सुरेन्द्र जी के श्राद्ध के लिए आए लोगों में से एक औरत की कानाफूसी वाली आवाज़ आई ““जितना कुछ भी खर्चा हुआ होगा, वह सब बेटे ने अमरीका से ही पैसा भेजा होगा”, जवाब में किसी दूसरी ने कहा “हाँ बहन, तुम सच कह रही हो, वैसे भी पैसा बहुत बड़ी चीज़ होती है, लगता है इनके पास बहुत पैसा है”

यह पहली आवाज़ किसी और की नहीं बल्कि शन्नो की थी, सुरेंद्र के दूर की मौसी की बेटी। जिसके मुंह में जो आ रहा था, वह बोले जा रहे थे। बंद मुट्ठी में क्या है, वह तो अपर्णा ही जानती थी। किस तरह अपर्णा ने पैसों का इंतेज़ाम किया था वह एक छिपा हुआ राज़ था।  

लोग श्राद्ध में आये, दिखावे का दुख चेहरे पर दिखाया, खाना खाया और चले गए लेकिन लोगों का असली चेहरा तो उनके तानों और हरकतों में नज़र आ रहा था। अपर्णा और उनके परिवार की खूब आलोचना कर रहे थे। उनकी ननद, माया, ने तो सारी हदें ही पार कर दी थी। सुषमा से बदला लेने की भावना ने उसे इतना पागल कर दिया था कि वह श्राद्ध के खाने में चूहे की दवाई मिलाने वाली थी, लेकिन उनका स्वभाव जाने वाली सुषमा की पैनी नज़र उस पर हमेशा बनी हुयी थी। जिस वजह से वह कामयाब नहीं हुई। अगर सुषमा की निगरानी में थोड़ी सी चूक हो जाती तो वह पाप की भागीदार बन जाती। माया का क्या था वह तो अपना काम करके निकल जाती। समाज और रिश्तेदारों में अगर बदनामी और बे-इज्ज़तीहोती, तो अपर्णा और सुषमा की होती। जब सुषमा ने अपर्णा को माया की करतूत के बारे में बताया तो सुनकर उन्हें बड़ा अफ़सोस हुआ। उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि माया इस हद तक भी जा सकती थी, अपना दुख प्रकट करते हुए बोली, ‘’उन्होंने हमेशा ही अपनी बहन की हर छोटी-बड़ी चीज़ का ख्याल रखा। भगवान ना करते, अगर आज यह हादसा हो जाता तो उनकी आत्मा को कितना दुख पहुंचता।''

इस बात पर सुषमा ने हाँ में अपना सिर हिला दिया। ऐसा नहीं था कि माया सिर्फ सुषमा से चिढ़ती थी, वह हमेशा से अपर्णा के भी विरुद्ध रही। उसकी वजह यह थी कि सुरेंद्र ने हमेशा सच का साथ दिया.. उन्होंने अपने जीते जी, दोनों का हक़ बराबर दिया। सुषमा उनकी इंसाफ भरी बातों की खुद गवाह थी। माया हमेशा चाहती थी कि सुरेंद्र उसके कहने पर, अपर्णा को खरी खोटी सुनाये, मगर उन्होंने कभी भी ऐसा नहीं किया। अपर्णा ने कभी भी माया को कुछ देने के लिए सुरेंद्र को मना नहीं किया बल्कि खुद बढ़ चढ़ कर उसे हमेशा देती रही, हमेशा रिश्तों को मज़बूत करने की कोशिश की। आज की माया की इस हरकत पर उन्हें जितना अफसोस हुआ, उससे कहीं ज़्यादा ग़ुस्सा सुषमा को था।

 

सुषमा : (गुस्से के साथ) दीदी कुछ लोग ऐसे ही होते है, कितना भी अपनापन दिखाओ, हमेशा अपनों को ही काटते है...  मगर वह भूल जाते है कि अच्छे लोगों के साथ कभी बुरा नहीं होता, हमेशा अच्छा ही होता है।

