ज़िन्दगी में ऐसे कई मुकाम आते हैं जब हमे न चाहते हुए भी समझौते करने पड़ते हैं, हालात, वक़्त, किस्मत कब बदल जाए कह नहीं सकते। हम सब चाहते हैं एक परफेक्ट पार्टनर, जिसके बारे में रात-दिन ख्याल आते हैं...साथ में चाय पीने से लेकर खाना बनाने तक, ढ़ेरों बातें करने के साथ-साथ सुकून साझा करने तक। ऐसे कई सारे पहलू दिमाग में घर किये हुए हैं, लेकिन क्या हो अगर ये सपनो का आशियाना एक दिन कोई अपना ही तबाह कर दे और वो परफेक्ट पार्टनर सिर्फ एक धुंधली याद बनकर रह जाये?
जनवरी की ठंडी सर्दियों में, सरसों के खेतों के बीच एक हलकी सी धुंध फैली हुई थी। दिन के उजाले में, बाहें फैलाये, सपनों को संजोते, सुहानी अपने शहज़ादे के ख्वाबों में खोई हुई थी।
“सुहानी,” विशाल, सुहानी के बड़े भाई ने उसे आवाज दी।
और किसी शहज़ादी की तरह ही सुहानी ने मुस्कुराते हुए पीछे मुड़कर अपने भाई को देखा। अपने सफेद सलवार-कुर्ते और गुलाबी दुपट्टे में वह बिलकुल किसी परी जैसी लग रही थी।
“तू फिर से दिन में अपने राजकुमार के सपने देखने लगी ना?” विशाल ने उसकी ओर बढ़ते हुए पूछा।
“सपना नहीं भाई, अपना भविष्य देख रही थी। और कहते हैं ना, दिन के उजाले में देखे हुए सपने ही पूरे होते हैं।” सुहानी ने अपने भाई से कहा।
अपनी छोटी बहन की नादानी भरी बातें सुनकर विशाल हंस पड़ा।
“वो तो मैं नहीं जानता, लेकिन अभी हक़ीक़त ये है कि बाउजी तुझे ढूंढ़ रहे हैं। कोई बहुत ही ज़रूरी बात है शायद।”
“बाउजी!” बाउजी का नाम सुनकर सुहानी की आंखों में एक चमक सी आ गई। “वो दिल्ली से वापस कब आए?”
विशाल जब तक सुहानी के सवाल का जवाब दे पाता, उससे पहले ही सुहानी खेतों के बीच से दौड़ती हुई हवेली की ओर जाने लगी।
“बाउजी! बाउजी?” हवेली पहुंचते ही सुहानी ने अपने बाउजी को आवाज देना शुरू कर दिया।
“बाउजी, कहां हैं आप?” ये कहते हुए वह तेज़ी से हवेली के सारे कमरों की जांच करने लगी, और फिर जैसे ही वह अपने कमरे की ओर बढ़ी, तो बाउजी से टकराते-टकराते बची।
“अरे आराम से, तूफान एक्सप्रेस। यहीं हैं तेरे बाउजी।” बाउजी ने सुहानी को संभालते हुए कहा।
उन्हें देखते ही सुहानी उनके गले से लग गई।
“आप दिल्ली से कब आए, और आपने मुझे आने से पहले बताया क्यों नहीं? मैं आपके स्वागत की तैयारियां करती।” सुहानी ने अपने बाउजी से शिकायत की।
“अरे, मैं कौनसा जंग लड़कर लौटा हूं, जो स्वागत की तैयारियां करनी है तुझे? मैं बस दस दिन दिल्ली रहकर लौटा हूं।”
“फिर भी बाउजी…”
“अच्छा अब चुप कर और चल, मुझे तुझसे कुछ जरूरी बात करनी है।”
यह बात सुनकर सुहानी चुप हो गई और अपने बाउजी के पीछे-पीछे कमरे के अंदर चली आई।
विशाल भी पीछे ही खड़ा था। तीनों कमरे में रखे सोफे पर आकर बैठ गए। कुछ देर चुप रहने के बाद, बाउजी ने सिर उठाकर अपने दोनों बच्चों को देखा। जो बहुत ही गंभीर होकर अपने बाउजी को देख रहे थे।
“जब तुम्हारी माँ ज़िंदा थी तो उन्हें तुम दोनों की बड़ी चिंता रहती थी। मैं ज़्यादा कमाता नहीं था, मगर फिर भी वो मेरे साथ उस वक्त खड़ी रही, जब सबने मेरा साथ छोड़ दिया था। वो मुझे बड़ी हिम्मत देती थी, और फिर धीरे-धीरे हमने अपना बिज़नेस खड़ा कर लिया।
उस हादसे से पहले मैं चाहता था कि उसके अंदर पनप रहे इस डर को ख़त्म कर दूं कि हमारे बाद हमारे बच्चों का क्या होगा। लेकिन देखो ना, जब हमारी लाइफ ट्रैक पर आई, तो भगवान ने हमसे ‘काजल’ को ही छीन लिया। बीते सालों में ऐसा एक भी दिन नहीं गया, जिस दिन मैं तुम्हारी माँ को याद नहीं करता।”
