"कुछ कहानियाँ वक्त के साथ नहीं मरतीं... वो मिट्टी में दब जाती हैं, लेकिन उनकी साँसें अब भी हमारे इर्द-गिर्द चलती हैं…"
 
ये बात इस समय प्रभा ताई के दिलो-जहन में घूम रही थी, जिसे बोलते हुए वो साल 2003 की उस रात के बारें सोचने लगी, जिस रात उन्होंने पहली बार गजेन्द्र और वीर को अपने हाथों में लिया था।

राजघराना महल के उस पुराने तहखाने में घर की सबसे बड़ी बहू को बंद रखा गया था, क्योंकि उसका ससुर गजराज सिंह उसकी गरीबी से नफरत करता था। वो कुछ ही देर में अपने बच्चों को जन्म देने वाली थी। दर्द में कराहती जानकी अपने पति मुक्तेश्वर की राह देख रही थी, लेकिन मुक्तेश्वर अपने पिता की चालों का शिकार बन जेल की सलाखों के पीछे कैद था।
 
पुराने तहखाने की दीवारें सीलन से भीगी थीं और छत से टपकते पानी की आवाज़ हर सांस में डर घोल रही थी। बाहर आंधी की आवाज़ थी, बिजली कभी-कभी चमकती और फिर हर चीज़ का चेहरा उजागर कर एक बार फिर अंधेरे में गुम हो जाती।

उस कमरे में अकेला सिर्फ जानकी का दर्द चीख रहा था। जानकी चारपाई पर लेटी थी, पसीने से तर-बतर, अधमरी और प्रभा ताई उसके माथे पर ठंडे पानी की पट्टियां रख सिर्फ एक ही बात कहे जा रही थीं।

“साँस लो जानकी… गहरी सांस लो। थोड़ा और हिम्मत रखो….” 

इस वक्त प्रभा ताई की आवाज़ कंपकंपा रही थी। कि तभी कमरे के कोने में बैठी एक बुजुर्ग दाई, जिसकी आँखों में वक्त का अनुभव और कुछ छिपाने की आदत दोनों साफ़ नज़र आ रहे थे। 

वो जानकी की हालत देखकर बोलीं— “सम्भालो खुद को, बच्चा बस आने ही वाला है। जानकी थोड़ी हिम्मत करों...”

बिजली की एक और चमक हुई… जिसके साथ बादलों के फटने की गड़गड़ाहट सुन, जानकी ने एक भयानक चीख मारी। कमरे में एक घुटा हुआ सन्नाटा पसर गया, और फिर… पहली बार एक बच्चे के रोने की आवाज गूंजी, जिसे सुन जानकी के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आ गई।
 
प्रभा ताई की आंखों से खुशी के आंसू निकल गए और उन्होंने बस इतना कहा— “एक बेटा है…” 

लेकिन तभी दाई कुछ बोलने को हुई, कि अचानक एक और चीख… और कुछ पलों बाद दूसरे बच्चे के रोने की आवाज भी गूंज उठी, लेकिन इसी के साथ जानकी बेहोशी के आलम से सो गई। 

प्रभा ताई के हाथ काँप गए। उसकी आंखें उस नवजात पर अटक गईं — दो बच्चे? जुड़वां? उसकी रूह जैसे शरीर से निकल कर सामने खड़ी हो गई थी। एक पल के लिए पूरा कमरा ठहर गया।
 
जानकी का शरीर थरथराता हुआ अब शांत हो रहा था। आँखें अधखुली थीं, होंठ बुदबुदा रहे थे। तभी उसने बेहोश होते हुए कहा — “उन्हें… साथ… रखना…”

जानकी की ये बात सुन प्रभा ताई ने धीरे से कहा, “मैं वादा करती हूँ।” 

प्रभा ताई ने फौरन बस इतना ही कहा और उसी पल… जानकी की गर्दन एक तरफ झुक गई।
 
दाई ने तुरंत जानकी की नब्ज को टटोलते हुए कहा— "दवा काम कर गई, वो चली गई। जाओं अपने पिता गजराज सिंह को बता दो।"

पर कहानी वहीं खत्म नहीं हुई। अभी तो गजराज के नर्क की दस्तक बाकी थी। जानकी की मौत के तुरंत बाद तहखाने के उस कमरे के बाहर से किसी के आने की आहट हुई। एक साया, लंबी छाया लिए, उस दरवाजे तक पहुँचा। ये कोई और नहीं गजराज सिंह का भेजा हुआ आदमी था — वो नौकर जो वफादार नहीं, बस आज्ञाकारी था।

