नीना स्टूडियो में थी कि उसे वसुंधरा की आवाज़ सुनाई दी - "तुई जानिश, ओ की कोरेछे?"
तुझे पता है उसने क्या किया है?
नीना: "कौन?"
नीना ने बिना पलटे ही पूछा, पर कोई जवाब नहीं आया।
नीना: “क्या आप मुझसे बात कर रही हैं? मुझे यहाँ दोबारा आने पर क्यों मजबूर किया?"
वह नाराज़ होते हुए पूछने लगी, "क्यों आप मेरे जीवन में इतनी हलचल मचा रही हैं?"
नीना ने पीछे मुड़कर देखा, लेकिन स्टूडियो में उसके पीछे कोई नहीं था।
वह इस तरह के खेल से थक चुकी थी और गुस्से में अचानक से पोर्ट्रेट पर चिल्ला उठी,
नीना: "वसुंधरा! मुझे अकेला छोड़ दो!"
उसकी आवाज़ स्टूडियो की दीवारों से टकराते हुए गूंजने लगी।
नीना: "अगर आप मुझसे बात करना चाहती हैं, तो सीधे सामने आओ और आमने-सामने बात करो! यह कान में फुसफुसाना बंद करो!"
उसकी आवाज़ में एक तीव्रता थी, एक चुनौती थी जो उसने उस आत्मा को दी थी।
नीना: "मैं आपसे डरती नहीं हूँ। आपको मुझसे जो कहना है, उसे सीधे कह सकती हैं। मैं आपको सुनने के लिए तैयार हूँ।" उसने कहा, लेकिन उसका दिल धड़क रहा था।
उसकी आँखों में आंसू थे, लेकिन वह उन्हें बहने नहीं देना चाहती थी। वह अपने सवालों के जवाब चाहती थी: " क्या आपकी आत्मा वास्तव में यहाँ है?"
नीना : “यदि हाँ, तो मुझे यह बताओ! आप मुझे तड़पा तड़पा कर मार डालेंगी।"
उसकी आवाज़ में अब एक हल्की सी कराह भी थी, जैसे वह अपनी ही कमज़ोरियों का सामना कर रही हो।
नीना: "मैं यहाँ हूँ, वसुंधरा, और आपसे बात करने को तैयार हूँ..."
वो चीख–चीख कर रोते हुए थक चुकी थी। उसकी आवाज धीमी हो गई। उसकी कमज़ोर हालत और बढ़ती बेचैनी के कारण वह चक्कर खाकर वही गिर पड़ी। नीना का चेहरा लाल पड़ने लगा था। वह अपनी परेशानियों से बुरी तरह से थक चुकी थीं। वह खुद को अकेला महसूस करती थी। उसकी स्थिति बहुत ही गंभीर लग रही थी।
इस बीच, सत्यजीत घर लौट रहे थे। जैसे ही वे स्टूडियो के सामने से गुजर रहे थे, उनकी नजर जमीन पर पड़ी नीना पर गई। वे तुरंत रुक गए।
सत्यजीत : “नीना, तुम ठीक हो?”
नीना का जवाब सुनने से पहले ही उन्होंने देखा कि वह बेहोश हो गई थी। उन्होंने अपनी स्टाफ की मदद से उसे जल्दी से रूम तक पहुंचाया।
आनन-फानन में डॉक्टर दास को बुलवाया गया। डॉक्टर दास, जो सत्यजीत के परिवार के डॉक्टर थे, किसी भी आपात स्थिति में हमेशा तैयार रहते थे। जब भी बाड़ी में किसी को जरूरत पड़ती, तुरंत डॉक्टर दास को फ़ोन किया जाता, और वह बिना समय गंवाए बागान बाड़ी में पहुंच जाते।
कुछ ही मिनटों में, डॉक्टर दास वहां पहुंचे। उन्होंने स्थिति का आकलन करते हुए तुरंत नीना का चेकअप शुरू किया।
“क्या हुआ है इन्हें?” डॉक्टर दास ने पूछा, उनकी आवाज में गंभीरता थी।
सत्यजीत: “वह अचानक गिर गई।”
डॉक्टर दास ने नीना का चेकअप किया। सत्यजीत ने चिंतित स्वर में पूछा,
सत्यजीत : "क्या हुआ है इनको?"
