शाम का धुंधला साया धीरे-धीरे हवेली की दीवारों पर उतर रहा था। पीली, मद्धम रोशनी में लिपटी हवेली इस वक्त किसी तूफान के गुजरने की बेचैनी महसूस कर रही थी। बाहर लॉन में कुछ नौकर तेज़ी से इधर-उधर भाग रहे थे, कोई टेबल पर दवाइयों की ट्रे रख रहा था, तो कोई डॉक्टर को अंदर ले जाने की तैयारी में था।

जैसे ही सुहानी मुख्य दरवाज़े से अंदर दाखिल हुई, उसके कदम ठिठक गए। उसकी आंखें हैरानी और बेचैनी से फैल गईं। वह अभी-अभी ऑफिस से लौटी थी और उसके थके हुए कदमों ने इस हलचल की उम्मीद नहीं की थी। सामने की सीढ़ियों पर एक नौकर दौड़ता हुआ गुज़रा, तो सुहानी ने हाथ बढ़ा कर उसे रोका।

"रुको! ये क्या हो रहा है? क्यों इतनी दौड़ भाग मची है यहाँ?"

नौकर घबराया हुआ था, उसने कुछ बोलने के लिए मुंह खोला ही था कि तभी सुहानी की जेब में रखा फोन बजने लगा। उसने जल्दी से फोन निकाला और स्क्रीन पर नजर डाली। मीरा का मैसेज था “आरव को होश आ गया है”

सुहानी के हाथ से फोन लगभग छूटते-छूटते बचा। उसकी सांसें एक पल को थम गईं, फिर जैसे बरसों से रुकी हुई सांस उसके फेफड़ों में दौड़ गई। उसके आंखों में आंसुओं की एक झील भर आयी, जिन्हें वो अब और नहीं रोक सकी। पलकों से गिरते उन आंसुओं में उम्मीद, डर, राहत और एक अनकही मोहब्बत का समंदर था। उसने अपने सीने पर हाथ रखा, जैसे दिल की धड़कनों को संभालना चाहती हो। उसने एक गहरी सांस ली — भारी, बोझिल, लेकिन राहत से भरी हुई। जैसे किसी ने उसकी रूह पर रखा हुआ पत्थर अचानक हटा दिया हो।

उसके होंठों पर एक कंपकंपाती सी मुस्कान उभरी। एक मुस्कान जो गवाही दे रही थी उन बेशुमार रातों की जब उसने डर के साये में आरव के बगैर नींदें काटी थी। जब हर सुबह एक दुआ बनकर आती थी — “काश उसे होश आ जाए।” उसने बिना कुछ कहे दौड़ लगाई, उसकी हील्स की आवाज़ पूरे गलियारे में गूंज उठी। हवेली की दीवारें आज पहली बार उसकी सिसकियों से नहीं, उसके दिल के हल्के होने की खामोश खुशी से भर आई थीं। आज उसके बंद साँसों को राहत मिल गई थी। आरव लौट आया था... उसकी दुनिया वापस लौट आयी थी।

सुहानी के हील्स तेज़ आवाज़ कर रहे थे, उसके कदम आरव के कमरे की ओर बढ़ते जा रहे थे। दिल की धड़कनों की रफ्तार इतनी तेज़ थी कि मानो छाती फट पड़ेगी। उसकी आंखों में उम्मीद थी, चेहरा आंसुओं से भीगा हुआ था, और हर कदम के साथ वो उस पल के करीब जा रही थी जिसे उसने अनगिनत बार अपनी दुआओं में मांगा था।

जैसे ही उसने उस कमरे की ओर मुड़ने के लिए पहला कदम रखा, अचानक किसी ने उसका हाथ कसकर पकड़ लिया। वो चौंक गई, उसने मुड़कर देखा — वही नौकर था, जिसे उसने कुछ देर पहले रोक कर पूछा था कि हवेली में ये सब क्या हो रहा है।

"माफ कीजिए, लेकिन आप उस कमरे में नहीं जा सकतीं," उसने थोड़े संकोच, पर मजबूती से कहा।

सुहानी की आंखें फैल गईं। "क्यों? किसने रोकने के लिए कहा है मुझे?"