उसने प्रभा ताई को देखा और धीरे से कहा— “गजराज सा का हुक्म हुआ है… एक बच्चा देना है। दूसरा हम खुद देख लेंगे।”
 
प्रभा ताई की आंखों से डर झलकने लगा, उसने पहले उसे बच्चा देने से मना कर दिया, “नहीं… दोनों उसके हैं… जानकी की आखिरी निशानी हैं ये दोनों… और मुक्तेश्वर ने तो अपनी औलाद का चेहरा तक नहीं देखा। रुक जाओं।”

तभी महल का एक नौकर आकर प्रभा के सामने खड़ा हो गया और बोला— “बहस का कोई मतलब नहीं है। मैं दाई को भेज चुका हूं।” 

इतना कह कर वो आदमी चला गया। कुछ ही देर बाद, एक दूसरी औरत, जो खुद को दाई कह रही था… वो तहखाने के उस कमरे में दाखिल हुई। उसके चेहरे पर कपड़ा था, सिर्फ आंखें दिख रही थीं। वो अंदर आई, एक बच्चे को उठाया, प्रभा ताई ने बड़े ध्यान से देखा तो वो वीर था — दूसरा जुड़वां गजेन्द्र अभी भी अपनी मरी हुई मां के बदन से लिपटा हुआ रो रहा था। और फिर...

आसमान से एक जोरदार बिजली की गड़गड़ाहट चमकी। प्रभा ताई दरवाजे के पास खड़ी थीं। उनका चेहरा डर से पीला पड़ चुका था। जानकी अब एक मृत शरीर से ज्यादा कुछ नहीं थी, और हवा में बस दो नन्हीं रुलाइयों की गूंज रह गई थी… प्रभा के मन में बार-बार ये हीं चल रहा था, कि उसनें जानकी को उसका आखरी सांस में दिया वादा तोड़ दिया। 

तभी उन्होंने देखा… वो औरत कुछ देर दरवाज़े के बाहर खड़ी थी। फिर धीरे-धीरे वो परछाई बन गई और रोते-भिलखते नन्हें से वीर को लेकर दरवाज़े के सामने से ऐसे गायब हो गई, जैसे उसे कोई अंधकार निगल गया हो।

प्रभा ताई उसके पीछे दौड़ी और चिल्लाई — “रुको! वो मेरा नहीं… वो जानकी का है, एक बार मुक्तेश्वर को अपनी औलाद को एक नजर देखने तो दो!”

लेकिन जवाब में सिर्फ सन्नाटा था, ना वो औरत रुकी और ना गजराज ने अपना फरमान वापस लिया। इस वक्त प्रभा ताई की गोद में एक बच्चा था — गजेन्द्र। और दूसरा वीर... अंधेरे में खो चुका था।

उसने कमरे की ओर देखा — जानकी का ठंडा पड़ा शरीर अभी भी एक टक बस गजेन्द्र को ही निहार रहा था। प्रभा ताई रोती हुई उसके पास गई और फिर उसके दूसरे बेटे को उसके शरीर से चिपका दिया… और बोलीं, “माफ कर दो मुझे बहन… मैं हार गई…” 

प्रभा ने धीमे से बुदबुदाया और फिर गजेन्द्र को गोद में लेकर वहां से सीधे अपने पिता गजराज के कमरे में पहुंची, जहां उसने कुछ ऐसा सुना, जिसके बाद उसके होश ही उड़ गए।
 
गजराज सिंह हॉल में खड़ा था। उसके साथ एक दूसरा आदमी भी था, जिसने उससे पूछा — “दोनों बच्चों का क्या हुआ?”
 
गजराज ने सिगार सुलगाई, और कहा— “अब बस एक ही वारिस है। बाकी चीजें अब ज़मीन के नीचे हैं, जहाँ उनका होना चाहिए।”
 
वहीं आज क दिन—

गजेन्द्र खिड़की के पास खड़ा था। उसके दिमाग में अभी भी प्रभा ताई की बातें घूम रही थी। वो सब उसने अपनी आंखों से नहीं देखा था, लेकिन वीर की रिकॉर्डिंग और प्रभा ताई की बताई उस रात की पूरी कहानी ने उसे झकझोर दिया था। गजेन्द्र की आंखों में आंसू थे। उसने आसमान की तरफ देखा और मन में कहा— “वीर…भाई, जहां भी हो… मैं तुम्हें ढूंढ लाऊंगा। इस बार कोई तुम्हें अंधेरे में गुम नहीं करेगा।”

