“मेरी बीवी को हाथ लगाने की हिम्मत भी कैसे हुई तुम्हारी?”
आरव की आवाज़ में ऐसी दहाड़ थी जैसे कोई बादल फट पड़ा हो। उसकी आँखों में ऐसा ग़ुस्सा था जो इंसान को हैवान बना दे। सामने खड़ा विक्रम भी पीछे हटने वालों में से नहीं था। वो आरव की आँखों में सीधे झाँकता हुआ, जैसे हर उस लम्हे का हिसाब मांग रहा था जो अधूरा रह गया था।
"तुम्हारी बीवी?" विक्रम ने ठंडी मुस्कान के साथ कहा, “या फिर सिर्फ़ एक सौदा, जिसपर तुमने बस अपने नाम की मोहर लगा दी?”
आरव ने बिना एक पल गंवाए विक्रम का कॉलर पकड़ लिया, और अगले ही क्षण विक्रम ने भी कॉलर पकड़ ली। दोनों ऐसे भिड़ गए जैसे बरसों पुरानी कोई आग फिर से भड़क उठी हो। कमरे की दीवारें उनकी नफ़रत की गर्मी से काँपने लगीं।
“बस करो!”
सुहानी बीच में आई, उसका चेहरा लाल था—ग़ुस्से से, शर्म से या शायद उस डर से जिसे वो खुद समझ नहीं पा रही थी। उसने दोनों को एक दूसरे से अलग किया, उनकी पकड़ ढीली पड़ी, मगर नज़रें अभी भी तलवार बनी हुई थीं।
आरव की नज़र जब सुहानी पर पड़ी, तो उसकी आँखों में कुछ बदल गया—वो तेज़, तनी नज़रें अब उलझी हुई थीं, सवालों से भरी।
सुहानी ने कोशिश की उससे नज़रें मिलाने की, पर हार मान कर उसने अपनी आँखें झुका लीं।
"आप दोनों के बीच मैं कोई ट्रॉफी नहीं हूँ, समझे?" सुहानी की आवाज़ कांप रही थी, मगर उसके लफ़्ज़ों में दर्द था। “मैं एक इंसान हूँ, जिस पर किसी का भी हक़ नहीं। ना तुम्हारा ना ही आपका।”
विक्रम ने चुटकी ली, “देखा? कितनी समझदार हो गई है तुम्हारी बीवी। मगर उसकी समझदारी तुम्हें समझ आए तब न। सौदे करने वाले लोग इंसान नहीं, व्यापारी होते हैं।”
आरव की मुट्ठियाँ कस गईं। उसका बदन गुस्से से काँप रहा था, मगर वो चुप रहा। शायद पहली बार उसने ख़ुद को रोका—वो सिर्फ़ विक्रम से नहीं, अपने भीतर के राक्षस से भी लड़ रहा था।
विक्रम जाते-जाते एक आख़िरी वार कर गया, “इतना ग़ुस्सा क्यों कर रहे हो, आरव? ये रिश्ता तो तुम्हारे लिए सिर्फ़ एक नाम का बंधन है… फीलिंग्स का तो ज़ीरो बैलेंस है न?”
"मुँह बंद रखो अपना!" आरव आगे बढ़ा, लेकिन सुहानी ने उसके सीने पर हाथ रखकर उसे रोक लिया।
"आपनी ये हीरोगिरी किसी और पर दिखाना," सुहानी की नज़रों में चुभन थी।
विक्रम मुस्कुरा कर चला गया, जैसे उसने कोई युद्ध जीत लिया हो। कमरा अब खामोश था। सिर्फ़ दो लोग थे—एक नज़रों में सवाल लिए, दूसरा दिल में तूफ़ान।
सुहानी ने गहरी सांस लेते हुए कहा, “आपको इतनी परवाह क्यों है, कि कोई मुझसे क्या कह रहा है, या कौन मुझसे मिलने आ रहा है?”
आरव ने चुपचाप उसे देखा, फिर कहा,“क्योंकि… मुझे फर्क पड़ता है।”
"क्यों?" सुहानी ने एक कदम और आगे बढ़कर पूछा, “ताकि आपका ‘सौदा’ कहीं रास्ता न भटक जाए? या ताकि आपका ‘कंट्रोल’ बना रहे?”
"तुम्हें लगता है मैं तुम्हें कंट्रोल करता हूँ?" आरव की भौंहें तनी।
"नहीं, मैं जानती हूँ," सुहानी ने ठंडी हँसी के साथ कहा, “और हाँ, आपने कभी ये जानने की ज़रूरत ही नहीं समझी कि मैं विक्रम को जानती कैसे हूँ।”
आरव कुछ नहीं बोला। उसकी नज़रें सामने दीवार पर टिक गईं, जैसे जवाब वहाँ कहीं छिपा हो।
"और आपको क्या तकलीफ़ थी विक्रम के आने से?" सुहानी ने तंज कसा, “कहीं जलन तो नहीं हो रही आपको?”