जिस तरह की भाषा का प्रयोग सुषमा ने किया था, वह बिल्कुल ग़लत थी मगर माया ने जो भी किया, उसके बाद सुषमा को अपने ग़लत शब्द भी सही लगे। अपर्णा समझ गयी कि उसने यह बात माया के लिए ही कही, उन्होंने उसे समझाते हुए  कहा, ‘’सुषमा, इंसान को अपने कर्मो का फल यहीं भुगतना पड़ेगा। जो इंसान जैसा करेगा, वैसा ही इस दुनिया में भर कर जाएगा…  तुम क्यूँ किसी के लिए बुरा बोलो।''

सुषमा : (तुरंत से) दीदी, आप उसे घर में आने ही मत दो। हमें अपने घर में ऐसी औरत नहीं चाहिए जो झगड़े की जड़ हो। यह जब भी हमारे घर आती है, कुछ ना कुछ गड़बड़ करने की कोशिश ज़रूर करती है।

सुषमा ने बात तो सही कही थी मगर रिश्ता ऐसा था कि चाह भी माया को घर के अंदर आने से रोका नहीं जा सकता था। लोगों के जाने के बाद अपर्णा बुरी तरह थक चुकी थी। जैसे ही वह अपने पैरों को पकड़ते हुए सोफे पर बैठी, सुषमा तुरंत समझ गई थी कि उनके पैरों में दर्द हो रहा है। सुषमा बिना कुछ कहे किचन में गई और सरसों के तेल की शीशी ले आयी। दीदी के मना करने पर भी उसने पैरों की मालिश करनी शुरू कर दी और बोली, ‘’इससे आपको आराम मिलेगा।''

अपर्णा कभी भी सुषमा से अपने दर्द का ज़िक्र नहीं करती थी, वह तो उनके प्रति उसका आदर और प्रेम था कि जब वह थकी हुई दिखती थीं तो उनकी सेवा में लग जाती थी।

हर बार की तरह इस बार भी वह उसकी ज़िद के आगे कुछ नहीं बोल पायी। जिस तरह वह उनकी सेवा कर रही थी उनके दिल से उसके लिए दुआ ही निकल रही थी। अपर्णा ने दिल की बात को ज़बान पर लाते हुए कहा, ‘’भगवान, तुझे हमेशा खुश रखे। हरि के साथ तेरी जोड़ी हमेशा बनी रहे और तेरा बेटा खूब पढ़ लिख कर बड़ा अफसर बने।''

यह सुन कर सुषमा के चेहरे पर मुस्कान आ गई थी, मगर यह मुस्कान तब तक ही थी जब तक राहुल उसके ख्याल में नहीं आया। जैसे ही उनकी नज़र उसके उदास चेहरे पर गयी तो उन्होंने तुरंत सवाल करते हुए कहा, ‘’क्या हुआ सुषमा, मैंने कुछ गलत कह दिया?''  

सुषमा के मन में थोड़ा संकोच था, इसलिए वह कह नहीं पा रही थी। उसने नजरें नीची कर लीं,लेकिन अपर्णा चाहती थी कि अगर उसे उनकी कोई बात बुरी लगी हो तो वह बोले, इस तरह ख़ामोश रह कर दुखी ना होये। उन्होंने प्यार से उससे पूछा तो उसने अपनी नज़रों को उनके चेहरे की तरफ उठाते हुए कहा, ‘’दीदी, मैंने और हरि ने तय किया है कि हम अपने बेटे को बस इतना ही पढ़ाएंगे, जिससे उसे अच्छे और बुरे, गलत और सही की पहचान हो जाये।''

अपर्णा समझ गयी थी कि यह बात उसने राहुल को सोच कर कही, जोकि अमेरिका जाकर अपनी फॅमिली के साथ वहीं settle हो गया था। राहुल को अपनी बूढी माँ का ज़रा सा भी ख्याल नहीं आता था, अगर वह उनके बारे में सोचता तो आज उनके साथ होता।

