अपनी हालत पर एक शेर याद आता है। गौर करियेगा कि

क्या करेगा लोटा... क्या करेगा लोटा?

जब भाग्य ही होगा खोटा।

एक मेरे ऑफिस वाले हैं, जो मुझे टाइम टू टाइम बॉल समझ कर मारते रहते हैं और एक ये मेरा बेटा है, जिसे मेरी टेंशन की नहीं, अपने बैट बॉल की पड़ी है। यार क्या हो गया है आजकल के बच्चों को? कहाँ जा रही है ये युवा पीढ़ी? मन से बाप नाम का खौफ ही गायब हो गया है। वापस बनाना पड़ेगा। लेकिन, अभी तो मैं खुद ही खौफ में जी रहा हूँ। पहले उससे तो छुटकारा मिले तब सोचूंगा बाप के खौफ के बारे में। अभी बस अपना काम हो जाए। और फिर उसने बोला, ‘’ठीक है, बोलो क्या मदद चाहिए?''

रवि: मुझे अच्छे से फोन चलाना सिखा दे। मेरी ये बात सुनते ही अंकित ने कहा, ‘’फोन सीखना है? पर उससे क्या होगा?''

मैंने बोला वो सब तू मुझ पर छोड़ दे, तू बस ये इंटरनेट और फोन चलाना सिखा दे अच्छे से।

मरता हुआ इंसान बचने के लिए सब कुछ ट्राई करके देखता है। ऐसी ही कुछ मेरी हालत थी। इस समय अगर कोई मुझे कह देता कि इस फलाने बाबा के झाड़ फूंक से सारी प्रॉब्लम खत्म हो जाएंगी, तो शायद मैं उसके लिए भी तैयार हो जाता। वैसे अंकित भी अभी बाबा से कुछ कम नहीं था, फोन सिखाने से पहले ही दक्षिणा की बात कर ली। पक्का बहुत बड़ा बिजनेसमैन बनेगा, या कोई नेता तो पक्का ही है। अरे जो अपने बाप को ना छोड़े वो और क्या ही हो सकता है। अंकित मुझे फोन के बारे में सब कुछ समझाता चला गया और मैं कुछ-कुछ समझता चला गया। उससे कोई सवाल नहीं पूछा, डर था कि कहीं अंकित भी श्रेया मैडम की तरह मुर्गा ना बना दे। अब बेटे के सामने मुर्गा बनूंगा तो किस बात का फादर ईगो? खीर हीर अंकित ने मुझे कहा कि बस, बताने के लिए यही सब था, बाकी आप खुद चलाते हुए सीख पाओगे... और हाँ अगर टाइप नहीं करना है, तो ऐसे बोल कर भी आप कुछ सर्च कर सकते हो। लेकिन आपके पास तो ऐसा फोन है ही नहीं, तो आप चलाओगे कैसे?

मेरी अगली मदद सुनकर अंकित के पैरों के नीचे से ज़मीन ही खिसक जाने वाली थी। शायद मैं दुनिया का पहला बाप होऊंगा जिसे अपने बेटे से फोन मांगने की ज़िद करनी पड़ेगी। ये अनीता मैडम ने पक्का इंतज़ाम करा है सबके सामने मुझे बेइज़्ज़त करने का, यहाँ तक कि मेरे बेटे के सामने भी। अब कहीं मुझे बचपन की तरह इससे फोन लेने के लिए ज़मीन पर लेटना न पड़ जाए।

रवि: मुझे कुछ दिन के लिए तेरा ये फोन चाहिए।

अंकित ने हैरान होके पूछा : क्या?

रवि: बहुत ज़रूरी है अंकित।

अंकित ने तो मुझे बोला बाबा, आप दुनिया के पहले बाबा होंगे जो अपने बेटे से फोन मांग रहा है।

आएं... ये मेरे साथ डेजा वू हुआ क्या? माना कि बाप-बेटे का बांड बहुत स्ट्रॉन्ग होता है, पर इतना स्ट्रॉन्ग कि ये मेरे दिमाग के थॉट्स पढ़ सके। हो सकता है भाई, जब जनिटर अचानक से सीईओ बन सकता है तो इस दुनिया में कुछ भी हो सकता है। यार इसने बस फोन सिखाने के लिए बैट-बॉल मांग लिया, फोन देने के लिए तो ये मेरी किडनी ही मांग लेगा। आज अचानक से हम दोनों का रोल बदल गया था, मैं अपने बेटे के सामने हाथ जोड़कर कुछ मांग रहा था और मेरा ही बेटा मेरे बाप की तरह नखरे कर रहा था। कहने लगा

बाबा, मैं अपना फोन नहीं दे सकता, इससे मुझे बहुत काम होता है। मेरी पढ़ाई भी इस फोन की वजह से बहुत सही चल रही है। वरना आप तो कभी कुछ हेल्प करते नहीं हो।

