राजन शालू को बहुत मुश्किल से मना कर लाया था। वो दोनों राजेंद्र का हाल चाल लेने और राजन की प्रमोशन की खुश खबरी देने आए थे। राजेंद्र को तो लग रहा था कि वो इन दिनों मुसीबतों से ही घिर गया है। सारा दिन उसे धीरज को झेलना पड़ता है और अब ये राजन भी आ गया। उसे देखते राजेंद्र ने मुँह बना लिया। राजन को पता है ये उनकी आदत है। उसने उनके पैर छुए और उनका हाल चाल पूछा। जिस पर राजेंद्र ने रूखे शब्दों में जवाब दिया। शालू उनके कमरे में नहीं गई थी। राजन ने उनकी बातें सुनीं लेकिन कुछ रिएक्ट नहीं किया। उसे यकीन था कि उसके प्रमोशन की खबर सुन कर वो खुश हो जायेंगे। उसने राजेंद्र से कहा कि वो उन्हें एक खुशखबरी देना चाहता है। राजेंद्र ने उसे चिढ़ाते हुए कहा कि क्या उसकी सरकारी नौकरी लग गई है? क्योंकि उनके लिए तो इससे बड़ी खुशखबरी नहीं हो सकती और उन्हें यकीन है कि ऐसी खुशखबरी वो तो कभी नहीं दे सकता।
राजन ने कहा कि उसके पास सरकारी नौकरी मिलने से भी बड़ी खुशखबरी है। राजेंद्र हैरान रह जाते हैं कि ऐसी क्या खुशखबरी हो सकती है जो सरकारी नौकरी लगने से भी बड़ी हो। राजन, दादी और प्रतिभा को भी बुला लेते हैं। शालू अभी भी बाहर हॉल में ही बैठी हुई थी। राजन ने गहरी साँस ली और सबको बताया कि उसकी प्रमोशन हो गई है। उसकी सैलरी भी पहले से काफ़ी ज़्यादा बढ़ गई है और कंपनी ने उन्हें नया बंगला दिया है जिसमें वो इसी हफ्ते शिट होने जा रहे हैं। ये सुनते ही प्रतिभा और दादी खुश हो जाते हैं। प्रतिभा ने उसे हाथ मिलाकर बधाई दी । उसने खूब चिल्ला कर अपनी ख़ुशी ज़ाहिर की लेकिन राजन के लिए सबसे ज़्यादा ज़रूरी तो उसके ससुर का खुश होना था। राजेंद्र प्रतिभा को खुश होते देखते रहते हैं और फिर अचानक से कहते हैं…
राजेंद्र(चिढ़ कर)- इसमें इतना खुश होने वाली कौन सी बात है?
प्रतिभा(नार्मल)- ख़ुशी की ही तो बात है पापा, लोगों को क्वाटर तक नहीं मिलता मगर जीजू को बंगला और सैलरी में हाइक मिला है।
राजेंद्र(चिढ़ कर)- हाँ तो कौनसा इसका ख़रीदा हुआ है। कंपनी ने दिया है और कंपनी ले भी लेगी जब जॉब जाएगी तो। प्राइवेट नौकरी का तो पता है ना? कब बाहर निकाल दे कोई पता नहीं। ऊपर से बेशर्मों की तरह कह रहा है कि सरकारी नौकरी मिलने से बड़ी खुश खबरी है। सरकारी नौकरी की कभी बराबरी भी कर पाएगा ये? पता भी है क्या रुतबा होता है एक सरकारी नौकरी करने वाले का। भले ही वो एक छोटी पोस्ट पर ही क्यों ना हो लेकिन सब उसकी इज़्ज़त करते हैं।
राजन अपने ससुर का मुँह ही देखता रह गया। उसे लगा था कि वो खुश होंगे लेकिन वो तो उसे फिर से सुनाने लगे थे। शालू अंदर आई और राजन पर ही भड़कने लगी। उसने कहा..
