शादी का लाल जोड़ा, हाथ में चूड़ा, पैरों में पायल, गले में मंगलसूत्र और माथे पर अपने सुहाग का सिन्दूर - हर लड़की का अरमान होता है वो अपने राजकुमार के नाम का सिन्दूर माथे पर सजाये और एक नई ज़िन्दगी की शुरुआत करे, ठीक हमारी सुहानी की तरह।  

सुहानी लाल जोड़े में अभी अपनी मां की तस्वीर के सामने खड़ी थी, इस उम्मीद में कि वह अपनी बेटी को दुल्हन के रूप में देखकर अपना आशीर्वाद दें और साथ ही साथ उसके मन में उठ रहे तूफान को भी शांत करें, जिसने उसके मन में तब से घर कर रखा है जब से उसकी मुलाकात आरव राठौर से हुई थी।

ठीक एक हफ्ते पहले…

शिव प्रताप के ऑफिस में दरवाज़े पर एक दस्तक हुई।

"अंदर आ जाइए," बाउजी ने गंभीर आवाज़ में कहा।

दरवाज़ा खुला, और उसके साथ ही जैसे कमरा ठंडा सा पड़ गया। काले सूट में, कंधे चौड़े किए, नपी-तुली चाल चलते हुए एक शख़्स अंदर आया। उसकी आँखें सीधे शिव प्रताप पर टिकी हुई थी, लेकिन सुहानी को महसूस हुआ जैसे उसकी मौजूदगी, उस कमरे में रखी हुई हर चीज़ पर भारी पड़ रही थी।

"आरव राठौर!" बाउजी ने धीरे से उसका नाम लिया।

आरव ने हल्की सी मुस्कान दी और बिना कोई बेकार की बातें किए, सीधा मुद्दे पर आ गया—"तो, आपने अपनी बेटी को हमारे बीच हुए प्रस्ताव के बारे में समझा दिया?"

इससे पहले कि बाउजी कुछ कहते, सुहानी ने खुद को संभालते हुए जवाब दिया—"मुझे कुछ समझने की ज़रूरत नहीं है, मिस्टर राठौर। मुझे बस ये जानना है कि आपने मेरे बाउजी के सामने ऐसी शर्त क्यों रखी?"

आरव ने सुहानी की तरफ देखा। उसकी आँखों की गहराईयों में न कोई नर्मी थी, न ही कोई सख़्ती। जैसे उसे फर्क ही नहीं पड़ता कि कोई क्या सोचता है।

"शर्त?" उसने हल्के से सिर झुकाते हुए कहा, “ये सिर्फ एक डील है, मिस सुहानी। बिजनेस वर्ल्ड में हर चीज़ की कीमत होती है, और हर कीमत के पीछे एक वजह।”

"तो मेरी क्या कीमत लगाई आपने?" सुहानी की आवाज़ में अब तंज था।

आरव ने एक गहरी सांस ली और कहा—"तुम्हें क्या लगता है, ये शादी सिर्फ तुम्हारे लिए मुश्किल है? मेरे लिए भी यह आसान नहीं है।"

“तो फिर क्यों करना चाहते हैं आप मुझसे शादी?”

आरव कुछ पल चुप रहा, फिर उसने कहा—"क्योंकि मेरे पास और कोई दूसरा option नहीं है।”

यह कैसी मज़बूरी है? 

सुहानी ने बाउजी की ओर देखा। उनके चेहरे पर चिंता की परछाइयाँ थीं।

“बेटा, ये शादी सिर्फ तुम्हारी ज़िंदगी की बात नहीं है। ये हमारे पूरे परिवार के सम्मान की बात है।”

"कैसा सम्मान, बाउजी?" सुहानी ने हताश होकर पूछा।

“तुम जानती हो, हमारा बिज़नेस काफ़ी समय से मुश्किल में है। हम पर बहुत बड़ा क़र्ज़ है, जिसे चुकाना नामुमकिन होता जा रहा था। और ये नामुमकिन काम, राठौर परिवार की मदद के बिना मुमकिन कर पाना मुश्किल है।”

