सुबह की हल्की धूप गेस्ट लॉन्ज़ की खिड़की से छनकर भीतर आ रही थी। सुहानी एक पुरानी सी बुकशेल्फ़ के सामने खड़ी थी, लेकिन उसकी नज़र किताबों पर नहीं—अपने मन में उठते सवालों पर थी। बीते कुछ दिनों की घटनाएं उसकी सोच पर धुंआ बनकर छा गई थीं।
तभी पीछे से एक नौकर धीरे से बोल पड़ा— “मैडम… आप से कोई मिलने आया है। उन्होंने अपना नाम… विक्रम ठाकुर बताया है।”
सुहानी एक पल को सन्न रह गई।
“विक्रम…?”
एक भूली हुई मुस्कान उसके होठों तक आई, पर अगले ही पल उसने खुद को संभाला।
“उसका यहाँ आना ठीक संकेत नहीं दे रहा।“
कुछ देर बाद- गेस्ट लॉन्ज़ में, दरवाज़ा खुला। विक्रम ठाकुर अंदर आया, आत्मविश्वास से भरा, लेकिन आंखों में एक अजीब सी बेचैनी लिए।
विक्रम, हाथ बढ़ाते हुए “Hi Suhani… पहचानने में वक्त लग गया। तुम काफी बदल गई हो।”
सुहानी हल्की मुस्कान के साथ, “तुम तो वैसे ही हो… बस तुम्हारी आंखों में पहले जैसी वो मस्ती नहीं।”
विक्रम गंभीर स्वर में बोला, “इंसान बदल जाता है, जब अपने ही सब कुछ उससे छीन लें। तुमसे अच्छा इस बात को और कौन समझ सकता है?”
सुहानी को इतने सालों बाद दिल्ली में देखकर, विक्रम को वो पुराने कॉलेज के दिन याद आ गए।
लाइब्रेरी में सुहानी और विक्रम की गूंजती हंसी, क्लास के बाहर हल्की नोकझोंक, और एक अधूरा इज़हार—जिसे वक्त ने कभी पूरा होने नहीं दिया।
“मैं जानता हूं… ये शादी तुम्हारी मर्ज़ी से नहीं हुई है सुहानी। राठौर फैमिली के बारे में बहुत कुछ सुना है। अगर तुम चाहो, मैं तुम्हें इस जेल से बाहर निकाल सकता हूं।”
सुहानी गंभीर और स्थिर स्वर में बोली, “मैं कोई कैदी नहीं हूं, विक्रम। और ये कोई rescue mission नहीं है। मैं यहाँ एक सच तलाशने आई हूं… अपने अतीत का, अपनी माँ का, इस हवेली का। जब तक मैं सब कुछ जान नहीं लेती, मैं कहीं नहीं जाऊंगी।”
विक्रम ने धीरे से कहा, “तो फिर तुम्हें एक और सच जानना होगा —
आरव के दिल में जो ज़हर है, वो सिर्फ उसकी मां की नफरत नहीं, एक झूठ है। एक ऐसा झूठ जिसने सब कुछ तबाह कर दिया।”
सुहानी ने विक्रम कि आँखों में देखकर पूछा, “कैसा सच?”
गेस्ट लॉन्ज़ में एक अजीब सी चुप्पी पसरी थी। सुहानी की नज़रे अब भी विक्रम पर टिकी थीं।
विक्रम गहरी सांस भरते हुए बोला—
“गौरवी के बदले की शुरुआत आज से नहीं हुई है, सुहानी। वो तो सालों से किसी ऐसे शख्स से बदला ले रही है, जिसे मालूम ही नहीं है, कि वो गौरवी के खेल का शिकार है, खिलाड़ी नहीं।”
सुहानी की आंखें सिकुड़ गईं—“क्या मतलब?”