"जलन? और उससे?" आरव लगभग चिल्ला उठा, “मुझे बस ये बर्दाश्त नहीं होता कि कोई तुम्हारे बारे में उस तरह से बात करे।”
"उस तरह?" सुहानी मुस्कुरा दी, मगर उसकी आँखें छलक पड़ीं, “लेकिन उसने बात तो सही कही ना, आरव, यही तो सच है न? मैं एक सौदा ही हूँ। इस घर के लिए, आपके लिए।”
आरव का चेहरा सख़्त हो गया। उसका गला सूख रहा था, पर शब्द नहीं निकले। सुहानी जाने के लिए पलटी, मगर तभी उसका पाँव उसकी स्कर्ट में उलझा और वो लड़खड़ाने लगी। अगले ही क्षण, आरव ने उसका हाथ थाम लिया, और दूसरी बाँह उसकी कमर के चारों ओर लपेट दी। एक पल को सब रुक गया।
उनकी साँसें एक-दूसरे को महसूस कर रही थीं। सुहानी की आँखों में थोड़ी घबराहट थी, और आरव की आँखों में—हैरानी या कुछ और… कुछ जो शायद वो खुद भी पहचान नहीं पाया।
"छोड़ेंगे भी या ऐसे ही पकड़ के रखेंगे?" सुहानी ने आरव की आँखों में देखते हुए धीमे से कहा।
आरव जैसे चौंक गया और उसने जल्दी से अपना हाथ हटा लिया, “मैं… मैं बस… तुम गिरने वाली थी।”
"थैंक्स," सुहानी ने कहा। पहली बार उसकी आवाज़ में कोई तंज, दर्द या तकलीफ नहीं थी। बस एक सुकून था।
आरव कुछ कहने वाला था, मगर उसने खुद को रोक लिया। वो चुपचाप कमरे से बाहर चला गया। सुहानी वहीं खड़ी रही—एक मुस्कान, एक उलझन, एक आंसू… और दिल में कोई अजीब सी हलचल लिए।
रात हो चली थी….
सुहानी अपनी डायरी में कुछ लिख रही थी। आज जो हुआ… उसे शब्दों में ढालना आसान नहीं है।
मैं अपनी सारी उम्मीदें खो चुकी थी, अंदर ही अंदर टूट रही थीं, जैसे कोई काँच का टुकड़ा धीरे-धीरे बिखर रहा हो… और तब आपने मुझे थाम लिया, आरव। पहली बार आज किसी ने इस घर में मुझे गिरने से पहले संभाल लिया।
आपकी बाँहों का वो स्पर्श… कुछ था उसमें। जैसे वर्षों से दबी हुई किसी भावना को छेड़ा गया हो। आपकी आँखों में ग़ुस्सा था, जैसे हमेशा होता है, लेकिन आज उस ग़ुस्से की परतों के पीछे कुछ और भी था—कुछ ऐसा जिसे मैं समझ तो नहीं पाई, लेकिन मैंने महसूस जरूर किया।
क्या वो चिंता थी? डर था कि मुझे चोट न लगे? या… या फिर वो एक पल का अपनापन, जो हर रिश्ते की शुरुआत होता है?
आज पहली बार लगा कि शायद आपके दिल में वो पत्थर जैसा सन्नाटा नहीं है, जो आपने अब तक मुझे दिखाया है। शायद वहाँ भी कुछ धड़कता है… कुछ जो आप खुद से भी छुपाते हैं।
लेकिन फिर मेरा दिल, मुझसे एक सवाल पूछ रहा है—क्या ये बदलाव है? क्या ये वही आरव हैं जो मेरे जीवन को नर्क बना देने की कसम खा चुके थे? या फिर ये सिर्फ एक और मुखौटा है… एक और चाल, एक और भ्रम?
