पूरे NGO को फूलों और बच्चों की बनाई सजावटों से सजाया गया था। रंग-बिरंगे कपड़े पहने बच्चे मंच पर अपनी कला दिखाने के लिए तैयार थे। दर्शकों में NGO के कर्मचारी, कुछ पत्रकार और लोकल वॉलंटियर्स थे। पहला डांस प्रस्तुति थी—गर्जन और तालियों के बीच झूमती शिवानी। फिर कविता, स्किट और गाने। हर बच्चा चमक रहा था।
और फिर मंच पर आया मी। सभी लोग चुप थे, शाय।द किसी को उम्मीद नहीं थी कि ये शांत बच्चा कुछ कहेगा। मी ने माइक थामा, और अपनी कॉपी से कविता निकाली—
“मैं धीमा ज़रूर हूँ, पर मेरी कल्पना तेज़ है। मैं अकेला ज़रूर हूँ, पर मेरा आसमान बड़ा है।”
हर शब्द धीमा था, पर असरदार। कुछ पल के लिए सब शांत थे, फिर गूंज उठी तालियों की आवाज़। मेल्विन की आँखों से खुशी के आँसू गिर पड़े।
सब ने मी की खूब तारीफ की। मेल्विन ने भी की।
"अरे तुमने तो बहुत अच्छा किया मी। तुम बेकार में ही इतनी डरती थी।"- मेल्विन ने कहा।
"आपका शुक्रिया मेल्विन अंकल। मेरा हौसला बढ़ाने के लिए। आपने मुझे सिया दीदी की याद दिला दी।"- मी ने कहा।
"अरे। ये सिया कौन है?"- मेल्विन ने पूछा।
"अह वो जर्नलिस्ट दीदी थी। हम पर एक डॉक्युमेंट्री बनाने आयी थी। उसे हम सब बहुत पसंद करते थे। वो भी बिल्कुल आपके ही तरह थी।"- मी ने कहा।
"अच्छा। तो कहाँ है अब वो?"- मेल्विन पूछा।
"अब नहीं हैं। उस आग ने उनकी जान ले ली।"- मी ने बताया।
यह सुनकर मेल्विन को झटका लगा लेकिन साथ ही साथ उत्सुकता भी जागी। शायद यही वो मकसद था जिसके लिए वो यहाँ आया था। शायद इन सब का डिकोस्टा से भी जरूर कोई लेना देना जरूर था।
"ओह सुनकर दुख हुआ। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे।"- मेल्विन कहा।
यह हो सकता था कि सिया की मौत बिल्कुल साधारण कारणों से हो पर मेलविन इसे नजरअंदाज नहीं कर सकता था। उसने इस बारे में एक बार NGO हेड मिस्टर वर्मा से बात करने की ठानी। मिस्टर वर्मा जो कि अक्सर अपने कबिन में बैठे उन फाइलों को देखते रहते थे उससे मेलविन को मिलने का वक़्त वैसे भी नहीं मिलने वाला था। दिकहते ही देखते प्रतियोगिता का अंतिम दिन भी आ गया।
उस आखरी दिन से ठीक एक रात पहले जब सभी थककर सो रहे थे, मेल्विन ऑफिस के एक कोने में बैठा NGO का डेटा ब्राउज़ कर रहा था। पर उसे कहीं कुछ नहीं मिल रहा था। पर वो ऐसे हार नहीं मानने वाला था। उसने अपनी तरकीब बदली। वो चाहता था कि वहाँ के बच्चों की स्टोरीज़ डॉक्युमेंट करे ताकि उन्हें आगे और मदद मिल सके।
तभी उसकी नज़र एक पुराने फोल्डर पर गई — जिसका नाम था: “Project Siya - Archive (Confidential)”
मेल्विन ने हैरानी से क्लिक किया। अंदर एक वीडियो फाइल थी और कुछ स्कैन किए हुए दस्तावेज़।
उसने हेडफोन लगाया और वीडियो प्ले कर दिया। उस वीडियो में था-
"मेरा नाम सिया है और अगर आप लोग यह देख रहे हैं इसका मतलब मेरी हत्या हो गयी है।"
ये बात किसी के भी खून को सर्द कर देने के लिए काफी थी।
आखिर सिया को अपनी मौत की खबर पहले से कैसे थी? क्या सिया को उस संस्था के ऐसे राज पता चल गए थे जिसकी कीमत उसे अपनी जान डे कर चुकानी पड़ी? आखिर कौन थे वो लोग जिसने सिया की ली जान? जानने के लिए पढ़ें कहानी का अगला भाग।
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