विक्रम ने, फिर शांत स्वर में कहना शुरू किया— “मैं जो कहानी तुम्हें आज सुनाने जा रहा हूं, उसमें कई किरदार हैं। इस घर के राज़ जानना चाहती हो, तो ध्यान से सुनना।
“बहुत साल पहले, दो बचपन की सहेलियां—पूर्वी और तुम्हारी माँ काजल। दोनों एक-दूसरे की परछाई थीं। स्कूल, कॉलेज, हर जगह साथ। फिर किस्मत ने उन्हें राठौर परिवार के उन दो भाइयों से मिलवाया—रणवीर और शमशेर राठौर। दोनों भाई, दोनों दिल के सच्चे, जिनमें आपस में बहुत प्यार था… और दोनों ही उन दो सहेलियों को दिल दे बैठे थे।”
विक्रम आगे बोला—
“शमशेर ने पूर्वी से शादी की। घर में रौनक थी, प्यार था… और फिर जुड़वा बेटों का जन्म हुआ। मगर वहीं, कहानी में एक किरदार और भी था—डिग्विजय राठौर। राठौर भाइयों में सबसे बड़ा, जिसके जीवन में खालीपन था… अपनी संतान न होने का।”
“पूर्वी की छोटी बहन थीं, गौरवी… उसी खालीपन को भरने का ज़रिया बन गई। लेकिन ना उसकी नीयत साफ थी, ना मकसद। वो अपनी बहन की खुशहाल ज़िंदगी से जलती थी। उसे राठौर हवेली का हिस्सा बनना था—किसी भी कीमत पर।”
सुहानी ये सब सुनकर सन्न थी।
“डिग्विजय ने गौरवी को लालच दिया—अगर वो उसके लिए काम करे, तो उसे ये महल, ये रुतबा, सब मिलेगा। और वहीं से शुरू हुआ एक ऐसा खेल… जिसकी पहली चाल थी—रणवीर और काजल की शादी रोकना।
शमशेर ने अपने पिता विभंश राठौर के सामने एक दलील रखी कि रणवीर का काजल के परिवार में शादी करना गलत होगा। पूर्वी की छोटी बहन गौरवी ही रणवीर के लिए ठीक रहेगी। विभंश राठौर मान गए।
उसके बाद उन दोनों की शादी की तैयारियां शुरू हो गईं। शादी का दिन आया, गौरवी अपने दुल्हन के जोड़े में बैठे-बैठे राठौर परिवार की बहू बनने का इंतज़ार कर रही थी।
मगर रणवीर कभी आया ही नहीं।
उस दिन गौरवी की बहुत बदनामी हुई, और उस दिन के बाद कोई भी गौरवी से शादी करने को तैयार नहीं हुआ। दिग्विजय राठौर भी आग बबूला हो रखा था, उसने रणवीर और काजल की ख़ोज में अपने कई बन्दे उनके पीछे लगा दिए। मगर कई दिनों तक उनके हाथ कुछ भी न लगा।
फिर एक दिन गौरवी गुस्से में दिग्विजय राठौर के पास आयी, और उनके किये वादे को उनके सामने दोहराया, कि वो उसे राठौर परिवार की बहू बनाएंगे।
इस पर दिग्विजय ने एक और प्लान बनाया, पूर्वी और उसके बच्चों को रास्ते से हटाने का। गौरवी लालच और जलन में इतनी अंधी हो गई थी, कि उसने अपनी बहन और उसके बच्चों के बारे में एक बार भी नहीं सोचा। वो इस प्लान में बेझिझक शामिल हो गई।
एक दिन उसने अपनी बहन को फ़ोन किया, जब पूर्वी घर पर अकेली थी, कि उनके पिता अचानक बहुत बीमार पड़ गए हैं और अभी अस्पताल में एडमिट हैं।
पूर्वी इतनी घबरा गई, कि बिना किसी को कुछ बताये, अपने दोनों बच्चों को लेकर, अपने पिता को देखने के लिए घर से जल्दी में निकल गई। मगर रास्ते में उनकी गाड़ी का एक्सीडेंट हो गया। उस एक्सीडेंट में पूर्वी और उसके एक बेटे की जान चली गई, मगर एक बेटा बच गया।
