आज वो दिन आ चुका था, जब मृत्युंजय को कनिका के साथ सिडनी जाना था। दोनों फ्लाइट में बैठे थे, लेकिन मृत्युंजय का मन कहीं और था। उसकी आँखों में उदासी थी, क्योंकि वह बस नेहा के बारे में सोच रहा था। वह बार-बार सोचता रहा कि अब नेहा कहाँ होगी, क्या कर रही होगी, और क्या वह कभी उसे वापस पा सकेगा?

कनिका ने मृत्युंजय की उदासी को महसूस किया, लेकिन उसने कुछ नहीं पूछा। वह जानती थी कि मृत्युंजय का मन कहीं और था। कनिका अपनी योजना पर ध्यान दे रही थी, सोच रही थी कि सिडनी पहुँचकर वह ज्यादा काम करेगी। उसे पता था कि इस यात्रा का मुख्य उद्देश्य काम था, इसलिए वह उसी में व्यस्त थी।

सिडनी एयरपोर्ट पर उतरते ही, मृत्युंजय ने शहर की ताजगी और शांति का अहसास किया। हवा में कुछ था जो उसे अच्छा महसूस करवा रहा था, लेकिन फिर भी उसका मन नेहा के ख्यालों में उलझा हुआ था। वह सोच रहा था कि वह अब नेहा से बहुत दूर है और शायद कभी उसे फिर से न पा सके।

होटल पहुँचने के बाद, कनिका ने बिना आराम किए ही अपने काम पर ध्यान देना शुरू कर दिया। उसने क्लाइंट्स के साथ मीटिंग की योजना बनाई। कनिका की मेहनत और कॉन्फिडेंस ने मृत्युंजय को प्रभावित किया। वह देख रहा था कि कनिका का कॉन्फिडेंस बढ़ रहा था और वह टीम को भी प्रेरित कर रही थी। लेकिन फिर भी, मृत्युंजय का मन कहीं और था, उसे लगातार नेहा की यादें परेशान कर रही थीं।

मीटिंग के बाद, मृत्युंजय और कनिका सिडनी के सर्कुलर क्वे में एक ऊँची बिल्डिंग में गए। वहाँ से ओपेरा हाउस का दृश्य बहुत सुंदर था। मीटिंग शुरू हुई, और कनिका ने बहुत अच्छा काम किया। क्लाइंट्स ने उसकी प्रस्तुति को बहुत पसंद किया, और मृत्युंजय को भी कनिका का काम अच्छा लगा।

धीरे-धीरे, मृत्युंजय ने कनिका की तारीफ करना शुरू किया। कनिका का कॉन्फिडेंस और भी बढ़ गया। मीटिंग के बाद, क्लाइंट्स मुस्कुराते हुए वहाँ से निकले, और कनिका को देखकर वह खुश और प्रेरित महसूस करने लगा। मृत्युंजय ने देखा कि कनिका अपने काम में सफल हो रही थी, लेकिन उसका मन अब भी नेहा के ख्यालों में था।

मीटिंग के बाद कनिका ने मृत्युंजय के चेहरे पर थोड़ी थकावट देख कर कहा:

कनिका: "तुम काफ़ी थक गये होंगे, मृत्युंजय। क्यों ना थोड़ा आराम करें? हम सिडनी के सबसे ख़ूबसूरत हिस्से में है। क्या थोड़ा वक्त खुद के लिए निकाले?"

