सुहानी के हाथ काँप रहे थे, जब उसने आरव को कॉल किया। हर बीतता सेकेंड उसके दिल की धड़कन को और तेज़ बड़ा रहा था। स्क्रीन पर "Calling Aarav Rathore..." चमक रहा था।
रिंग... रिंग... क्लिक! Call cut.
एक पल के लिए सुहानी सांस लेना भी भूल गई थी।
“काट दिया...” उसके होंठों से ये शब्द फिसल पड़े, जैसे खुद से कह रही हो। उसका पूरा शरीर सुन्न पड़ गया था। जैसे दिल किसी गहरी खाई में गिर गया हो।
“नहीं... आरव, तुम ऐसा नहीं कर सकते।”
उसने खुद को संभाला। डगमगाते कदमों से वो कमरे की ओर बढ़ने लगी — अब दो दिन और बैठ कर इंतज़ार करना कोई विकल्प नहीं था। कुछ तो गड़बड़ थी… और वो सिर्फ़ दर्शक बनकर नहीं बैठ सकती थी।
उसने तुरंत विक्रम को कॉल करने के लिए फोन उठाया, अभी उसे उसकी मदद की ज़रूरत थी।
ट्रिन… ट्रिन…
स्क्रीन पर नंबर डायल कर ही रही थी कि तभी—फोन वाइब्रेट करता है।
Caller ID: Aarav Rathore.
उसके पैर वहीं जम गए। एक गहरी साँस लेते हुए उसने कॉल उठाया।
"आरव?" उसकी आवाज़ में घबराहट और राहत दोनों थीं।
फोन के दूसरी तरफ कुछ पल खामोशी रही…
“Hello, आरव? कहाँ हैं आप?”
सुहानी ने काँपते हुए हाथों से फोन पकड़ा हुआ था। उसकी आवाज़ उतनी ही घबराई हुई थी, जितनी उसकी धड़कनें बेकाबू थीं। फोन के दूसरी तरफ से कुछ क्षणों की चुप्पी के बाद, आरव की आवाज़ आई — बेहद शांत लेकिन उतनी ही गंभीर, जैसे हर शब्द नपे-तुले हों।
“हाँ सुहानी, मैं ठीक हूं, बस रणवीर का पीछा कर रहा हूं।”
सुहानी के पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक गई। उसका चेहरा एकदम सख्त पड़ गया।
“पीछा क्यों? कहाँ जा रहा है रणवीर? और उसने आपसे क्या कहा? कहीं उसे शक तो नहीं हो गया, कि आपको सब याद...”
उसकी आवाज़ थरथरा रही थी, हर शब्द जैसे उसके डर और चिंता की परतें खोलता चला जा रहा था। उसने सवाल पूरे नहीं किए थे, पर उनमें छुपी बेचैनी इतनी थी कि एक सांस में सब कुछ कह गई।
फोन के उस तरफ फिर कुछ पल की चुप्पी थी — जैसे आरव कुछ सोच रहा हो या देख रहा हो। शायद गाड़ी की हल्की-सी आवाज़ या हवा की सरसराहट फोन पर आ रही थी, जो उस चुप्पी को और भारी बना रही थी।
लेकिन उस वक़्त, सुहानी के लिए बस आरव की आवाज़ ही सब कुछ थी — उसका जवाब, उसका संकेत, उसकी उम्मीद।
“नहीं नहीं... मैंने उस बात का पूरा ध्यान रखा था।”
आरव की आवाज़ इस बार कुछ जल्दी में थी, लेकिन अब भी संयमित।
“मगर जब रणवीर से मैं बात कर रहा था, तो बार-बार उसके फ़ोन पर कोई कॉल किए जा रहा था।”
सुहानी ध्यान से उसकी बात सुन रही थी, जैसे हर शब्द में कोई सुराग हो। उसके चेहरे की चिंता और गहराती चली गई।
"और फिर," आरव आगे कहता है, “उसने कॉल पर बात की... उसके चेहरे पर से जैसे सारा खून उतर आया था।”
आरव का स्वर अब भीग चुका था — उस पल का तनाव अब भी उसकी आवाज़ में छिपा हुआ था।
“उसने गुस्से में ऑफिस में सामान इधर-उधर फेंकना शुरू कर दिया था। और फिर वो बिना कुछ कहे ही, वहां से तुरंत निकल गया।"
अब सुहानी को समझ आया वो दस्तावेज़ और तस्वीर वहां क्यों पड़ी हुई थी, हो सकता है कि रणवीर आरव को वो तस्वीर दिखा कर, गौरवी और दिग्विजय के खिलाफ करना चाहता हो, वरना वो आरव और उसकी माँ की तस्वीर लेकर क्यों ही घूमेगा।
“मुझे लगता है, सुहानी, कि या तो उसे किसी ने तुम्हारी माँ से रिलेटेड कुछ बताया है...”