सुहानी का चेहरा सफ़ेद पड़ गया।

"मतलब... आप लोगों के लिए ये बिज़नेस डील इतनी ज़रूरी हैं, कि आप लोगों ने एक इंसान का सौदा कर दिया?" उसकी नज़रें अब आरव पर टिकी थीं।

आरव ने सिर हिलाया। “देखो सुहानी, ये बस एक बिज़नेस डील नहीं है। तुम मुझसे शादी कर के राठौर परिवार की बहू बनोगी, और तुम्हारे परिवार का कर्ज़ चुकता हो जाएगा। इस शादी से तुम्हारा कोई नुकसान नहीं होने वाला, ऊपर से तुम्हारे नाम के साथ जब राठौर का नाम जुड़ेगा तो तुम्हें अंदाजा भी नहीं है कि तुम लोगों के लिए कितने रास्ते खुल जाएंगे।”

सुहानी को लगा जैसे किसी ने उसके पैरों तले ज़मीन खींच ली हो।

“तो ये रिश्ता बस एक समझौता है?”

"समझौता या तक़दीर, ये तो वक़्त ही बताएगा," आरव ने हल्के से कहा।

यह सुनकर सुहानी का दिल तेज़ी से धड़कने लगा। क्या वह सच में अपनी ज़िंदगी का सबसे बड़ा फैसला एक सौदे की तरह कर पाएगी? उसके भीतर हज़ारों सवाल उठ रहे थे, लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही था—क्या वह अपने पिता के ग़ुरूर के लिए सूली पे चढ़ जाए? ये मज़बूरीयों से भरी शादी कैसी होगी? 

आरव अब भी उसे देख रहा था, उसकी आँखों में वही ठहराव था, मानो वह पहले से ही जानता हो कि सुहानी के पास कोई रास्ता नहीं हैं।

"अगर मैं मना कर दूं तो?" सुहानी ने ठहरी हुई आवाज़ में पूछा।

सुहानी की बेबाकी देख, आरव के चेहरे पर एक हलकी सी मुस्कान ने दस्तक दी।

 “तो तुम्हारे बाउजी के पास दूसरा रास्ता नहीं रहेगा। उनके बिज़नेस पर जो संकट मंडरा रहा है, वह सिर्फ़ एक शुरुआत है। हमारे बीच जो समझौता हुआ है, अगर तुमने उसे ठुकरा दिया, तो चीज़ें और मुश्किल हो जाएंगी।”

“धमकी दे रहे हैं आप?”

“नहीं, बस हकीकत बता रहा हूँ।”

सुहानी का गुस्सा अब बढ़ने लगा था। “तो आप सोचते हैं कि मैं इतनी कमज़ोर हूँ कि मजबूरी में शादी कर लूंगी?”

आरव ने धीरे से सिर झुका लिया। “कमज़ोरी नहीं, समझदारी कहो। ज़िंदगी में कुछ फैसले दिल से नहीं, दिमाग से लिए जाते हैं। और ये शादी… इससे दोनों परिवारों को फायदा होगा। तुम्हारे लिए भी यही बेहतर है।”

“बेहतर? किस हिसाब से?”

“तुम्हें अब तक ये तो समझ आ ही गया होगा कि मैं कभी किसी चीज़ के लिए बेवजह मेहनत नहीं करता। अगर मैंने ये रिश्ता तय किया है, तो उसकी भी कोई वजह होगी।”

“कैसी वजह?”

आरव के चेहरे पर एक पल के लिए हल्की कठोरता आई, फिर उसने खुद को सँभालते हुए कहा, “यह जानने के लिए तुम्हें वक़्त का इंतज़ार करना होगा, सुहानी।”

बाउजी ने सुहानी के कंधे पर हाथ रखा। 

“बेटा, तुम्हें इंकार करने से पहले इस रिश्ते के बारे में थोड़ा और सोचना चाहिए। यह सिर्फ़ एक शादी नहीं, हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए भी एक सुरक्षित भविष्य हो सकता है।”

"तो मतलब मैं सिर्फ़ एक मोहरा हूँ?" सुहानी की आवाज़ हल्की पर ठोस थी।

"मोहरा नहीं, एक मजबूत कड़ी," बाउजी ने धीरे से कहा।

कमरे में एक भारी खामोशी छा गई। सुहानी ने एक गहरी सांस ली। उसकी ज़िंदगी इस मोड़ पर आकर खड़ी थी, जहाँ से लौटना मुश्किल था। क्या वह अपनी मर्ज़ी से इस राह पर चलेगी, या फिर तक़दीर उसे इस रास्ते पर धकेल देगी?

