राठौर हवेली आज फिर से रोशनी में नहा रही थी। महंगे झूमर, लाल कालीन, और फूलों की खूशबू से सजा हर कोना, इस बात का गवाह था कि आज एक भव्य समारोह होने वाला है—आरव और सुहानी का रिसेप्शन। 

जितनी शानो-शौकत शादी में थी, उतनी ही रॉयल तैयारी आज रिसेप्शन में भी की गई थी।

सभी मेहमान आ चुके थे। मीडिया, बिज़नेस टायकून्स, और राजनेता—सबकी नज़रें राठौर परिवार पर टिकी थीं। पर इन सबके बीच, हर किसी के दिल में कोई न कोई रहस्य, कोई न कोई मकसद छुपा था।

सुहानी के मन में एक ही सवाल गूंज रहा था — "मेरी माँ और रणवीर राठौर का रिश्ता क्या है?" ये सवाल उसके दिमाग में घर कर चुका था। उसके पिता के बारे में जो आरव ने बताया, सुहानी को उस बात की गहराई तक जाना था।

दूसरी ओर आरव खुद से लड़ रहा था। एक ओर उसे अपने परिवार का बदला लेना था, दूसरी ओर सुहानी की मासूमियत, सहनशीलता उसकी आत्मा को छू रही थी। मगर बाहर से वो अब भी वही सख्त और बेरहम आरव बना हुआ था।

एक तरफ मीरा अपने ही साजिशों में उलझी हुई थी। मीरा, जो हर मौके पर सुहानी को नीचा दिखाने का कोई भी मौका हाथ से नहीं जाने देना चाहती थी, रिसेप्शन से एक दिन पहले उसने एक और चाल चली।

“क्यों न मैं ही सुहानी के लिए ड्रेस सिलेक्ट करूं?” मीरा ने सधे हुए अंदाज़ में घर के सामने सभी सदस्यों के सामने कहा, “आख़िर वो अब इस फैमिली का हिस्सा है। तो उसकी पहली पार्टी में मैं ही उसे गाइड करना चाहती हूं— यह मेरा फर्ज़ है, वैसे भी आरव की पसंद ना पसंद को मुझसे बेहतर कौन समझ सकता है?” गौरवी मुस्कुराई, और आरव ख़ामोशी से बस खड़ा रहा।

 

अगली सुबह वो खुद सुहानी के कमरे में चली आई, बेहद अपनापन जताते हुए।

“चलो, आज तुम्हारे लिए कुछ अच्छा लेते हैं। रिसेप्शन की पहली झलक हमेशा याद रहती है, और आरव के सामने तुम... थोड़ी तो ठीक लगो,” उसने आँख मारते हुए कहा।

सुहानी चुपचाप तैयार हो गई। दोनों साथ बाजार पहुंची। ब्रांडेड शोरूम, डिज़ाइनर ड्रेसेज़ की चमक-दमक में मीरा की आंखों में एक और ही चमक थी — चालबाज़ी की।

“वैसे,” मीरा ने ड्रेसेज़ की रैक पर चलते हुए पहली चोट की, “तुम्हारी हाइट थोड़ी कम है ना, फ्लेयर्ड गाउन तुम पर भारी लगेंगे... पता नहीं आरव क्या सोचेगा।”

सुहानी ने कुछ नहीं कहा, बस एक हल्की मुस्कान दी।

“और ये कलर... उफ्फ, ये तो एकदम डल है। तुम्हारे स्किन टोन पर नहीं जमेगा,” मीरा ने एक पेस्टल ग्रीन ड्रेस दिखाते हुए फिर टोका।

तीसरी ड्रेस उठाते हुए मीरा ने धीमे से कहा, “आरव को हमेशा मॉडर्न और क्लासी पसंद है — तुम्हारा सिंपल स्टाइल शायद थोड़ा... पुराने ज़माने का है।”

