मृत्युंजय ने नेहा की नाराजगी और उसके तानों को समझ तो लिया, लेकिन वो कुछ कह नहीं पाया। उसने देखा कि नेहा के चेहरे पर नाराजगी साफ झलक रही है, और वो अब किसी बात को लेकर बहुत हर्ट महसूस कर रही थी।

नेहा को ये सब किसी टीवी सीरियल की तरह लग रहा था—उसका अचानक से मृत्युंजय के घर आना और सामने उसे किसी और लड़की के साथ देखना। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि मृत्युंजय इस तरह की कोई हरकत कर सकता है। वह पिछले पांच मिनट से दरवाजे पर खड़ी होकर देख रही थी, कि कैसे मृत्युंजय और वह लड़की इतने करीब एक दूसरे से टिककर बैठे हैं, मानो दोनों ही किसी गहरे रिश्ते में हों। नेहा को उम्मीद थी कि शायद ये सब एक सपना निकले और वो कभी भी जाग जाए।

इतनी देर इंतजार करने के बाद भी जब मृत्युंजय ने उसे नोटिस नहीं किया, तो नेहा ने वहां से लौटने का फैसला किया। जैसे ही वह मुड़ने लगी, तभी पीछे से आवाज आई—

मृत्युंजय: "नेहा! तुम कब आई?"

 

नेहा मन ही मन सोच रही थी कि ये घर उसका भी है, फिर उसे आने के लिए किसी से इजाजत क्यों लेनी पड़ेगी? लेकिन ये बातें वह एक अजनबी के सामने नहीं कहना चाहती थी।

नेहा: “शायद मुझे नहीं आना चाहिए था।”

इतना कहकर नेहा बिना पीछे मुड़े वहां से चल दी। वह जाने लगी तो उसे पीछे से किसी के दौड़ने की आवाज सुनाई दी। शायद मृत्युंजय अब उस लड़की के साथ नहीं था। नेहा ने थोड़ी राहत की सांस ली।

 

मृत्युंजय: "नेहा, तुम्हें कॉल कर लेना चाहिए था। मैं आ जाता तुम्हें लेने।"

नेहा मन ही मन सोच रही थी कि कॉल करने से तो उसे सच मालूम ही नहीं चलता। शायद तब वह लड़की भी उसकी बाहों में नहीं होती। लेकिन फिर ये सोचकर उसने खुद को शांत किया कि अगर अभी नहीं होती, तो थोड़ी देर बाद होती, लेकिन होती ज़रुर।

नेहा: "कॉल करती तो क्या होता? वैसे भी तुम्हारे पास मेरे लिए वक्त कहाँ है? अभी तो काफी बिजी लग रहे थे।"

 

मृत्युंजय: "अभी तक नाराज़ हो क्या?"

नेहा ने अपनी नाराजगी दबाते हुए जवाब दिया,

नेहा: "नाराज? मैं क्यों नाराज होऊंगी? जाओ, तुम्हारी गेस्ट तुम्हारा इंतजार कर रही है अंदर। मुझे तो इतना इंतजार कराया है, अब अपनी गेस्ट को तो कम से कम मत कराओ।"

 

मृत्युंजय को समझ नहीं आ रहा था कि वह नेहा को कैसे समझाए। नेहा के दिल में जो शक और सवाल थे, वे अब पूरी तरह से सामने आ रहे थे, उसकी नजरों में गुस्सा साफ दिखाई दे रहा था।

नेहा को भी यह समझ नहीं आ रहा था कि कब उसके अंदर मृत्युंजय के लिए इतना गुस्सा भर गया था कि वह उससे सीधे मुँह बात भी नहीं कर पा रही थी। तभी उसने देखा कि कनिका बेडरूम से बाहर जा रही थी।  

नेहा की बातों में एक गहरी नाराजगी थी, जो मृत्युंजय को महसूस तो हो रही थी, लेकिन वो उसे पूरी तरह समझ नहीं पा रहा था। मृत्युंजय कनिका की तरफ़ देखता है और उसे हॉल में जाने को कहता है। मृत्युंजय को अब नेहा की नाराज़गी की वजह समझ में आने लगी।

मृत्युंजय कुछ और कहने ही वाला था, लेकिन तभी नेहा मुड़कर बिना कुछ बोले, अपने आँसू पोछते हुए घर से बाहर चली गई। मृत्युंजय उसे रोकने के लिए उसके पीछे दौड़ा दौड़ता है, लेकिन तभी कनिका ने उसका हाथ पकड़ लिया।

