घड़ी की सुइयाँ धीरे-धीरे रात के दूसरे पहर की ओर बढ़ रही थीं। हवेली के हर कोने में सन्नाटा पसरा हुआ था, जैसे दीवारें भी अपनी साँसें थामे किसी तूफ़ान के आने की आहट सुन रही हों।

कमरे की ओर बढ़ते कदम…

सफ़ेद दुपट्टे में लिपटी सुहानी तेज़ लेकिन सतर्क कदमों से हवेली के गलियारों में आगे बढ़ रही थी। उसकी आँखों में भय और दृढ़ता की जुगलबंदी थी। उसके पीछे विशाल और विक्रम थे—दोनों हर मोड़ पर इधर-उधर देखकर सुनिश्चित कर रहे थे कि कोई उन्हें देख तो नहीं रहा।

"याद रखना, किसी को शक नहीं होना चाहिए….अगर किसी ने देख लिया तो सब बर्बाद हो जाएगा," सुहानी ने फुसफुसाकर कहा।

विशाल ने सिर हिलाया, “तू चिंता मत कर, बहन। इस बार हमें हर हाल में सच सामने लाना है।”

 

तीनों चुपचाप सीढ़ियाँ चढ़ते हुए आरव और सुहानी के कमरे तक पहुँचे। विशाल ने धीमे से दरवाज़ा खोला, कमरे में घुसते ही विक्रम ने दरवाज़ा भीतर से लॉक कर दिया। सुहानी ने राहत की साँस ली।

"अब अगला कदम मीरा को लाना है," उसने कहा और अपने फोन से मीरा को एक मैसेज टाइप किया:

“मैं कमरे में पहुँच चुकी हूँ। किसी ने भी हमें आते नहीं देखा…तुम भी आ जाओ – ज़रूरी है।”

कुछ पलों तक कमरा खामोश रहा। सभी की निगाहें दरवाज़े पर थीं। करीब दस मिनट बाद दरवाज़े पर एक हल्की सी दस्तक हुई। सुहानी ने जल्दी से दरवाज़ा खोला, मीरा अंदर आई—चेहरे पर हल्की परेशानी और उत्सुकता की झलक।

"तुम ठीक हो? कोई देख तो नहीं रहा था ना?" सुहानी ने चिंतित होकर पूछा।

"नहीं," मीरा ने धीरे से कहा, “मैंने हर दिशा में देख लिया, कोई भी नहीं था वहां। पर जल्दी बताओ क्या हुआ है?”

सुहानी ने कमरे के कोने में रखे एक बड़े बैग की ओर इशारा किया, “ये देखो। हमें पुराने स्टोर रूम में एक टूटे हुए लकड़ी के संदूक में ये सब मिला।”

उसने बैग खोलकर एक टुटा हुआ कैमरा, पुराने दस्तावेज़, और एक डायरी निकाली।

"ये क्या है?" मीरा ने आश्चर्यचकित होकर पूछा।

"सबूत," विक्रम ने गंभीर स्वर में कहा, “इन दस्तावेजों में राठौर परिवार के ना जाने कितने राज़ छुपे हो सकते हैं... और वो भी पुख्ता सबूतों के साथ।”

मीरा की आँखें चौड़ी हो गईं, “क्या?”

"और ये कैमरा..." विशाल ने आगे बढ़कर कहा, “...इसमें ज़रूर कुछ तस्वीरें होंगी, जिसे वो छुपाना चाहते हैं, जो शायद उनकी साजिशों पर से पर्दा हटा दे”

मीरा ने कांपती उंगलियों से कैमरा उठाया “तो अब क्या करने का सोच रहे हो?”