इसको भी दिग्विजय राठौर ने एक अवसर में बदल दिया। उस एक्सीडेंट के कुछ दिनों बाद ही उसने, अपने पिता से कहकर गौरवी की शादी शमशेर से करा दी, इस बुनियाद पर की उनके खानदान के एक बेटे की वजह से ही गौरवी की इतनी बदनामी हुई है, उसकी शादी आज तक नहीं हुई, और एक मौसी से ज़्यादा एक बच्चे का ख्याल कौन ही रख सकता है।”
“मगर उनका ऐसा कौन सा काम करने वाली थी गौरवी, जिसके लिए इस हद तक जाने को तैयार थे, दिग्विजय राठौर?” सुहानी ने पूछा।
शादी के बाद दिग्विजय ने, गौरवी को उस मकसद के बारे में याद दिलाया जिसके लिए वो अपनी सारी हदें पार कर चुका था। दिग्विजय राठौर की अपनी बीवी से कोई औलाद नहीं थी, ये तो सब जानते थे, लेकिन कोई ये नहीं जानता था, कि दिग्विजय की एक नाजायज़ औलाद भी है।
राठौर एंड संस की जब शुरुआत हुई थी, उस वक़्त विभंश राठौर (तीनों राठौर भाइयों के पिताजी) के सालों पुराने दोस्त और एक फेमस इंडस्ट्रियलिस्ट, Mr. अग्रवाल ने अपनी बेटी की शादी दिग्विजय से कराई थी।
जब उनकी बेटी को बच्चा नहीं हुआ और उन्हें पता चला कि उनका दोस्त, विभंश राठौर, अपने बेटे की दूसरी शादी कराना चाहता है, तो दिग्विजय के ससुर ने उन लोगों को धमकाया की अगर उन्होंने ऐसा करने का कभी सोचा तो, वो उनके बिज़नेस को बर्बाद कर देगा और दिग्विजय को अग्रवाल इंडस्ट्रीज का कोई भी हिस्सा नहीं मिलेगा।
ये एक बड़ी बात थी क्योंकि उसके ससुर Mr. अग्रवाल एक बड़े इंडस्ट्रियलिस्ट थे। राठौर इतना बड़ा खतरा नहीं ले सकते थे। मगर लोग ये नहीं जानते थे, कि दिग्विजय राठौर की एक नाजायज़ औलाद भी थी। जिसके लिए वो इतनी मेहनत कर रहे थे ताकि अगर उसे कभी कुछ हो गया तो, उसके जाने के बाद उसकी नाजायज़ औलाद सड़क पर ना आ जाए।
पूर्वी और उसके एक बेटे को तो वो रास्ते से हटा ही चुके थे, अब वो उसके दूसरे ज़िंदा बेटे, रणवीर, और उनके पिता विभंश को भी रास्ते से हटाने का प्लान कर रहे थे। ताकि दिग्विजय और उसकी नाजायज़ संतान और गौरवी खुद के लिए, अपने आने वाली पीढ़ी के लिए प्रॉपर्टी पर कब्ज़ा कर सके।”
“रणवीर राठौर और मेरी माँ का क्या हुआ?” काजल ने सवाल किया।
“उन्हें ढूंढ लिया गया, शादी के लिए जिस दिन वो कोर्ट जाने वाले थे, उससे एक दिन पहले ही तुम्हारी माँ को किडनैप कर लिया गया और इसी घर में उन्हें कुछ दिन कैद रखा गया।
उन्हें धमकाया गया जिस तरह से उनकी दोस्त को रास्ते से हटाया गया था, उसी तरह से रणवीर और पूर्वी के ज़िंदा बचे बेटे को भी हटा दिया जाएगा। इसीलिए काजल कभी कोर्ट पहुंची ही नहीं। फिर कुछ दिन बाद उनकी शादी, राठौर परिवार के ही एक बिज़नेस एसोसिएट, शिव प्रताप से करा दी गई, ताकि काजल पर हमेशा नज़र रखी जा सके।