मृत्युंजय कनिका से झगड़ते हुए हाथ छोड़ने को कहता है, क्योंकि वह चाहता था कि वह नेहा से बात करे। कनिका ने उसे शांत करते हुए कहा कि उसे नेहा को समय देना चाहिए, वह समझ जाएगी। मृत्युंजय, नेहा के पीछे जाना तो चाहता था पर उसे कनिका की बात भी सही लग रही थी। मृत्युंजय ने पास्ट में काफी बार नेहा को समझाने की कोशिश की, फिर भी नेहा नहीं मानी। मृत्युंजय को भी अब लगता है कि उसे नेहा को समय देना चाहिए। जब उसका गुस्सा शांत हो जाएगा, तब नेहा को समझाना ज्यादा सही रहेगा।  

नेहा के जाने के बाद कमरे में कुछ पलों की खामोशी छा गई। मृत्युंजय का चेहरा उलझन से भरा हुआ था, जैसे उसे यह अहसास हो कि उसने नेहा के साथ गलत किया, वह कुछ नहीं बोल रहा था, बस चुपचाप खड़ा था.

कनिका थोड़ी देर तक शांत रही, फिर उसने हंसी में बोला कि मृत्युंजय अब शांत क्यों बैठा है। वह बोली कि उसे नेहा को समय देना चाहिए, क्योंकि लड़कियां छोटी-छोटी बातों को बड़ा बना देती है। कनिका ने कहा कि मृत्युंजय को इतना टेंस नहीं होना चाहिए।

मृत्युंजय अभी भी बहुत बेबस महसूस कर रहा था। मृत्युंजय कनिका की बातें सुन तो रहा था, पर ध्यान कहीं और था... मृत्युंजय अभी भी नेहा के बारे में सोच रहा था...

मृत्युंजय (गहरी सांस लेते हुए): "कनिका, मुझे समझ नहीं आ रहा कि आखिर नेहा इतनी नाराज क्यों है मुझसे। मैंने तो कुछ किया ही नहीं।"  

कनिका ने हँसते हुए मृत्युंजय के बालों में अपना हाथ फेरा और उसके कंधे पर अपना सिर रखकर बैठ गई।

 

कनिका: "सच! तुमने कुछ नहीं किया है यार, शायद इसी बात से अपसेट है वो। तुम्हें तो हर वक्त गिल्ट में रहने की आदत सी हो गई है। अब थोड़ा रिलैक्स हो जाओ प्लीज़….नेहा समझ जाएगी।"  

मृत्युंजय कनिका की बात से बिल्कुल भी सहमत नहीं था, लेकिन वो अब कुछ कर भी तो नहीं सकता था। नेहा कब की अपनी गाड़ी से जा चुकी थी, और शायद मृत्युंजय की ज़िन्दगी  से भी।

मृत्युंजय को कनिका का इस तरह से नजदीक आना बहुत अजीब लग रहा था और इसीलिए उसने थोड़ी दूरी बनाने की कोशिश की। जैसे ही उसने खुद को दूर करने की कोशिश की, कनिका ने फिर से उसका हाथ पकड़ लिया।

कनिका ने मृत्युंजय को थोड़ा आराम करने के लिए कहा और यह भी बोला कि अगर नेहा उसकी कद्र नहीं करती तो वह हमेशा उसकी मदद के लिए मौजूद है। उसने यह भी कहा कि मृत्युंजय हमेशा उस पर भरोसा कर सकता है।

मृत्युंजय ने उसकी तरफ़ देखा और थोड़ा असमंजस में पड़ गया। कनिका जब से मृत्युंजय के घर आई थी, तब से उसका व्यवहार मृत्युंजय को थोड़ा अटपटा लग रहा था। कनिका ने कभी मृत्युंजय से ऐसा फ्लर्ट नहीं किया था और आज अचानक से इतने साल बाद कनिका का ये रूप देखकर मृत्युंजय हैरान था।

मृत्युंजय: "कनिका, अब तुम्हें सो जाना चाहिए। मैं सीमा को बुलाता हूँ। वो तुम्हें गेस्ट बेडरूम में सैटेल कर देगी।"  

 

कनिका: "मुझे अभी नींद नहीं आ रही।"  