चौथी बार, जब शो रूम के मालिक ने आकर खुद एक ड्रेस suggest की जिसे देखते ही सुहानी ने कहा, “ये अच्छा है।” 

ये एक ख़ास सिलेक्शन थी, जैसे किसी ने सुहानी की रूह को समझ कर उसके लिए ये ड्रेस पसन्द की हो। सुहानी ने ट्रायल रूम में जाकर वो ड्रेस try की, और जब वो बाहर आई, तो वहां खड़े लोगों की नज़रें उस पर थी। 

ड्रेस गहरे रॉयल ब्लू और सिल्वर ग्रे के कॉम्बिनेशन में थी—रॉयल्टी और सादगी का परफेक्ट मेल। नेट और सिल्क से बनी इस ड्रेस की हर कढ़ाई जैसे कोई कहानी बयां कर रही थी। उसकी बॉडी-फिटेड सिल्हूट ने उसकी नाजुकता को उभारते हुए उसे एक रानी-सी शान दी, वहीं फ्लेयर स्कर्ट की लेयर्स में छुपी ग्रेस, हर कदम पर एक अलग जादू बिखेर रही थी।

ये ड्रेस एलिगेंस और मॉडर्निटी का संतुलन थी। स्लीव्स फुल थीं, लेकिन हाथों की ओर जाते-जाते वो बारीक कढ़ाई और मोतियों के काम में ढल जाती थीं—मानो किसी परी के पंख हो।

उसमें कोई भड़कीलापन नहीं था, कोई ज़रूरत से ज़्यादा दिखावा नहीं। वो उतनी ही क्लासिक और ग्रेसफुल थी, जितनी सुहानी खुद। उसकी हर पसंद को ध्यान में रखकर बनाई गई थी ये ड्रेस—रंग, स्टाइल, काम और फिटिंग... सब कुछ। 

सुहानी खुद को शीशे में देख कर खुश थी। तभी..

मीरा ने हँसते हुए कहा, “क्यूट है... लेकिन थोड़ा ज़्यादा सिंपल। रिसेप्शन में सबकी नज़रे तुम पर होगी — आरव की बीवी बनकर कुछ अलग तो दिखना पड़ेगा ना। या फिर... छोड़ो, तुम जैसी हो वैसी ही ठीक हो।”

फिर मीरा ने जानबूझकर एक महंगी, black ड्रेस उठाई — जिसके साथ सिल्वर वर्क और स्टोन ज्वेलरी का एक सेट भी था।

“तुम्हें black रंग बहुत सूट करेगा,” मीरा ने आँखों में चमक लिए कहा, “वैसे भी ये आरव का फेवरेट है।”

दरअसल आरव का फेवरेट कलर तो रॉयल ब्लू था, और वो ड्रेस जो सुहानी को पसंद आई थी, वो भी आरव ने ही पसंद की थी, और ये बात मीरा जानती थी। 

ये black ड्रेस एक साड़ी थी, और वो भी बेहद ख़ूबसूरत, लेकिन ये सुहानी को पसंद नहीं थी। मगर फिर भी ज़बरदस्ती मीरा ने उसे वही ड्रेस खरीदने को मजबूर कर दिया। ऊपर से मीरा के तानों ने उसको सर दर्द देना शुरू कर दिया था, वो जल्दी से इसे निपटा कर वापस लौटना चाहती थी। 

इतनी बार ताने सुनने के बाद भी सुहानी शांत रही, पर जब मीरा ने चलते-चलते एक बार और तंज कसा — “तुम जितना भी सजा लो खुद को, आरव की नज़रों में कभी मेरी जगह नहीं ले पाओगी” — तब सुहानी रुक गई।