गजेन्द्र की ये कसमें हवाओं में गूंज रही थीं। वो एक टक बस खिड़की से बाहर देख रहा था। आसमान अब नीला पड़ चुका था। अंधेरी रात जो हर बार हर सच को निगल जाती थी, अब पहली बार किसी राज़ को उजाले में लाने को तैयार करती नजर आ रही थी।

तभी वहां रिया आ गई, और उसने गजेन्द्र की आंखों में आसूं देख कहा— हम सब उसे मिलकर ढूंढेगे, तो वो जल्द मिल जायेगा… और दूसरी बात, शायद वो खुद भी हम लोगों के पास वापस लौटना चाहता है, तभी तो उसने मुक्तेश्वर अंकल को वो वीडियो भेजी।

रिया की बात सुन गजेन्द्र के चेहरे पर एकाएक खुशी की लहर दौड़ गई। वो तुरंत मुड़ा और रिया को कस के गले से लगा लिया। तभी वहां प्रभा ताई भी आ गई। गजेन्द्र ने तुरंत पीछे मुड़कर प्रभा ताई को देखा — जो अब भी बिलकुल शांत थी, लेकिन अंदर से टूटी चुकी थी। बाइस साल बाद ही सहीं, लेकिन उनके अंदर का वो गुबार सामने आ गया था, जिसने उनके दिल पर एक गहरा जख्म बना रखा था।

गजेन्द्र ने कदम बढ़ाए… और वो प्रभा ताई के बिल्कुल सामने आकर खड़ा हो गया। उसने देखा कि वो अब भी कांप रही थीं। गजेन्द्र ने अपने दोनों हाथ आगे बढ़ाये और प्रभा ताई के कंधो पर उन्हें रखते हुए बोला।

“बुआ…” गजेन्द्र की आवाज सुन प्रभा ताई मानों जैसे जम गई। फिर गजेन्द्र ने दुबारा धीमी आवाज में कहा— “अगर आपने उस रात हिम्मत न की होती… तो वीर शायद जिंदा भी न होता।”

प्रभा ताई ने एक बार उसकी आँखों में देखा, तो गजेन्द्र की आखों मे नफ़रत की नहीं, माफ़ी की झलक थी। जिसे देख उनके दिल को सुकून मिला और वो बोलीं….“मैं जानती हूँ मैं माफ़ी के काबिल नहीं….” 
 
प्रभा ताई की आवाज थकी हुई थी, बाइस सालों में उन्होंने कई बार मुक्तेश्वर को ये सच बताने की कोशिश की थी, लेकिन वो हर बार हार गई। वहीं आज जब सच सामने आया, तो वो खुद को ये कहने से रोक नहीं पाई।
 
“पर ये जान लो गजेन्द्र… मैं हर दिन जिंदा थी...सांस ले रही थी, लेकिन उस एक रात ने मुझे एक रात भी चैन से जीने और सोने नहीं दिया।”
 
गजेन्द्र ने सिर हिलाया और बोला — “अब आप अकेली नहीं है बुआ। अब ये हम सबकी ज़िम्मेदारी है… कि हम उस बच्चे को खोज निकालें… जिसने सबसे ज़्यादा भुगता है। बस अब मैं मेरे भाई को और अनाथों जैसी जिंदगी नहीं जीने दे सकता।”
 
तभी अचानक दरवाजे पर दस्तक हुई। रिया ने झांककर देखा और बोली— “गजेन्द्र… ACP रणविजय आये हैं… उन्होंने कहा है कि उन्हें तुमसे और मुक्तेश्वर अंकल से तुरंत बात करनी है।”
 
गजेन्द्र ने चौंककर देखा और बोला— “अब?”
 
रिया ने हां में सिर हिलाया और बोलीं — “वो कह रहे हैं कि वीर से जुड़ी कोई नयी जानकारी हाथ लगी है।”
 
रिया अपनी बात पूरी करती उससे पहले वहा विराज आ गया और बीच में टोकतें हुए बोला – सुनों गजेन्द्र, मैंने ही उनसे वीर को ढूंढने में मदद मांगी थी। चलों वो आ गए है, तो अब उनसे अस्पताल के कॉन्फ्रेंस रूम में एक बार पूरे मामले पर अच्छें से बात कर लेते है।

एक तरफ से विराज, गजेन्द्र और रिया अस्पताल के कॉन्फ्रेंस रूम में घुसे, तो दूसरी तरफ ACP रणविजय हाथ में कुछ फाइलों के बंडल और आँखों में नींद की कमी से सूजन… लेकर दाखिल हुए।

