दिल्ली में, नीना सतीश के साथ hospital के waiting area में बैठी थी। वह घबराहट में अपने पैर पर अपनी उंगलियाँ थपथपा रही थी। उसके बगल में सतीश बैठा था, और उसकी आँखों में चिंता साफ़ झलक रही थी। उसने नीना का हाथ रोकने की कोशिश की, लेकिन उसने दोबारा अपना हाथ थपथपाना शुरू कर दिया। सतीश ने पहले कभी नीना का इतना कमज़ोर और बिखरा हुआ नहीं देखा था। नीना की हालत खराब थी, उसकी आँखों के चारों ओर गहरे काले घेरे थे, उसकी त्वचा पीली और बेजान लग रही थी, और उसके शरीर में लगातार दर्द हो रहा था। वह अपने गर्दन के पीछे वाले दर्द की वजह से उसे बार-बार झटक रही थी। उसे याद भी नहीं था कि उसने आखिरी बार पूरी नींद कब ली थी।
सतीश ने धीरे से उसके कंधे पर हाथ रखा।
सतीश: “सब ठीक हो जाएगा, नीना।”
उसने सांत्वना देने की कोशिश की। लेकिन उसकी आँखों में जो बेचैनी थी, वह उसकी बातों के विपरीत थी। किसी करीबी की परेशानी सच में डरा देती है, उसे भी डर लग रहा था।
नीना की उंगलियाँ अभी भी उसकी गोद में हल्के से थिरक रही थीं, और वह अपने होंठ दाँतों में दबाए डॉक्टर के cabin से निकलने वाले लोगों को अजीब तरह से देख रही थी। उसकी साँसें तेज और गरम थीं।
कुछ देर में नीना की बारी आई। Receptionist ने उसे अंदर जाने को कहा। नीना सतीश के साथ डॉक्टर के cabin में गई।
डॉक्टर ने उससे पूछा कहिए, क्या परेशानी है?
सतीश: "डॉक्टर, ये कोलकाता गई थी किसी काम के सिलसिले में, और जब से आई है, इसकी हालत ठीक नहीं लग रही। ये देखिए, हाथों पर जलने के निशान हैं, और उनके साथ ही ये कुछ और भी अजीब से निशान हैं। ये कैसे हुए, इसे याद भी नहीं है। और इसकी आँखें और चेहरा देखिए... ये ऐसी नहीं थी। आप please देखिए ना, इसे क्या हुआ है।"
सतीश की चिंता उसकी बातों से जाहिर हो रही थी।
सतीश कह रहा था और डॉक्टर ध्यान से नीना की तरफ़ देख रहे थे। उन्होंने सतीश की बातों को गंभीरता से सुना।
फिर उन्होंने नीना से पूछा कि क्या उसको थकान महसूस होती है?
नीना: "हाँ, बहुत थकान महसूस हो रही है। ऐसा लगता है जितना भी खाती हूँ, energy कोई और ले जाता है।"
"ओके," कहते डॉक्टर खुद उलझन में दिखाई दिए। नीना के vitals check करने के बाद, उन्होने नीना की आँखों को देखा और फिर पर्चे पर कुछ टेस्ट लिखे और कहा, आप ये टेस्ट करवा कर मुझे रिपोर्ट दिखा दीजिए। और हाँ, नींद के लिए मैं दवाई लिख देता हूँ।
सतीश और नीना ने उन्हें धन्यवाद देते हुए बाहर आकर सभी टेस्ट करवाए और फिर नीना के फ्लैट पर चले गए। नीना सोफे पर लेटी थी, सामने टीवी चल रहा था, लेकिन उसे देख कोई नहीं रहा था। दोनों अपने-अपने सेल फोन के साथ बिजी थे।
सतीश को किसी का कॉल आया।
उसने कहा, "सुन, मैं आता हूँ," और वो चला गया। इस वक्त नीना अकेली थी।
नीना ने अचानक एक ज़ोर की आवाज़ सुनी, जैसे कुछ टूट रहा हो। आवाज़ उसके ऊपर से आ रही थी। उसने डर के मारे ऊपर देखा। उसे छत में cracks होते दिखाई दिए और ऐसा लगा जैसे छत उसके ऊपर गिरने वाली हो। वह डर के मारे अपने सिर को बचाते हुए ज़ोर से चीख पड़ी और अपनी बाहों से खुद को ढक लिया।