सुहानी की आँखें पल भर के लिए झपकना भूल गईं थी। आरव की अगली बात सुनने से पहले ही उसकी धड़कनें जवाब देने लगी थीं। आरव ने वाक्य को बहुत सावधानी से कहा, जैसे शब्दों को तोलते हुए कह रहा हो।
“या फिर ताऊजी से जुड़ी कोई बात हुई है। इसलिए वो इतनी जल्दी में यहाँ से रवाना हुआ था।”
फोन पर अचानक एक अजीब सी चुप्पी छा गई। जैसे दो लोग एक ही रहस्य के अलग-अलग सिरों को थामे, एक ही गहराई में उतर रहे हों।
“आप प्लीज़ अपना ध्यान रखिएगा और मुझे खबर करते रहिएगा।”
सुहानी की आवाज़ में चिंता साफ़ झलक रही थी। वो धीमे-धीमे कमरे की तरफ जा रही थी, एक हाथ में फोन, दूसरी हथेली बार-बार मुँह तक जाती — जैसे कुछ कहना चाह रही हो और रुक जा रही हो।
फिर अचानक ठहर कर उसने कहा, “और हाँ आरव... मुझे नहीं लगता हमें अब दो दिन और इंतज़ार करना चाहिए।”
फ़ोन के दूसरी तरफ़ थोड़ी देर की खामोशी रही, फिर आरव की गंभीर आवाज़ सुनाई दी — “मैं भी यही सोच रहा था... हमें जल्दी करना होगा सुहानी।”
उसके शब्दों में निर्णय की दृढ़ता थी, जैसे अब इंतज़ार करने का कोई मतलब नहीं बचा था।
“मैं जल्द ही एक इमरजेंसी मीटिंग बुलाती हूं।” सुहानी ने तेज़ी से कदम बढ़ाते हुए कहा, उसकी चाल अब तय हो चुकी थी। “आप अपना ध्यान रखिए और हमें अपडेट करते रहिएगा।”
उसकी आवाज़ में अब आदेश कम, और परवाह ज़्यादा थी — जैसे किसी युद्ध से पहले आखिरी तैयारी की जा रही हो।
कॉल कट होते ही सुहानी ने बिना एक पल गंवाए अपना फ़ोन दुबारा उठाया और मरियम का नंबर डायल किया। उसकी उंगलियाँ तेज़ी से स्क्रीन पर फिसल रही थीं, जैसे हर सेकेंड अब कीमती हो। फोन कान से लगाते ही, दूसरी तरफ से मरियम की जानी-पहचानी शांत आवाज़ आई…“Hello ma'am?”
सुहानी ने गहरी साँस ली, लेकिन आवाज़ में अब भी दृढ़ता बनी हुई थी।
“Hello मरियम, क्या अपडेट है?”
उसके शब्दों में हड़बड़ाहट नहीं थी, लेकिन लहजे में वो खिंचाव था जो तभी आता है जब किसी फैसले की घड़ी करीब हो। सुहानी की आवाज़ में अब बेचैनी साफ़ झलक रही थी, लेकिन फिर भी उसने खुद को संयत रखने की पूरी कोशिश की।
फोन की दूसरी तरफ से तुरंत मरियम की आवाज़ आई, जो हल्की सी थकी हुई मगर प्रोफेशनल बनी हुई थी — “Ma’am, हमने दस और जगहों पर छापे मारे हैं। लगता है किसी ने इन लोगों को पहले से आगाह कर दिया था...”