कनिका की बात सुनकर मृत्युंजय मना नहीं कर पाया। थोड़ा रुककर, मृत्युंजय मान गया, और वो दोनों सिडनी की खूबसूरती का मजा लेने बाहर खुली हवा में पहुंच गए। पहले वो ओपेरा हाउस के पास वॉक करने लगे, जहां से शहर का ब्रेथटेकिंग व्यू मिलने लगा।

सूरज की रोशनी में ओपेरा हाउस का व्हाइट स्ट्रकचर और पूरे शहर का शांत व्यू देखकर मृत्युंजय को कुछ सुकून मिला, जैसे कि कुछ वक्त के लिए उसने अपने दर्द और ग़म भूल दिया हो। उसके बाद, वो दोनों बॉन्डी बीच गए, जहां समुद्र की लहरों और हवा में एक मैजिकल शांति देख मृत्युंजय के चेहरे पर सुकून साफ नज़र आने लगा। यह देखकर कनिका भी मुस्कुराने लगी। उसे लगा कि कुछ न भी सही, तो कम से कम अब मृत्युंजय मुस्कुरा तो रहा है।

कनिका के साथ वक्त गुजारते हुए मृत्युंजय अब कंफर्टेबल महसूस करने लगा है। वह बिना कुछ सोचे अब कनिका के सामने अपने दिल का हाल बयान करने लगा है। ये बात कनिका भी कहीं न कहीं जानती है कि इस वक्त मृत्युंजय को केवल एक साथ की जरूरत है, जिससे वह अपने दिल की बातें शेयर कर सके।

मृत्युंजय(उदासी भरे अंदाज़ में): "मैं समझ नहीं पा रहा हूँ, कनिका। ऐसा लग रहा है कि मैं उसे सच में खो रहा हूं,"

कनिका ने थोड़ा मुस्कुराते हुए उसकी हिम्मत बढ़ाई,

कनिका- "मृत्युंजय, अभी प्लीज़ अपने काम पर ध्यान दो। ये प्रोजेक्ट  भी तो ज़रूरी है ना?"

कनिका की ये बात सुनकर मृत्युंजय को थोड़ा रिलीफ मिला, लेकिन उसके दिल की बेचैनी अब भी कम नहीं हुई थी। मृत्युंजय खुद को समझाने लगा कि उसे कुछ तो करने की जरूरत है। वो बस इंतजार नहीं कर सकता था।

कनिका (मुसकुराते हुए) : "तुम जहां हो वहां पर ध्यान दो मृत्युंजय, भूलो मत नेहा भी तुम्हें ये डील खोते हुए नहीं देखना चाहेंगी।

दिन बीतता है। रात को डिनर करके दोनों अपने होटल वापस पहुंचते है। अचानक मृत्युंजय के पास उसके दोस्त राघव का फोन आता है। राघव का कॉल देखकर मृत्युंजय एक बार फिर से टेंशन में आ जाता है। मृत्युंजय ने फोन रीसीव किया।

राघव- मृत्युंजय, मुझे पता है की तुम सिडनी में हो लेकिन तुम्हे कुछ बताना ज़रूरी है.

मृत्युंजय (डरते हुए )- क्या हुआ राघव ? नेहा को कुछ...!

राघव- नहीं मृत्युंजय ऐसा कुछ नहीं है। नेहा का फ़ोन अभी भी स्कंदगिरि हिल्स में ही शो कर रहा है।  लेकिन उस दूसरे लड़के के बारे में अब तक कोई जानकारी नहीं मिल पायी है। मैं और मेरी टीम लगातार कोशिश कर रहे है लेकिन अब तक कोई सुराग नहीं मिल रहा है।  पता लगा है की नेहा को हिल्स के पास के जंगल में भी देखा गया था।  

यह सुनकर मृत्युंजय के पैरों तले जमीन खिसक जाती है। मृत्युंजय के मन में नेहा को खो देने का डर मंडरा रहा है। अचानक कनिका कुछ पेपर्स लेकर मृत्युंजय के रूम में आती है और देखती है कि मृत्युंजय अपनी चेयर पर सिर रखकर बैठा हुआ है।

कनिका- मृत्युंजय सब ठीक है न ? नेहा का कुछ पता लगा ?

कनिका को देखकर मृत्युंजय की आंखों से आंसू निकल जाते है। रोते-रोते मृत्युंजय कनिका से कहता है कि नेहा के साथ उस दूसरे शख्स का अब तक कुछ पता नहीं है। मृत्युंजय का डर उसकी आंखों में साफ झलकने लगता है। उसका डर बढ़ रहा था कि कहीं नेहा सच में उस दूसरे शख्स से दिल न लगा बैठे ? 

