पिछले पाँच दिनों से आरव और सुहानी के बीच शब्दों की दीवार खड़ी थी। न वो उससे कुछ कह रहा था, न सुहानी उसकी तरफ़ देख रही थी। हर दिन एक जैसा... लेकिन दिल के अंदर तूफ़ान थे, और हर रात एक नए तूफ़ान की दस्तक।
पाँच दिन पहले का वो दिन जैसे किसी काले साये जैसा था। मीरा ने पूरे ख़ानदान के सामने सुहानी और विक्रम के लाउंज का वो वीडियो चला दिया, जिसमे विक्रम सुहानी को अपनी बाहों में लिए खड़ा था।
क्या एक्टिंग की थी मीरा ने — जैसे कोई सताई हुई पतिव्रता हो और सुहानी कोई डायन!
और सब? सब एक ही राग गाने लगे — “सुहानी ने घर की नाक काट दी… सुहानी ने धोखा दिया…” किसी ने भी ये जानने कि कोशिश नहीं किया कि आख़िर हुआ क्या था?
वैसे, वो सब पता चलने के बाद तो इन सब के ज़्यादा होश उड़ जाते। अगर उन्हें ये पता चल जाता कि विक्रम ने इस घर के कौन से राज़ सुहानी के सामने खोल दिए हैं। मगर आज सुहानी के चरित्र पर दाग़ लगाए जा रहे थे। कहा जा रहा था कि कैसे सुहानी को उसके बाप ने कुछ नहीं सिखाया।
“एक धोखेबाज़ बाप की धोकेबाज़ बेटी।”
लेकिन आज एक पल के लिए, बस एक पल के लिए….आरव के चेहरे पर उलझन दिखी थी। जैसे उसका दिल उसे ज़ोर से चिल्लाने को कह रहा हो — सब चुप हो जाओ। पर फिर, मीरा ने उसके कंधे पर हाथ रखा... और उस पल, आरव फिर से वही बन गया — वो चुप, सब कुछ सहने वाला पति।
उसे डर था कि अगर उसने अभी कुछ भी कहा तो कहीं, सुहानी के लिए मुश्किलें और भी ना बढ़ जाएं।
उस दिन के बाद, सुहानी सिर्फ़ घर का काम करने वाली एक लड़की बन कर रह गई। ब्रेकफ़ास्ट, लंच, डिनर — सब उसके हाथ से बना, लेकिन खुद का पेट कब भरना था, ये तो जैसे वो भूल ही गई थी। और मीरा? उसने तो सुहानी का कमरा तक बदलवा दिया — एक कोने का कमरा, जहाँ न धूप आती थी, न किसी की आवाज़।
लेकिन सबसे बड़ा तमाशा तो आज हुआ।
घर में गेस्ट्स आए थे — स्पेशल गेस्ट्स। मीरा के मम्मी-पापा और आए भी इस स्टाइल में जैसे अपनी बेटी के ससुराल आये हों।
“ये नकली शादी का मामला सुलझे, तो मीरा और आरव की शादी जल्दी करा देंगे।” मीरा की माँ ने कहा।
सुहानी किचन में खड़ी थी — हाथ गरम तवे पर थे और कान उनकी बातों पर। कोई और होता तो टूट जाता, लेकिन सुहानी? उसकी आँखों में एक नई आग थी — जलने को तैयार, लेकिन सब कुछ जलाकर राख़ भी कर देगी।
खाना उसने ऐसे बनाया कि मेहमान एक-एक निवाला खाकर वाह-वाह करने लगे। मीरा का चेहरा देखने लायक था — सुहानी के लिए लोगों के मुँह से निकली वाह वही ने उसके मन में भरे ज़हर को और भी बढ़ा दिया।
तभी एंट्री होती है... शिव प्रताप की — सुहानी के बाउजी।
ये प्लान दिग्विजय का था। सोचा था, बेटी को बाप के सामने गिराकर मज़े लेंगे। लेकिन सीन उल्टा पड़ गया। शिव प्रताप को सुहानी से मिलने के लिए किचन में भेज दिया गया। सुहानी सर झुकाये बस रोटियाँ बना रही थी…
वो अपनी बेटी के पास जाकर खड़ा हो गया, और उसके कंधे पर हाँथ रखकर बोला — “मुझे माफ़ कर दे बेटा…”
सुहानी ने पहले तो उनका हाथ झटक दिया। लेकिन जब बाउजी ने उसे सीने से लगाया — उसके अंदर दबा हुआ सारा दर्द बाहर आ गया।
“क्यों बाउजी… क्यों किया आपने ऐसा मेरे साथ? मैं कुछ नहीं चाहती थी! न प्रॉपर्टी, न ये राठौर हवेली... बस सच!”
