सुषमा : (व्याकुलता के साथ) दीदी बताईये ना, आपके दोनों हाथ खाली क्यों है? वे सोने के कड़े कहां गए?
जिस तरह सुषमा ने अपर्णा के खाली हाथों को देख कर सवाल किया था, उससे अपर्णा थोड़ी असहज हो गयी। एक दिन पहले ही उसने उनके हाथों में सोने के कड़े देखे थे, आज वह हाथ में नहीं थे। वह जानती थी कि वे कड़े दादा की आखिरी निशानी थे। अपर्णा ने अपने हाथों को छुपाने की बहुत कोशिश भी की मगर वह ऐसा कर नहीं पाई। सुषमा के हाथ उन के पैरों को तेल लगाते, अचानक से रुक गए थे। उस की नज़रे अपने सामने बैठी अपर्णा को ऐसे देख रही थी जैसे उनसे अपने सवाल का जवाब मांग रही हो। उनके पास भी कोई विकल्प नहीं था। उन्होंने दबी हुयी आवाज़ में कहा, ‘’मैंने उन सोने के कड़ों को बेच दिया है।''
सुषमा : (थोड़ा नाराज़गी वाले भाव) मगर क्यों, दीदी? आपने उनको क्यों बेच दिया?
उसे अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ, उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि दीदी उन कड़ों को कैसे बेच सकती थी। आखिर ऐसी क्या ज़रूरत पड़ गई थी, जिसकी वजह से उन्हें अपनी सबसे अनमोल चीज़ को बेचना पड़ा। सुषमा ने दुखी होते हुए कहा, ‘’परिवार पर कितना कठिन समय आया, आपने तब भी उन्हें नहीं बेचा… आज ऐसी क्या नौबत आ गयी कि आपको यह कदम उठाना पड़ा?''
अपर्णा : (नार्मल तरीके से) सुषमा, तुमसे घर के हालात कभी छिपे नहीं है, राहुल ने अमेरिका जाने के बाद एक भी पैसा नहीं भेजा। राहुल के पिता के श्राद्ध के लिए पैसे तो चाहिए थे ना! बिना पैसे के भला कुछ हो पाता क्या?
सुषमा सब समझ गयी, उस को अंदर ही अंदर रोना भी आ रहा था और गुस्सा भी। गुस्सा राहुल पर आ रहा था। उसने मन में सोचा, ‘नहीं चाहिए ऐसा बेटा, नहीं भेजना बेटे को इतनी दूर जो अपनी माँ को इस उम्र में अकेला छोड़ दे।’
सुषमा उनकी यह बात सुनकर, अपनी दीदी के लिए और चिंतित हो गई। अपर्णा भी पहले से जानती थी कि आज नहीं तो कल जब वह उनके खाली हाथों को देखेगी तो सवाल ज़रूर करेगी और उन्हें जवाब देना होगा। जिस बात के बारे में कल बताना था अगर आज बता दिया तो अच्छा हुआ, उनका मन भी हल्का हो गया। भले ही उनके हाथ खाली थे मगर उनका आत्मविश्वास अभी भी बरक़रार था। सुषमा ने तुरंत कहा, ‘’दीदी, कम से कम आप मुझसे तो बता देती। हो सकता था, उन कड़ों को बेचने की ज़रूरत ही ना पड़ती।''
अपर्णा : (मुस्कुराते, अपना दर्द छुपाते ) क्या मैं तुझे जानती नहीं, अगर उन्हें बेचने से पहले तुझे बता देती, तो तू मुझे कभी भी बेचने नहीं देती।
अपर्णा का कड़े बेच पाने के पीछे कारण यही था कि उनके लिए ज़्यादा अहमियत इस बात की थी कि उनके पति की आत्मा को शांति मिले। वे कड़े उनके लिए अमूल्य थे क्योंकि उनके पति ने उन्हें खरीद कर दिए थे लेकिन उनका विश्वास था कि श्राद्ध को पूरी विधि-विधान के साथ करने से सुरेंद्र की आत्मा को शांति मिलेगी। रही बात सोने के कड़ों की तो उनका मानना था कि गहने तो इंसान बनाता ही बुरे वक्त में काम आने के लिए है, इसीलिए उन्होंने सुषमा से कहा, ‘’तुम देखना सुषमा, समय आने पर मैं इससे भी महंगे और अच्छे कड़े बनवाऊँगी।''