 

"अब सच को सामने लाना है," सुहानी ने दृढ़ स्वर में कहा “पर किसी भी क़ीमत पर ये बात अभी बाहर नहीं जानी चाहिए। जब तक हम पूरी तैयारी न कर लें…क्योंकि ये साज़िश बहुत गहरी है, और हमें नहीं पता कि दुश्मन कौन है…और कितना नज़दीक है।”

मीरा कुछ पल चुप रही, फिर उसने सुहानी का हाथ थामा, “मैं तुम्हारे साथ हूँ।”

चारों एक-दूसरे की आँखों में देख रहे थे—अब वे अकेले नहीं थे। अब उन्हें एक-दूसरे पर भरोसा था और उनका एक ही लक्ष्य था— सच को ज़िंदा रखना, साज़िश को बेनकाब करना।

 

कमरे की हवा में एक अजीब सी बेचैनी घुल चुकी थी। घड़ी की टिक-टिक और सुहानी की धड़कनों की गति लगभग एक हो चुकी थी। चारों—सुहानी, विक्रम, विशाल और मीरा—कमरे के फर्श पर गोल घेरा बनाकर बैठ चुके थे। उनके बीच वह बैग रखा था जिसमें अतीत की धूल खा चुके कागज़ों में कई जिंदगियां दबी हुई थीं।

"शुरुआत यहीं से करते हैं," विशाल ने बैग से पहली फाइल निकाली।

सुहानी ने कांपते हाथों से उसे खोला-एक पुराना, पीला कॉन्ट्रैक्ट पेपर…उसपर हस्ताक्षर थे—“दिग्विजय सिंह राठौर”।

"ये देखो... ये ज़मीन ट्रांसफर का दस्तावेज़ है," मीरा ने ध्यान से पढ़ा, “लेकिन ट्रांसफर करने वाला तो अनपढ़ किसान है। ये साइन कैसे कर सकता है?”

विक्रम ने माथे पर हाथ मारा, “मतलब इन लोगों से ज़मीन जबरन हथियाने की साज़िश है। नकली अंगूठे, फर्जी दस्तावेज़... ये तो साफ़-साफ़ अपराध है।”

"और ये..." सुहानी ने अगला फाइल उठाया, “यहाँ लिखा है—राठौर फार्मास्यूटिकल रिसर्च ट्रायल – सब्जेक्ट 47, उम्र: 9 साल...”

वो वाक्य अधूरा ही रह गया। कमरे में सन्नाटा छा गया…..अमानवीय प्रयोगों का सच

"नौ साल का बच्चा?" मीरा की आँखें भर आईं।

"उन्होंने गरीब इलाकों के बच्चों पर टेस्ट किए हैं," विक्रम ने गुस्से से कहा। 

“बिना किसी कानूनी इजाज़त के और रिपोर्ट्स में लिखा है कि कई बच्चों की तबीयत बिगड़ गई, कुछ की मौत भी हुई...”

विशाल ने एक और फाइल खोली—इसमें दवाइयों की खेप के नक्शे (ड्रग्स या अवैध दवाइयों की सप्लाई से जुड़े नक्शे) और कुछ संदिग्ध लेटरहेड (कागजों पर लिखे हुए असली या फर्जी कंपनी के नाम या आधिकारिक दस्तावेज़ जैसे चिन्ह) थे। ये सब उन गतिविधियों के सबूत थे, जो राठौर परिवार द्वारा अवैध तरीके से चलाए जा रहे थे।

“यहाँ लिखा है, Destination: Bharatpur, Quantity: 2kg, और फिर छोटे अक्षरों में... ‘Synthetics’।”

"ये ड्रग्स हैं," मीरा ने सहमी हुई आवाज़ में कहा “ये मेडिकल सामान की आड़ में अवैध नशीले पदार्थों की सप्लाई करते हैं।”

कमरे की हवा अचानक बोझिल हो गई। सुहानी ने दस्तावेज़ों को अपने सामने फैलाया, "कितनी ज़िंदगियों से खेला गया है," उसने धीमे से कहा। “कितने घर उजड़े, कितने सपने कुचले और इन सबके पीछे वही लोग हैं जिन्हें ये समाज राठौर साम्राज्य के नाम से पूजता है।”