उसने मीरा की आँखों में सीधा झाँका, आवाज़ सधी हुई थी, पर शब्दों में आग थी।

“शायद तुम सही हो, मीरा। मगर आज तुम मेरे लिए कपड़े खरीदने आई हो — मेरे और आरव के रिसेप्शन के लिए। ये ही काफ़ी है ये साबित करने के लिए कि किसकी क्या जगह है आरव की लाइफ में। मैं आरव की पत्नी हूँ, तो बेहतर होगा हम जिस काम के लिए आये हैं, उसपर ध्यान दें, ना कि एक दूसरे को उसकी जगह दिखाएं।”

मीरा के चेहरे का रंग फीका पड़ गया। उसकी मुस्कान जैसे किसी ने छीन ली हो। मगर अगले ही पल वो अपने जले हुए अहंकार को मुस्कुराहट के नकाब में छिपाती हुई फिर से चालाकी से मुस्कुराई, मानो कह रही हो — “खेल अभी खत्म नहीं हुआ।”

रिसेप्शन की रात…

घर पे आये makeup artists के घंटों की मेहनत के बाद सुहानी तैयार हो गई— जब वो वेन्यू पर पहुंची, तो हर नज़र उसी पर ठहर गई— खासकर आरव की, मगर उसकी आँखों में उलझन थी, ये ड्रेस तो उसने सुहानी के लिए पसंद नहीं की थी। 

शो रूम के मालिक ने जब उस रॉयल ब्लू ड्रेस में सुहानी की फोटो खींच कर आरव को भेजी थी, तो उसके चेहरे पर गर्व से एक मुस्कान छा गई थी। मगर फिर ये ड्रेस? 

कहीं सुहानी को पाता तो नहीं चल गया था की वो ड्रेस आरव ने उसके लिए पसंद की है। जब सुहानी स्टेज पर आई, तो आरव गुस्से से उससे पूछा।

“ये तुमने क्या पहना है सुहानी?” 

“मतलब?” सुहानी उलझन में थी।

“तुमने तो वो रॉयल ब्लू ड्रेस चुनी थी ना? फिर जान बुझ कर ये कलर पहना जो मुझे बिलकुल पसंद नहीं, इसका क्या मतलब है? तुम्हें अगर मेरी चुनी हुई ड्रेस नहीं पेहननी थी तो कोई और अच्छी ड्रेस चुन लेती। हर बात में उल्टा करना, ताकि मुझे चोट पहुंचे, तुम्हारी आदत सी हो गई है। खैर तुमसे उलझने का कोई मतलब ही नहीं है।”

सुहानी उसकी बातें सुनकर सदमे में खड़ी रही। 

वो ड्रेस आरव ने चुनी थी मेरे लिए? उसे अंदर ही अंदर मीरा पर गुस्सा आ रहा था। उसने ये सब जान बुझ कर किया था, ताकि आरव और उसके बीच बहस हो।

आरव ने डिज़ाइनर को मैसेज किया, “क्या मतलब है इस बात का, मैंने जो ड्रेस पसंद की थी, वो कहाँ है? और उसे कोई और ड्रेस पकड़ा कर तुमने मुझे उस रॉयल ब्लू ड्रेस के लिए चार्ज किया है?” 

“सॉरी सर, लेकिन वो ड्रेस आपके घर से ही कोई आकर लेकर गया है। पसंद तो आपकी वाइफ को वही ड्रेस थी, और वो वहीं लेना चाहती थीं, लेकिन फिर पता नहीं क्यों उन्होंने वो बलैक ड्रेस ली। हमें लगा सुहानी मैम ने अपाना मन बदल दिया।”

“किसने लीं वो ड्रेस”

डिज़ाइनर ने चेक करने के लिए दो मिनट माँगा… पर तभी… जवाब सामने था। Venue में मीरा ने entry ली। 

उसी रॉयल ब्लू ड्रेस में!