आरव ने उसकी ओर देखा और कहा, “तुम्हारे पास सोचने के लिए ज़्यादा वक़्त नहीं है, सुहानी। फैसला तुम्हें ही करना होगा।”

तभी दरवाज़े पर फिर से दस्तक हुई।

आरव के इशारे पर उसका ड्राइवर अंदर आया, उसके साथ दो और लोग थे। उनके हाथों में बड़े-बड़े box थे, जिन्हें उन्होंने धीरे से मेज़ पर रख दिया।

"ये सब क्या है?" सुहानी ने चौंक कर पूछा।

ड्राइवर ने एक box खोला। अंदर में उसमें शाही मिठाइयाँ रखी हुई थीं। दूसरा डिब्बा खुला तो उसमें चमकते हीरों के कई सारे सेट रखे हुए थे। और तीसरा डिब्बा—लाल जोड़ा!

"ये शादी का शगुन है," आरव ने सीधे जवाब दिया। “एक हफ्ते बाद शादी है। सब पहले से ही तय हो चुका है।”

सुहानी ने ड्राइवर की ओर देखा, फिर उन लाल कपड़ों को, जो अब उसकी ज़िंदगी को एक नई दिशा देने वाले थे।

"लेकिन..." 

वह कुछ कह पाती उससे पहले ही आरव ने गंभीर आवाज़ में कहा, “कोई लेकिन-वेकीन नहीं, मिस सुहानी। खुद को जितनी जल्दी इस शादी के लिए तैयार कर लोगी, उतना ही काम आसान हो जाएगा। इस शादी में कई बड़ी हस्तियाँ आएंगी, और कई न्यूज़ चैनल्स इसे कवर करेंगे। यह शादी सिर्फ एक रिश्ता नहीं, एक डील है। और डील्स पर सवाल नहीं किए जाते।”

सुहानी के लिए यह शब्द किसी हथौड़े की तरह थे, जो उसके दिल पर आकर पड़े थे। उसकी आँखें अब लाल जोड़े पर टिक गईं। शादी डील कब से हो गई, ये तो वो बंधन है जो लड़का लड़की के साथ दो परिवारों को जोड़ता है। लेकिन सुहानी के लिए उसका सपना एक बुरी हकीकत बनता जा रहा था और उसका सबसे अहम किरदार आरव था। जिसने आते ही बिना कुछ जाने, सोचे बस सुहानी को शतरंज के मोहरे की तरह चलाना शुरू कर दिया।  

क्या यह सौदा था? या तक़दीर का एक नया मोड़?

सुहानी लाल जोड़े में अपनी मां की तस्वीर के सामने खड़ी उस दिन को याद कर रही थी जब वो पहली बार आरव से मिली थी। उसकी आंखों में सवाल थे, अनगिनत सवाल, जिनका जवाब उसे शायद कभी नहीं मिलने वाला।

आज उसकी शादी थी। लेकिन यह कोई आम शादी नहीं थी। यह उस तरह की शादी थी, जिसका सपना लाखों लड़कियां देखा करती हैं। हर तरफ चकाचौंध थी, महंगे डिजाइनर कपड़े पहने मेहमान, विदेशी फूलों से सजा विशाल मंडप, दुनिया के सबसे बेहतरीन शेफ द्वारा तैयार किया गया शाही भोज और सुरक्षा का ऐसा इंतजाम कि परिंदा भी पर नहीं मार सके। लेकिन इन सब के बावजूद, यह शादी सुहानी के लिए एक तमाशा भर थी, जिसमें वह बस एक हिस्सा थी।