उसका पूरा शरीर काँप रहा था, दिल तेजी से धड़क रहा था। कुछ पल के लिए वह हिल भी नहीं पाई। लेकिन फिर जैसे ही उसने डरते हुए धीरे-धीरे अपने हाथ हटाए, उसने देखा कि छत बिल्कुल सही-सलामत थी। वहाँ कुछ भी नहीं गिरा था।
सामने खड़े सतीश ने उसकी तरफ़ चिंता से देखा। वह अपने हाथ में अपना सामान लिए खड़ा था, उसकी आँखों में हल्की उलझन थी।
सतीश: "क्या हुआ, नीना?" उसकी आवाज़ में फिक्र झलक रही थी।
नीना भ्रमित नज़र आ रही थी। जो उसने अभी-अभी महसूस किया, वह इतना वास्तविक था कि उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह कैसे इसे केवल एक वहम मान ले।
सतीश: “तूने कुछ देखा क्या?" उसने उसके कंधे पर हाथ रखा।
नीना ने हामी भरी, लेकिन सतीश यह समझ सकता था कि ठीक तो कुछ भी नहीं लग रहा है। वो उसके नज़दीक बैठ गया।
वो सतीश के कंधे पर सर रख कर बोली, "थैंक यू हमेशा साथ रहने के लिए।"
सतीश: "चुप कर... आई बड़ी थैंक यू कहने वाली।"
नीना: "सुन ले, वैसे भी तेरी तारीफ़ कभी-कभी ही कर पाती हूँ।"
सतीश: "बोर मत कर, अच्छा? कॉफी पिएगी? अब मैं कुछ दिन यही रहने वाला हूँ, तो मेरे हिसाब से खाना-पीना होगा।"
नीना: "ओके, बॉस।"
सतीश कॉफी बनाने उठा ही था कि दरवाजे की बेल बजी।
सतीश: "लगता है लोगों को तेरे आने की खबर मिल गई," कहते उसने दरवाज़ा खोला। सामने अंजली थी।
अंजलि: “कैसे है?"
सतीश: "अभी कुछ देर पहले ही डर से सहम कर अपना सर हाथों से छुपाए बैठी थी।"
अंजली जानती थी कि नीना अभी मानसिक और शारीरिक रूप से काफी थकी हुई है। इसलिए उसने कोशिश की और मुस्कुराते हुए अंदर गई।
अंजली : "हां जी, हमारी आर्टिस्ट कैसी है?"
अंजली कोशिश कर रही थी ताकि नीना के जीवन में थोड़ी सामान्यता वापस आ सके।
सतीश: "ओके, गर्ल्स, मैं कॉफी बना कर लाता हूँ।"
कहते हुए वो किचन में चला गया।
**
कुछ देर बाद नीना के लिविंग रूम में तीनों बैठे कॉफी की चुस्कियां ले रहे थे।
उनके बीच एक हल्का माहौल था, और बातें भी हंसी-मज़ाक की हो रही थी। लेकिन अंजली और सतीश नीना के चेहरे पर थकान और तनाव को साफ देख सकते थे। नीना की हालत देखकर वे दोनों परेशान थे, लेकिन वह उस पर सीधे सवाल नहीं दागना चाहते थे।
अंजली ने हल्के अंदाज़ में बातचीत शुरू की, "कैसा चल रहा है सब, नीना? कोलकाता का scene क्या है?"
नीना ने थोड़ी उदास मुस्कान के साथ जवाब दिया, "कोलकाता... बागान बाड़ी… अजीब है सब!”
उसकी आँखों में कुछ छिपा हुआ था, एक अनकहा डर, एक असमंजस, जो अंजली की अनुभवी नज़र से छिपा नहीं रहा।
अंजली ने उसकी बातों में रुचि लेते हुए कहा, "अजीब? जो बताया उसके अलावा भी और कुछ हुआ वहाँ?"
नीना (धीरे-धीरे बात करती हुई): "वहाँ कुछ ऐसा था जो मुझे लगातार परेशान करता रहा। रातों में मानो सामने कोई स्क्रीन चलती। हमेशा किसी के साथ और फुसफुसाने की आवाज़ें आती थीं... और painting..."
