“वो रही!” मेल्विन ने हाथ के इशारे से पीटर को दिखाया।
उन्होंने डायना को कैफे के बाहर एक बेंच पर बैठे पाया था। उसकी आँखें रोने से लाल हो गई थीं। जैसे ही पीटर पास आया, उसने ऊपर देखा। उसकी निगाहें आशा से भरी हुई थीं, फिर भी सतर्क थीं। मेल्विन उन्हें स्पेस देते हुए एक कदम पीछे हट गया।
"डायना!" पीटर ने कहा। उसकी आवाज़ भावनाओं से भरी हुई थी, "मुझे तुम्हारी शादी के बारे में मालूम चल चुका है।"
पीटर की आँखें डायना की नजरों को खोज रही थीं। उसके चेहरे की हर रेखा में हताशा साफ झलक रही थी।
"वे मेरी शादी करवाने जा रहे हैं।" उसने फुसफुसाते हुए कहा, "और मैं ये शादी नहीं कर सकती। तुम्हारे बिना नहीं। हालात मुझे इस उलझन में डाल देंगे मैंने सोचा भी नहीं था।"
"तुम्हें कुछ भी करने की ज़रूरत नहीं है।" पीटर ने अपनी आवाज़ को दृढ़ रखते हुए कहा, "मैं उन्हें तुम्हारे साथ ऐसा नहीं करने दूँगा।"
डायना के गालों पर आँसू बह निकले, जब उसने उसकी ओर देखा।
"लेकिन पीटर, वे खतरनाक हैं।" उसने दबी हुई आवाज में कहा, "वे उन लोगों को चोट पहुँचाते हैं जो उनके रास्ते में आते हैं। फिर हम तो आम लोग हैं।"
मेल्विन आगे बढ़ा। उसकी आँखें पीटर से मिलीं।
"हमें पता है।" उसने कहा, "और हम हर तरह की परिस्थिति के लिए तैयार हैं।"
वे तीनों वहाँ खड़े थे। परंपरा और भय के अत्याचार के खिलाफ़ एक संयुक्त मोर्चा लिए हुए। लेकिन जब वे बात कर रहे थे, तो सुमित के कमरे में मॉनिटर की बीप उनके दिमाग में गूंज रही थी, जो जीवन की नाजुकता और उनकी स्थिति के बारे में उन्हें एक जाहिर तौर पर याद दिला रही थी।
"हम इसका हल निकाल लेंगे, मैंने पहले भी कुछ लोगों की ऐसी स्थिति में मदद की है।" पीटर ने डायना का हाथ थामते हुए कसम खाई, "लेकिन पहले, हमें डॉक्टर ओझा और सुमित पर ध्यान लगाने करने की ज़रूरत है।"
डायना ने सिर हिलाया, उसकी आँखों में आँसू थे।
"मुझे उनकी खबर मिली।" डायना बड़बड़ाई, "लेकिन मुझे तुम्हें बताना था। मैं तुमसे मिलने में घबरा रही थी। लेकिन मेल्विन से बातें करने के बाद मुझे थोड़ी हिम्मत मिली।"
मेल्विन ने उसके कंधे को थपथपाया।
"तुमने सही काम किया।" उसने कहा, "अब चलो डॉक्टर ओझा के पास वापस चलते हैं। उन्हें इस वक्त हमारी सबसे ज्यादा जरूरत है।"
वे अस्पताल के गलियारे में फिर से दाखिल हुए। खुश्क हवा पहले से कहीं ज़्यादा भारी लग रही थी। लेकिन जैसे ही वे सुमित के बिस्तर के पास अपनी जगह पर बैठे, उनका संकल्प और भी मज़बूत होता गया।
रेबेका लौट आई थी। मेल्विन उसे देखकर मुस्कुराया।
“डॉक्टर ने अब हर किसी को सुमित के पास आने की इजाजत दे दी है।” रेबेका ने कहा, “शायद… शायद वे अब हार मान चुके हैं। मेल्विन, हम डॉक्टर ओझा के लिए, एक-दूसरे के लिए और आने वाले भविष्य के लिए अंत तक लड़ेंगे जिसके हम सभी हकदार हैं।”