“सर वो ड्रेस मीरा राजपूत लेकर गईं हैं।” डिज़ाइनर ने मैसेज किया।

आरव को बहुत गुस्सा आ रहा था। 

सबकी निगाहें एक पल को मीरा पर टिक गईं। कैमरे क्लिक होने लगे। वो सीधी स्टेज पर गई और आरव के बगल में जाकर उसका हाँथ पकड़ कर खड़ी हो गई।

सुहानी की आंखों के आगे सब धुंधला होने लगा था। फिर भी उसने खुद को संयमित रखा। मीरा ने कैमरा मैन को इशारा किया और कहा, “सुहानी, थोड़ा साइड हो जाओ, हमें कुछ पोज़ अकेले लेने हैं।”

आरव की साँसे गुस्से से तेज़ हो चुकी थीं। “मीरा, तुम ये क्या कर रही हो?” उसने धीरे से फुसफुसाया।

“Relax, Aarav… I just missed this feeling,” मीरा ने कहा और हँसते हुए बोली, “वैसे, मेरी ड्रेस कैसी लगी?”

“मीरा..” आरव गुस्से में गुरराया।

“मैंने तुम्हें सुहानी से शादी करने के लिए इसीलिए कहा था, क्योंकि तुम उससे बदला लेने वाले थे। लेकिन तुम तो उसके पीछे लट्टू हुए जा रहे हो। उसके लिए ड्रेस पसंद करना, छुप-छुप कर उस पर नज़र रखना ताकि उसे किसी तरह की तकलीफ ना पहुंचे और फिर उस दिन रात में उसे बचाने के लिए उस कमरे की ओर आना? 

तुम्हें क्या लगता है, हमें दिख नहीं रहा तुम उसके लिए भावुक होते जा रहे हो। अपना मकसद तक भूल गए हो? दिग्विजय अंकल भी बहुत नाराज़ हैं, वो तो सुहानी के साथ कुछ बुरा करना चाहते थे, मगर मैंने सोचा की अभी तो शुरुआत है, वो झेल नहीं पाएगी। इसीलिए उसे सबक सिखाने की ज़िम्मेदारी उन्होंने मुझे दी। और वैसे भी, इसे उसकी जगह दिखाना ज़रूरी था। भले ही वो तुम्हारी पत्नी हो, मगर तुम्हारी हर चीज़ पर बस मेरा हक़ है।” 

आरव उसे बस देखता रहा, मीरा बदली नहीं थी, मीरा का असली रूप ही जब सामने आया था, और मीरा के इस रूप से आरव को घिन्न आ रही थी। 

“अब चलो मुस्कुराओ, और मेरे साथ कुछ पोज़ दो। सब इंतेज़ार कर रहे हैं। “

सुहानी दूर से उन दोनों को देख रही थी। आरव जिस तरीके से मीरा की आँखों में देख रहा था, वो समझ गई थी कि मीरा सही बोल रही थी, सुहानी कभी उसकी जगह नहीं ले पाएगी। 

तभी एक शांत और गंभीर आवाज़ ने उसे चौंका दिया — “सुहानी, मैं हूँ आरव का सबसे छोटा चाचू…रणवीर राठौर.”

सुहानी के पैरों तले ज़मीन खिसक गई। यही वो शख्स था जो तस्वीरों में उसकी माँ के साथ था। वही चेहरा… वही मुस्कान।

“लगता नहीं ना? ऐसा लगता है जैसे मैं आरव का बड़ा भाई हूँ?” रणवीर की मुस्कुराते हुए, व्यंग्य कैसा। 

वो मुस्कराई, ताकि किसी को कुछ मालूम ना पड़े कि वो उसे जानती है— मगर उसके अंदर एक तूफान चल रहा था। अब उसके मन में एक ही बात थी — मुझे इन से अकेले में बात करनी होगी। यही वो इंसान हैं जिनसे मुझे सच का पता चलेगा।

उसने देखा कि रणवीर अकेला ही आया है, और उसके आने से राठौर परिवार में एक अजीब से चुप्पी छा गई है। कोई खुश नहीं था। जैसे कोई ऐसा भेद खुल गया हो जिसे वो दबाकर रखना चाहते थे।