शालू(गुस्से में)- समझाया था ना तुम्हें कि कुछ भी कर लो मेरे पापा की सोच नहीं बदल सकते। तुम्हें ही लग रहा था कि तुम उनका हृदय परिवर्तन कर दोगे। जाओ थोड़ी और बेइज्जती करवा लो। तुम्हें नहीं आती होगी शर्म लेकिन मुझे आती है जब वो तुम्हें सुनाते हैं। मुझे पता है मेरा पति किसी भी सरकारी नौकरी वाले से ज़्यादा काबिल है, तुम्हारे लिए यही बहुत होना चाहिए। तुम्हें मेरे साथ रहना है इनके साथ नहीं। हम लोग इन्हें कभी नहीं बदल पाएंगे। अब चलोगे या फिर यहीं बैठे रहोगे और बेइज्जती करवाने के लिए।
शालू अपने पापा की तरफ़ देख भी नहीं रही थी। वो राजन का इंतज़ार किए बिना ही बाहर कार में जा कर बैठ गई। आज राजन के बर्दाश्त की भी हद हो गई थी। वो आज अपने ससुर का लिहाज़ भूल कर उन्हें खूब सुनाना चाहता था। उसने जैसे ही कुछ कहने के लिए अपना मुँह खोला तभी किसी ने डोर बेल बजायी। घर में सबका मूड अपसेट कर दिया था राजेंद्र ने। अभी और रायता फैलने वाला था लेकिन उससे पहले ही किसी मेहमान ने दरवाज़े पर दस्तक दी थी। प्रतिभा जो अपने पापा की हरकत पर उन्हें घूर रही थी उसे जा कर दरवाज़ा खोलना पड़ा। सामने खड़े मेहमान से मिलकर उसने जो ख़ुशी ज़ाहिर की थी उसकी आवाज़ कमरे तक आई थी। उसने कहा था कौशिक! इतने सालों बाद।
राजेंद्र ने मन ही मन सोचा अब ये कौशिक कौन है? राजन अब एक मिनट नहीं रुका, जाते हुए उसने दरवाज़े पर खड़े मेहमान के हैलो का जवाब हैलो में दिया और निकल गया। शालू पूरे रास्ते उसे ही सुनाती गई। राजन मेहमान के आने पर कुछ बोल नहीं पाया था नहीं तो आज वो अपने ससुर को पक्का सुनाता।
इधर घर आए मेहमान ने राजेंद्र का गुस्सा और बढ़ा दिया था। उसने मन ही मन सोचा आज उसका दिन ही ख़राब है। एक के बाद एक उसे ऐसे ही लोगों का सामना करना पड़ रहा है जो उन्हें फूटी आँख नहीं भाते। ये कौशिक था, प्रतिभा के बचपन का दोस्त। प्रतिभा ने इसी के साथ दसवीं तक की पढ़ाई की थी। पहले उसका खूब घर आना जाना होता था। वो राजेंद्र को जरा भी पसंद नहीं था, एक तो वो लड़का था जिससे उसे अपनी बेटी की दोस्ती मंज़ूर नहीं थी लेकिन सिर्फ़ इस एक प्वाइंट के लिए वो उसे पसंद ना करे ऐसा भी नहीं था। असल में कौशिक पढ़ने में निल बटे सन्नाटा था। कुछ नहीं आता जाता था उसे, जब देखो प्रतिभा से हेल्प माँगता रहता था। ऐसे नालायक बच्चे राजेंद्र को पसंद नहीं थे क्योंकि उनमें इतना पोटेंशियल नहीं होता कि वो पढ़ कर सरकारी नौकरी पा सकें।
उन्हें लगा कि कौशिक कोई छोटी मोटी नौकरी करता होगा। वो उनके पास बैठा था तो उन्हें कुछ ना कुछ बात तो करनी ही थी। इसलिए उन्होंने पूछ लिया कि वो क्या करता है। कौशिक ने कहा कि वो लखनऊ बिजली विभाग में छोटे बाबू की पोस्ट पर है। राजेंद्र मुँह बना कर कहा अच्छा। उन्होंने सोचा था कौशिक कोई साधारण सी नौकरी करता होगा, उन्हें इस बात का इतना यकीन था कि उन्होंने कौशिक की बात ध्यान से सुनी भी नहीं थी लेकिन उनके कान में बिजली विभाग और छोटे बाबू जैसे शब्द ज़रूर पहुँचे थे। उन्हें जैसे ही अहसास हुआ कि कौशिक ने अभी अभी बताया है कि वो सरकारी नौकरी में है उन्होंने फिर से उससे पूछा कि वो कहाँ नौकरी करता है। कौशिक ने फिर से वही जवाब दिया।
इस एक ही पल में राजेंद्र जी के दिमाग़ में बना कौशिक का कैरेक्टर पूरी तरह से ही बदल गया। उन्होने प्रतिभा को आवाज़ देते हुए कहा कि वो जल्दी से कुछ चाय कॉफ़ी और नाश्ता ले कर आए। उसका दोस्त इतने दिनों बाद घर आया है। अब उन्हें भोंदू सा कौशिक अचानक से जीनियस और रिस्पेक्टेड पर्सन दिखायी देने लगा था। अभी तक कौशिक से रूखे लहज़े में बात करने वाले राजेंद्र जी को अचानक से उसमें और उसकी बातों में इंट्रस्ट आने लगा था। वो बातें कर रहा था और राजेंद्र उसके सिर पर सेहरा सजा देख रहे थे। एक वक्त था जब वो प्रतिभा के आसपास भी होता तो राजेंद्र चिढ़ जाते थे लेकिन आज वो उसे उसके दूल्हे के रूप में देख रहे थे। ये सब उसकी सरकारी नौकरी का कमाल था। अब उन्हें अपने टूटे पैर का दर्द भी भूल गया था।
