कैफ़े की खामोश दीवारों के बीच बैठी सुहानी की आँखों में कई सवाल थे और उसके सामने बैठे रणवीर राठौर की आंखों में बीते वक्त की परछाइयाँ।
"तुम जानना चाहती हो ना कि तुम्हारी माँ और मैं अलग क्यों हुए?" रणवीर ने पूछा।
सुहानी ने हल्के में सिर हिलाया, उसकी उंगलियां कॉफी कप की गर्माहट के पीछे छुपी हुई, अपनी बेचैनी को दबाने की कोशिश कर रही थी।
रणवीर ने धीमी और गंभीर आवाज़ में बोला, “काजल मेरी ज़िंदगी की पहली और आखिरी मोहब्बत थी। कॉलेज में मिले थे हम दोनों…सब कुछ बहुत खूबसूरत था, जैसे कोई सपना।हमने साथ जीने-मरने की कसमें खाई थीं। मगर राठौर खानदान को ये रिश्ता मंजूर नहीं था। खासकर... गौरवी को।”
रणवीर की आवाज़ में कड़वाहट थी, लेकिन आँखों में दर्द। "हमने भागकर शादी करने का फैसला किया, सब कुछ प्लान कर लिया था। मगर उस दिन... वो नहीं आई। बस एक चिट्ठी छोड़ गई, जिसमे उसने सिर्फ एक लाइन लिखी थी—'माफ़ करना, मैं ये नहीं कर सकती।' और कुछ दिनों बाद मैंने सुना कि उसने शिव प्रताप से शादी कर ली है।"
दोनों के बीच सन्नाटा छा गया। सुहानी ने उसकी आँखों में झाँका—वो आँखें अब भी काजल को ढूँढ रही थीं।
"मैं कभी शादी नहीं कर पाया। मेरे दिल ने कभी मुझे काजल को भूलने ही नहीं दिया और उस दिन से राठौर परिवार ने मुझे हमेशा के लिए नकार दिया। मैं उनके लिए एक बाघी हूं। सालों पहले मैंने अपना बिज़नेस शुरू किया—और आज जो कुछ भी हूँ, उसी की बदौलत हूँ।"
सुहानी की आंखें भर आईं। पहली बार कोई उसकी माँ की कहानी इतने दिल से सुना रहा था।
"सुनो सुहानी... राठौर परिवार से संभलकर रहना। ये लोग मीठी बातों के पीछे ज़हर छुपाए रहते हैं। अगर कभी किसी मदद की ज़रूरत हो, तो मुझे ज़रूर याद करना।
मैं नहीं जानता पूरी कहानी क्या है, मगर, शमशेर राठौर, मेरे बड़े भाई आरव के पिता, उनकी मौत के लिए तुम्हारे पापा को दोषी ठहराया जाता है। कहते हैं, उन्होंने भाईसाहब को बिज़नेस में धोखा दिया था। और एक दिन… उन्होंने आत्महत्या कर ली।" उस दिन से गौरवी राठौर ने कसम खाई थी कि अपने पति का बदला जरूर लेगी। और अब, वो अपने बेटे को उसी ज़हर में पिघलाकर तैयार कर चुकी है..."
रणवीर उठने ही वाला था कि एक पल के लिए रुका। रणवीर ने धीरे से मुस्कुराते हुए पूछा,
"वैसे, उस दिन तुमने कहा था कि उस संदूक में सिर्फ तस्वीरें नहीं थीं, कुछ और भी था...?"