अंजली और सतीश उसके मुँह से निकलती हर बात पर गौर करते हुए, उसकी शक़्ल की तरफ़ देखते रहे।
नीना (गहरी सांस लेते हुए): "वो painting मानों मुझे देख रही हो। सारा time!" कहते-कहते नीना रुकी, क्योंकि उसे याद आया कि जब उसने सतीश को वीडियो कॉल के दौरान सब दिखाया था, तब सतीश को कुछ भी नज़र नहीं आया था और वो उसे पागल कहने लगा था। नीना ने थोड़ा रुककर, खुद पर काबू रखते हुए आगे कहा,
नीना: "लेकिन हो सकता है कि यह सब सिर्फ़ मेरा भ्रम हो। शायद मेरी mental state की वजह से मैं ऐसा महसूस कर रही थी।"
नीना खामोश हो गई। उसे लगा कि सतीश और अंजली उसके बहुत अच्छे दोस्त हैं, लेकिन फिर भी, अगर सतीश को painting के बाल हिलते और घूरती आँखें नज़र नहीं आईं, तो हो सकता है कि उसे ये नीना का वहम लगे।
नीना: “मुझे तो यह भी नहीं पता कि सच क्या है।”
अंजली ने नीना का हाथ थामा। नीना खुद को बार-बार समझाने की कोशिश कर रही थी कि यह सब उसका वहम है, लेकिन फिर भी कहीं न कहीं उसके दिल के किसी कोने में एक डर छिपा हुआ था, जिसे वह नज़रअंदाज़ नहीं कर पा रही थी।
अंजली ने उसकी आँखों में झांकते हुए कहा,
अंजलि: "We believe you नीना! तुम्हें किसी से बात करनी चाहिए। शायद कोई प्रोफेशनल इस मामले में मदद कर सके। तुम्हारी हेल्थ ज़रूरी है। अगर तुम चाहो, तो मैं हमेशा यहाँ हूँ तुम्हारे लिए।"
नीना ने एक धीमी मुस्कान के साथ हामी में सिर हिलाया।
सतीश दवाई लिए नीना के सर पर खड़ा था।
वह बोला: "चलो, madam, मुँह खोलिए और दवाई खाइए..." वह उसकी हर छोटी-बड़ी बात का ख़्याल रख रहा था।
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देखते-देखते दिन गुज़रा। अगले दिन नीना अपने airpods लगाए गाने सुन रही थी, और सतीश living room रूम में अपने office के काम कर रहा था। नीना को music में सुकून मिलता था; जब उसका मन बेचैन होता, वह गाने सुनती और उसे राहत मिलती थी। कोलकाता से लौटने के बाद, वह अपनी सामान्य दिनचर्या में लौटने की कोशिश कर रही थी, लेकिन भीतर एक अजीब-सी बेचैनी अब भी बनी हुई थी। उसे लगता था कि वह कुछ पीछे छोड़ आई है, कुछ ऐसा जो अभी भी उसे पुकार रहा है।
आज उसने सोचा कि शायद पंचम दा के संगीत में डूबकर उसे थोड़ी शांति मिले। उसने अपनी पसंदीदा गुलज़ार-पंचम playlist चालू की और आँखें बंद करके लेट गई। जैसे ही गीतों की मधुर धुनों ने उसके कानों को छुआ, उसके भीतर की घबराहट शांत होने लगी। गुलज़ार के शब्द और पंचम की धुन उसे एक अलग ही दुनिया में ले जाते थे—एक ऐसी दुनिया, जहाँ उसके मन की उथल-पुथल कुछ पल के लिए थम जाती थी। और आज भी उसे सुकून और राहत मिली।
वह गीतों की लय में बहती जा रही थी, तभी उसकी प्लेलिस्ट में ‘नाम गुम जाएगा’ गाना शुरू हुआ। वह साथ में गुनगुनाने लगी। जैसे ही लाइन आई, “मेरी आवाज़ ही पहचान है, 'गर याद रहे,” अचानक, गाना बीच में रुक गया, बस दो सेकंड के लिए। उसी पल, उसने कुछ और सुना, एक बेहद परिचित, पर भयावह आवाज़—“आमके भूल गेली?” यह शब्द बांगला में थे, जिसका मतलब था, "क्या तुम मुझे भूल गई हो?" नीना ने तुरंत अपनी आँखें खोल दीं। उसका दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा, और उसके हाथ-पैर ठंडे पड़ गए। उसे यकीन हो गया था कि यह आवाज़ वसुंधरा की थी।
यह सब कुछ इतनी जल्दी हुआ था कि नीना को खुद भी समझने में वक्त लगा। वह घबराकर इधर-उधर देखने लगी, लेकिन कमरे में कोई और नहीं था। गाना अब भी बज रहा था, मानो कुछ हुआ ही न हो। लेकिन नीना जानती थी कि उसने कुछ सुना था—वो थी वसुंधरा की आवाज़। उस आवाज़ में एक उदासी, एक दर्द था, और सबसे ज्यादा—एक सवाल।
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