“हमें उस अनाथालय तक का लिंक मिल गया है, जहाँ 2003 में एक बिना नाम का बच्चा छोड़ दिया गया था। उस वक़्त कोई कागज़ात नहीं थे, बस एक चिट्ठी… जिसमें सिर्फ एक लाइन लिखी थी— ‘इस बच्चे को उस अंधेरे से दूर रखना, जो इसे निगलना चाहता था।”

गजेन्द्र ने जोर से सांस ली, उसकी धड़कनें तेज़ हो गईं। “कहाँ है वो अनाथालय?” गजेन्द्र ने इतना पूछा और कस कर रिया का हाथ थाम लिया।
 
ACP रणविजय बोले — “मध्यप्रदेश के सीमा क्षेत्र में है ये अनाथआश्रम, लेकिन यहाँ एक बड़ी बात है। वो अनाथालय अब बंद हो चुका है और उसके पुराने रिकॉर्ड्स भी वहां लगी आग के बाद जलकर खाक हो गए। ऐसा लगता है कोई नहीं चाहता था कि उस बच्चे का नाम कभी सामने आए।”
 
गजेन्द्र ने घूरते हुए पूछा— “क्या आपको लगता है वो वीर था?”

एसीपी रणविजय ने थोड़ी देर चुप रहकर कहा— “मुझे यकीन है, लेकिन उसके बाद से उस बच्चे का कोई रिकॉर्ड नहीं मिला। पर एक नाम सामने आया है— आरव।”

“आरव?” 

गजेन्द्र फुसफुसाया और गहरी सोच में डूब गया। तभी ACP रणविजय ने एक फोटो सामने रखी, जिसमें एक लड़ता, आँखों में शाही तेज़, लेकिन चेहरे पर एक अजीब सा दर्द… और काफी हद तक वो गजेन्द्र के चेहरे से मेल खा रहा था। उस तस्वीर को सामने रखते हुए एसीपी ने कहा— “ये वही हो सकता है।”
 
गजेन्द्र ने वो फोटो हाथ में ली, उसे देखते ही उसके पूरे शरीर में सिहरन दौड़ गई। मानों ऐसा लगा जैसे वो खुद को देख रहा हो। जुड़वां का जुड़ाव रगों में गूंजने लगा।

दूसरी ओर एक पुरानी बस्ती में वीर, जिसका नाम अब आरव है, वो एक स्टील फैक्ट्री में मजदूरी करता है। उसकी आँखों में दुनिया के लिए गुस्सा है, लेकिन उसके मन में एक अजीब-सा खालीपन था, जिसे वो खुद भी नहीं समझ पाता है।
 
कुछ समय पहले तक वीर अपनी सच्चाई से अंजान था, लेकिन हाल ही में उसे पालने वाली आनाथ आश्रम में उसकी मां ने मरने से पहले वीर को उसके जन्म का सारा सच बता दिया था। साथ ही उसने उसके हाथ में वो चिट्ठी भी दी थी… जो उसके कपड़ों के साथ बंधी थी और उसमें उसकी जिंदगी का सबसे गहरा राज लिखा था।

यहां कॉन्फ्रेंस रुम में वीर के बारें में जानकारी मिलने के बात गजेन्द्र के अंदर एक आग सी जलने लगी और उसने फैसला किया — “मैं जाऊँगा। खुद जाऊँगा उस जगह। मुझे यकीन है मेरा भाई जिंदा है… मैं उसे वापस लाकर ही दम लूंगा।”

तभी मुक्तेश्वर भी वहां आ गया और गजेन्द्र के कंधे पर हाथ रखकर बोला— “इस बार हम कोई गलती नहीं करेंगे बेटा। अब ये सारा सच सिर्फ हमारे बीच नहीं रहेगा। अब ये वादा है… मेरा अपने बेटे से, जिसे हमने दुनिया के अंधेरे में अकेला छोड़ दिया था।”


 

क्या मुक्तेश्वर निभा पायेगा अपना ये वादा? 

क्या गजेन्द्र ढूंढ पायेगा अपने जुड़वा भाई वीर को? 

और आखिर कौन सी चाल चल रहा है वीर, उसने क्यों भेजी थी वो रिकॉर्डिंग? 

क्यों वो खुद अब तक सबके सामने नहीं आया? कहीं प्रभा बुआ ही तो नहीं चल रही कोई नई चाल?

जानने के लिए पढ़ते रहिये राजघराना का अगला भाग। 

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