पूरी दुनिया की नजरें इस शादी पर टिकी हुई थी। भारत ही नहीं, बल्कि विदेशों के बड़े-बड़े न्यूज़ चैनल इस शादी को लाइव कवर कर रहे थे। यह शादी एक ऐतिहासिक समारोह बन चुका था। इसमें बिजनेस टायकून, बॉलीवुड और हॉलीवुड के मशहूर अभिनेता, निर्देशक, संगीतकार, राजनेता, राजा-महाराजा, शेख और ना जाने कितनी हस्तियां शामिल थीं। हर कोई इस भव्य आयोजन का हिस्सा बनने को उत्साहित था। पर इन चमकते चेहरों के बीच, कोई भी ऐसा नहीं था जो सुहानी के मन में उठ रहे सवालों को पढ़ सके।

सुहानी का भाई, जिसे उसकी सबसे ज़्यादा परवाह थी, इस शादी से पहले ही वो किसी दूसरे शहर चला गया। उसने सुहानी को समझाने की बहुत कोशिश की, लेकिन जब उसे एहसास हुआ कि सुहानी के पास कोई और चारा नहीं है, तो उसने खुद को इस सबसे अलग कर लिया। 

उसने कहा था, "अगर तुम्हें ये शादी करनी है, तो कर लो, लेकिन मैं इस तमाशे का हिस्सा नहीं बन सकता।" वह नहीं समझ पाया कि यह शादी सुहानी के लिए कितनी बड़ी मुसीबत लेकर आने वाला था।

वह अपने पिता की इज्जत बचाने के लिए इस बंधन में बंध रही थी, लेकिन उसकी आत्मा इस बंधन को स्वीकार नहीं कर पा रही थी। उसकी दुनिया जैसे अचानक सिमट सी गई थी।

जब शादी की रस्में शुरू हुईं, तो माहौल में शहनाइयों की गूंज घुलने लगी। हर कोई इस ग्रैंड वेडिंग के नज़ारों में खोया हुआ था। 

तभी मंडप के पास खड़े आरव की नज़र सुहानी पर पड़ी। उसे देखते ही वह कुछ पल के लिए स्तब्ध रह गया। सुहानी को इस लाल जोड़े में देखकर जैसे उसे खुद पर यकीन नहीं हुआ, कि ये उसकी दुल्हन है। लेकिन अगले ही पल, उसने खुद को संभाल लिया और अपनी नज़रें फेर लीं।

शादी के मंत्र गूंजने लगे। सब कुछ किसी सपने की तरह लग रहा था। लेकिन सुहानी के चेहरे पर मुस्कान तक नहीं थी उसकी आंखें नम थीं, लेकिन वह किसी को अपनी तकलीफ दिखाना नहीं चाहती थी।

जब फेरों का समय आया, तो हर कोई इस भव्य आयोजन का गवाह बनने को उत्सुक था। लेकिन सुहानी की मां उसके साथ नही थीं, उसका भाई उसके साथ नहीं था, और उसके पिता ने उसे एक सौदे की तरह बेच दिया था। जिस घर में वह बहू बनकर जा रही थी, उनके लिए भी यह शादी एक डील से बढ़कर कुछ नहीं थी।

हर रस्म निभती रही, हर शब्द गूंजते रहे, लेकिन सुहानी के लिए यह सब बेमानी था। उसकी तक़दीर उसे कहां ले जा रही थी, इसका अंदाजा उसे भी नहीं था। 

विदाई का समय आ चुका था। चारों तरफ रिश्तेदारों के रोने की आवाज़ें गूंज रही थीं, लेकिन सुहानी की आँखों में एक भी आँसू नहीं था। उसके आँसू तो कब के सूख चुके थे। वह जैसे एक बेजान कठपुतली बन चुकी थी, जिसमें अब कोई भावना बची ही नहीं थी।

उसके सामने उसके पिता शिव प्रताप खड़े थे। उनकी आँखें भीगी हुई थीं, लेकिन सुहानी ने उनकी तरफ एक बार भी मुड़ कर नहीं देखा। वह वही पिता थे, जिनकी इज्ज़त और प्रतिष्ठा के लिए उसने अपनी ज़िंदगी का सबसे बड़ा फैसला लिया था। लेकिन क्या सच में वो इसके लायक थे? नहीं, उन्होंने तो सुहानी को बस एक सौदे की तरह किसी और की झोली में डाल दिया था।