मृत्युंजय का मन और उदास होता जा रहा था। उसके दिल में एक कसक थी, एक उम्मीद थी कि नेहा वापस उसकी ज़िन्दगी  में आए। लेकिन अंदर से वह ये भी सोच रहा था कि अगर नेहा वापस न आए, तो उसका क्या होगा? क्या ये वो वक्त था, जब सच में उसकी दुनिया बदलने वाली थी? यह डर उसके मन में घर कर चुका था।

सिडनी में उनके बिज़नेस ट्रिप के बीच ही, नेहा के बारे में मिलने वाले हर नए अपडेट के साथ उसका मन और परेशान होता जा रहा था। उसने सोचा था कि ये ट्रिप उसे अपने दिमाग को क्लियर करने का एक मौका देगा, लेकिन हर एक फोन कॉल और मैसेज के साथ उसकी टेंशन और बढ़ रही थी।

रात बीती, सुबह हुई...सिडनी में मृत्युंजय की यह पहली सुबह थी। लेकिन इस सुबह में भी मृत्युंजय के चेहरे पर खुशी नहीं है। ऑस्ट्रेलिया में मृत्युंजय कनिका के साथ अपनी बिज़नेस ट्रिप करने आया है, लेकिन हर पल राघव का कोई मैसेज या कॉल उसे सताने लगा।

अगले कुछ दिन, मृत्युंजय ऑस्ट्रेलिया में अपने काम और अपनी पर्सनल हालत के बीच काफी बेचैन रहने लगा। हर रात, जब वह काम की थकान से थोड़ा रिलैक्स करता, उसका दिमाग नेहा और उस दूसरे आदमी के बारे में ही सोचता। उसने कई बार कोशिश की कि वह अपने दर्द को भूलकर अपने काम पर फोकस करे, लेकिन हर बार उसका मन नेहा के बारे में ही सोचता रहता। 

नेहा की यादों में कुछ और ही बात थी—उसका हंसना, उसकी मुस्कुराहट, और वह खास पल जब उन्होंने एक-दूसरे को बिना कुछ कहे समझ लिया था। लेकिन अब, उस दूसरे आदमी का चेहरा उसके दिमाग में जैसे एक राज़ बन गया था, जो समझ में नहीं आ रहा था।

कनिका, मृत्युंजय के चेहरे पर वही उदासी और घबराहट देख रही थी। उसका मन भी, जाने क्यों, उस दर्द को महसूस करने लगा। मृत्युंजय ने अपने जज़्बात छुपाने की कोशिश की, लेकिन उसकी आंखों में वही उलझन थी। कनिका को समझ आने लगा कि कुछ बहुत गहरा है। वह चाहती थी कि मृत्युंजय अपने दिल की बात करे, लेकिन उसे यह भी पता था कि मृत्युंजय अभी उस स्टेज पर नहीं है। वो जानती थी कि मृत्युंजय को इस वक्त सिर्फ एक साथी की जरूरत है, और वो साथी अब कनिका बनना चाहती है।

यह एक ऐसा मौका है, जब कनिका अपने और मृत्युंजय के बीच की नजदीकी को बढ़ा सकती थी। नेहा, जो अब दूर थी, मृत्युंजय की दुनिया से बहुत दूर... कनिका जानती थी कि अगर वह इस वक्त का फायदा उठाए, तो वो मृत्युंजय के दिल में अपनी जगह बना सकती थी। और अब, सब कुछ मृत्युंजय के फैसले पर डिपेंड था... क्या वह अपनी दर्द भरी यादों से निकलकर, एक नए रिश्ते की शुरुआत करेगा? क्या मृत्युंजय सच में कनिका के साथ नज़दीकियां बढ़ाने में दिलचस्पी दिखाएगा?

जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
 

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