शाम को जैसे ही सूरज ढलने लगा, अस्पताल की खिड़कियों से एक हल्की रोशनी कमरे के दीवार पर पड़ी। मेल्विन रेबेका ने एक-दूसरे का हाथ थाम लिया। उनका मौन वादा सबसे अंधेरे पल में प्रकाश की किरण की तरह था। वे दोस्त से एक प्रेमी बनने की राह पर थे, जो न केवल साझा विचार और रहस्यों के बंधन से बंधे थे, बल्कि प्यार और वफ़ादारी के अटूट बंधन से भी बंधे थे।
"तुम इससे बाहर निकल जाओगे, दोस्त।” शांत, तनाव से भरे कमरे में, पीटर सुमित के पास झुककर फुसफुसाया, “हमारे पास करने के लिए बहुत कुछ है। जीने के लिए बहुत कुछ है।"
रेबेका ने हाथ बढ़ाया। उसकी आँखें सुमित की स्थिर शरीर से कभी नहीं हटीं। फिर उसने मेल्विन का हाथ पकड़ लिया। मेल्विन ने भी उसे कसकर थाम लिया।
"हम सब इसमें एक साथ हैं।" रेबेका ने कहा।
मेल्विन ने सिर हिलाया। उसका दिल अपने आस-पास के दोस्तों के लिए आभार से भर गया।
“हम एक कार्टूनिस्ट, एक बैंकर, एक शिक्षक और एक पशु चिकित्सक के मिले–जुले समूह हैं। लेकिन इस पल में हम इससे बढ़कर एक परिवार हैं।” मेल्विन ने कहा।
जब वे सुबह होने का इंतजार कर रहे थे, तो उन्हें पता था कि कल का दिन उनके लिए चुनौतियों से भरा होगा। शायद सुमित की जिंदगी का आखिरी दिन।
उधर पीटर ने डायना को विदा देते हुए कहा, “हम जल्द ही पुणे जायेंगे। तुम्हें भी अब निकलना चाहिए डायना।”
डायना पीटर की बात मानकर तुरंत वहां से निकल गई।
घड़ी दर्दनाक और धीमी गति से टिक–टिक रही थी। इसके अलावा कमरे में एकमात्र ध्वनि मशीनों की लगातार बीप थी।
डॉक्टर आया तो सब बाहर निकल गए। कुछ देर में वे भी बाहर आए तो सबने नोटिस किया, उनके रिएक्शन में कोई भी पॉजिटिवनेस नहीं थी। उसकी आंखें कोई नई जानकारी नहीं दे रही थी। उसमें कोई उम्मीद की किरण नहीं थी।
"कितना समय और?" पीटर फुसफुसाया, उसकी आवाज़ फटी हुई थी। मेल्विन ने उसके कंधे को दबाया। "शायद सुबह से पहले ही।" डॉक्टर ने दृढ़ता से कहा और फिर नर्स के बुलाने पर दोबारा अंदर चला गया। आखिरी कोशिशें अब भी जारी थीं।
कुछ घंटे और बीते। डॉक्टर ओझा और उनकी पत्नी अपने-अपने विचारों में खोए हुए इंतज़ार कर रहे थे, जब तक कि दरवाज़ा फिर से नहीं खुल गया और डॉक्टर बाहर आया। उसका चेहरा गंभीर था।
"मुझे खेद है।" उसने कहा। उसकी आवाज़ उसके शब्दों के वजन से भारी थी, "हमने वो सब कुछ किया जो हम कर सकते थे, लेकिन सुमित... वो बच नहीं पाया।"
डॉ. ओझा और उनकी पत्नी निराशा में कराहते हुए फर्श पर गिर पड़े। डॉक्टर की वो आवाज उनके कानों में बम की तरह फटा था। मेल्विन ने महसूस किया कि उसकी अपनी आँखें आँसुओं से भर गई हैं। डॉक्टर ओझा का दर्द और आंसू उससे बर्दाश्त नहीं हो रहा था। पीटर ने अपनी मुट्ठी कसकर बंद कर ली थी। रामस्वरूप जी और लक्ष्मण डॉक्टर ओझा को संभालने की कोशिश कर रहे थे। दुख और दर्द से डॉक्टर ओझा का चेहरा सफेद हो गया था।
"नहीं।" डॉक्टर ओझा ने दर्द भरी साँस ली। उनकी आवाज़ कर्कश भरी थी।
रेबेका की आँखें मेल्विन से मिलीं। उसकी अपनी आँखें आँसुओं से भरी हुई थीं।
"ये दर्द मुझे आने वाले कल के लिए डरा रहा है मेल्विन!" वो बड़बड़ाई, “ये जल्दी खत्म हो जाएगा न?”