सुहानी चौंक गई, लेकिन अगले ही पल उसने खुद को संभाल लिया। "कुछ खास नहीं। बचपन की ड्रॉइंग्स थीं... मेरे और मेरे भाई की।"
रणवीर ने गंभीर नज़रों से उसे देखा। वो जान गया था कि सुहानी कुछ छुपा रही है—लेकिन उसने कुछ नहीं कहा….सच तो ये था कि सुहानी डर गई थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि किस पर भरोसा किया जाए और किस पर नहीं।
उस संदूक में मिली पुरानी तस्वीरों के साथ जो कागज़ थे—वो सिर्फ ड्रॉइंग्स नहीं थे। वो थे कुछ ऐसे दस्तावेज़ जो उसकी माँ की पुरानी ज़िंदगी से जुड़े थे।
कुछ चिठ्ठियाँ... जो अधूरी थीं, लेकिन जिनमें 'राठौर' नाम बार-बार उभरा था।
एक पुराना मेडिकल रिपोर्ट, जिस पर 'डिप्रेशन' जैसे शब्द दर्ज थे।
और एक डायरी…
सुहानी को डर था—अगर उसने किसी को अभी सब कुछ बता दिया, तो वो उन जवाबों से हमेशा के लिए हाँथ धो बैठेगी जिनकी उसे सबसे ज्यादा तलाश थी। शायद रणवीर भरोसेमंद था, शायद नहीं। मगर इतने सालों में सीखी एक बात सुहानी को आज बहुत साफ-साफ़ याद थी—हर मुस्कुराता चेहरा सच्चा नहीं होता। वो सच जानना चाहती थी, मगर अपने तरीके से... अपने वक़्त पर।
सुहानी जब घर लौटी, तो हवेली का माहौल कुछ अजीब सा था। हॉल में सभी मौजूद थे—गौरवी राठौर, मीरा... और कोने में चुपचाप खड़ा था आरव। सबकी निगाहें सुहानी पर ही टिकी थी। माहौल में सन्नाटा था, जो किसी बड़े तूफ़ान से पहले की खामोशी जैसा लग रहा था।
गौरवी तेज और तंज़ कस्ते हुए बोली, “कहाँ थी तुम?”
सुहानी हल्की सी झिझक और घबराहट के साथ बोली, "मैं... बस, बाहर गई थी। कुछ ज़रूरी काम था।"
गौरवी ने अपने फोन की स्क्रीन उसकी ओर बढ़ाई। स्क्रीन पर एक तस्वीर थी—कैफे के बाहर खड़ी सुहानी और रणवीर की।
गौरवी कड़वाहट से बोली, "काम था? रणवीर के साथ? हमारे दुश्मनों से गुपचुप मिलने गई थी? कल की आई लड़की आज ही घर की इज़्ज़त से खेलने लगी?"
एक-एक कर सबने सुहानी पर तंज कसे। मीरा मुस्कराते हुए बोली, "एक धोकेबाज़ की बेटी क्या ही जाने इज़्ज़त क्या होती…”
"इस घर की बहू बनने के लायक नहीं हो तुम।" गौरवी ने कहा।
सुहानी सन्न थी। उससे पहले कि वो कुछ कहती, आरव उसके सामने ही खड़ा था। उसकी नज़रें सुहानी पर थी—भरोसा कम, डर ज़्यादा। जैसे वो कुछ ऐसा जानता हो जो सुहानी की ज़िंदगी बदल सकता है। तभी किसी की गूंजती हुई आवाज़ आई—"बस!" दिग्विजय राठौर अपने कमरे से निकलकर बोले। उनकी चाल धीमी थी, मगर आवाज़ कठोर।
आज से इस लड़की का फोन, लैपटॉप सब ज़ब्त किया जाए। जब तक अगला आदेश ना मिले, इसके घर से बाहर जाने पर भी पूरी तरह से पाबंदी है।
सुहानी की रूह कांप गई। उसे कैद कर लिया गया था—बिना किसी गुनाह के। वो पलट कर अपने कमरे की ओर जाने लगी, आँखों में आंसू लिए। आरव ने उसे रोकते हुए कहा, "सुहानी... ताऊ जी ने जो कहा, तुमने सुना नहीं क्या? अपना फोन यहीं छोड़कर जाओ।"
सुहानी ने स्तब्ध होकर उसकी ओर देखा। जिसे उसका रक्षक बनना चाहिए था, वही उसे आज कैद करके बैठा है। बेमन उसने अपना फोन पर्स से निकाला और आरव की हथेली पर रख दिया। उसकी आँखों से पहले आँसू की बूँद गिरी और वो चुपचाप अपने कमरे की ओर चली गई।
जब आरव कुछ देर बाद उसके पीछे कमरे में आया, सुहानी बालकनी में बैठी थी, स्विमिंग पूल के किनारे। शहर की रोशनी उसके आँसुओं में धुँधली हो रही थी। तभी आरव पीछे आकर खड़ा हो गया। वो जानता था कि सुहानी कैसा महसूस कर रही होगी, मगर वो खुद को कमजोर नहीं दिखा सकता था। कुछ देर खड़े रहकर उसने उसे देखा और फिर वो वापस लौट गया।
डिनर का वक़्त हुआ, मगर सुहानी नीचे नहीं आई। आरव को चिंता हुई, मगर मीरा की शक्की नज़रें खुद पर देखकर वो फिर से संयम में आ गया। वो जब कमरे में पहुँचा, सुहानी बिस्तर पर लेटी हुई थी, छत को निहारते हुए।
"तुम नीचे डिनर करने क्यों नहीं आई?"