मगर शिव प्रताप एक भला आदमी निकला। उसे दिग्विजय राठौर, और गौरवी के सारे किये कराये का पता चल गया, और उसने जाकर सब कुछ विभंष राठौर को बता दिया।
विभंश राठौर को कभी किसी ने इतने गुस्से में नहीं देखा था, जितना वो उस दिन थे।
उन्होंने तुरंत अपने वकील को बुलाया और अपनी प्रॉपर्टी दो हिस्सों में बाँट दी, एक हिस्सा पूर्वी के ज़िंदा बेटे के नाम और दूसरा, उस लड़की के नाम किया गया, जिसके 18 साल पूरे होने पर उसकी शादी उनके पोते से कराई जायेगी, और तब उसे राठौर परिवार का दूसरा हिस्सा दिया जाएगा।
इस तरह से उन्होंने अपनी प्रॉपर्टी दो लालची लोगों से बचा ली, और ऐसा कर के उन्होंने अपने एक लौते पोते की जान भी, उन दरिंदों से बचा ली।
मगर दूसरी ओर, अपने बड़े भाई और अपनी दूसरी पत्नी के षड़यंत्र का पता लगने के बाद शमशेर राठौर सच बर्दाश्त नहीं कर पाया और उसने अपनी जान दे दी। रणवीर ने हमेशा के लिए अपना घर त्याग दिया। शिव प्रताप अपनी बीवी और अपने बच्चों को लेकर चंडीगढ़ में जा छुपा। और दिग्विजय और गौरवी आज तक उस प्रॉपर्टी के लालच में उस एक इंसान के सर पे कुंडली जमाये बैठे हैं जिसके नाम उसके दादाजी ने सारी प्रॉपर्टी कर दी थी।
उन्होंने बचपन से ही उसके मन में उस एक लड़की और उसके परिवार को लेकर नफरत भर दिया। उन्होंने हर कोशिश की ताकि उस लड़की के पिता अपने बिल से बहार निकलें, उन्होंने उन दोनों की शादी भी कराई। और उस लड़के को आज ये लगता है, कि वो लड़की उसकी दुश्मन है। बल्कि दुश्मन तो उनके अपने बने बैठे हैं।”
“विक्रम, तुम किसकी बात कर रहे हो?” सुहानी ने सवाल तो किया मगर उसका मन, जवाब को भांप चुका था।
“पूर्वी का दूसरा बेटा, कोई और नहीं, सुहानी, वो आरव ही है, विभंश राठौर का असली वारिस। और उनकी विरासत के दूसरे हिस्से की हक़दार, वो लड़की कोई और नहीं, तुम ही हो।”
सुहानी को जैसे सदमा लग गया था। वो कुछ देर सांस लेना ही भूल गई थी।
“तो क्या गौरवी की कभी कोई संतान नहीं हुई? आरव, पूर्वी आंटी और शमशेर राठौर का बेटा है?” सुहानी ने खुद को सँभालते हुए पूछा।
“वो कहते हैं ना सुहानी, भगवान जब खेल खेलता है तो उसके सामने फिर कोई खड़ा नहीं हो पाता, गौरवी चाह कर भी कभी माँ नहीं बन पाई। वो एक बांझ थी। फिर भी दोनों निःसंतान, लालची लोगों ने प्रॉपर्टी का लालच नहीं छोड़ा।
दिग्विजय के नाजायज़ बेटे को लेकर, उसकी माँ कहीं चली गईं, उन्हें दिग्विजय से घिन्न आने लगी थी। आज तक वो उन्हें ढूंढ़ नहीं पाया।”
“मगर मेरे बाउजी ने मुझसे ये बात क्यों छुपाई?” सुहानी ने भावुक होकर पूछा।
“ताकि वो तुम्हें एक आम ज़िन्दगी दे सकें। अपनी पत्नी को खो देने के बाद तो वो और भी ज़्यादा सतर्क हो गए थे। वो तुम पर कोई भी आंच नहीं आने देना चाहते थे।” विक्रम ने सुहानी को समझाते हुए कहा।