वो एक क्षण के लिए रुकी, फिर थोड़ी तेज़ आवाज़ में जोड़ा, “मगर हम हर जगह पर वक़्त से पहले पहुंच गए थे। और अभी भी कुछ अहम सुराग हमारे हाथ लगे हैं। लेकिन जल्द ही बाकी जगहों पर भी रेड करनी पड़ेगी। वरना ये लोग अपने अड्डे खाली कर देंगे, और फिर हमारे हाथ कुछ भी नहीं लगेगा…”
सुहानी ने आंखें बंद कीं, जैसे एक क्षण के लिए सब कुछ शांत करना चाहती हो — दिमाग, दिल, और उस तेज़ी से भागती हुई दुनिया को जिसमें अब हर पल निर्णायक हो सकता था।
"आपको जैसे इस मिशन को डायरेक्शन देना है, दीजिए, मरियम," उसने गंभीर स्वर में कहा।
“बस मुझे हर एक अपडेट तुरंत चाहिए।”
"जी, Ma’am," मरियम ने फौरन जवाब दिया।
फोन कटते ही सुहानी ने फ़ोन अपने सीने से लगा लिया। एक लंबी सांस भरी — जैसे खुद को फिर से तैयार कर रही हो उस आखिरी जंग के लिए जो अब ज़्यादा दूर नहीं थी।
मरियम से बात खत्म होते ही, सुहानी बिना एक पल गंवाए अपने फ़ोन में SOS ग्रुप खोलती है। उसके अंगूठे की गति तेज़ है, जैसे उसके भीतर उबलते हालात किसी भी देरी को बर्दाश्त नहीं कर सकते।
उसने ग्रुप पर बस एक लाइन टाइप की, “Emergency Meeting. Now.”
फिर बिना किसी जवाब का इंतज़ार किए, वो तेज़ी से अपने कमरे की ओर बढ़ती है। उसके कदमों की आवाज़ हवेली के खाली गलियारों में गूंजने लगती है। कमरे के दरवाज़े तक पहुँचते ही वो तुरंत दरवाज़ा बंद करती है, और फिर अंदर से लॉक कर देती है — एक हल्की 'क्लिक' की आवाज़ के साथ जैसे वो बाहरी दुनिया से कुछ देर के लिए खुद को काट रही हो।
वो लैपटॉप टेबल के पास पहुँचती है। थोड़ी हांफती हुई-सी, लेकिन ध्यान पूरी तरह केंद्रित। लैपटॉप को टेबल पर रखती है, और तुरंत उसे ऑन करती है। स्क्रीन जगमगाता है — और जैसे ही इंटरफेस खुलता है, वो मीटिंग लिंक पर क्लिक करती है।
कुछ ही देर में मीटिंग स्क्रीन पर एक-एक चेहरा जुड़ने लगता है। सबके चेहरों पर चिंता और गंभीरता साफ़ नज़र आ रही है।
शमशेर राठौर सबसे पहले बोलते हैं। उनकी आवाज़ में पिता-सा स्नेह और सुरक्षा की चिंता झलक रही होती है — “क्या बात है, सुहानी बेटा? सब ठीक तो है ना?”
उस एक सवाल में जैसे सैकड़ों संभावनाएं छिपी हुई थीं — कहीं कुछ टूट तो नहीं गया? कहीं कुछ छूट तो नहीं गया? और सबसे ज़्यादा — क्या अब वक्त आ गया है?
शमशेर के सवाल पर सुहानी की आँखें थोड़ी नम हो जाती हैं, मगर उसका चेहरा कठोर बना रहता है। वो गहरी सांस लेकर बोलना शुरू करती है। उसकी आवाज़ में संयम भी है और urgency भी— “पापा, हम दो दिन और वेट नहीं कर सकते...”
कमरे में एक सन्नाटा-सा छा जाता है। मीटिंग में जुड़े बाकी सदस्यों की निगाहें स्क्रीन पर टिकी होती हैं। सुहानी की आँखों में थकान और बेचैनी साफ़ दिख रही थी, मगर उसका लहजा अब भी एक जिम्मेदार नेतृत्वकर्ता का था।
“दिग्विजय को मैंने वो सब बताया जो हम लोगों ने पहले से डिसाइड किया था।”
वो एक पल को रुकती है, जैसे किसी सोच के बोझ से दब गई हो। फिर आगे कहती है— “और मुझे लगा था कि कुछ देर तक दिग्विजय और रणवीर आपस में उलझे रहेंगे... कि हमारे पास थोड़ा वक़्त होगा आगे की प्लानिंग के लिए। मगर अब... दिग्विजय राठौर गायब हैं।”
वो ये कहते हुए एक गहरी सांस छोड़ती है, मानो उस वाक्य को बोलना ही उसे बहुत भारी पड़ रहा हो।
“और मुझे डर है... कहीं रणवीर ने उनके साथ कुछ गलत तो नहीं किया?”