शिव प्रताप ने आगे बढ़कर उसका हाथ पकड़ना चाहा, लेकिन सुहानी ने अपने कदम पीछे ले लिए। यह देखकर शिव प्रताप का दिल जैसे टूट गया। उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि उनकी बेटी, जो उन्हें अपनी दुनिया मानती थी, आज इतनी दूर हो जाएगी कि उसे अलविदा कहते समय भी उनकी आँखों में देखना उसके लिए मुनासिब नहीं होगा।

"बेटा..." शिव प्रताप के काँपते हुए होठों से बस इतना ही निकला, लेकिन सुहानी ने कोई जवाब नहीं दिया।

उसने चारों ओर देखा—भीड़ में अनगिनत लोग थे, लेकिन कोई भी उसका अपना नहीं था।  

उसका दिल जोर-जोर से धड़क रहा था, लेकिन वह अपने चेहरे पर कोई भाव नहीं आने दे रही थी। उसने अपने घूंघट को ठीक किया, खुद को संभाला और बिना एक भी शब्द कहे धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगी।

गाड़ी के पास पहुँचते-पहुँचते उसके कदम भारी होने लगे, लेकिन उसने खुद को मजबूती से थामे रखा। वह जानती थी कि अब पीछे मुड़ने का कोई रास्ता नहीं है। उसके पैरों के नीचे से उसकी पूरी दुनिया खिसक चुकी थी, और अब उसे इस अनजान रास्ते पर अकेले ही चलना होगा।

गाड़ी का दरवाज़ा खुला। उसने एक आखिरी बार अपनी दुनिया को मुड़ कर देखा—वह घर, जहाँ उसकी हँसी गूँजती थी, जिसके आँगन में उसने अपने बचपन के सबसे खूबसूरत पल बिताए थे। लेकिन अब यह घर उसके लिए सिर्फ एक जगह बनकर रह गया था, जहाँ उसकी यादें कैद थीं।

उसने गहरी सांस ली और गाड़ी में बैठ गई। दरवाज़ा बंद हुआ, और गाड़ी धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगी। 

शिव प्रताप वहीं खड़े रह गए, गाडी से उड़ते उस धूल को देखते रहे…उन्होंने अपनी बेटी को विदा नहीं किया था—उन्होंने आज उसे खो दिया था।

गाड़ी के दरवाज़े बंद होते ही अंदर एक गहरी खामोशी छा गई। सुहानी अपनी लाल चूड़ियों में उंगलियाँ फंसाए बैठी रही, आरव उसके बगल में बैठा था, मगर उसने एक बार भी सुहानी की ओर देखना ज़रूरी नहीं समझा। गाड़ी धीरे-धीरे आगे बढ़ती रही, और सुहानी का घर, उसकी दुनिया, पीछे छूटती चली गई।

“तुम सोच रही हो कि ये फैसला सही था या नहीं?”

आरव की आवाज़ ने उस सन्नाटे को तोड़ा।

सुहानी ने कोई जवाब नहीं दिया।

"अब सोचने का कोई फ़ायदा नहीं, मिसेज़ राठौर," आरव ने बिना उसकी तरफ देखे कहा। “क्योंकि अब तुम्हारे पास कोई और रास्ता नहीं बचा।”

सुहानी ने धीरे से उसकी तरफ देखा—उसकी आँखों में नफ़रत की एक हल्की सी झलक थी।

लेकिन आरव अब भी खिड़की के बाहर देख रहा था, उसके चेहरे पर हल्की मुसकान थी जैसे उसके लिए ये शादी एक डील के साथ-साथ एक मज़ाक़ हो।

गाड़ी तेज़ी से शहर की जगमगाती सड़कों से होती हुई, उस हवेली की तरफ बढ़ने लगी, जहाँ सुहानी की नई ज़िंदगी इंतज़ार कर रही थी—एक ऐसी ज़िंदगी, जिसका हर पन्ना अनकहा और अनजान था।

आखिर कैसा होगा सुहानी का ये नया सफर?

क्या सुहानी कभी इस डील को समझ पायेगी या फिर एक नया सच उसके सामने आएगा? 

जानने के लिए पढ़ते रहिए… 'रिश्तों का क़र्ज़'!

 

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