किस्मत बड़ी चीज़ होती है साहब, किस्मत अच्छी तो कमज़ोर भी कुश्ती का बादशाह बन जाता है और किस्मत बुरी तो ताक़तवर भी धूल चाट जाता है। अब अपने धीरज को ही देख लीजिए, जिस लड़की को प्यार करता है उसके पापा के आगे अच्छा बनने के कितने मौके उसे मिले। जल विभाग के ऑफ़िस में उसने झूठा स्टाइल मार कर बारह लाख का फ़ाइन बचाया, प्रतिभा के घर खाने पर बुलाया गया, अब राजेंद्र जब वाशरूम से निकलते हुए गिर पड़े तब वो मदद करने के लिए पहुंच गया, इतने मौके जिस आशिक़ को मिले हों उसके सामने तो लड़की के पापा ख़ुद हाथ जोड़ कर बोल दें कि यही बनेगा मेरा दामाद। मगर हाय री अपने हीरो की किस्मत, इतने मौकों के बावजूद बेचारे को हॉस्पिटल से भगा दिया राजेंद्र ने। इन सब अच्छाइयों पर राजेंद्र की ज़िद भारी है। भले ही धीरज अपने ससुर के लिए श्रवण बेटा बनने को तैयार हो लेकिन उन्हें तो बस सरकारी दामाद चाहिए।
खैर किस्मत काम बिगाड़ रही है तो यही किस्मत कभी काम बना भी सकती है। फ़िलहाल मिश्रा जी के सामने नई परेशानी खड़ी है। डॉक्टर ने बताया कि उन्हें कोई मामूली चोट नहीं आयी जो दो चार दिन में ठीक हो जाए। उनका पैर तो फ्रैक्चर हो गया था और उन्हें तीन महीने प्रॉपर बेड रेस्ट करनी थी। तीन महीने तक वो बेड से ख़ुद से उठ भी नहीं सकते थे, और अगर ज़बरदस्ती करेंगे तो एक पैर हमेशा के लिए जाएगा। मिश्रा जी के लिए तो डॉक्टर की ये बात किसी बम धमाके से कम नहीं थी। तीन महीने घर पर पड़े रहने का मतलब था कि वो अब अपनी बेटी के लिए अपने पसंद का लड़का नहीं ढूँढ सकते थे। क्योंकि घर से बाहर वो जा नहीं सकते थे और दादी ने किसी लड़के को घर में घुसने नहीं देना था।
राजेंद्र के मिशन ‘सरकारी दामाद’ में ख़ुद उन्होंने ही अपनी टूटी टांग अड़ा दी थी। उन्हें अपनी टांग टूटने का इतना दुख नहीं था जितना ये सोच कर था कि अगले तीन महीने उन्हें अपना प्लान postpone करना होगा। इधर राजन आज फूला नहीं समा रहा था क्योंकि जिस ससुर का उससे छतीस का आंकड़ा चलता था उन्होंने धीरज को भगाने के लिए कह दिया था कि उन्हें राजन घर छोड़ आयेगा। भले ही राजेंद्र ने सबसे बुरे और बुरे में से बुरे को चुना था लेकिन राजन को ये चुनाव भी किसी बड़ी जीत से कम नहीं लग रहा था। राजन ने शालू से कहा कि वो भी साथ चले मगर शालू ने मना कर दिया। उसने कहा कि उसने क़सम खायी है वो उस घर में नहीं जाएगी।
इसके बाद प्रतिभा और राजेंद्र राजन के साथ उसकी गाड़ी में घर आ गए। राजेंद्र के पैर पर प्लास्टर लगा हुआ था वो घर आते ही बेड पर पड़ गए। प्रतिभा ने दादी को पूरी अपडेट दी। बेटे के पैर पर चड्ढा प्लास्टर देख दादी रोने लगीं। राजेंद्र ने उन्हें समझाया कि ये कुछ दिनों में ही ठीक हो जाएगा। राजन को काम पर जाना था इसलिए वो निकल गया। पैर टूटने का दुख एक तरफ़ था और ये परेशानी दूसरी तरफ़ कि अब राजेंद्र की देखभाल कौन करेगा। वो भले ही दादी का बेटा और प्रतिभा के पिता थे लेकिन दो महिलाएं उनकी हर तरह की देख भाल नहीं कर सकती थीं। उन्हें अपने फ्रैक्चर पैर पर चीनी के दाने जितना भी ज़ोर नहीं डालना था, ऐसे में उन्हें वाशरूम ले जाना, नहलाना ये सब उन दोनों के बस की बात नहीं थी। राजन की जॉब थी जिसे वो छोड़ नहीं सकता था।