शिव प्रताप अपनी बेटी का दर्द और गुस्सा देखकर भावुक हो गया, मगर कुछ कह नहीं पाया।
“मैं अब सब जानती हूँ बाउजी — विभंश राठौर ने जो वसीयत बनाई थी, उसमें आरव और मेरा नाम था….पर मुझे कुछ नहीं चाहिए। मैं बस उस सच तक पहुँचना चाहती हूँ जिसके लिए मेरी माँ और आप इतने सालों तक जलते रहे।”
शिव प्रताप की आँखें भर आईं — “वक़्त आने पर सब पता चल जाएगा। तब तक तू इस घर में बिलकुल संभल कर और सतर्क रहना।” शिव प्रताप ने अपनी बेटी से बस इतना ही कहा और वो वहां से चले गए।
आज तक जो भी हुआ वो तो सिर्फ़ ट्रेलर था, और बहुत कुछ होना बाकी था, ये तो शिव प्रताप भी जानता था। मगर वो चाह कर भी अपनी बेटी को उस परिस्थिति से निकालने में सक्षम नहीं था।
राठौर उन्हें फिर से ढूंढ लेते, और फिर इससे भी कुछ बुरा करते।
दूसरी ओर, मुख्य द्वार के पास जब मीरा के माँ-बाप निकलने की तैयारी कर रहे थे, आरव ने उनकी बढ़ती उम्मीदों के गुब्बारे को फोड़ने का फैसला किया। पहली बार आँखों में केवल ग़ुस्सा नहीं, मगर ज़ुबान पर शब्द आने को बेक़रार थे, और इस बार उसने खुद को रोका नहीं।
“आप लोग जो सपना देख रहे है ना मीरा के साथ मेरी शादी का... वो सपना, सपना ही रहने वाला है। उसने मुझे उसी दिन खो दिया था, जिस दिन मुझे उसने इस शादी के लिए तैयार किया था। और उसके बाद आज तक मैंने मीरा के स्वाभाव में जो भी बदलाव देखे हैं, वो शर्मनाक हैं। मेरे मन में अब उसके लिए प्यार तो क्या थोड़ी भी इज़्ज़त नहीं बची। मेरे सामने सुहानी को ज़लील करना बंद करिये।
मैं सुहानी को कभी नहीं छोड़ूंगा।”
और सबसे बड़ा धमाका — “और हाँ, तैयारियां कर के रखिए, आपकी बेटी जल्द ही घर लौटने वाली है, उसका अब यहाँ रहना शोभा नहीं देता।”
हवेली में आज एक नई कहानी ने जन्म लिया। आरव का वो फ़ैसला — मीरा को हवेली से निकालने का, और ये सिर्फ शुरुआत थी।
आज उसने सुहानी को जब अपने पिता से लिपट कर रोते हुए देखा, उसे समझ आ गया था कि उसने कितनी बड़ी गलती की है। उसे बस एक बात समझ में नहीं आई, कि आखिर वो अपनी बेटी के लिए क्यों नहीं लड़ रहे। क्या उनकी कंपनी को बचाना उनके लिए इतनी बड़ी बात थी?
हाँ, राठौर उन्हें फिर से ढूंढ निकालेंगे, मगर फिर भी उन्हें लड़ना चाहिए था। सुहानी उनकी बेटी थी। कौन अपनी बेटी को दुश्मनों के बीच यूँ झोंक देता है?
सुहानी को कैसा लग रहा होगा, जैसे वो किसी की भी प्रायोरिटी नहीं है। मगर आज ये सब बदलने वाला था।
“अब बस! बहुत हुआ।” आरव ने मन ही मन सोचा। उसने बहुत सोच लिया, उसने खुद से बहुत लड़ाइयां कर ली, अब फैसले का वक़्त है। और उसका फैसला ये है, कि अब वो सुहानी के लिए वो हस्बैंड बनेगा, जो सुहानी डिजर्व करती है। जिसके सपने वो बचपन से देखा करती थी।
आरव के फैसले के बाद, मीरा का चेहरा देखने लायक था — जैसे किसी ने उसका सारा खेल पलट दिया। वो चिल्लाई, रोई, आरव के सामने गिड़गिड़ाई — “तुम ऐसा नहीं कर सकते! तुम सिर्फ़ मेरे हो!”