नौकर ने नज़रें झुका लीं, लेकिन उसका हाथ अब भी सुहानी की कलाई थामे हुए था। "मेम साहब... यानी गौरवी मैम ने सख़्त हिदायत दी है कि आपको आरव साहब के कमरे में आने नहीं देना है।"

वो शब्द सुहानी के दिल में किसी हथौड़े की चोट की तरह गूंजे। एक पल को सब कुछ स्थिर हो गया। उसके चेहरे की मुस्कान वहीं जमी रह गई, लेकिन आंखों की चमक बुझने लगी। गले में कुछ अटक गया। जैसे ही उसे थोड़ा होश आया, उसने धीरे से अपनी कलाई छुड़ाई और एक डूबी हुई, दर्द भरी आवाज़ में बोली — "वो मेरे पति है… और मैं सिर्फ़ उन्हें देखना चाहती हूं…"

नौकर ने असहाय नज़रों ने उसकी तरफ देखा, पर फिर भी दो कदम पीछे हट कर उस गलियारे के सामने खड़ा हो गया, जैसे खुद एक पहरेदार हो। सुहानी ने एक बार उस गलियारे की ओर देखा, उस गलियारे के उस पार एक कमरे में आरव था, जिसे उसने हर दिन, हर रात याद किया… और आज जब वो होश में आया, तब उसे उससे मिलने की इजाज़त नहीं।

उसकी आंखों से दो खामोश आंसू ढलके। उसने एक गहरी सांस ली और बुझे हुए कदमों से पीछे हट गई, लेकिन उसकी निगाहें अब भी उस गलियारे के उस दरवाज़े पर टिकी थीं — जैसे वो निगाहें दीवारों के पार जाकर आरव तक पहुंचने की कोशिश कर रही हों। और फिर उसके कदम रुक गए, “आज मुझे आरव से मिलने से कोई नहीं रोक सकता।” सुहानी ने खुद से प्रण किया, और फिर से उस गलियारे की ओर बढ़ने लगी और उस गॉर्ड ने फिर से आकर उसके हाथ को पकड़ लिया था। 

मैडम प्लीज रुक जाइये….आप आगे नहीं जा सकतीं। मगर इस बार सुहानी की नज़रें अब सिर्फ़ एक जगह टिक गई थीं — अपने हाथों पर। वही हाथ…जिसे कुछ पल पहले एक नौकर ने साहस कर के अपनी हथेली से पकड़ लिया था, उसे रोकने के लिए… अपने पति से मिलने से रोकने के लिए। उसके भीतर कुछ टूट भी रहा था और कुछ जाग भी रहा था। नौकर अब भी बोल रहा था, शायद सफाई दे रहा था, शायद बहाना बना रहा था — “मेम साहब, हमें जो हुक्म मिलता है, हम वही करते हैं... मैं मजबूर हूँ...”

लेकिन इससे पहले कि वो अपनी बात पूरी कर पाता, सुहानी ने धीरे से उसका हाथ पकड़ लिया। एक ठंडी, स्थिर और डरी हुई सी पकड़ थी। फिर उसने वो हाथ झटक कर अपने से दूर फेंक दिया — उसकी आंखों में अब आंसू नहीं, आग थी। आवाज़ थरथरा रही थी, “अगर दोबारा कभी अपने ये हाथ मुझ पर रखने की कोशिश की ना, तो याद रखना — नौकरी से तो हाथ धो ही बैठोगे... अपने हाथों से भी धो बैठोगे।”

उसकी नज़रें अब नौकर के चेहरे पर गड़ी हुई थीं, जिसमें डर और शर्म की मिली-जुली झलक थी। “और शायद तुम्हें ये भी पता नहीं,” उसने एक कदम आगे बढ़ाते हुए कहा, “कि इस हवेली की मालकिन अब बदल चुकी है। ये अब तुम्हारी ‘मेम साहब’ की जागीर नहीं है...”