दूसरी ओर, आरव मीरा की हरकतों से परेशान था। वो जानता था कि सुहानी को बहुत बुरा लगा होगा, मीरा की ये हरकतें और फिर उसने भी बिना किसी गलती के उसे कितना सुना दिया था।मगर अब वो ये नहीं जानता था — वो अब पहले वाली सुहानी नहीं रही। 

रिसेप्शन की चकाचौंध, कैमरों की चमक और झूठे मुस्कुराहटों के पीछे के बाद... पार्टी अब प्राइवेट एरिया में शिफ्ट हो गई थी। माहौल थोड़ा हल्का हो गया था, मगर अब भी वहाँ करीब पचास खास मेहमान मौजूद थे — वही जो परिवार के सबसे करीबी थे या फिर किसी राज़ के गवाह।

सुहानी अब भी रणवीर राठौर की बातों को लेकर बेचैन थी, तभी—"अरे!" अचानक रणवीर की ऊँची आवाज़ ने सबका ध्यान अपनी ओर खींचा, “मैंने सुना है कि नई दुल्हन बहुत अच्छा गाना गाती है!”

सबकी नज़रें चौंक कर उसकी ओर घूम गईं।

"क्या? आप लोगों को नहीं पता?" उसने ज़रा सी हँसी के साथ कहा, “अरे गाती ही होगी ना! I mean… जब उसकी माँ काजल इतना अच्छा गाती थी, तो इसे भी तो सिखाया ही होगा!”

कमरे में एक अजीब सी खामोशी छा गई। कुछ चेहरों पर आश्चर्य, कुछ पर गुस्सा, कुछ पर चिंता… और सुहानी? वो बस देखती रह गई। सब उसे देख रहे थे, जैसे वो कोई शिकार हो, मगर वो? सच्चाई के करीब जाना चाहती थी।

रणवीर की बातों में एक चुभन थी, और एक संकेत भी — काजल का नाम यूँ अचानक लेना, सुहानी की कला को उससे जोड़ना, और सबके सामने ये कह देना… कि वो काजल को जानता था… बहुत बड़ी बात थी।

"गाओ ना सुहानी," रणवीर ने फिर से कहा, इस बार नज़रों में एक गहरा राज़ लिए।

आरव ने चुपचाप उसकी ओर देखा। सुहानी का दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था। ये कोई मामूली गुज़ारिश नहीं थी… ये एक इशारा था… किसी अनकहे सच की ओर बढ़ने का। और अब, सुहानी को तय करना था — क्या वो चुप रहेगी? या अब अपनी आवाज़ का इस्तेमाल सच्चाई तक पहुँचने के लिए करेगी?

 

काजल... की बात होते ही सुहानी की आँखों के सामने वो धुंधली सी तस्वीर आ गई—उसके बचपन के दिनों की, जब उनके पास कुछ भी नहीं था…

"बाबुल मोरा नैहर..." माँ गा रही थीं, पीतल की थाली में आटा गूंधते हुए, और नन्ही सुहानी माँ के घूंघट के पीछे छुपकर उनके सुरों को पकड़ने की कोशिश कर रही थी।

“माँ, ये क्या गा रही हो?”

“ये बेटा... जब एक लड़की ससुराल जाती है, तब उसके दिल में जो दर्द होता है, वो इस गीत में है। एक दिन तू भी गाएगी ये गाना, तब समझेगी।”

और आज वही दिन था।

 

सुहानी ने धीरे से मंच की ओर कदम बढ़ाए। उसकी आँखों में आँसू थे, मगर चेहरा स्थिर। उसने खुद को संभाला, और फिर आँखे बंद कर धीमे सुरों में गाना शुरू किया—

“बाबुल मोरा नैहर छूटो ही जाए...”