डॉक्टर ने गंभीरता से उत्तर दिया, "डिहाइड्रेशन की वजह से चक्कर आ गए हैं। ये देखिए, इनकी स्किन भी लाल पड़ रही है।" सत्यजीत ने ध्यान से नीना की लाल स्किन देखी।
नीना को पिछले कुछ समय से लगातार डिहाइड्रेशन का अनुभव हो रहा था। उसका गला बार-बार सूखता था, जैसे कोई उसकी शरीर की ऊर्जा को पी रहा हो। उसे समझ नहीं आ रहा था कि यह समस्या इतनी गंभीर क्यों हो गई। डॉक्टर दास ने शंभू को ओ.आर.एस लाने के लिए कहा और पर्ची पर कुछ दवाइयाँ लिखकर मिस्टर चौधरी के स्टाफ को दी।
अचानक आए कॉल से सत्यजीत कमरे से बाहर निकल गए। इस समय नीना को होश आने लगा। डॉक्टर ने उसकी स्थिति देखी और पूछा कि अब आप कैसा महसूस कर रही हैं?
नीना ने धीरे-धीरे ठीक की मुद्रा में सिर हिलाया।
डॉक्टर ने फिर पूछा कि आपको यहाँ पहले देखा नहीं?
नीना: "जी, मैं यहाँ वसुंधरा जी के पोर्ट्रेट के लिए आई हूँ।"
डॉक्टर ने मुस्कुराते हुए बताया अच्छा, मैं भी इस बाड़ी में तभी आया था जब वे बीमार थीं।
नीना ने जिज्ञासा से पूछा, "उन्हें क्या हुआ था?"
डॉक्टर ने गंभीरता से बताया, साइकोलॉडिकल प्रॉब्लम थी। काफ़ी इलाज चला, लेकिन होनी को कौन टाल सकता है।
यह सुनकर नीना सोचने लगी डॉक्टर ने भी वही कहा जो सत्यजीत ने उसे पहले बताया था। इसका मतलब यह था कि सत्यजीत सच में सही कह रहे थे।
वह अब यह सोचने लगी कि क्या वसुंधरा सच में उसे गुमराह कर रही थीं?
उसके मन में सवाल उठने लगे वो आखिर क्यों अपना काम छोड़ कर रात में आए सपनों के पीछे भाग रही है।
डॉक्टर दास ने उसके चेहरे के भावों और डर को पढ़ा और समझाया कि , आपको भी अपने मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देना होगा। कभी-कभी, हमारी मेंटल हेल्थ हमारी फिज़िकल हेल्थ को भी प्रभावित कर सकती है।
नीना ने सिर हिलाया, उसे यह बात समझ में आ रही थी। वह जानती थी कि उसे अपने भीतर के डर का सामना करना होगा।
वो बात कर ही रहे थे कि सत्यजीत कमरे में आए। उनके चेहरे पर चिंता की एक लकीर थी।
सत्यजीत : “नीना, अब आप कैसा महसूस कर रही हैं?”
नीना : “बेहतर। डॉक्टर ने कहा है कि मुझे आराम चाहिए और कुछ दवाइयाँ भी दी हैं।"
नीना ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया। उसकी आवाज में एक नई ऊर्जा थी।
“गुड! आज आप आराम कीजिए। काम कल देखिएगा ,” सत्यजीत ने कहा।
“शंभू को डॉक्टर आपके खाने पीने की डिटेल्स दे कर जाएंगे। जो भी शंभू लाए, आप उसे खा लीजिएगा।”
नीना ने हाँ में सिर हिलाया, और उसके चेहरे पर एक हल्की चमक आ गई। सत्यजीत की बातों में एक ऐसी स्नेहभरी चिंता थी जो उसे सुकून दे रही थी।
उनकी बातों में जो उत्साह था, उसने नीना को और मजबूती दी। आज उसे महसूस हो रहा था कि वह अकेली नहीं है।
सत्यजीत ने भी राहत की सांस ली, लेकिन उनके मन में अभी भी वसुंधरा के बारे में सवाल उठ रहे थे। क्या वाकई वह किसी न किसी तरह से नीना को प्रभावित कर रही थीं?
सत्यजीत ने देखा कि नीना की स्थिति को देखते हुए उसे देखभाल की जरूरत है। इसलिए उन्होंने staff की एक महिला को उसकी देखरेख के लिए नियुक्त किया।
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दिल्ली में...
सतीश नीना को काफ़ी वक्त से कॉल करने की कोशिश कर रहा था, लेकिन कनेक्टिविटी इश्यू आ रहा था। उससे रहा नहीं गया, और उसने अंजली को कॉल करके पूछा, “क्या तुम्हारी नीना से बात हो पाई है?”