कोई जवाब नहीं।
आरव ने थोड़ा गुस्से में दोहराया, "सुहानी! मैं तुमसे कुछ पूछ रहा हूं। भूखी रहोगी तो बीमार पड़ जाओगी।"
सुहानी अचानक फट पड़ी, "तो? बीमार पड़ूँगी तो? आप लोग तो इंसान मानते ही नहीं मुझे! ज़बरदस्ती शादी, भाई से बात करना, मिलना बंद, कैद जैसी ज़िंदगी! ये सब क्या है आरव? आप सबने मिलकर मुझे इस हवेली की दीवारों में जकड़ लिया है!"
आरव चुपचाप सुनता रहा। और फिर... मुस्कराने लगा।
सुहानी गुस्से में बोली, "आप हँस रहे हैं मुझ पर?"
आरव हंसी रोकने की कोशिश करते हुए, और नाकाम होता हुआ, बोला, "सॉरी... लेकिन मैंने आज तक इतनी तेज़ी से किसी को इतनी सारी बातें करते नहीं देखा है।"
सुहानी हैरान होकर बोली…."क्या?"
आरव ने फिर सीरियस होकर कहा, "सुहानी, मैंने कहा था ना, ताऊ जी की बात मत टालो। उनकी नज़र से जितना बची रहोगी उतना अच्छा, वरना—"
सुहानी थक कर बोली, “मैं आपको समझ नहीं पा रही हूँ, आरव। आप कभी कठोर होते हैं, कभी… अपने तरीके से मेरी परवाह करने लगते हैं। और मैं भी इन सब में अपना दिमाग खोती जा रही हूँ... उस दिन आपने गुस्से में कहा था कि वो ड्रेस आपने चुनी थी, और मैं उसी बात से इतनी खुश हो गई, कि उसके बाद आपने जो भी कहा वो मैंने सुना ही नहीं। पर उस ड्रेस में मैंने एक भी तस्वीर नहीं खिंचवाई... खिंचवा लेनी चाहिए थी।”
आरव ने जेब से अपना फोन निकाला, और उसके पास बैठते हुए, उसने अपने फ़ोन पर वो तस्वीर उसे दिखाई—जिसमें उसने वही ड्रेस पहनी हुई थी—सुहानी दंग होकर बोली, "ये... आपके पास?”
“खूबसूरत है।” सुहानी ने अपनी तस्वीर को देख कर मुस्कुराते हुए कहा।
“बहुत" उसने स्क्रीन पर हल्के से उसका चेहरा छूते हुए कहा। सुहानी की धड़कनों ने करवट ली। तभी…किसी ने कमरे का दरवाज़ा खटखटाया।
बाबू श्याम घर का सबसे पुराना नौकर, दरवाज़े पर था। "छोटे बाबू, मैडम का खाना..."
"हाँ, वहाँ टेबल पर रख दीजिये।" आरव ने उन्हें इशारा करते हुए कहा।
सुहानी हैरानी से बोली, "आपने मंगवाया मेरे लिए?"
आरव मुस्कुराते हुए बोला, “तुम्हें क्या लगता है, ये physique मैंने दो बार डिनर कर के बनाई है?”
वो धीरे से उठी, खाने की ओर बढ़ी, और सोफे पर बैठ कर, पहला निवाला मुंह में रखा। आरव की निगाहें उस पर टिकी थीं। भूख उसके लिए बहुत ही निजी चीज़ थी—एक ऐसी जो उसने बचपन में बहुत सही थी। वो उसे भूखा नहीं सुला सकता था। सुहानी के कमरे का माहौल कुछ देर के लिए शांत था। मगर तभी टेबल पर रखे आरव के फोन पर नोटिफिकेशन की आवाज़ गूंजी।
टिंग!