हॉल में जैसे कोई जादू छा गया। हर सुर, हर अल्फाज़ दिल को चीरते हुए निकल रहे थे। उसकी आवाज़ में माँ की याद थी, अपना टूटा हुआ बचपन था, और आज का घुटन भरा वर्तमान।

आरव उसे बस देखता ही रह गया। ये वही लड़की थी जिसे उसने कभी हँसते, उछलते कूदते देखा था। उसकी आँखों में जो पीड़ा थी, वो उसने दी थी, और वहीं दर्द उसे अपने अंदर तक महसूस होने लगा। एक अजीब सी बेचैनी ने उसे घेर लिया।

रणवीर भी उसे मुस्कुराते हुए देख रहा था, जैसे उसे भी सुहानी में काजल की झलक दिख रही हो। 

गाना खत्म हुआ। सुहानी ने अपनी आँखें खोलीं — सब स्तब्ध थे। तालियाँ बजी, पर सुहानी मुस्कराई नहीं। उसकी आँखें बस माँ की अधूरी कहानी ढूंढ़ रही थी, और रणवीर के चेहरे पर एक ऐसा सच आ चुका था, जिसे अब छुपाया नहीं जा सकता।

महल की रंग-बिरंगी लाइट्स अब धीमी हो चुकी थी। मेहमान धीरे-धीरे विदा ले रहे थे। आरव और सुहानी साथ में घर लौटे, लेकिन दोनों के दिलों में तूफान थे। घर के अंदर आने के बाद दोनों दो दिशा में चले गए, जैसे ही सुहानी गलियारे से होते हुए लिविंग हॉल की ओर बढ़ी, रणवीर ने पास से गुजरते हुए धीरे से उसके कानों में कुछ कहा—

"तुम्हारी माँ का फेवरेट गाना था, वो तुम्हें आज इसे गाते देखती तो बहुत खुश होतीं।” 

सुहानी ठिठक गई। रणवीर बिना कुछ और कहे मुड़कर जाने लगा, लेकिन सुहानी के मन में जो सवाल काफ़ी लम्बे समय से दबे थे, आज उन्होंने खुद रास्ता खोज लिया।

"रुकिए!" उसकी आवाज़ कांपी, लेकिन मज़बूत थी। रणवीर ने पलटकर देखा।

“आप मेरी माँ को कैसे जानते हैं? मैंने आपकी तस्वीर देखी है... माँ के एक पुराने संदूक में और सिर्फ तस्वीरें ही नहीं थीं, कुछ और भी था... जिसने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया है।”

“आख़िर आपका रिश्ता क्या था मेरी माँ से?”

रणवीर की आँखें नम हो गईं।

“उसने... मेरी तस्वीरें... संभाल कर रखी थी?”

“हाँ। पर क्यों?”

रणवीर एक गहरी साँस लेता है, लगा जैसे किसी ने उसके पुराने घाव को छू लिया हो।

"मुझे लगा था वो मुझे भुला चुकी है। लेकिन नहीं…अगर उसने वो सब संभाल कर रखा था, तो शायद उसका दिल भी उसी हाल में था जैसे मेरा—बिखरा हुआ, अधूरा…जब तुम मुझे मंच पर उस तरह देख रही थी, मैं समझ गया था कि तुम मुझे पहचानती हो। तुम जानती हो कि काजल और मैं—हम दोनों एक-दूसरे को जानते थे। हम दोनों..."

“सुहानी!”

एक कड़कती आवाज़ ने उस क्षण को चीर डाला। आरव वहाँ खड़ा था, उसकी आँखों में गुस्सा और बेचैनी थी।

रणवीर ने खुद को संयमित किया और कहा—“हमें बाद में बात करनी चाहिए...”

फिर वह धीरे से वहाँ से चला गया। आरव सीधा सुहानी की ओर बढ़ा।

“मैंने कहा था ना, हर बात में अपनी नाक मत घुसाओ। तुम्हें ये बात समझ क्यों नहीं आती?”