वो एक पल को रुकी, उसकी आवाज़ और गहरी हो गई — “ये अब मेरी हवेली है।” फिर उसने बिना पीछे देखे, सीधे आरव के कमरे की ओर कदम बढ़ा दिए। उसकी चाल में अब वो हिचक नहीं थी, जो कुछ पल पहले थी। उसके बढ़ते हुए क़दमों की आवाज़ अब उसके अधिकार की गूंज बन चुके थे।

इस बार, उस नौकर ने ना तो कुछ कहा, ना ही कोई कोशिश की उसे रोकने की। वो बस स्तब्ध खड़ा देखता रह गया, जैसे उसकी आंखों के सामने हवेली का इतिहास पलट गया हो।

धीरे-धीरे सुहानी के कदमों की रफ्तार बढ़ने लगी। हर कदम अब पहले से ज़्यादा तेज़ था, और उसके साथ ही उसकी साँसें भी गहरी और बेकाबू होती जा रही थीं — जैसे सीने में कोई तूफान बुलबुला रहा हो, जो अब और रोके नहीं रुक सकता। उसके अंदर एक अजीब सी बेचैनी थी — डर, उम्मीद, खुशी और दर्द… सब कुछ एक साथ।

ऐसा लग रहा था…जैसे उसके शरीर का कोई हिस्सा उससे कभी ज़बरदस्ती छीन लिया गया था — एक हिस्सा जिसे वो पहचानती थी, महसूस करती थी… पर छू नहीं पाती थी। आज, वो उसी खोए हुए हिस्से से फिर से जुड़ने जा रही थी।

आरव…वो सिर्फ उसका पति नहीं था। वो उसके हर दिन की दुआ था, हर रात की तड़प, हर खामोशी की सजा और हर उम्मीद का नाम था। उसकी आंखें अब भी नम थीं, लेकिन उनमें अब डर नहीं था… बस एक ही लक्ष्य था — उस दरवाज़े को पार कर जाना, जिसके पार उसकी अधूरी दुनिया उसका इंतज़ार कर रही थी। बिना रुके, बिना पीछे देखे… वो उस कमरे की ओर बढ़ती चली गई, जहां उसकी अधूरी कहानी का एक नया अध्याय उसका इंतज़ार कर रहा था।

पर जैसे ही वह उस कोने तक पहुँची, जहां वह कमरा था, उसका रास्ता अचानक रुक गया। कमरे के बाहर कम-से-कम छह गार्ड तैनात थे — सभी सशस्त्र, चौकन्ने, और एक स्पष्ट आदेश का पालन करते हुए। पूरे कॉरिडोर में एक अजीब सी खामोशी थी, जैसे वहां की दीवारें भी उसकी बेचैनी को महसूस कर रही हों।

उसके कदम जैसे ही दरवाज़े की ओर बढ़े, दो गार्ड तुरंत सामने आ गए। एक ने हाथ फैलाकर रास्ता रोका, और दूसरा उसकी ओर सख्त निगाहों से देखने लगा। “मैम, आपको अंदर जाने की इजाज़त नहीं है,” एक ने सख्त लहजे में कहा। सुहानी की आँखों में अब डर या झिझक की कोई गुंजाइश नहीं बची थी। उसने बिना एक पल गँवाए, सामने खड़े गार्ड को इतनी ज़ोर से धक्का मारा कि वो दीवार से टकराकर गिर गया। दूसरे की कॉलर पकड़कर उसे अपनी आँखों के सामने खींच लिया, उसकी आँखों में आग थी, गूंजती हुई चेतावनी।

वो गरजी — “ख़बरदार! ख़बरदार अगर किसी ने भी मुझे रोकने की कोशिश भी की तो! तुम सबको एक साथ जेल हो जाएगी, समझे? और सिर्फ तुम नहीं — तुम्हारा मालिक भी सलाखों के पीछे जाएगा अगर उसने ये खेल बंद नहीं किया। ये मेरा कानूनी हक है वहाँ जाने का और हक छीनने वालों को मैं कभी माफ नहीं करती!”