यह सुनने के बाद सबका मन भर आया था। काजल, सुहानी की माँ उनके जीवन का सबसे बड़ा सहारा थी। मगर जिस दिन से वो एक्सीडेंट हुआ, उस दिन से घर में एक अकेलापन सा रहता है। इसीलिए सुहानी को हमेशा से एक शहज़ादे की तलाश है, जो उसे समझ सके, जिससे वो अपना मन, अकेलापन बाँट सके और जो उसकी खुशियों की वजह बने।
“मैं तुम्हें कुछ बताना चाहता हूँ। मैंने और काजल ने मिलकर जो बिजनेस खड़ा किया था, उसे लगता है किसी की नज़र लग गई है। कंपनी पिछले दो सालों से नुकसान में चल रही है। उसी के फंडिंग के लिए मैं दिल्ली गया था।”
यह कहते हुए बाउजी अपनी जगह से उठ खड़े हुए और कमरे में इधर-उधर टहलने लगे, जैसे आगे की बात बताने के लिए हिम्मत जुटा रहे हों।
“कोई भी हमारी डूबती हुई कंपनी में इन्वेस्ट करने को तैयार नहीं था। और फिर जब मैं अपनी सारी उम्मीदें खो चुका था, तब राठौर और संस के मालिक और उनका बड़ा भतीजा हमारा सहारा बने, उन्होंने आते ही हमारी कंपनी को फंडिंग देने का प्रस्ताव रखा।”
“एक मिनट बाउजी,” विशाल ने उन्हें बीच में ही रोकते हुए कहा। “राठौर एंड संस? वो दिग्विजय राठौर, जो सालों से सबसे अच्छे इंडस्ट्रियलिस्ट होने का खिताब जीतते आ रहे हैं? और उनका उत्तराधिकारी आरव राठौर, जिसने ना जाने दुनिया के कितने कोनों में अपना बिज़नेस बढ़ाया हुआ है? वो हमारी कंपनी को फंड्स देने के लिए तैयार हैं?” विशाल ने अपना आश्चर्य व्यक्त किया।
“हाँ!” शिव प्रताप ने हामी भरी। “मगर उन्होंने एक शर्त रखी है।” उन्होंने झिझकते हुए कहा।
“कैसी शर्त बाउजी?” सुहानी ने गंभीरता से पूछा।
“उन्होंने… अपने भतीजे, आरव राठौर के लिए तुम्हारा हाथ माँगा है, सुहानी।”
यह सुनकर सुहानी को एक धक्का सा लगा, वह वहीं की वहीं बैठी रही। धीरे-धीरे उसकी आँखें भर आईं। उसे विश्वास नहीं हो रहा था, कि सामने उसके बाउजी ही खड़े हैं। वह बस सदमे में उन्हें देखती रही।
“बाउजी।” विशाल के मुँह से बस आह भरी आवाज़ में बाउजी का नाम निकल पड़ा। उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि उसके बाउजी अभी बस अपना बिज़नेस बचाने के लिए अपनी बेटी का सौदा करने की बात कर रहे थे।
“मैं उम्मीद करता हूं कि आप इस रिश्ते से इंकार कर के आए होंगे।” विशाल ने निराश होकर पूछा।
“मैं… मैं इंकार नहीं कर पाया।” और यह सुनकर सुहानी की आँखों से आंसू बहने लगे।
“मेरी बच्ची!” शिव ने जब अपनी बेटी को इस तरह रोते देखा तो, तुरंत उसके पास आकर बैठ गए और उसके सर पे हाथ फेरने लगे। “मुझे माफ़ कर दे मेरी गुड़िया।”
विशाल अपने पिता से इतना ज़्यादा नाराज था कि उस वक़्त उनका सामना करना भी उसे गवारा नहीं था। इसलिए वह अपनी जगह से उठकर कुछ दूर जाकर खड़ा हो गया, और गुस्से से उसकी साँसे तेज हो गईं थीं।
“पर क्यों बाउजी? मैं ही क्यों?” सुहानी ने रोते हुए पूछा।
“सालों पहले जब हम अपना बिजनेस खड़ा कर रहे थे, तब दिग्विजय राठौर के पिताजी ने हमारी बहुत मदद की थी। वो और तुम्हारे नाना जी बचपन के दोस्त रह चुके थे।
मगर फिर कुछ ऐसा हुआ कि सालों पुरानी दोस्ती टूट गई और उसकी जगह एक क़र्ज़ ने ले ली। शायद इसीलिए आज मुझे इतनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ रही है। पर मैं ये कंपनी नहीं खो सकता सुहानी, इससे तुम्हारी माँ की बहुत सारी यादें जुड़ी हैं। मेरे लिए ये सब कुछ है।”