उसके आख़िरी शब्दों के साथ ही पूरे वर्चुअल कमरे में सन्नाटा छा जाता है। शमशेर और बाकी सभी के चेहरे पर हैरानी और तनाव की परछाइयाँ दौड़ जाती हैं — जैसे सभी को एक झटका सा लगा हो।
सुहानी अब चुप थी, मगर उसकी आँखें स्क्रीन पर टिककर एक ही सवाल पूछ रही थीं — “अब क्या करें?”
सुहानी की बातें खत्म होते ही फोन पर आरव की आवाज़ आती है, जो बेचैनी और फिक्र से भरी हुई होती है।
"और पापा, मैं अभी रणवीर का पीछा ही कर रहा हूं," आरव की आवाज़ में हड़बड़ी झलकती है।
“वो कहीं जल्दी में किसी काम से हड़बड़ाते हुए निकला है।”
उसके शब्दों से साफ़ था कि रणवीर की हड़बड़ी में कोई बड़ी बात छुपी थी, जो सभी की नींद उड़ा सकती थी।
आरव की आवाज़ गंभीर हो जाती है, जैसे वह भी समझ चुका हो कि इंतजार अब खतरे की घंटी बन चुका है— “मुझे भी लगता है कि अब हम दो दिन और इंतज़ार नहीं कर सकते।”
फोन की लाइन पर खामोशी छा जाती है, और सुहानी की आँखों में भी बेचैनी और हिम्मत का मेल साफ़ दिखता है।
शमशेर के निर्णय की आवाज़ में ठहराव और दृढ़ता थी। उसने स्पष्ट किया, “ठीक है, तो हम अपना प्लान आज ही एग्जीक्यूट कर देते हैं। मैं इस मीटिंग के ख़त्म होते ही मीडिया वालों को कॉल करता हूं, और अपना इंटरव्यू दे देता हूं।"
उसकी बात सुनकर कमरे में मौजूद हर कोई गंभीर हो गया, लेकिन एक साथ ही उम्मीद की लौ उनके दिलों में जल उठी।
सुहानी और आरव एक स्वर में जवाब देते हैं, “जी पापा।”
उनके शब्दों में न केवल स्वीकृति थी, बल्कि उस लड़ाई के लिए तैयार होने की प्रतिबद्धता भी। अब वक्त था चल पड़ने का, बिना किसी देरी के मीटिंग के बीच में, विक्रम की आवाज़ भी आई।
“आरव, तुम कहाँ पहुंचे हो? मैं अभी अपने ऑफिस में हूँ। मुझे भी पिक कर लो प्लीज। मुझे लगता है, कि शायद मैं जानता हूँ कि रणवीर कहाँ जा रहा है।”
आरव ने तुरंत जवाब दिया, "ठीक है, मैं पांच मिनट में तुम्हारे ऑफिस पहुंच रहा हूँ। तुम नीचे मेरा इंतज़ार करना और देरी मत करना, मैं रणवीर की गाड़ी को नज़रों के सामने से गायब नहीं होने दे सकता।”
"ठीक है, अभी उतर रहा हूं नीचे, तुम आ जाओ।" विक्रम ने सहमति जताई।
मीटिंग में फिर एक हल्की हलचल सी हुई, सभी की उम्मीदें अब और भी मजबूत हो गई थीं। विशाल की आवाज़ में एक गंभीरता थी, जो उसकी चिंता को साफ जाहिर कर रही थी। उसने सुहानी की तरफ देखते हुए कहा, “सुहानी, मैं राठौर हवेली के लिए अभी निकल रहा हूँ। तुम्हें वहाँ अकेले नहीं छोड़ सकता। अब हालात ऐसे हैं कि कभी भी कुछ भी हो सकता है। तुम्हारी सुरक्षा मेरे लिए सबसे अहम है।”
सुहानी ने उसकी बात ध्यान से सुनी, फिर थोड़ी सोच में पड़ते हुए उसकी तरफ देखा। धीरे से बोली, “जी भैया। वैसे क्या आप सबने वो ऑडियो सुना है, जो मैंने दिग्विजय राठौर से बात करते वक्त रिकॉर्ड किया था?”
उसकी आवाज़ में एक हल्की सी उम्मीद और बेचैनी दोनों झलक रही थी, मानो वह उस ऑडियो में छिपे सच को सबके सामने लाने की कोशिश कर रही हो।
आगे की कहानी जानने के लिए पढ़ते रहिये रिश्तों का क़र्ज़।
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