मृत्युंजय: "आई नीड सम स्पेस, कनिका। तुम जाओ सो जाओ।"  

इतना कहकर मृत्युंजय सीमा को बुलाकर कनिका को उसके साथ भेज देता है।

उधर नेहा मृत्युंजय के घर से बाहर तो निकल गई, पर उसका दिमाग वहीं लगा था। आखिर कौन है वो लड़की जो मृत्युंजय की बाहों में थी? अभी नेहा को घर छोड़े एक दिन भी नहीं हुआ है और मृत्युंजय किसी और को अपने इतने नजदीक बिठा रहे हैं। नेहा की आँखों में बार-बार मृत्युंजय और उस लड़की का चेहरा नाच रहा था। नेहा बहुत गुस्से में थी, उसे बिलकुल भी अंदाजा नहीं था कि मृत्युंजय उसके साथ ऐसा कुछ कर सकता है। वह कार में बैठती है और तुरंत निकल जाती है।

उधर, नेहा के घर पहुँचने के बाद उसके चेहरे पर उदासी साफ झलक रही थी, लेकिन उसने अपने पेरेंट्स के सामने कुछ भी ज़ाहिर नहीं किया। नेहा के पेरेंट्स हॉल में ही बैठे थे, नेहा को आता देख नेहा की तरफ़ उम्मीद से देखने लगे। उन्हें पता था कि नेहा मृत्युंजय के घर गई थी; अब वो ये जानना चाहते थे कि हुआ क्या वहाँ। नेहा उनसे आँखें चुराकर चुपचाप अपने कमरे में चली गई। मिस्टर सिंघानिया कुछ बोलने की कोशिश तो करते है पर मिसेज़ सिंघानिया के रोकने पर चुप होकर बैठ जाते है।

इधर नेहा मन ही मन बहुत दुखी है। वो अपने पेरेंट्स से बात तो करना चाहती है, पर आखिर उन्हें क्या बताए? कि मृत्युंजय किसी और लड़की के साथ बैठे थे, या फिर मृत्युंजय को नेहा का घर छोड़ना थोड़ा भी परेशान नहीं कर रहा था। नेहा को पता है कि ये बातें उसके पेरेंट्स को तोड़ देंगी। इसलिए उसे ये सब अपने तक ही रखना होगा। नेहा ने अपने कमरे की बत्ती बुझाई और लेट गई। उसकी आँखों और गले में हल्का सा गीलापन था और मन में बस यही सवाल था— क्या मृत्युंजय कभी उसकी फीलिंग्स को समझ पाएगा? नेहा रोते-रोते नींद की आगोश में चली गई।

अगले दिन नेहा की नींद एक ज़ोर की आवाज़ से खुली। रूम से बाहर आकर देखने पर नेहा अपने सामने संजू को देखकर हैरान हो गई जाती है। संजू नेहा की बचपन की दोस्त है। दोनों ने अपनी स्कूलिंग और कॉलेज साथ-साथ किया है। नेहा और संजू की जोड़ी पूरी सोसाइटी में फेमस थी। संजू अपनी शादी के बाद मैंगलोर में बस चुकी थी।

 

नेहा को देखते ही संजू ज़ोर से चिल्लाने लगी, नेहा भी अपनी ख़ुशी को कंट्रोल नहीं कर पाई और संजू को ज़ोर से गले लगा लीया। नेहा की आंखों में अब आंसू आ चुके है।

नेहा (खुशी से): "संजू..! तुम कब आई? विशाल ने कैसे तुम्हें अपनी नज़रों से दूर होने दिया?"

संजू: "ये सब छोड़ो, ये बताओ ये सब क्या है नेहा? कैसा हाल बना रखा है अपना! लग रहा है जैसे आंखों से नदियां बहाई है तुमने।"

 

नेहा को संजू का यह कमेंट कुछ समझ नहीं आया। वह अपने पेरेंट्स की ओर देखती है और मिस्टर और मिसेज़ सिंघानिया की आंखों में गिल्ट देखकर उसे सब कुछ समझ में आ जाता है। संजू ने फिर बताया कि मिस्टर और मिसेज़ सिंघानिया ने उसे सब कुछ बता दिया था और अब उन पर गुस्सा होने की कोई जरूरत नहीं है. संजू ने यह भी पूछा कि नेहा ने यह कैसे सोच लिया कि वह बिना बताए नॉर्मल रह सकेगी।