अंजली ने उसे बताया कि, वो खुद नीना से बात करना चाहती है। वो यहाँ से बिन बताएं चली गई, तब से उसकी फिक्र हो रही है। उसने आखिर ऐसा क्यों किया?”
सतीश ने भी उसकी बात से सहमति जताई। लेकिन वह नीना को बचपन से जानता था, और उसकी परेशानी समझ सकता था। वह जानता था कि नीना बचपन से ही संवेदनशील और जिद्दी रही है। उसने अंजली से कहा, अगर हो सके तो मिस्टर चौधरी के बारे में थोड़ी तहकीकात और करें।
अंजली खुद भी नीना की मदद करना चाहती थी। उसने सतीश को आश्वस्त किया कि मैं पक्का मिस्टर चौधरी की जड़ों तक जाऊँगी।
वह जानता था कि अंजली काफी तेज और चतुर है। वो पक्का कोई नयी खबर ले कर आएगी।
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कोलकाता में ..
कुछ देर बाद नीना अपने कमरे में अकेली थी वह बिस्तर पर लेटी थी। आज उसकी आँखों के सामने कुछ नहीं था—ना वसुंधरा, ना हवेली, और ना ही पिगमेंट थी तो बस एक गहरी शांति। वह कई दिनों से इस हवेली में रह रही थी, लेकिन आज पहली बार उसे सब कुछ ठीक लग रहा था। उसका मन हल्का था, जैसे सभी चिंताएँ और डर एक पल में उड़ गए हों।
क्या यह डॉक्टर की दवाई का असर था? उसने पिछले कुछ दिनों में चिंता और तनाव को पीछे छोड़ने की कोशिश की थी, लेकिन आज जैसे सब कुछ बदल गया। नीना के दिमाग का वहम अब खत्म हो चुका था। उसे महसूस हो रहा था कि यहाँ सब कुछ सामान्य है।
काफी देर आराम करने के बाद नीना ने सोचा कि अब जब उसे अच्छा लग रहा है, तो क्यों न वसुंधरा के पोर्ट्रेट को आगे बढ़ाया जाए। उसने उठकर स्टूडियो की तरफ़ बढ़ी। जैसे ही वह स्टूडियो में पहुंची, उसकी नजर वसुंधरा की तस्वीर पर पड़ी। नीना ने सोचा कि आज वह उस गाउन को पूरा करेगी, जो वसुंधरा ने पहना था, एक रॉयल ऐमराल्ड ग्रीन रंग का गाउन।
इस गहरे हरे रंग ने उसे बहुत आकर्षित किया। वह जब से यहाँ आई थी, यही देख रही थी कि वसुंधरा के पास किसी चीज़ की कोई कमी नहीं थी। राजसी जीवन, रानी की तरह सेवा करने वाले नौकर-चाकर, सब कुछ तो था उसके पास।
खैर, बीमारी किसी को बताकर नहीं आती—यह तो एक यूनिवर्सल ट्रुथ है। लेकिन इसके पीछे कोई वजह या तनाव तो जरूर रहा होगा, तभी मानसिक परेशानी हुई होगी। नीना ने सोचा कि शायद वसुंधरा के जीवन में कुछ ऐसा था, जो बाहर से नहीं दिखता था। यह रानी का जीवन भी कहीं न कहीं उसे संतुष्ट नहीं कर रहा था।
आज वह अपने आस-पास किसी को न पाकर काफी हल्का महसूस कर रही थी, जैसे उसके अंदर एक नई ऊर्जा समा गई हो।
उसने अपने एयरपॉड्स निकाले और संगीत सुनने लगी। चारों ओर शांति थी; आज उसे अपने आस-पास कोई नहीं दिख रहा था। यह एक अद्भुत सुकून था।
अकेले रहना एक डरावना शब्द था, लेकिन जनाब, किसी आत्मा की कंपनी होने से, तो अकेलापन ही अच्छा है।
नीना ने अपने रंगों को मिलाया और गाउन को पेंट करने लगी। हर सिलवट को नाप-तोल कर उकेरना उसके लिए एक अद्भुत अनुभव था। जैसे-जैसे वह अपने ब्रश को चलाती, उसे अपने काम में सुकून मिलता जाता।
तल्लीनता से प्रॉपर शेडिंग के बाद वह उसे देखने पीछे हटी। नीना ने देखा कि गाउन की सिलवटें हल्के-हल्के हिलने लगीं।
नीना ने महसूस किया कि वह केवल एक कलाकार नहीं थी, बल्कि एक माध्यम थी, जिसके द्वारा शायद वसुंधरा की कहानी जीवित हो रही थी।
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