"अब क्या करें?" मीरा ने पूछा।

"अब ये बात सिर्फ़ हम चारों तक नहीं रहेगी," सुहानी की आवाज़ में दृढ़ता थी "अब ये सच पूरी दुनिया के सामने आएगा, लेकिन हमें सोच-समझकर चलना होगा। ये लोग ताकतवर हैं... और बहुत खतरनाक भी।”

“हमारा पहला कदम होगा इन सबका डिजिटल बैकअप बनाना," विशाल ने कहा “और फिर धीरे-धीरे इस सच्चाई को उजागर करना…बिना खुद को खतरे में डाले।”

 

कमरे में दस्तावेज़ों की साजिशें उजागर हो रही थीं, लेकिन सुहानी के दिल में एक और सवाल बार-बार गूंज रहा था—"उस टूटे हुए कैमरे में आखिर क्या था?"

मीरा ने धीरे से बैग के कोने से वह टूटा हुआ कैमरा निकाला…उसकी स्क्रीन क्रैक हो चुकी थी, "क्या इसमें से कुछ रिकवर हो सकता है?" सुहानी ने पूछा।

मीरा कुछ पल चुप रही, फिर बोली, “सीधे तौर पर नहीं... लेकिन मैं एक आदमी को जानती हूँ—नाम नहीं बता सकती, लेकिन वो डेटा रिकवरी और डिजिटल सर्विलांस के कामों में एक्सपर्ट है। थोड़ा पैसा लेता है, लेकिन काम साफ़ करता है।”

विक्रम ने थोड़ा असहज होकर पूछा, “कहीं पकड़े गए तो?”

"वो हमें नहीं फसायेगा... और पुलिस उसे नहीं पकड़ सकती, बस कैमरा सही सलामत उस तक पहुंचा दो।”

"मैं लेकर जाऊंगा," विशाल ने बिना देर किए कहा। “इस हवेली से बाहर निकलते ही सबसे पहले उसी से मिलूंगा।”

 

विशाल ने कैमरे को एक पुराने जूते के डिब्बे में छिपाया, और फिर उसे अपनी जैकेट के नीचे सावधानी से रख लिया।

"इस कैमरे में जो भी है," मीरा बोली, “अगर उसमें कुछ फुटेज या ऑडियो क्लिप मिल गई—तो शायद ये उन राठौर की ताबूत में आखिरी कील साबित हो सकती है।”

कमरे में दस्तावेज़ों का ढेर फैला हुआ था। काग़ज़ों की हर परत पर एक गुनाह दर्ज था—किसी की ज़मीन छिनी गई थी, किसी का घर उजाड़ा गया था, और कहीं किसी मासूम की ज़िंदगी को दवाओं की आड़ में जहरीले परीक्षणों से तबाह किया गया था।

मीरा ने एक फाइल बंद करते हुए कहा, “अगर ये सब अदालत में पेश हो जाए... तो इन पर एक नहीं, दर्जनों मुकदमे बन सकते हैं। सालों की जेल और करोड़ों का जुर्माना तय है।”

विक्रम ने गहरी सांस ली, “लेकिन हमारी सबसे बड़ी बाधा वही है—पुलिस।”

विशाल ने खामोशी से सिर हिलाया, “पुलिस हो या नेता—इनके जेब में सब हैं।”

सुहानी कुछ देर तक उन काग़ज़ों को देखती रही। हर शब्द, हर दस्तख़त, हर मोहर जैसे उसके भीतर आग भर रहे थे। उसकी मां, विशाल की माँ, आरव, उसका पूरा परिवार, और न जाने कितने अनजान लोग इस साम्राज्य की साज़िशों का शिकार हुए थे।

उसने धीमे स्वर में मगर बेहद दृढ़ता से कहा,

“अभी नहीं... शायद कल भी नहीं। मगर एक दिन आएगा, जब यही काग़ज़ इनकी सलाखों का सबब बनेंगे। जब इंसाफ़ बिकेगा नहीं, इंसाफ़ साथ देगा। और मैं... मैं खुद से और आप सब से वादा करती हूं—वो दिन मैं ज़रूर लेकर आऊंगी।”

 