“हां रेबेका!” मेल्विन ने उसे सांत्वना देते हुए कहा, लेकिन वो जानता था कि ये सच नहीं था। वे एक-दूसरे को इस पल में प्रेरणा दे रहे थे। हँसी के बाद अब आँसू साझा कर रहे थे। जब उनके पास बस दर्द ही बचा था, तब भी उन्होंने उम्मीद को थामे रखा था।
“हमने डॉक्टर ओझा को निराश नहीं किया है; हम सब अपना काम–धंधा छोड़कर उनके लिए खड़े रहे हैं।” लक्ष्मण की आवाज मेल्विन और रेबेका के कानों में पड़ी।
वे डॉक्टर ओझा के इर्द-गिर्द इकट्ठे हो गए। हर कोई अपने–आपसे सवाल पूछ रहा था। किसी तरह का समाधान ढूंढ रहा था। लेकिन जवाब वही रहा।
“सुमित चला गया है, और हम इसे बदलने के लिए कुछ नहीं कर सकते।” पीटर ने कहा।
जैसे ही वे अस्पताल से बाहर निकले, बाहर की दुनिया आगे बढ़ गई थी। एक नए दिन का सूरज उग रहा था। लेकिन डॉक्टर ओझा, उनकी पत्नी और अन्य लोगों के लिए उसमें से रोशनी चली गई थी। वे एक शॉकिंग वेव में चले गए। शहर का शोर–शराबा उनके दुख से दब गया था।
सुमित के निधन की खबर तेजी से फैली और जल्द ही अस्पताल में शोक संवेदनाओं और आंसुओं से भरे चेहरों का जमावड़ा लग गया। इस दुख के बीच एक शांत संकल्प जन्म ले रहा था। मेल्विन और पीटर का संकल्प। वे एक-दूसरे के लिए लड़कर सुमित की याद को संजोएंगे। ये सुनिश्चित करके कि प्रेम और दोस्ती डर और दुख पर जीत हासिल करें। और जब वे अस्पताल के प्रांगण में एक साथ खड़े थे, बादलों के बीच से सूरज निकल रहा था। तब मेल्विन ने मन ही मन एक मौन प्रतिज्ञा की।
“हम पीटर और डायना को बचाएंगे। न केवल अपने लिए, बल्कि सुमित के लिए भी। वे अपना जीवन उसी जुनून और साहस के साथ जिएंगे, जैसा डॉक्टर ओझा जीते हैं। यहां तक कि उनके बेटे के असमय अंत के बावजूद भी।”
उन सबके दिल भारी थे। खासकर मेल्विन और पीटर के। वे भविष्य का सामना करने के लिए आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे थे। उनका विश्वास पहले से कहीं अधिक मजबूत था। वे अब केवल दोस्त नहीं थे; वे योद्धा थे, जो आगे आने वाली किसी भी चुनौती से लड़ने के लिए तैयार थे। और जब वे अपने-अपने जीवन में व्यस्त हो गए, तो उन्हें पता था कि अगली बार जब वे मिलेंगे, तो उनकी आँखों में बदलाव की आग और उनके दिलों में सुमित की हंसी की गूंज होगी। दिन बीतते गए और नुकसान का दर्द कम तीखा होता गया, लेकिन कम गहरा नहीं।
“मैं और ज्यादा इंतजार नहीं कर सकता।” पीटर अपनी हड्डियों में बसी बेबसी की भावना को दूर नहीं कर पा रहा था। उसे पता था कि उसे डायना से मिलना है। उसे बताना है कि वो कैसा महसूस कर रहा है, इससे पहले कि बहुत देर हो जाए। घर लौटने के बाद उसने मेल्विन से संपर्क किया, उसकी आवाज़ दृढ़ थी।
"मैं पुणे जा रहा हूँ।" उसने कहा, "मुझे उनसे बात करनी है।"
मेल्विन ने उसकी बातें सुनी। उसके चेहरे पर समझ साफ झलक रही थी।
"मैं तुम्हारे साथ चलूँगा।" उसने बिना किसी हिचकिचाहट के कहा, "हम दोनों इसमें साथ हैं।"
बस तय बो गया। मेल्विन और पीटर के अंदर सुमित की मौत के बाद एक आक्रोश उबाल मार रहा था। वो उबाल उन्हें तुरंत फैसले लेने पर मजबूर कर रहा था।
पुणे की ट्रेन यात्रा हरियाली और खट्टी-मीठी यादों से भरी हुई थी। पीटर विचारों में खोया हुआ था। उसके दिमाग में कई ख्याल एक साथ आ रहे थे।
“मैं डायना के परिवार वालों से क्या कहूँगा। क्या इतना आगे बढ़ जाने बाद भी वो मेरी बात सुनेंगे? क्या डायना सुरक्षित होगी? अगर वहाँ हाथापाई ही हो गया तो मैं क्या करूँगा? अपना बचाव या फिर अटैक?”