आरव की आँखों में आज गिल्ट नहीं था, न ही ग़ुस्सा... सिर्फ़ एक ठहराव था। जैसे अचानक उसके दिल में केवल सुहानी के लिए जगह हो — और वो जगह कभी मीरा की हो ही ना।
“मैंने तुम्हें एक दोस्त समझा, मीरा। लेकिन तुमने तो मुझे एक गेम का हिस्सा बना दिया,” आरव की आवाज़ में एक ठंडक थी, लेकिन उसके अल्फ़ाज़ों में आग थी।
मीरा ने भी एक लास्ट कार्ड खेला — “तुम सच जानते ही कहाँ हो आरव? जिस सुहानी के लिए तुम मुझसे सब कुछ छीन रहे हो, वो अपने बाप के कहने पर तुमसे शादी कर के पूरी राठौर लिगेसी छीनना चाहती है। उसका असली चेहरा तो अभी तुमने देखा ही नहीं!”
मगर मीरा की बातों का उस पर कोई असर नहीं हुआ। वो जानता था ये भी मीरा की एक चाल है।
अगली सुबह…
सुहानी लाइब्रेरी में थी — वही लाइब्रेरी जिसमें दिग्विजय के रूल्स के हिसाब से किसी को बिना इजाज़त क़दम रखना मना था। पर सुहानी को अब किसी रूल से डर नहीं लगता था, फिर भी वो सतर्क थी।
उसे राठौर के खिलाफ सबूत इक्कठे करने थे, और खोज की शुरुआत वहीं से शुरू होनी चाहिए जहां जाना मना हो। उसने कमरे में झांक कर देखा तो वहां एक भी कैमरा नहीं था। उसने किताबों की रैक्स के आस पास तफ्तीश करना शुरू कर दिया…..कि तभी दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आयी, और फिर अगले ही पल, आरव ने आकर उसके मुँह को अपनी हथेली से ढक दिया और उसे चुप रहने का इशारा किया।
सुहानी की आँखें शॉक से बड़ी हो गईं, उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था और तभी उस कमरे में दो लोगों के आने की आहट सुनाई दी, जो बहस करते हुए कमरे में घुसे थे।
“तुम्हारी लापरवाही की वजह से अगर आरव को कुछ भी पता चला तो मैं तुम्हारी जान ले लूंगी, समझी। भूलो मत, मैंने अगर तुम्हें आरव की ज़िन्दगी में प्लेस नहीं किया होता, तो तुम उससे कभी ना मिल पाती, ये तुम्हारी किस्मत में भी नहीं था।”
“I am sorry, aunty. मैं दोबारा आपसे कभी कुछ नहीं छुपाऊँगी। और आप जितना कहेंगी उतना ही करुँगी। मगर मुझे इस घर से जाने से रोक लीजिए। मैं उस गटर में वापस नहीं जा सकती, जहाँ से मैं आयी हूँ। ये आराम की ज़िन्दगी मुझसे मत छीनिये। आप जानती हैं मैंने आपके कितने काम किये हैं।
आरव जैसे लड़के को अपने प्यार में फांसना आसान काम नहीं था। मगर आपको एक मेरी जैसी, एक्ट्रेस चाहिए थी, जो उसके आस पास हमेशा रहकर उस पर नज़र रख सके। और मैंने बीते सालों में ये कई बार किया है, आप भी जानती हैं।
उसने तो मुझे कभी छुआ तक नहीं। “शादी के बाद, शादी के बाद,” कह-कह कर मेरा सिर खा गया और आपने तो मुझे कभी कोई दूसरा बॉयफ्रेंड बनाने भी नहीं दिया। मैं इस नकली रिश्ते में पिछले कई सालों से हूँ।
और ये मत भूलिए कि मैं भी आप लोगों के कई राज़ जानती हूँ। अगर मेरा मुँह खुल गया तो…”
“ऐ लड़की! मुझे धमका रही है। ध्यान रख, इसी एक्टिंग स्किल्स की वजह से जेल जाने वाली थी तू, जब तूने दिग्विजय राठौर के साथ उस क्लब में फ़्लर्ट कर के उसका बटुआ मारने की कोशिश की थी। एक पॉकेटमार की इतनी औकात की वो मुझे धमकाए? एक फ़ोन की ज़रूरत है और तू जेल में होगी। तुझे सड़क से उठाकर महल में क्या रखा, तू तो खुद को यहाँ कि मालकिन ही समझने लगी।
भूल मत तेरा घर उसी नाटक के पैसे से चलता है। ज़्यादा पटर-पटर किया ना तो तेरे साथ-साथ तेरे चोर माँ बाप को भी अंदर करवा दूंगी। समझी?”