कभी-कभी लगता है, इस महल के हर कोने की तरह आप भी रहस्यों से भरे हुए हैं। मैं जितना समझने की कोशिश करती हूँ, उतना ही उलझती जाती हूँ।
पर आज… आज जो आपने किया, वो मेरे लिए सिर्फ एक ‘पल’ नहीं था। वो शायद उस दीवार में पहली दरार थी, जो मैंने आपके चारों ओर खड़ी देखी थी।
शायद आप भी उतने ही टूटे हुए हैं, जितनी मैं… फर्क बस इतना है कि आप अपनी दरारों को ग़ुस्से की चादर से ढक लेते हैं, और मैं उन्हें अपनी आँखों में भरकर जी लेती हूँ।
– सुहानी
आरव बालकनी में खामोश खड़ा था। ठंडी हवा उसके चेहरे को छूकर गुज़र रही थी, पर वो बिल्कुल स्थिर था—जैसे किसी काल्पनिक युद्ध के बीच वो सुन्न खड़ा हो। शहर की रोशनी दूर से चमक रही थी, लेकिन उसके भीतर एक ऐसा अंधकार पसरा हुआ था जिसे चीर पाना लगभग नामुमकिन सा था।
उसकी नज़रें सामने आसमान को चूमती इमारतों पर थीं, लेकिन मन किसी और ही गहराई में डूबा हुआ था।
“मुझे सच में इतना फर्क क्यों पड़ रहा है?” उसने खुद से सवाल किया, पर जवाब देने वाला आस पास कोई नहीं था।
“क्यों जब वो रोती है, तो मेरे सीने में टीस सी उठती है? क्यों उसकी आँखों में आँसू मुझे बेचैन कर देते हैं… जबकि यही तो मैं चाहता था न? यही तो मकसद था मेरा?”
उसके दिल में तूफान था—एक ऐसा तूफान जो उस मासूम सी लड़की की परछाई से उठ रहा था, जिसे वो जान-बूझकर अपने करीब लाया था सिर्फ़ इसलिए ताकी वो टूटे, गिरे… और झुके।
पर अब? अब क्यों उसके गिरने का डर उसे रात को सोने नहीं दे रहा?
उसके कानों में मीरा की बातें गूंज उठीं— “तुम्हें उससे लगाव हो गया है, आरव। ये मत भूलो कि वो तुम्हारी दुश्मन की बेटी है, तुम्हारे पिता के मौत की वजह… तुम उसे माफ नहीं कर सकते!”
“पर अगर मीरा सही है… तो अब मैं क्या करूँ? क्या सच में मैं वो महसूस कर रहा हूँ… जो नहीं करना चाहिए था?”
उसने अपनी मुठ्ठियाँ कस लीं….“नहीं, ये मोह नहीं हो सकता। ये कोई भावना नहीं है… ये सिर्फ एक भ्रम है।”
पर उस भ्रम में भी तो सुकून था, जो उसके कठोर चेहरे को चुपके से भावुकता से भर रहा था… हर दिन सुहानी की खामोश लड़ाई उसे अंदर से तोड़ रही थी…आरव की आँखें एक आखिरी बार आसमान की ओर उठीं। एक पल के लिए ऐसा लगा, जैसे वो खुद से नज़रें चुरा रहा हो।
"अगर ये लड़ाई है दिल और बदले के बीच… तो मुझे डर है, मैं हार जाऊँगा।”
रात कुछ सवालों के जवाब नहीं देती, सिर्फ़ और सवाल छोड़ जाती है। और उस रात, राठौर हवेली में दो दिल… एक-दूसरे से दूर होकर भी, पहली बार थोड़ा सा पास आए थे।
सुबह की किरणें राठौर हवेली की खिड़कियों से झांक रही थीं, लेकिन हवेली के कुछ कोनों में अब भी अंधेरा था—राज़ों का, दर्द का और अधूरी कहानियों का। सुहानी की नींद जल्दी खुल गई थी। बीते पिछले दिन की बातें अब तक उसके ज़ेहन में ताज़ा थीं—आरव की वो नर्मी, उसकी आँखों में झलकती उलझन और... वो पल जब उसने उसे थाम लिया था।
पर आज उसकी नज़रें किसी और चीज़ की तलाश में थीं। वो वही कमरा ढूँढ रही थी जहाँ एक बार उसे अपनी माँ की तस्वीरें मिली थीं। और आज, वो फिर से उसी कमरे में दाखिल हुई। दरवाज़ा धीरे से खोला और अंदर चली गई, धूल से ढँकी ज़मीन पर उसने पास पड़े एक पुराने कपड़े को रखा, और उसपर बैठ गई। वो अपने साथ अपनी माँ का पुराना संदूक लेकर आई थी, उसने धीरे से वो संदूक ज़मीन पर रख कर खोला।
संदूक की तले में एक पुरानी डायरी रखी थी—काजल, उसकी माँ की handwriting में।
डायरी के पहले पन्ने पर लिखा था,
“कभी-कभी हम जिनसे सबसे ज़्यादा प्यार करते हैं, वही हमारा सबसे बड़ा इम्तिहान बन जाते हैं। - काजल”
सुहानी ने गहरी साँस ली और पन्ने पलटने शुरू किए…
डायरी (फ्लैशबैक)
“रणवीर और मैं जब पहली बार मिले, तो मुझे यक़ीन नहीं हुआ कि ये वही राठौर खानदान है जिसे लोग रौब और डर के लिए जानते हैं। रणवीर अलग था—सीधा, सच्चा और बेहद मोहब्बत करने वाला। लेकिन मेरे और पूर्वी के नसीब में शायद मोहब्बत की नहीं, साजिशों की दास्तानें लिखी थीं...”