“और मैं कुछ नहीं? बाउजी मुझे आप से ये उम्मीद नहीं थी, मेरे सपने, अरमान, शहज़ादे का क्या? मुझे शादी करनी है पर किसी ऐसे इंसान से नहीं जिसे मैं जानती तक नहीं और जो मुझे बस एक बिजनेस डील समझे।" सुहानी फूट पड़ी.... “हम कोई ना कोई रास्ता ज़रूर निकाल लेंगे। आप उन्हें मना कर दिजिए इस समझौते के लिए।”
“अब कोई रास्ता नहीं बचा है —मैं पेपर्स साइन कर आया हूं।”
ये सुनते ही सुहानी अपनी जगह से कुछ कदम दूर जाकर खड़ी हो गयी उसे अपने कानों पर भरोसा नहीं हो रहा था।
“नहीं बाउजी, कह दीजिए कि ये झूठ है। कह दीजिए कि आप अपनी कंपनी को बचाने के लिए मुझे बेच कर नहीं आये हैं। बाउजी मैं जानती तक नहीं हूं इस इंसान को।”
“जान जाओगी बेटा, अगर मुझे वो तुम्हारे लिए पसंद नहीं होता तो मैं उन पेपर्स पर कभी साइन नहीं करता। बिलकुल तेरे सपनों के राजकुमार जैसा दिखता है वो सुहानी, बिलकुल किसी शहज़ादे जैसा। और वैसे भी राज करेगी तू उस घर में, बहुत ही बड़े और भले लोग हैं वो सुहानी।”
“भले लोग किसी कंपनी को बचाने के लिए बेटियों का सौदा नहीं करते बाउजी।” यह कह कर विशाल उस कमरे से गुस्से में बाहर निकल गया।
उसके जाने के बाद शिव ने मुड़ कर सुहानी को देखा। उसके आंसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे। शिव खड़े होकर अपनी बेटी के पास गया।
“सुहानी, मैं जानता हूं की तू मुझे कभी माफ़ नहीं कर पाएगी। लेकिन बेटा अपने बाउजी पर थोड़ा सा भरोसा रख। ये लोग सच में तुझे खुश रखेंगे, आरव बहुत ही अच्छा लड़का है सुहानी। उसे एक मौका तो दे। मेरे पास सच में दूसरा कोई और रास्ता नहीं था, लेकिन चाह कर भी मैं कभी तेरे लिए ऐसा रिश्ता नहीं ला पाता।”
सुहानी ने नज़रें उठा कर अपने पिता को देखा और फिर उनसे लिपट कर रोने लगी।
“जब तुम्हारा मन शांत हो जाए, तो मेरे ऑफिस में आ जाना, मैं तुम्हारे सारे सवालों का जवाब दूंगा। अभी तुम थक गई होगी, कुछ देर आराम कर लो।” और फिर बाउजी कमरे से बाहर चले गए। उनके जाने के बाद सुहानी हताश होकर अपने बिस्तर पर जाकर लेट गई।
तकिये पर सर रखते ही सुहानी फिर से रोने लगी। उसका दिल जैसे भीतर से चूर-चूर हो गया था। जिन सपनों को वो दिन के उजाले में सच होते देख रही थी, अब वही सपने उसे किसी काले धुंध में डूबते हुए नजर आ रहे थे।
उसने करवट बदल कर खिड़की के बाहर देखा, जहाँ सूरज डूबने को था। उसे याद आया, बचपन में माँ अक्सर कहा करती थी— “कभी किसी के फैसले को उसकी मजबूरी समझ कर माफ कर देना, वक्त अगर नादान होता है तो मजबूरी भी बेबस होती है।”
क्या बाउजी की मजबूरी वाकई इतनी बड़ी थी? क्या वो सच में मुझे उस अनजान इंसान हाथों में सौंप चुके हैं? क्या उन्होंने अपने बिजनेस की खातिर अपनी बेटी का सौदा कर दिया? सुहानी के मन में कई सवाल थे, पर जवाब देने वाला कोई नहीं।
सुहानी ने अपने आँसू पोंछे और उठकर आईने के सामने खड़ी हो गई। खुद को देखकर उसे लगा जैसे, वही परी अब परियों के लोक से गिर कर इस धरती की एक कठपुतली बन गई है। “अगर मेरी किस्मत में यही लिखा है, तो मुझे खुद अपनी किस्मत बदलनी होगी।”
अपने बालों को बांधते हुए, सुहानी ने तय किया—अब वो बाउजी से जवाब लेकर ही रहेगी, और यह भी जानकर रहेगी कि आखिर वो आरव राठौर है कौन? जिस इंसान को सुहानी की पूरी जिंदगी सौंप दी गई है?