रवि: यार, मैं तुझे दूसरा नया फोन लाकर दे दूंगा, बस अभी बात समझने की कोशिश कर ने मुझसे Phone 16 Pro Max मांग लिया मैंने भी बोल दिया

रवि: डन डोना डन डन। फिर उसने मुझे इस फोन कि कीमत बताई, ‘’1 लाख 50 हजार का है।''

रवि: अरे बाप रे... इसने तो सच में किडनी ही मांग ली यार। इस बार ज़मीन मेरे पैरों के नीचे से निकली। 1 लाख 50 हजार का फोन? क्या है ऐसा खास इस फोन में? क्या किसी को फोन मिलाने पर उस आदमी को हमारे सामने ही लाकर पटक देता है ये iPhone 16 Pro Max? इसका जितना लंबा नाम है उतना ही लंबा प्राइस टैग। कभी-कभी सोचता हूँ कि क्या ज़रूरत है इतने डेवलपमेंट की, स्टोन एज क्या बुरा था। बस शिकार करो, खाओ और सो जाओ। अगले दिन जागो, फिर शिकार करो और सो जाओ। आराम की ज़िंदगी। न जाने क्या खुजली थी इंसान में डेवलपमेंट की? और वो न्यूटन, उसने तो हद ही कर दी। अरे भाई, पेड़ से सेब गिरा तो गिरने दे, ज़्यादा भूख लगी है तो उठा के खा ले। क्या ज़रूरत है ये सोचने की कि सेब नीचे ही क्यों गिरा। ये साइंटिस्ट लोग अलग-अलग डिस्कवरी करते हैं और भुगतना हम जैसे लाचार और मजबूर बापों को ही पड़ता है।

सुमन (कड़क आवाज़ में): सुनो, खाना बना दिया है, आकर खा लो। वरना लेटने के बाद मैं नहीं उठूंगी।

नहीं जी... तुम्हारे तानों और इस अंकित के iPhone की डिमांड से ही पेट भर गया है। अब खाना खाकर क्या करूंगा... और वैसे भी ऐसा क्या ही बना दिया होगा तुमने टिंडे के अलावा जिसे सोचकर भूख वापस आ जाए।

सुमन: क्या कहा ?

रवि: क क कुछ नहीं, मैंने कहा की हाँ आ रहा हूँ खाना खाने।

सुमन: ठीक है.।

एक तो अब, जब भी ये खाने के लिए पूछती है, तो लगता है जैसे नाभि में बाण मार रही हो। और आज तो दो-दो टेंशन थी, पहली कि कहीं ये गधे का बच्चा अंकित अपना मुंह न खोल दे, अगर ऐसा हुआ तो खाने के नाम पर ये टिंडे भी नसीब नहीं होंगे, और दूसरा कि ये टिंडे फिर से खाने पड़ेंगे।

सुमन: दाल रोटी और चावल बनाए हैं।

ओह माय गॉड! इम्प्रूवमेंट। अब तो इस अंकित का मुंह बिल्कुल भी नहीं खुलना चाहिए वरना फिर से... नहीं, नहीं, ये तो बिल्कुल नहीं होने दे सकता अब, चाहे उसके लिए डेढ़ लाख तो क्या, डेढ़ करोड़ भी खर्च करने पड़ें तो कर दूंगा। किडनी तो क्या, उसके साथ-साथ अपनी नाक, कान, आंख, लिवर सब बेच दूंगा।

रवि: ठीक है बेटा, ठीक है। अब चलें खाना खाते हैं।

डाकुओं और चोरों के बीच रहता हूँ मैं। हे भगवान, और क्या-क्या सोच रखा है मेरे बारे में, एक ही बार में बता कर खत्म करो ना, ये रोज-रोज की नई टेंशन से तो छुटकारा मिलेगा। अरे मम्मी, तुम्हारे कमल के फूल वाले सपने में कुछ ज़्यादा ही कीचड़ नहीं है? नहीं, नहीं, कीचड़ नहीं दलदल है दलदल, फँसता ही जा रहा हूँ। अब इसको बोल तो दिया कि नया फोन दिलाऊंगा वो भी डेढ़ लाख वाला। लेकिन अगर नौकरी ही खत्म हो गई तो क्या करूँगा? मुझे तो ये भी नहीं मालूम कि लाख में ज़ीरो कितने होते हैं? लेकिन क्या करूँ? आखिरी कोशिश तो करनी बनती ही है। फोन चलाना सीख लिया, फोन मिल गया। अब बस इसका इस्तेमाल अपने लिए सही से कर लूँ तो कुछ हो सकता है। वरना हम तो फ़कीर आदमी हैं, झोला उठा कर चल पड़ेंगे। अब जो भी होगा वो इस हफ्ते की क्लाइंट के साथ होने वाली मीटिंग में पता चल ही जाएगा, अभी तो मैं दाल चावल पर कंसंट्रेट कर लेता हूँ।

(To be continued…)
 

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