जैसे ही ट्रेन मलाड रेलवे स्टेशन पर रुकी, मेल्विन ने उसे धीरे से झकझोरा।
"क्या तुम इसके लिए तैयार हो?"
पीटर ने गहरी साँस ली।
"जितना मैं तैयार हो सकता हूँ, उतना तैयार हूँ।"
वे हलचल भरे शहर में बाहर निकले। हवा मसालों और डीजल की महक से भरी हुई थी। सड़कों पर हॉर्न बजने और बकबक करने वाली आवाज़ों का कोलाहल था, जो उनके अंदर भरे हुए शांत संकल्प के बिल्कुल विपरीत था।
वे डायना के घर पहुँचे, एक सुंदर, पारंपरिक इमारत जो बंद दरवाज़ों के पीछे अपने रहस्यों को समेटे हुए थी। पीटर का दिल धड़क रहा था जब उसने दस्तक दी, उसकी हथेलियाँ पसीने से तर थीं। दरवाज़ा खुला, और वो वहाँ थी, उसकी आँखें सदमे और उम्मीद से चौड़ी थीं।
"पीटर!" उसने हाँफते हुए कहा। उसका हाथ उसके मुँह पर चला गया।
"डायना!" उसने कहा, उसकी आवाज़ भावनाओं से भरी हुई थी, "हमें बात करने की ज़रूरत है।"
बातचीत स्वीकार करने और डर, प्यार और निराशा का बवंडर थी।
“घर में कोई भी नहीं है। सब चर्च गए है। मुझे अपने साथ ले चलो पीटर। कल रात शादी की रस्में भी निभा दी गईं। मुझे बिना बताए।” डायना की आँखें आँसुओं से भर गईं जब उसने पीटर को अपनी सगाई के बारे में बताया। उसकी आवाज़ हर शब्द के साथ काँप रही थी, "ये बहुत निर्दयी हैं।" उसने फुसफुसाते हुए कहा, "ये मुझे कभी तुम्हारे साथ नहीं रहने देंगे।”
मेल्विन ने शांत लेकिन दृढ़ स्वर में कहा, "हम उन्हें तुम्हें चोट नहीं पहुँचाने देंगे।"
पीटर ने भी उसे आश्वस्त किया, "हम उन्हें जीतने नहीं देंगे।"
वे एक साथ होने की कल्पना से भर उठे थे। डायना को उसकी तय शादी से मुक्त करने की योजना बन चुकी थी। वे जानते थे कि ये आसान नहीं होगा, हर तरफ खतरा छिपा हुआ है। लेकिन डॉक्टर ओझा के साहस और उनके दर्द की याद के साथ उन्हें लगा कि वे अजेय हैं।
"मैं तुम्हारे साथ हूँ।" डायना ने अपनी आवाज़ मज़बूत करते हुए कहा, "आज जो भी होगा देख लेंगे। मैं तुम्हें ऐसे कहीं नहीं ले जाने वाला। मैं कल फिर लौटूँगा।"
उनका मिशन साफ था, उनके दिल एक थे। जैसे ही पुणे में सूरज डूबा, आसमान गुलाबी और सुनहरे रंगों से रंग गया, उन्हें पता था कि आगे का रास्ता ख़तरों से भरा हुआ था। लेकिन उनके पास एक-दूसरे का साथ था और उन्हें बस यही चाहिए था।
अगले दिन, पीटर और मेल्विन रेबेका से मिले। वो भी पुणे आ चुकी थी। उसके पास एक प्लान था।
"हमें बेहद सावधान रहने की ज़रूरत है।" उसने चेतावनी दी, "मेरे पास एक रास्ता है।"
“कैसा रास्ता?” मेल्विन ने पूछा।
रेबेका के पास कौन सा रास्ता था? क्या डायना के घरवाले मानेंगे? या फिर उनके बीच तीखी बहस होगी? मेल्विन डायना के पिता को समझाने के लिए क्या करेगा? जानने के लिए पढ़ते रहिए अपनी पसंदीदा कहानी “पालघर तो वीटी लोकल।”
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