कुछ नहीं तो कम से कम अपनी माँ के खर्चे के लिए पैसे तो भेजता। वह तो अमेरिका जाकर, अपनी माँ, अपने घर, अपने पिता का श्राद्ध, सब कुछ ही भूल गया था। यह खुदगर्ज़ी नहीं थी तो और क्या थी? उसे याद कर दुखी होते हुए भी, अपर्णा ने उसका पक्ष लेते हुए कहा, ‘’मेरी ही ज़िद ने उसे इतनी दूर कर दिया कि आज वह आने को तैयार नहीं, वरना आज वह हमारे साथ होता। उसके बच्चे मेरी गोद में खेलते,  बच्चों को दादी का प्यार और स्नेह मिलता।''

यह कह कर अपर्णा की आँखे नम हो गयी थी। उनकी आँखों से आंसू झलकने ही वाले थे, उनके चेहरे से साफ़ पता चल रहा था कि आज वह राहुल को बहुत याद कर रही थी। तभी सुषमा ने माहौल बदलने के लिए चंचलता के साथ कहा, ‘’दीदी, हम भी तो आपकी औलाद की तरह है, हम तो आपके पास है ना। देखना हम आपकी सेवा करेंगे।''

इन बातों ने उनके चेहरे पर एक मुस्कान ला दी, उन्होंने अपने एक हाथ को आशीर्वाद के लिए उठाकर उसके सिर पर रखा और हमेशा खुश रहने को कहा। इस समय अगर सुषमा अपनी बात को चंचलता के साथ ना कहती तो शायद उनकी आँखों से आंसू झलक जाते। सुषमा अच्छे से जानती थी कि उनका मूड कैसे ठीक किया जायेगा। उसने तुरंत मज़ाकिया अंदाज़ में कहा, ‘’वैसे दीदी हम लोगों को शराब से ज़्यादा नुकसान पानी से पहुँचता है। क्या आप इस बात से सहमत हो?''

 

अपर्णा : (चौंकते हुए) अरे सुषमा, यह तुम कैसी बातें कर रही हो? पानी तो हमारे लिए जरूरी होता है, वह शराब की तुलना में ख़राब कैसे हो सकता है? मैं तुम्हारी बात से सहमत नहीं हूं।

 

सुषमा : (हाज़िर जवाबी के साथ) दीदी मुझे यह बताओ, हर साल जिस बाढ़ से लोग मरते हैं, उसमें पानी होता है या शराब? पानी ही होता है ना, तो हुआ ना पानी शराब से भी ज़्यादा ख़राब।

यह सुन कर अपर्णा तुरंत हंसने लगी। उनके पैरों पर तेल लगा रही सुषमा के चेहरे पर भी मुस्कान आ गयी। अपर्णा ने हँसते हुए कहा, ‘’वैसे सुषमा, तुम्हें इस तरह की बातें कहां से सूझती है?''  

आज बहुत दिनों बात अपर्णा इतना खुल कर हँसी थी। उन्हें हँसते देख, सुषमा को भी बहुत सुकून मिल रहा था। उसने खुद से बात करते हुए कहा, ‘भगवान, मेरी दीदी को हमेशा ऐसे ही खुश रखना, वह जीवन में ऐसे ही मुस्कुराती रहे।’

दोनों की बातों से साफ़ पता चल रहा था कि कौन अपना है और कौन पराया। पराया शब्द अगर किसी पर सूट करता है तो वह राहुल और माया है। जिस माँ ने अपनी पूरी ज़िन्दगी अपने बेटे को काबिल बनाने में लगा दी, आज उस बेटे ने उनको ही भुला दिया। तभी सुषमा की नज़र, अपर्णा के हाथों पर गयी। उसने तुरंत सवाल किया, ‘’दीदी, आपके हाथ खाली क्यों है?''

इस बात पर अपर्णा ने अपने हाथों की तरफ देखा और उन्हें छिपाने की कोशिश करने लगी। उन्होंने बात को टालने की कोशिश भी की, मगर सुषमा बिना सच्चाई जाने रह नहीं सकती थी।

 

आखिर अपर्णा के खाली हाथों की क्या सच्चाई थी?

अपर्णा अपने हाथों को देख कर ख़ामोश क्यों हो गयी थी?

क्या कोई ऐसी बात थी जिसे अपर्णा सुषमा से शेयर नहीं करना चाहती थी?

जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।

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