ऐसे में दादी को धीरज का ख्याल आया। उन्होंने सोचा कि ये उसके लिए राजेंद्र के नजदीक आने का अच्छा मौक़ा हो सकता है। उन्होंने प्रतिभा के फ़ोन से चुपके उसका नंबर निकाला और उसे फ़ोन कर दिया। दादी ने धीरज को समझाया कि वो जानती है राजेंद्र के बर्ताव से उसे बहुत बुरा लग रहा होगा लेकिन अभी उसके पास अच्छा मौक़ा है। इंसान उसको कभी नहीं भूलता जो उसके दुख में काम आता है। धीरज ने कहा कि अगर उन्हें कोई दिक्कत ना हो तो वो बिना किसी लालच के उनकी सेवा करेगा। दादी को ये सुनकर अच्छा लगा। दादी ने उसे कहा कि वो उनका हाल चाल पूछने के बहाने कल घर आ जाए। बाक़ी सब वो संभल लेंगी।
धीरज ने वही किया। वो जब राजेंद्र से मिलने घर आया तो राजेंद्र किसी बात से काफ़ी परेशान लग रहे थे। धीरज को देख एक तरफ़ उन्हें गुस्सा भी आया तो दूसरी तरफ़ उन्हें एक राहत सी भी मिली। धीरज उनके नजदीक बैठ गया और उनसे उनके पैर के बारे में पूछने लगा। राजेंद्र अब इतने भी बुरे नहीं थे कि जिस लड़के ने उनकी इतनी मदद की थी उसे घर से भगा देते। उन्होंने बताया कि डॉक्टर ने उन्हें तीन महीने बेड से हिलने से भी मना किया है, वो अपने फ्रैक्चर पर जरा सा भी ज़ोर नहीं डाल सकते। धीरज ने इस बात पर अफ़सोस जताया और उन्हें कहा कि अगर वो किसी भी तरह उनके काम आ सके तो उसे बहुत अच्छा लगेगा। धीरज वहाँ से जाने ही वाला था कि राजेंद्र ने उसे रोकते हुए कहा कि एक हेल्प की तो उन्हें अभी तुरंत ज़रूरत है।
धीरज खुश हो गया, उन्होंने कहा कि उन्हें वाशरूम जाना है। वो बहुत देर से अपना प्रेशर रोके बैठे हैं। उन्हें प्रतिभा और दादी से ये कहने में शर्म आती है इसलिए उन्होंने धीरज से कहा। धीरज ने उन्हें अपने कंधे का सहारा देकर उठाया। उसने इस बात का ध्यान रखा कि उनके फ्रैक्चर पैर पर ज़ोर ना पड़े। वो उन्हें वाशरूम में ले गया और टॉयलेट सीट पर बिठा कर वहीं खड़ा हो गया। राजेंद्र ने उसे घूरा लेकिन वो समझा नहीं। राजेन्द्र बोले कि वो उसके सामने थोड़े ना करेंगे। फिर धीरज को ध्यान आया और वो सॉरी बोल कर बाहर चला गया। असल में धीरज राजेंद्र के सामने एकदम नर्वस हो जाता था। और अभी तो उसे नर्वसनेस और ख़ुशी दोनों फ़िलिंग्स एक साथ आ रही थीं। इसी चक्कर में वो ये सोच कर वाशरूम में खड़ा हो गया था कि उन्हें वापस उनके बेड पर भी तो लेकर जाना है। उसके दिमाग़ में ये बात ही नहीं आई कि वो उसके सामने कैसे टॉयलेट यूज़ करेंगे। थोड़ी देर बाद राजेंद्र ने दरवाज़ा खटखटाया तो धीरज ने उन्हें उठा कर फिर से बेड पर छोड़ दिया।
अब जब राजेंद्र का काम हो गया था तो उन्हें धीरज अपने घर में खटकने लगा। धीरज पूरे घर पर अपनी नज़र घुमाते हुए मुस्कुरा रहा था। प्रतिभा उसके लिए चाय लाई थी जिसे देख राजेंद्र का चिढ़ गए थे लेकिन अभी अभी उन्होंने ही तो धीरज से मदद माँगी थी और उन्हें आगे भी ज़रूरत पड़ सकती इसलिए वो उसे चिल्ला कर भगा भी नहीं सकते थे। धीरज ने चाय खत्म ही की थी कि राजेंद्र ने उससे पूछा कि उसकी तैयारी कैसी चल रही है? धीरज ने कहा बहुत अच्छी चल रही है। उसने बताया कि उसका एग्जाम कुछ महीनों में होने वाला है इसलिए वो पूरे मन से पढ़ाई कर रहा है। राजेंद्र ने कहा फिर तो उसे जा कर पढ़ाई करनी चाहिए, यहाँ बैठने से तो एग्जाम क्लियर नहीं होगा। धीरज समझ गया कि ये मतलबी इंसान अपना काम होने पर उसे भगाने के चक्कर में है। लेकिन अब धीरज को बुरा नहीं लग रहा था वो समझ गया था कि अगर प्रतिभा से शादी का रास्ता क्लियर करना है तो उसे राजेंद्र की बातों को सहना ही पड़ेगा।