आरव उठकर फोन की ओर बढ़ ही रहा था, जब सुहानी ने फोन उठाकर उसकी ओर बढ़ा दिया। लेकिन उसकी नज़र स्क्रीन पर आये तीन messages पर गई।
Meera:
"Aarav... can you come to my room? I need to talk."
"It’s important. Please."
"I miss you..."
सुहानी का दिल धड़कने लगा। चेहरे पर कोई शिकन लाये बिना, उसने चुपचाप फोन आरव को पकड़ा दिया। और फिर वो उठकर जाने लगी। “अरे, सुहानी… खाना तो पूरा—”
सुहानी उसकी बात बीच में काटते हुए बोली, “मेरा पेट भर गया है।” वो बचा हुआ खाना डस्टबिन में डालने लगी, जैसे भूख के साथ-साथ अपनी भावनाएं भी फेंक रही हो। फिर बगैर आरव की तरफ देखे उसने वॉशरूम में जाकर दरवाज़ा अंदर से बंद कर लिया।
आरव वहां confused खड़ा रहा, कि अचानक सुहानी को क्या हुआ ?
सुहानी हाथ धोने के बाद खुद को शीशे में देखती रही। उसकी आंखें नम, मगर चेहरे पर हिम्मत की चमक थी। “तुम कमज़ोर नहीं हो, सुहानी….तुम कमज़ोर नहीं हो।”
बाहर आरव फोन पर आए मैसेज पढ़ता है। और तब सुहानी की नाराज़गी की वजह, उसकी चुप्पी का मतलब, सब साफ़ हो जाता है…
वो गहरी सांस लेकर कमरे से बाहर चला जाता है। कमरे के दरवाज़े के खुलने… फिर बंद होने की आवाज़ सुहानी के दिल को चुभती है। सुहानी आंखें बंद कर खुद से कहती, “तो ये सब… एक नाटक था….एक और धोखा।” मगर वो रोती नहीं, टूटती नहीं, खुद को संभालती है, जैसे किसी जंग के लिए खुद को तैयार कर रही हो।
कमरे से बाहर निकलते हुए आरव के मन में हलचल थी। सुहानी के चुपचाप रवैये ने उसे भीतर तक झकझोर दिया था। उसने मीरा के वो तीन मेसेज देखे तो थे, मगर ये एहसास उसे अभी हुआ कि उन तीन पंक्तियों ने उसके बनते रिश्ते को तोड़ दिया था। वो धीमे कदमों से मीरा के कमरे की ओर बढ़ा। मीरा दरवाज़ा खुलने की आवाज़ सुनकर फौरन उठ खड़ी हुई। उसे लगा कि आरव भागता हुआ, बेचैन सा उसके पास आएगा... जैसे पहले आता था।
मगर आज आरव शांत और गंभीर था। मीरा ने मुस्कुराते हुए कहा, "मुझे लगा, तुम नहीं आओगे..."
आरव ने संयमित आवाज़ में टिप्पणी की, "ऐसा क्या जरूरी था, जो तुमने इतनी रात मुझे ये मैसेज भेजे?"
मीरा थोड़ा सहम गयी, फिर धीरे से उसने आरव का हाथ पकड़ लिया।
"आरव... मैं जानती हूं सब कुछ बदल गया है। मगर मैं नहीं बदल पाई, तुम्हें भूला नहीं पाई। मुझे ऐसा महसूस हो रहा है कि शायद मैंने तुम्हें इस शादी के लिए मनाकर एक बहुत बड़ी गलती कर दी। मुझे ऐसा क्यों लग रहा है आरव जैसे मैंने तुम्हें हमेशा के लिए खो दिया है।
आरव ने अपना हाथ धीरे से मीरा के हाथों से छुड़ाया। उसकी आंखों में उलझन थी, लेकिन अब उसमें मीरा के लिए पहले जैसा प्यार नहीं था।
"मीरा… ये सब कहना अब मायने नहीं रखता। जो होना था, हो चुका है। मेरी शादी हो चुकी है और तुम जानती हो क्यों?"
मीरा ने कड़वाहट भरी आवाज़ में कहा, "जानती हूं... बदले की आग में, तुमने सुहानी से शादी की। मगर क्या वाकई तुम्हें अब भी अपना मकसद याद है, या फिर सुहानी ने तुम्हें वो भी भूलने पर मजबूर कर दिया है। क्या तुम भूल गए उसके बाप ने क्या किया था तुम्हारे परिवार के साथ?”