जिस आत्मविश्वास के साथ अपर्णा ने अपनी बात को कहा था, उसे सुनकर सुषमा की आँखों में चमक आ गयी। उनके चेहरे पर एक अलग ही तेज दिख रहा था, देख कर उसे भी बहुत अच्छा लगा। उसने कहा, ‘’हाँ दीदी,वह समय जल्द ही आएगा। वैसे एक बात कहूँ? हमारा ऊपर वाला कमरा, वैसे भी खाली ही रहता है, क्यों ना हम उसे किराए पर दे दें? उसकी आमदनी से घर का खर्च आराम से चल जायेगा।''
सुषमा की बात में दम था। वैसे भी अपर्णा के पास जो बचे हुए पैसे थे, वह कुछ ही दिन चलने वाले थे। आने वाले दिनों में घर के खर्च के लिए पैसा तो चाहिए था। उन्हें सुषमा का सुझाव बहुत अच्छा लगा। अब समस्या यह थी कि किरायेदार आएंगे कहां से। अब घर में ऐसे वैसे लोगों को तो रख नहीं सकते थे। किरायेदार सज्जन होना ज़रूरी था। इधर दोनों ने अच्छे किरायेदार को ढूंढ़ने पर विचार करना शुरू कर दिया था तो वहीं दूसरी तरफ़ रोहन अपने दोस्त बबलू के कहने पर उस चाय की टपरी पर रुक गया था। बबलू ने उस चाय वाले को हाथ से दो चाय लाने का इशारा किया। इसके साथ ही बबलू ने रोहन से बिस्कुट खाने के बारे में भी पूछा तो रोहन ने कहा, ‘’नहीं, यार बस चाय पियूँगा और कुछ नहीं।''
इस बात पर बबलू तो कुछ नहीं बोला मगर चाय वाला जिसका नाम राजू था, उसने तुरंत कहा, “क्या बात है, भाई बहुत उदास दिख रहे है, लगता है गर्लफ्रेंड से झगड़ा हो गया”। यह सुन कर रोहन ने तुरंत उसकी तरफ गुस्से से देखा।
इससे पहले वह चाय वाले पर भड़कता, बबलू ने कहा, “अपना भाई, शादी शुदा है। वह क्या है ना राजू, आज नौकरी में पहला दिन था, महाशय लेट हो गए, अब उसी चीज़ को लेकर उदास है”। यह बात सुन कर राजू ने कहा, “इसमें उदास होने की क्या ज़रूरत है”। वह कुछ और कहता, इससे पहले रोहन ने कहा, ‘’रहने तो भाई, तुम पढ़े लिखे होते तो शायद समझ पाते कि एक पढ़े लिखे को नौकरी मिलना कितनी ज़रूरी है।''
इस बात पर राजू ने तो कुछ नहीं कहा मगर बबलू ने अपनी चुप्पी तोड़ी और तुरंत कहा, “रोहन, मेरे भाई, यह राजू जो है ना, वह ग्रेजुएट है, वह भी first class में”। इस बात को सुनकर रोहन के पैरों के नीचे से ज़मीन निकल गयी थी। वह यह सोचकर ताज्जुब कर रहा था कि एक ग्रेजुएट होकर, वह भी first class के साथ, राजू चाय बेच रहा है।
इससे पहले वह कुछ कहता, बबलू ने कहा, “रोहन तुम सोच रहे होंगे कि यह ग्रेजुएट होने के बावजूद चाय क्यों बेच रहा है! असलियत तो यह है कि यह चाय बेचकर, नौकरी से कहीं ज़्यादा पैसे कमाता है”। तभी राजू ने भी कहा, “जो संतुष्टि अपने काम को करने में है, वह दूसरों के काम में कहाँ। रही बात आमदनी की, वह तो बस भगवान की दया है”।