कमरा अब लगभग शांत था। चारों ने घंटों तक एक-एक दस्तावेज़ पढ़े, समझे थे, और उन पर चर्चा की थी। हर फाइल जैसे कोई दहला देने वाला सच खोलती चली गई। अब जब सारी बातें सामने आ चुकी थीं, और सबूत एक जगह इकट्ठा हो गए थे—एक अनकही थकावट उन पर छा गई।

मीरा खिड़की के पास जाकर बैठ गई, जहां से हल्की हवा आ रही थी। विशाल किताबों की शेल्फ के पास टेक लगाकर ज़मीन पर बैठ गया। विक्रम एक कोने की कुर्सी पर सर झुकाकर बैठा था, मानो वो सब कुछ सोचने और समझने की कोशिश कर रहा हो। और सुहानी—वो चुपचाप दीवार से पीठ टिकाकर आंखें बंद किए बैठी थी।

कमरे की बत्तियाँ बुझी थीं, जैसा कि पहले ही तय किया गया था—कोई भी लाइट ऑन नहीं करेगा, वरना हवेली के लोगों को शक हो सकता है। अभी तक सभी ने अपने-अपने फ़ोन की टॉर्च जलाकर दस्तावेज़ों को पढ़ा था। लेकिन अब सब टॉर्च बंद हो चुकी थीं। अंधेरे ने कमरे को अपनी बाहों में समय लिया था।

और तभी…

‘टिंग’

एक हल्की सी रोशनी कमरे में फैली। सुहानी का फोन टेबल पर पड़ा था और उसकी स्क्रीन रोशन हुई थी। उस एक छोटी सी रोशनी ने पूरे कमरे को जैसे जगा दिया। सुहानी ने चौंक कर आंखें खोलीं….वो उठी और टेबल की ओर बढ़ी।

फोन पर एक कॉल आ रहा था।

“रमेश - The Wardboy”

उसने पलभर को फोन की स्क्रीन को घूरा। रमेश...? इतनी रात को? उसके दिमाग में झट से ख्याल आया—रमेश को जो काम दिया था, शायद उस से रिलेटेड कोई बात हो सकती है। सुहानी का मन अचानक बेचैन हो उठा। इस वक्त उसका कॉल आना—बिलकुल भी सामान्य नहीं था। उसने कॉल उठाने से पहले सबकी ओर देखा और धीमे स्वर में बोली, “ये कॉल... बहुत ज़रूरी हो सकता है।”

“हाँ, रमेश, बोलो” उसकी आवाज़ धीमी थी, लेकिन उसमें स्पष्टता और उत्सुकता थी।

फोन के दूसरे छोर से रमेश की जोशीली आवाज़ आई—

“काम हो गया, मैडम! काम हो गया!”

उसके स्वर में छुपी खुशी, राहत और एक जीत की चमक को सुहानी ने एक पल में पहचान लिया। वो खुद भी जैसे एक पल को थम सी गई, फिर मुस्कुराते हुए बोली—“ये तो बहुत ख़ुशी की बात है, रमेश।”

रमेश ने तुरंत कहा, “मैं आपको अभी वो सारे डॉक्यूमेंट्स मेल कर रहा हूँ और कल एक वकील हवेली में वो पेपर्स लेकर आएगा। सुहानी मैडम, खेल के पहले पड़ाव की आपको ढेरों शुभकामनाएं।”

उसकी बात सुनकर सुहानी की आंखों में उम्मीद की चमक उभरी।

“Thank you so much, रमेश” सुहानी ने दिल से उसका शुक्रिया अदा किया।

लेकिन इसके बाद रमेश की आवाज़ अचानक थोड़ी गंभीर हो गई।

 

“मैडम, अगर आप लोग नहीं होते, तो मुझे कभी मेरे भाई के साथ हुए अन्याय का बदला लेने का मौका ही नहीं मिलता। मैं ठहरा एक छोटा आदमी, उन लोगों से अकेले तो पंगा नहीं ले सकता था। मैं उन लोगों को बस सलाखों के पीछे देखना चाहता हूं….बस मेरा यही सपना है।”