वो मस्कुरा कर बोला उन्होंने ठीक कहा, अब वो जा रहा है। फिर शाम को आयेगा। राजेंद्र ने पूछा कि वो शाम को क्यों आयेगा तो उसने कहा कि वो एक बार वाशरूम जाकर पूरे दिन का कोटा तो पूरा कर नहीं सकते इसलिए उन्हें फिर उसकी ज़रूरत पड़ेगी। राजेंद्र कुछ बोल नहीं पाये बस मुँह बना कर रह गए। धीरज ने जाते हुए कहा कि उन्हें जब भी ज़रूरत पड़े वो उसे बुला सकते हैं। फिर वो चला गया। अगले कुछ दिनों में धीरज का राजेंद्र के घर बेधड़क आना जाना शुरू हो गया। हर बार दादी कहती कि उन्होंने उसे बुलाया है।
राजेंद्र को ये बिल्कुल पसंद नहीं आ रहा था लेकिन दादी कहती कि घर के इतने काम होते हैं जो वो करता था उन्हें पूरा करने के लिए उसकी जगह कोई तो चाहिए। उसने तो मोहल्ले में कुछ अच्छे दोस्त भी नहीं बनाये जिन्हें मदद के लिए कहा जा सके। राजेन्द्र के पास इसका कोई जवाब नहीं था और वो मानें या ना मानें लेकिन उन्हें धीरज की सबसे ज़्यादा ज़रूरत थी। इसी वजह से उन्हें सामने दिख रहा ज़हर का घूँट भी पीना पड़ रहा था। हालांकि घर आने पर धीरज इस बात का पूरा ख्याल रखता था कि उसकी और प्रतिभा की दूरी बनी रहे जिससे कि उसके पापा को शक ना हो लेकिन इसके बावजूद जब भी राजेंद्र धीरज को प्रतिभा से ज़रा सी भी बात करते देखते उसे भगाने का कोई ना कोई बहाना खोज लेते।
इधर राजन शालू को घर जाने के लिए मना रहा था लेकिन वो घर जाने को तैयार नहीं थी। उसे पता था कि उसके पापा फिर से राजन को सुनायेंगे और वो बर्दाश्त नहीं कर पाएगी। मगर राजन ने उसे समझाने की कोशिश की कि उनके पास घर जाने के दो बड़े रीज़न हैं। सबसे पहला ये कि उन्हें उनका हाल चाल पूछ कर आना चाहिए और दूसरा उन्हें खुशखबरी देनी चाहिए कि उसका प्रमोशन हो गया है और उसे कंपनी ने एक नया बंगला ऑफ़र किया है। शालू ने राजन से कहा कि वो समझता क्यों नहीं कि वो चाहे अरबपति हो जाये उसके पास पचासों बंगले गाड़ियाँ हों फिर भी उसके पापा उसे दामाद वाली इज़्ज़त नहीं देंगे क्योंकि उन्हें सिर्फ़ सरकारी दामाद पसंद है, फिर चाहे वो डी ग्रुप एम्प्लॉई ही क्यों ना हो। राजन ने कहा कि वो ग़लत कह रही है। हर किसी को ये शौक होता है कि उनके बेटी दामाद तरक्की करें अब उसकी तरक्की पर भी राजेंद्र का मन बदलेगा। शालू उसे समझाती रही कि ऐसा बिल्कुल मुमकिन नहीं लेकिन राजन अपनी ज़िद पर अड़ा रहा। हार कर शालू को मानना ही पड़ा।
लेकिन चलते हुए शालू ने राजन को धमकी दी कि वो अब उसकी और बेइज्जती बर्दाश्त नहीं कर सकती इसलिए अगर इस बार पापा ने कुछ ग़लत कहा तो सिर्फ़ वो नहीं आज के बाद राजन भी उनके घर नहीं जाएगा। फिर भले जो मर्जी हो जाये। राजन ने उसे कहा कि उसे पॉजिटिव सोचना चाहिए। उसके पापा अब बदल रहे हैं, तभी तो उन्होंने हॉस्पिटल में उसे घर ड्राप करने के लिए कहा। शालू उस भोले इंसान का चेहरा ही देखती रह गई। अब वो उसे कैसे समझाए कि उन्होंने उसे प्यार से घर ड्राप करने को नहीं कहा था, उन्हें तो उस लड़के को वहाँ से भगाना था इसलिए उन्होंने उसे ये ऑर्डर दे दिया था। थोड़ी देर में राजन और शालू राजेंद्र के घर पहुंच गए। शालू को देख प्रतिभा और दादी बहुत खुश हुए। वो यहाँ ना लौटने की क़सम जो खा कर गई थी, दोनों को पता था कि वो अपने पापा जैसी ही ज़िद्दी है लेकिन उसने अचानक घर आ कर सबको हैरान कर दिया था।
क्या राजन की प्रमोशन उसे राजेंद्र की नज़रों में अच्छा दामाद बना पाएगी? क्या राजेंद्र राजन की कामयाबी के बारे में सुन कर खुश होंगे?
जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
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