“ये मेरी माँ की बात है आरव, किसी गैर की नहीं। और वैसे भी, मुझे आपको कोई सफाई देने की ज़रूरत नहीं। मैं आप से बात ही नहीं करना चाहती।”

वो जाने के लिए पलटी ही थी कि आरव ने उसकी कलाई थाम ली…“इस आदमी के मुँह से निकली किसी बात पर यकीन मत करना सुहानी। वो सिर्फ झूठ बोलना जानता है।”

सुहानी ने उसकी आँखों में सीधे देखा और कहा—“और आप कौन होते हैं ये तय करने वाले कि मैं किस पर यकीन करूँ? वैसे भी बोल कौन रहा है... जो खुद एक झूठा रिश्ता जी रहा है। मुझे जाने दीजिए, आरव।”

उसने अपनी कलाई छुड़ाई, और सीढ़ियों की ओर बढ़ गई, आँखों में आँसू और दिल में एक नई आग के साथ।

सुहानी अपनी माँ के अतीत की गहराइयों में उतरने की कोशिश कर रही थी, लेकिन आरव हर कदम पर दीवार बन कर खड़ा हो रहा था। उसकी आँखों में गुस्सा कम और बेचैनी ज़्यादा थी — जैसे वो खुद नहीं समझ पा रहा कि वो सुहानी को रोकना चाहता है, या खुद को।

 

अगली सुबह…

सुहानी नीचे आई तो सामने आरव खड़ा था। हाथ में उसका फोन….“तुम्हारे भाई ने कल रात कॉल किया था। तुमने उसे क्या बताया?”

“वो मेरा भाई है, आरव। मैं जो चाहूँ उससे बात कर सकती हूँ। और आपको...”

“तुम हर जगह अपनी मनमानी कर रही हो, सुहानी। इस घर में रहने के कुछ नियम हैं।”

“तो क्या मैं अब अपनी माँ के बारे में भी नहीं जान सकती? क्या आप मुझे इतना भी हक़ नहीं देंगे?”

आरव का चेहरा सख्त हो गया।

“तुम जो जानना चाहती हो, वो सब तुम्हारे लिए ज़हर है। जिस दिन वो राज खुलेंगे, तुम खुद को कोसोगी।”

"या शायद अभी मुझे उस शख्स को कोसना चाहिए जो सच्चाई छुपा रहा है।" सुहानी की आवाज़ कांपी, मगर उसकी आँखों में डर नहीं था।

आरव ने गहरी साँस ली, फिर पास आकर धीमे लेकिन तीखे लहजे में कहा—

“तुम नहीं जानती, सुहानी... कुछ सच्चाई रिश्तों को बर्बाद कर देती हैं। तुम जिस रास्ते पर चल पड़ी हो, वहाँ से वापस आ पाना बहुत मुश्किल है।”

“शायद मुझे वापसी करनी भी नहीं है।”

वो पलट गई, लेकिन उसके जाते ही आरव दीवार पर ज़ोर से मुक्का मारता है। उसकी आँखों में वो पुराना दर्द लौट आता है — बचपन की वो रात, जब उससे सब कुछ छिन गया था।

एक छोटा सा बच्चा, छुपा हुआ किसी कमरे के कोने में... और बाहर एक औरत की चीखें, और रणवीर की आवाज़, और फिर सन्नाटा। आरव जानता है, रणवीर का लौटना सिर्फ एक तूफान की शुरुआत है।

 

क्या सुहानी करेगी आरव की बात पर यकीन? 

सच में रणवीर एक झूठा आदमी है या फिर आरव सुहानी को गुमराह कर रहा है? 

क्या मीरा और सुहानी के बीच आरव किसी एक को चुन पायेगा? 

जानने के लिए पढ़ते रहिये ‘रिश्तों का क़र्ज़!'

 

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