“तुम्हें इन सब के बारे में इतना कुछ कैसे पता है विक्रम? ये बातें तो गहरे राज़ की तरह गड़ी हुई होंगी, फिर तुमने ये सब कैसे पता लगाया?” सुहानी ने उसे शक की नज़रों से देखा।
“तुम्हें शायद याद नहीं, लेकिन मैं स्कूल में भी ऐसा ही था, चीज़ों की तेह तक जाना, शौख था मेरा” विक्रम ने खुद पर गर्व करते हुए कहा।
“पर क्यों? तुम्हें इन सब से क्या फायदा? तुम इन लोगों के पीछे इस तरह से क्यों पड़े हो?” सुहानी ने इलज़ाम लगाते हुए पूछा।
मेरे भी अपने राज़ हैं सुहानी। बस मैं इतना जानता हूं, कि तुम गलत इंसान के साथ फंस चुकी हो, जबकि तुम्हें किसी और के साथ होना चाहिए था। मैं दो बार मेरे हक़ में आई चीज़ को हार नहीं सकता।” विक्रम ने सुहानी के करीब आते हुए कहा।
सुहानी, विक्रम के इस रवैये से काफी uncomfortable सी हो गई, उसने कुछ कदम पीछे ले लिए। विक्रम को जब ये एहसास हुआ तो उसने खुद को कंट्रोल किया, “I am so sorry, suhani! so so sorry.” उसने घबराती हुई सुहानी से माफ़ी माँगा।
“मुझे ये सब अभी आरव को बताना होगा, कि उसके साथ इस घर में कैसा खेल खेला जा रहा है।” सुहानी ने बात को बदलते हुए कहा।
“नहीं !” विक्रम ने ऊँची आवाज़ में कहा।
सुहानी सेहम गई।
“नहीं सुहानी, तुम उसे अभी कुछ भी नहीं बता सकती। वो ये सब समझ नहीं पायेगा और उल्टा वो तुम पर ही हावी हो जाएगा।” विक्रम ने कहा।
“मगर उसे जानने का हक़ है।” सुहानी ने उससे ज़्यादा खुद से ये बात कही।
“हाँ, है! मगर मेरी बात को समझो सुहानी, एक बच्चा जिसके मन में बचपन से इतनी नफरत भरी गयी हो, उसे ये बातें कैसे समझाओगी, कि उसे भड़काने वाले लोग ही उसके दुश्मन हैं, जिन्हें वो बचपन से पूजता आ रहा है। उसकी आँखों पर अभी झूठ, नफरत और बदले का धुआं छाया हुआ है। उसके लिए सच बिलकुल धुंधला सा है, उसे तुम पर विश्वास नहीं होगा।” विक्रम ने उसे समझाते हुए कहा।
“फिर मैं अब क्या करूं?” सुहानी ने सर झुका कर पूछा।
“मुझ पर भरोसा रखो सुहानी, समय आने पर हम आरव को सब सच सच बता देंगे।” विक्रम ने धीरे से सुहानी के पास आकर उसके कंधों पर अपना हाथ रखते हुए कहा।
सुहानी की आंखों में आंसू थे, मगर खुद के लिए नहीं, इस बार वो आरव के लिए रो रही थी। और तभी आरव सुहानी को ढूंढता हुआ लाउंज में आ गया।
सुहानी को विक्रम की बाहों में देखकर आरव का चेहरा गुस्से से लाल हो गया।
उसने फिर सुहानी के चेहरे कि ओर देखा और उसे रोता हुआ ये समझ लिया की विक्रम और उसके बीच कुछ चल रहा है।
वो गुस्से में विक्रम की ओर बढ़ा और आते ही उसका कालर पकड़ लिया।
आखिर क्या मकसद है विक्रम का, वो ये सब कैसे जनता है?
क्या आरव की ग़लतफहमी सुहानी दूर कर पायेगी?
सच जानने के बाद सुहानी अब क्या करेगी?
जानने के लिए पढ़ते रहिये, ‘रिश्तों का क़र्ज़।’
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