“गौरवी की आँखों में जो जलन थी, वो एक दिन ज़हर बन जाएगी, ये मैंने सोचा भी नहीं था। पूर्वी का साथ छिन गया, उसका बच्चा भी… और फिर जब शमशेर ने दुनिया को अलविदा कहा, मैं भी टूट चुकी थी। मुझे भागना पड़ा—अपने बच्चे को बचाने के लिए। राठौर हवेली एक पिंजरा थी, और मैं परिंदा जो अब उड़ना चाहती थी…दोबारा कभी उन लोगों के हाँथ नहीं लगना चाहती थी।”
सुहानी के हाथ कांपने लगे। माँ की हर पंक्ति में एक टूटा हुआ सपना था। और हर शब्द में छिपा था एक इशारा—कि जो कुछ भी आज हो रहा है, उसकी जड़ें बहुत गहरी हैं।
उसी वक़्त हवेली के एक और कोने में, कोई और चाल चली जा रही थी।
मीरा….गौरवी की प्यादे से रानी बनने की चाहत रखने वाली मीरा अब नया पैंतरा चल रही थी। उसे पता था कि आरव और सुहानी के बीच कुछ बदल रहा है। और ये बदलाव उसके लिए ख़तरनाक हो सकता है।
मीरा ने अपने फोन से एक वीडियो क्लिप एडिट किया—जिसमें सुहानी और विक्रम की गार्डन एरिया में हुई मुलाकात को इस तरह दिखाया गया, जैसे दोनों के बीच कोई छुपा पुराना रिश्ता हो। उसने उस क्लिप को गौरवी को भेजा, और खुद उसके अंजाम सोच कर मुस्कुराने लगी।
“अब देखना, ये वीडियो इस हवेली में क्या बवाल लाता है।”
गौरवी ने वीडियो देखकर गुस्से से मोबाइल मेज़ पर पटक दिया। “ये लड़की हमें बर्बाद कर देगी, पर पहले मैं उसे बर्बाद कर दूंगी…अपने इन हाथों से।”
शाम ढल चुकी थी। आरव जब घर लौटा तो मीरा ने 'मासूमियत' से कहा, “आरव, तुम्हें कुछ दिखाना है, पर पहले वादा करो…गुस्सा नहीं होगे।”
वीडियो देखते ही आरव की आँखों में फिर वही अंगारें जल उठे।
"विक्रम और सुहानी?" उसने बुदबुदाते हुए कहा।
उस वीडियो में वो था जो कल आरव सामने से नहीं देख पाया। जब विक्रम, सुहानी से गले मिल रहा था, और बार-बार उसके करीब आने की कोशिश कर रहा था। देख कर ऐसा लग रहा था, कि दोनों कुछ प्लानिंग कर रहे हैं।
लेकिन इस बार उसका गुस्सा वैसा नहीं था जैसा पहले होता था। उसमें एक झिझक थी, एक सवाल था… और एक डर—कहीं जो सच सामने आ रहा है, वो पूरा सच ना हो।
“मीरा अपनी ये सब हरकतें बंद करो, वो केवल बचपन के दोस्त हैं।”
आरव ने मीरा को उसका फ़ोन गुस्से से वापस करते हुए कहा। उसके मन में विक्रम के लिए ज़हर तो पहले से ही भर चुका था, लेकिन सुहानी पर बिना किसी गलती के इलज़ाम लगाना उसके लिए अब पाप सामान था।
सुहानी की डायरी में एक और एंट्री हुई….
“माँ की डायरी में बहुत कुछ था। सच, दर्द, और चेतावनी। पर सबसे बड़ा सबक ये था—हर सच के पीछे एक और परत होती है….शायद अब मेरी ज़िंदगी भी किसी की चाल का हिस्सा बन चुकी है। पर इस बार, मैं शिकार नहीं बनूँगी। मैं भी इस खेल को एक खिलाड़ी की तरह खेलूंगी।”
क्या मीरा का पैंतरा काम कर जायेगा?
एक बार फिर सुहानी और आरव का रिश्ता शुरु होने से पहले ख़त्म हो जायेगा?
जानने के लिए पढ़ते रहिये, ‘रिश्तों का कर्ज़।’
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