एक क्षण के लिए कमरे में सन्नाटा छा गया। सबने सुहानी को देखा, जो अब पूरे आत्मविश्वास से बोली—“वो भी जल्द ही होगा रमेश, लेकिन अभी के लिए—तुम कहीं छिप जाओ। किसी ऐसी जगह जहाँ इन लोगों की पहुँच न हो।”

“जी मैडम…पर अब मुझे पकड़े जाने का डर नहीं है, क्योंकि अब मुझे यकीन है कि आप उन्हें, उनके अंजाम तक ज़रूर पहुँचाएंगी।” 

“और हमें इसके लिए तुम्हारी मदद की ज़रूरत पड़ेगी। इसलिए जो कह रही हूँ, वो करो। खुद को अंडरग्राउंड कर लो कुछ दिनों के लिए….बाकी सब मैं संभाल लूंगी।”

“जी मैडम, आप भी अपना ध्यान रखिएगा।”

 

फोन रखते ही कमरे में एक अलग ही ऊर्जा फैल गई। सुहानी की आँखों में अब डर नहीं था—बल्कि एक दृढ़ निश्चय था। उसके चेहरे पर वो चमक थी जो किसी योद्धा के चेहरे पर तब आती है, जब वो पहले मोर्चे को जीतकर अगले युद्ध की तैयारी में जुट जाता है।

मीरा ने धीमे से मुस्कुराते हुए पूछा, “क्या हुआ?”

सुहानी ने गहरी सांस ली और कहा— “अब वक़्त आ गया है, राठौर सल्तनत में दरार डालने का।”

विशाल, जो हमेशा अपनी बहन की भावनाओं को सबसे जल्दी समझता था, आगे बढ़ा और थोड़ा झुकते हुए बोला—“क्या बात है, गुड़िया? तू… खुश लग रही है।”

विक्रम और मीरा ने भी प्रश्नभरी नजरों से सुहानी को देखा, जैसे सुहानी की बात उन्हें समझ ना आई हो।

सुहानी की आंखों में अब न हिचक थी, न डर। वो सामने देखती रही, फिर एक गहरी सांस ली और दृढ़ स्वर में बोली—“मेरा सबके सामने आने का वक़्त आ चुका है।”

वो एक क्षण रुकी, फिर धीमे से मुस्कराते हुए जोड़ा—“और अगर आरव को होश आ जाए… तो इस जीत में और भी मिठास आ जाएगी।”

“आप लोग तैयार रहिए कल के लिए, ये रात भले ही लंबी हो… मगर अगली सुबह हमारे लिए नई शुरुआत लेकर आएगी।” उसकी आवाज़ में एक अजीब-सी शांति थी—मानो उसे अपने कदमों की दिशा और नतीजा दोनों पर यकीन हो।

 

"क्या बोल रही हो तुम, हमें कुछ समझ नहीं आ रहा" विक्रम ने सबके बदले हताश होकर कहा। उसकी आवाज में एक हल्की सी उलझन थी, जैसे वह सुहानी के अगले कदम को पूरी तरह से समझने में असमर्थ था।

“कल इस षड्यंत्र के खिलाफ पलटवार का पहला कदम मैं उठाऊँगी।”

"जो इन राठौर को आसमान से गिरा कर इस धरती पर ले आएगा, और जरिया मैं ही बनूँगी" उसकी आवाज में ताव था, जैसे वो एक ऐसे युद्ध की तैयारी कर रही हो, जिसे वह जीतने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है।

वह थोड़ी देर के लिए रुकी और फिर धीरे से बोली—

“और फिर, एक-एक कर सारे किरदार शतरंज के खेल की तरह ढहेंगे….अब उनकी उलटी गिनती गिनने का वक्त आ चुका है।”

 

 

क्या करने वाली है सुहानी? 

कैसे करेगी वो राठौर को बर्बाद? 

इससे पहले क्या आरव को होश आएगा?

आगे की कहानी जानने के लिए पढ़ते रहिये, रिश्तों का क़र्ज़।

 

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