कमरे से बाहर निकल कर, हवेली के गलियारों से गुज़रते हुए सुहानी के कानों में विशाल की कही बातें गूंजने लगीं— “भले लोग बेटियों का सौदा नहीं करते…” क्या वाकई आरव राठौर और उसके परिवार वाले भले लोग हैं? या फिर इस प्रस्ताव के पीछे कोई ऐसा राज़ छुपा है, जो सुहानी की जिंदगी को पूरी तरह से बदल कर रख देगा?
बाउजी के ऑफिस का दरवाज़ा खुला था। सुहानी ने हल्के से दस्तक दी और कमरे के भीतर चली गई। बाउजी मेज पर रखे कागजों में डूबे हुए थे।
“बाउजी…” सुहानी की आवाज़ में अब आंसुओं की जगह ठहराव था। “आपने मुझसे कहा था कि आप मेरे सारे सवालों के जवाब देंगे। मुझे बस एक ही सवाल का जवाब चाहिए—आपको इस सौदे में मेरे भविष्य से ज़्यादा अपनी कंपनी की क्यों फिक्र है?”
बाउजी ने सिर उठाकर अपनी बेटी को देखा, और उनके चेहरे पर अजीब सी बेचैनी तैर गई। “क्योंकि ये सिर्फ बिजनेस का सौदा नहीं था सुहानी… ये…”
वो कुछ बोलते-बोलते रुक गए। उनके चेहरे पर झलक रही परेशानी अब किसी गहरे रहस्य को बयां कर रही थी।
उसी वक़्त हवेली के बाहर किसी गाड़ी के रुकने की आवाज़ आई। सुहानी का ध्यान भटका, मगर बाउजी का चेहरा और भी गंभीर हो गया।
“कौन आया है बाउजी?” सुहानी ने पूछा।
बाउजी ने खिड़की की ओर देखा, फिर धीमे स्वर में बोले, “वो ही जिसके पास तुम्हारे सवालों का जवाब है…”
सुहानी ने खिड़की से झांक कर देखा—एक काले रंग की Luxury car हवेली के बहार खड़ी थी। ड्राइवर ने दरवाजा खोला। बाहर निकलते ही काली चमचमाती गाड़ी की परछाई में एक लंबा, आकर्षक शख़्स उभरा। आरव राठौड़!
उसकी चाल में एक ठहराव था—न बहुत तेज़, न बेवजह धीमी। हर क़दम जैसे सोच-समझ कर रखा गया हो। गहरा काला सूट, सफ़ेद शर्ट और perfect fitted टाई, जैसे किसी बिजनेस मैगज़ीन के कवर पेज से निकला हो। लेकिन सबसे ज़्यादा असर डाल रही थी उसकी आँखें—तीखी, नपे-तुले भावों से भरी, ऐसी निगाहें जो सामने वाले को पढ़ सकती थी, मगर खुद को कभी ज़ाहिर नहीं करतीं।
हल्की ठंडी हवा में उसकी खुशबू तक ठहर गई थी—एक महंगे परफ्यूम की सुगंध, जिसमें ताकत और रहस्य का मिला-जुला एहसास था। उसने हल्का सिर उठाया, चारों ओर एक नज़र डाली, और फिर वैसी ही सहजता से आगे बढ़ गया, जैसे ये दुनिया उसके लिए बिछाई गई हो।
सुहानी का दिल जोर-जोर से धड़कने लगा।
आरव ने हवेली की ओर एक आख़िरी बार देखा फिर अपने फोन पर कुछ लिखते हुए, ड्राइवर को कुछ कहा और हवेली की ओर बढ़ने लगा।
“तैयार रहो सुहानी,” बाउजी ने धीरे से कहा। “तुम आज, अपने जीवन के बेहद ही अहम पहलू से रूबरु होने वाली हो।
सुहानी बाउजी की ओर देखने लगी, लेकिन उनके चेहरे पर कोई स्पष्ट जवाब नहीं था। उसके जीवन में सब कुछ बदलने वाला था, उसे इस बात का एहसास हो चुका था। मगर वो अपने आप को आने वाले वक़्त के लिए चाहे कितना भी तैयार कर ले, आने वाला तूफ़ान उसके वजूद को हिला कर रख देने वाला था।
आगे क्या होगा?
क्या आरव सच में सुहानी के लिए सही इंसान है?
क्या इस शादी के पीछे कोई और राज़ छुपा है?
क्या सुहानी अपनी तक़दीर खुद बदल पाएगी?
जानने के लिए पढ़ते रहिए… 'रिश्तों का क़र्ज़'!
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