भले ही यह बात कितनी भी अच्छी क्यों हो, रोहन के सिर के ऊपर से चली गई। उसे तो बस अपनी नौकरी की चिंता थी। बबलू ने चाय के साथ एक सिगरेट भी पी। सिगरेट पीना तो रोहन भी चाहता था मगर प्रिया की कसम ने उसे रोक दिया। और समय ना बर्बाद करना चाहकर, रोहन बोला, ‘’मुझे अब घर चलना चाहिए, यहाँ रुक कर कोई फायदा नहीं।''
रोहन चाय के पैसे देने लगा तो बबलू ने उसे रोक दिया। इस बार चाय बबलू की तरफ से थी। उसने राजू को पैसे देते हुए कहा, “यह लो भाई दो चाय और एक सिगरेट के पैसे काट लो”।
बबलू ने राजू को पचास का नोट दिया था। राजू ने बचे हुए पैसों को वापस देते हुए कहा, “भाई यह रहे आपके बाकी के बचे हुए पैसे, दोबारा ज़रूर आना”।
पैसे लेने के बाद दोनों निकले तो एक साथ, मगर थोड़ी दूर जाने के बाद अपने अपने घर की तरफ चले गए। जैसे ही अपने घर पहुंच कर रोहन ने दरवाज़े पर लगी बेल को दबाया, तो घर के अंदर प्रिया चौंक गयी। उसने तुरंत घड़ी की तरफ देखते हुए कहा, ‘’इस समय कौन हो सकता है? रोहन तो अभी नहीं आ सकता, उसे तो गए हुए सिर्फ दो घंटे ही हुए है।''
प्रिया घर की सफाई में लगी हुई थी। उसके हाथ में जो काम था, उसे छोड़ा और दरवाज़े की तरफ चली गई। दरवाज़ा खोलकर देखा तो उसके सामने रोहन खड़ा था। इस समय, रोहन को अपने सामने खड़ा हुआ देख कर प्रिया की समझ में कुछ नहीं आया। उसने चौंकते हुए तुरंत कहा, रोहन, तु… तुम, इस समय? तुम तो काम पर गए थे ना, इतनी जल्दी कैसे आ गए?
रोहन की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या कहे। जिस तरह से प्रिया ने अचानक से उस पर सवालों की बौछार कर दी थी, वह थोड़ा चिढ़ गया। उसने चिढ़ते हुए कहा, ‘’मुझे कम से कम घर के अंदर तो आने दो। सारे सवाल यहीं दरवाज़े पर पूछ लोगी?''
प्रिया उसके रास्ते से हट गयी और वह घर के अंदर आ गया। अगले ही पल प्रिया ने दरवाज़े को घर के अंदर से बंद किया और उसके पीछे पीछे बरामदे में आ गयी। अंदर आकर रोहन ने पलट कर उस की तरफ मुँह किया और उसे देखने लगा, वह भी उसे ऐसी नज़रो से देख रही थी जैसे उसका जवाब सुनने के लिए इंतजार कर रही हो। उसने प्रिया को पूरा किस्सा सुनाया जिसे सुनकर प्रिया के पास कहने के लिए कुछ नहीं था। उसके दिमाग में अलग ही टेंशन चल रही थी। उसने कहा, ‘’अब कैसे चलेगा? एक तरफ़ तुम्हारी नौकरी और दूसरी तरह यह घर!''
जैसे ही प्रिया ने "घर" शब्द का इस्तेमाल किया, रोहन चौंक गया। उसकी समझ में नहीं आया कि वह घर को लेकर क्या बात करने वाली है? जिस तरह से प्रिया ने अपनी बात को अधूरा छोड़ा था, उससे रोहन और ज़्यादा परेशान हो गया।
आखिर प्रिया घर को लेकर क्यों परेशान थी?
कहीं दोनों पर कोई नयी मुसीबत तो आने वाली नहीं थी?
रोहन की नौकरी का क्या होगा?
उधर सुषमा और अपर्णा अपने घर के लिए नए किरायदार ढूंढ़ने के लिए क्या रास्ता अपनाएंगे।
जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
No reviews available for this chapter.