“हाँ, मीरा उसके पापा ने किया, जो किया। उनके कर्मों की सजा एक मासूम को क्यों?” आरव ने उत्तेजित होकर कहा।
“तो अब तुम उससे... मोहब्बत करने लगे हो? क्या तुम्हें वो कभी भी उस तरीके से समझ पाएगी जैसे मैं समझती हूँ?”
आरव कुछ पल चुप रहा। फिर गहरी सांस लेते हुए बोला—"शायद सुहानी मुझे कभी न समझ पाए… और मैं नहीं जानता ये मोहोब्बत है या नहीं, मगर मुझे उसकी परवाह है, मीरा। वो बेकसूर है! और मुझे लगता है हम उसके साथ नाइंसाफी कर रहे हैं।”
मीरा के चेहरे का रंग उड़ गया। मीरा जलन से बोल उठी, “उसमे ऐसा क्या ख़ास है, जो शादी के कुछ दिनों में ही उसने तुम्हें तूम्हारे मकसद से भटका दिया। तुम उसके आते ही भूल गए तुम्हारे परिवार ने क्या क्या सहा है उन लोगों की वजह से, तुम मेरे त्याग तक को भूल गए।” अब मीरा ज़ोर ज़ोर से रोने लगी थी।
आरव ने उसके पास आकर उसके कंधों पर हाँथ रखते हुए कहा, “मीरा, मैं कुछ भी नहीं भूला हूँ, न मेरे अंदर के बदले की आग को, न अपने मकसद को, न तुम्हारे sacrifice को। मैं बस अब एक मासूम को इन सब की वजह से सजा नहीं दे सकता। उसकी कोई गलती नहीं, पर फिर भी चुपचाप सब सहती है, उसका दिल टूटता है, मगर उसके मुँह से अब आह तक नहीं निकलती। हमने उसके साथ बहुत गलत किया है। हमने एक हंसती खेलती लड़की को चलती फिरती लाश बना दिया और जितना मैं तुम्हें जानता हूं तुम भी इन सब के खिलाफ थी हमेशा से।
मगर तुमने मुझे उसी दिन खो दिया था, जिस दिन तुमने मुझे इस शादी के लिए मनाया था। जिस दिन मैं तुम्हारे सामने गिड़गिड़ाता रहा - मुझे ये शादी करने के लिए मजबूर मत करो, मगर तुमने मेरी एक न सुनी। मैंने उसी दिन अपनी मीरा खो दी थी, जिस दिन तुमने एक मासूम को सजा देने के लिए मुझे मनाया था। मैं कभी भी इन सब के लिए तैयार नहीं था।”
ये सब सुन कर मीरा की आँखों में शर्म नहीं, बस आक्रोश था, “देखते हैं, इस बारे में तुम्हारे ताऊ जी और तुम्हारी माँ का क्या कहना है?”
आरव की बातें उसे चुभ गई थीं— एक वक़्त था जब आरव उसके लिए दुनिया से लड़ जाता था, और आज…आरव समझ चुका था मीरा ने एक अलग रास्ता चुन लिया है, जहाँ से वो कभी लौटकर नहीं आने वाली।
“तुम्हें जो करना है करो, मैं हमेशा उसकी रक्षा करने के लिए एक ढाल की तरह खड़ा रहूँगा।
अगली सुबह – हवेली का गार्डन एरिया…
सुबह की हल्की धूप में हवेली के गेट पर एक काली luxury कार आकर रुकती है। दरवाज़ा खुलता है, ब्राउन सूट पहने एक लंबा, आत्मविश्वासी शख्स उतरता है—विक्रम ठाकुर। उसकी आंखों में आक्रोश भी है और चाल में ठहराव भी। वो गेट के बाहर रुक कर हवेली को निहारता है। जैसे कह रहा हो—“अब मेरी बारी है।”
आखिर कौन है ये विक्रम ठाकुर?
क्या होगा मीरा का अगला वार, आरव बन पायेगा सुहानी की ढाल?
क्या सुहानी कभी आरव के दिल की बात जान पायेगी?
जानने के लिए पढ़ते रहिये, “रिश्तों का क़र्ज़!”
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