नेहा एक अजीब सी मुस्कान और आंसुओं के साथ संजू की ओर देखने लगी। संजू ने उसका हाथ पकड़कर उसे उसके कमरे में ले जाने की कोशिश की। संजू ने सीधा कहा कि नेहा के पास बस सिर्फ दस मिनट हैं और उसे जल्दी से फ्रेश होकर आना होगा, क्योंकि उनके पास बात करने के लिए बहुत कुछ है।

नेहा फ्रेश होने चली गई, जबकि संजू लगातार इधर-उधर की बातें करती रहती है। जब नेहा वॉशरूम से बाहर आती है, तो देखती है कि संजू ने उसका कमरा साफ़ कर दिया था।

ये देख, नेहा चुप रही और बेड पर जाकर बैठ गई। संजू, जो कि नेहा से जवाब की उम्मीद कर रही थी, खुद भी उसके बगल में आकर बैठ गई।

 

संजू: "अब तुम कुछ बताओगी भी? तुम्हारे और मृत्युंजय के बीच क्या हुआ है? अंकल-आंटी को मैंने कभी इतना परेशान नहीं देखा है।"

नेहा कुछ पल चुप रही, पिछले कुछ हफ्तों से उसके मन में जो बातें चल रही थीं, वो किसी को बता नहीं पाई थी, लेकिन संजू से वह कुछ नहीं छुपा सकती थी।

नेहा (धीमी आवाज़ में): "संजू, कुछ ठीक नहीं है। मुझे लग रहा है जैसे मैं अपनी शादी में अकेली हूँ। मृत्युंजय के पास कभी मेरे लिए वक्त ही नहीं होता। वो इतना वर्कोहोलिक हो गया है कि हम न कहीं बाहर जाते है, न कभी एक साथ वक्त बिताते है।"

नेहा ये सब बताते-बताते रोने लगी  लगती है।  संजू,  नेहा को गले लगा लेती है। संजू की मौजूदगी नेहा को अब थोड़ा-थोड़ा शांत कर रही थी। नेहा ने संजू को सारी बातें बताई - मृत्युंजय का नेहा को इग्नोर करना, उसका नेहा के घर आना, नेहा का मृत्युंजय को किसी और लड़की के साथ देखना, सब कुछ।

नेहा (रोते हुए): "शुरुआत में सब कुछ ठीक था संजू। पता नहीं कब मृत्युंजय को सक्सेस और पैसे की ऐसी आदत लग गई कि अब उनके लिए उससे बढ़कर कुछ नहीं, शायद मैं भी नहीं। अब ऐसा लगने लगा है जैसे मैं मृत्युंजय की बीवी नहीं, बस उसकी लाइफ में एक साइड रोल हूँ।"

नेहा की बातें सुनकर संजू के चेहरे पर गुस्सा साफ़ नज़र आ रहा था।

संजू: "यही तो मैं कहती थी! मैंने तुमसे कहा था कि मृत्युंजय से शादी मत करो। मुझे वो कभी पसंद नहीं था।"

नेहा- हल्का सा हँसी और बोली, "अच्छा, तो तुम्हें कौन सही लगता था? कौन होता जो तुम्हारी नज़रों में मेरे लिए पर्फेक्ट हसबैंड होता?"

संजू (तुरंत): "ऑब्वियसली रोहित!"

नेहा (कंफ्यूज होते हुए): "कौन रोहित?"

संजू: "वही जो तुम्हारे पीछे पागलों की तरह दीवाना था। ज़रा सोचो, पूरे कॉलेज की लड़कियां जिस एक लड़के पर मरती थीं, वो एक लड़का सिर्फ तुम पर मरता था और तुमने उसे कभी भाव ही नहीं दिया।" 

 

नेहा को अब रोहित याद आता है, नेहा के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आ जाती है।

संजू: "मुझे पता था कि तुम भी रोहित को पसंद करती थी।"

नेहा जल्दी से अपना मुंह नीचे कर लेती है ताकि संजू उसका चेहरा न देख पाए।  नेहा के चेहरे पर आई मुस्कान अभी भी वही थी, लेकिन सवाल ये है कि क्या संजू, नेहा की प्रॉब्लम को सॉल्व कर पाएगी? क्या संजू, नेहा को मृत्युंजय की ज़िंदगी में वो जगह दिलवा पाएगी, जिसकी तलाश में नेहा को अपना घर छोड़ना पड़ गया?

जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।

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