“नहीं! नहीं, मुझे माफ़ कर दीजिये, मैं आपको डरा नहीं रही थी, मेरा वो इंटेंशन नहीं था। मैं बस घबरा गयी थी, आंटी। मैं ये सब खोना नहीं चाहती। आप मुझे बताइये कि मुझे क्या करना होगा?”
“गुड! तेरा जो काम है बस उस पर ध्यान दे। अब आरव के साथ साथ सुहानी पर भी हमेशा नज़र रख। वो क्या बात करते हैं, किस से बात करते हैं, कहां जाते हैं? कहीं आरव या सुहानी सच की तलाश में इधर उधर हाथ तो नहीं मार रहे? आरव को कुछ भी पता नहीं चलना चाहिए। और बाकी सुहानी के लिए तो मैंने पहले से ही कुछ सोच रखा है।”
“ठीक है आंटी, आप जैसा कहेंगी, मैं करूंगी और आरव को घर के राज़ों से जितना दूर रख सकती हूँ, रखूंगी।”
“चल अब जा यहाँ से। तेरे रुकने का इंतज़ाम मैं करती हूँ।”
“जी आंटी, thank you.”
दरवाज़ा फिर खुला और वो दोनों बहार निकल गए।
आरव और सुहानी स्तब्ध और चुप-चाप खड़े रहे। गौरवी और मीरा की बातचीत के बीच, आरव का हाथ सुहानी के मुँह पर ढीला पड़ गया। सुहानी आरव के लिए चिंता कर रही थी, और आरव confused था।
आखिर ये सब क्या सुना उन्होंने, उस पर दोनों को ही भरोसा नहीं हो रहा था।
“आरव!” सुहानी ने उसे चिंता भरी आँखों से देखा।
“ये सब क्या हो रहा है इस घर में?” आरव की आवाज़ में बेचैनी साफ़ झलक रही थी।
“ये लोग... ये लोग क्या बोल रहे थे अभी? मीरा मेरी लाइफ में प्लेस की गयी थी? और वो भी मेरी माँ के हाथों?
वो… सब, बस एक नाटक था? इतने सालों तक मैं एक नकली रिश्ते पर खुद को खर्च करता रहा? सुहानी, मुझे खुद से घिन आ रही है।” आरव की नज़रें हारी हुई, ज़मीन की ओर झुकी हुईं थीं।
उसे इस हाल में देखकर वो क्या बोले, सुहानी को कुछ समझ नहीं आ रहा था, तो उसने आरव को गले से लगा लिया।
आरव और सुहानी की सांसें तेज़ थीं, मगर धीरे धीरे उनकी धड़कन एक हो गयी, और सांसें भी एक साथ चलने लगी। आरव के हाथ भी अब धीरे से उठे और एक हाथ सुहानी के कन्धों पर और दूसरा उसके बालों में जा ठहरा।
सुहानी थोड़ा ऊपर उठी, और आरव कुछ नीचे झुका। आरव का चेहरा अब सुहानी के चेहरे और कंधों के बीच, बालों में खोया हुआ था। उसकी बालों की खुश्बू, उसके दौड़ते मन को शांत कर रही थी और दोनों एक दूजे में खो गए।
सुहानी और आरव की कहानी सही मायनों में अब जाकर शुरू हुई थी।
क्या सुहानी और आरव अब दो जिस्म एक जान हो जायेंगे?
गौरवी और मीरा की चाल क्या होगी कामयाब?
सच जानने के बाद क्या आरव मीरा को कभी माफ़ कर पायेगा?
ये जानने के लिए पढ़ते रहिये, 'रिश्तों का क़र्ज़!'
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