गार्ड हक्के-बक्के रह गए। उस पल उसकी आवाज़ में ऐसी दृढ़ता थी कि पूरा कॉरिडोर जैसे उसकी गूंज से थर्रा उठा था। उसकी साँसें तेज़ थीं, चेहरा तमतमाया हुआ, और आँखें — आँखें अब डर नहीं, बल्कि न्याय की ललक से जल रही थी। गार्ड्स के घेरे में खड़ी सुहानी की आँखों में अब धैर्य की जगह तीखी आग थी। उसके अंदर एक ज्वालामुखी सुलग रही थी, और अब वो फटने को तैयार था।

एक गार्ड ने आगे बढ़कर गंभीर लहजे में कहा, “हम आपको अंदर नहीं जाने दे सकते, मैडम। हमें सख्त ऑर्डर्स दिए गए हैं।” उसकी आवाज़ में कठोरता थी, पर आंखों में झिझक साफ़ झलक रही थी।

सुहानी ने एक पल के लिए उसकी आँखों में गहरी नज़र डाली — वो नज़र जो न केवल चेतावनी देती थी, बल्कि सामने वाले की रूह तक को हिला सकती थी। फिर वह एक कदम आगे बढ़ी, और गार्ड के बहुत करीब जाकर तीखी आवाज़ में बोली “ठीक है... तो जाकर अपने बड़े बॉस से कह दो कि सुहानी के पास उनके खिलाफ ऐसा सबूत है, जो उनकी सारी सत्ता को पल भर में मिट्टी में मिला सकता है। जिस तख्त पर वो बैठे हैं, वो ताश के पत्तों से बना है... और मैं वो तूफ़ान हूँ जो उसे एक फूंक में गिरा सकती हूँ।”

उसकी आवाज़ पूरे कॉरिडोर में गूंज उठी। सन्नाटा छा गया….कुछ गार्डों की निगाहें झुक गईं, तो कुछ असमंजस में एक-दूसरे का मुंह देखने लगे। तभी... कमरे के भीतर से एक भारी, सख्त पर शांत स्वर उभरा — “उसे अंदर आने दो।”

ये आवाज़ रणवीर की थी। उसके शब्द तलवार जैसे सीधे, स्पष्ट और निर्णायक थे।

सुहानी की आँखों में अब एक चमक थी। होंठों पर हल्की सी विजयी मुस्कान उभर आई।

गार्ड एक-एक कर धीरे-धीरे रास्ते से हटने लगे। उनमें अब वह सख्ती नहीं थी — बस एक मौन स्वीकृति थी, जैसे वो समझ गए हों कि इस लड़की के आगे झुकना ही बेहतर है। सुहानी ने सिर ऊँचा किया, एक गहरी साँस ली और फिर आत्मविश्वास भरे कदमों से कमरे की ओर बढ़ चली — जहां सच उसका इंतज़ार कर रहा था, और शायद उसका सबसे दर्द भरा सामना भी।

बिना एक पल की देरी किए, सुहानी ने भारी दरवाज़ा खोला और सीधे कमरे के भीतर चली गई। दरवाज़ा उसके पीछे धीरे से बंद हो गया, और पूरे कमरे में एक भारी सन्नाटा छा गया।

कमरे में हल्की-सी दवा की गंध थी, और पर्दों के पीछे से छनती धूप एक स्याह-सी उदासी को उजागर कर रही थी। उसकी निगाहें सीधी उस बिस्तर की ओर गईं — जहाँ आरव आधा लेटा हुआ था, एक तकिए के सहारे टिके हुए।

वो अब पहले जैसा नहीं रहा था। उसकी काया एकदम कमजोर लग रही थी — जैसे किसी ने उसकी आत्मा का एक हिस्सा छीन लिया हो। गाल थोड़े धंसे हुए, आंखों के नीचे काले घेरे, और होठों पर वीरानी की परत। लेकिन उसकी आंखें…जैसे ही उन आँखों ने सुहानी को देखा, उसमें कोई नरमी नहीं थी, कोई राहत नहीं, कोई सवाल भी नहीं — बस सीधी, सख्त और ठंडी नज़र।

“तुम... क्या कर रही हो यहाँ?”

 

आरव सुहानी को देखकर हैरान क्यों हुआ? 

क्या आरव सब भूल चुका है? 

सुहानी कैसे झेलेगी नया सदमा? 

जानने के लिए पढ़ते रहिये, रिश्तों का क़र्ज़। 

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