उन्हें यकीन नहीं हो रहा था कि किस्मत उनपर इतनी मेहरबान कैसे हो सकती है कि घर बैठे उसके पास सरकारी दामाद भेज दे। कौशिक को एक ज़रूरी फ़ोन आ गया था और उसे अब जाना था। राजेंद्र उसे और कुछ देर बैठने को कहने लगा लेकिन कौशिक ने कहा वो कल फिर आयेगा अभी उसे एक काम से जाना होगा। राजेंद्र ने कहा कि उसे अपने पिता समान अंकल से मिलने ज़रूर आना होगा वरना वो नाराज हो जाएँगे। प्रतिभा को समझ नहीं आ रहा था कि अचानक से उसके पापा को ये क्या होगया है। वो तो कौशिक का नाम सुन कर भी चिढ़ जाते थे। लेकिन दादी सब समझ रही थी।
अगले दिन कौशिक घर आया तो राजेंद्र ने बिना टाइम वेस्ट किए उसे पूछ लिया कि क्या वो प्रतिभा से शादी करेगा? कौशिक ख़ुशी से पागल होने लगा। उसने कहा वो तो उसे बचपन से चाहता है, वो उसी से शादी करना चाहता था। राजेंद्र खुश हो गए और जल्दी ही शादी की डेट भी फिक्स करवा दी। प्रतिभा भी इस शादी से मना नहीं कर पायी। कौशिक ने तो दहेज भी लेने से मना कर दिया।
शादी की तैयारियां पूरी हो गईं। बारात आ गई मंडप सज गया। राजेंद्र जी पूरे पंडाल में मूंछें ऊँची और सीना चौड़ा किए घूम रहे थे। उन्होंने यादव जी और राजन को एक साथ देखा। दोनों के चेहरे उतरे हुए थे। उन्होंने दोनों से कहा कि देखा उन्होंने अपनी ज़िद पूरी कर ली ना। खोज लिया ना सरकारी दामाद। दोनों की झुकी गर्दनें देख राजेंद्र को खूब मज़ा आ रहा था। तभी फेरों का टाइम भी हो गया। प्रतिभा और कौशिक शादी के फेरे ले रहे थे और राजेंद्र अपनी भीगी आँखों से अपना सपना सच होते देख रहे थे। दोनों के फेरे पूरे होने ही वाले थे कि अचानक से राजेंद्र के पैर का दर्द बढ़ने लगा और उनके मुँह से ज़ोरदार चीख निकल गई।
उनकी आँख खुली तो सामने दादी बैठी हुई थीं, जिन्होंने उनके उठते ही पूछा, फेरे पूरे हुए थे या मैंने उससे पहले ही उठा दिया। राजेंद्र ने देखा ये तो सपना था और दादी ने उनके पैर पर मार कर उनका सपना तोड़ दिया। राजेंद्र जी हैरान थे कि दादी को कैसे पता चला वो क्या सपना देख रहे थे। उन्होंने फिर भी अनजान बनते हुए पूछा कैसे फेरे? दादी ने कहा…
दादी(नार्मल)- रहने दे, तुझे अच्छे से जानती हूँ, तू पक्का उस कौशिक के साथ प्रतिभा की शादी का सपना देख रहा था ना? जैसे ही मुझे पता चला उसकी सरकारी नौकरी है मैं समझ गई कि तेरे मुँह से लार ज़रूर टपकी होगी।
राजेंद्र(हैरानी से)- हाँ तो इसमें बुरायी ही क्या है। वो प्रतिभा का बचपन का दोस्त है। दिखने में स्मार्ट है, ऊपर से सरकारी नौकरी। इससे ज़्यादा क्या चाहिए। अब इसमें भी कमी मत निकालने लगना।
दादी ने कहा वो भला किसी में क्यों कमी निकालेगी। जो जैसा होगा उसकी सच्चाई अपने आप सामने आ जाएगी। राजेंद्र समझ नहीं पाये कि आख़िर दादी ने कहा क्या। उन्होंने फिर से आँखें बंद कर ली और अपने खूबसूरत से सपने को पूरा देखने की कोशिश करने लगे। प्रतिभा से तो सलाह लेना दूर की बात थी उन्होंने तो कौशिक से भी ये पूछना ज़रूरी नहीं समझा कि उसे ये शादी मंज़ूर होगी या नहीं। वो अपने ही मन से दोनों की शादी के सपने देखने लगे। उन्हें यकीन था कि कौशिक मना नहीं करेगा। इधर प्रतिभा को अभी तक इस बारे में बिल्कुल नहीं पता था कि उसके पापा उसके बचपन के दोस्त से ही उसकी शादी कराने के बारे में सोच रहे थे।
क्या राजेंद्र कौशिक से प्रतिभा की शादी की बात करेंगे? क्या कौशिक इस शादी के लिए मान जाएगा?
जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
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