सुबह हो चुकी थी। नीना थकी हुई सी बिस्तर पर लेटी थी। वह काफी कम​​ज़ोर ​​महसूस कर रही थी। उसकी हर हड्डी जैसे टूट रही हो और शरीर भारी होने लगा हो, मानो उसकी सारी energy कोई सोख चुका हो। उठते ही उसकी नज़र सबसे पहले कमरे के आईने पर पड़ी, और उसने महसूस किया कि उसने खुद को इस तरह कभी नहीं देखा था। उसका चेहरा पीला पड़ गया था, गाल धँसे हुए थे, और आँखों के नीचे काले घेरे उसकी थकान की गवाही दे रहे थे।​ 


"यह मैं हूँ?" नीना ने मन ही मन सोचा। 

वह धीरे-धीरे आईने के करीब गई, मानो खुद को पहचानने की कोशिश कर रही हो। उसने ध्यान से अपने चेहरे पर हाथ फेरा, मानो अपने आप को यक़ीन दिला ​​रही हो ​​कि यह ​​सिर्फ़​​ कोई सपना नहीं है। उसे अपनी skin अब बेजान महसूस हो रही थी।​ 

​​ 
उसने ध्यान से देखा, उसके right hand पर एक अजीब निशान है। ​ 

​​नीना (खुद से बात करते हुए): ​​“यह क्या है? यह पहले तो नहीं था।”​​ एक हल्का लाल निशान, मानो जलने से बना हो। वह चौंक गई और अपनी उँगलियों से निशान को छूने लगी। उसे हल्की सी जलन महसूस हुई। ​ 

​​नीना: ​​"यह कैसे हुआ?"​​ उसने खुद से सवाल किया, पर कोई जवाब नहीं मिला। दिमाग पर ​​ज़ोर​​ डालने पर भी याद नहीं आया कि यह चोट कब लगी थी।​ 

​​वह बिस्तर के किनारे बैठकर उस निशान को बार-बार देखने लगी। यह केवल एक साधारण जलने का निशान नहीं लग रहा था, मानो किसी ने उसकी skin पर कोई sign छोड़ दिया हो, जैसे कोई छिपा हुआ message, जिसे वह समझ नहीं पा रही थी।​ 

​​उसके कमरे के बाहर से हल्की सी खड़खड़ाहट की आवाज़ आई और नीना के विचारों का सिलसिला टूट गया। उसने देखा कि वही लड़की, जो उसकी देखभाल के लिए appoint की गई थी, चाय और नाश्ता कमरे में लेकर आई और नीना की तरफ़ देखने लगी, मानो उसने भी कुछ अजीब देख लिया हो। ​ 

​​नीना को आजकल सच और भ्रम के बीच का अंतर समझ में आना बंद हो चुका था। उसने सोचा, "क्यों न इससे पूछा जाए कि क्या इसे भी मेरी त्वचा पर वही सब दिख रहा है।" 
​ 

​​नीना ने उस लड़की को अपना निशान दिखाते हुए पूछा, ​​"क्या आपको भी यह दिखाई दे रहा है?" 
​​उस लड़की ने खामोशी से सिर हिलाकर हाँ में जवाब दे दिया।​ 

​​नीना ने आगे पूछा, ​​"क्या आपको कुछ पता है, ऐसा क्यों हो रहा है?"​​ 
इस बार उस लड़की ने ना में सिर हिला दिया। 
वह लड़की ज्यादा बात नहीं कर रही थी, मानो उसे अपने काम से काम रखने की सख़्त हिदायत दी गई हो। ​ 

​​उसने कमरे में ही लगे सोफे के सामने वाली टेबल पर नाश्ता रखते हुए नीना से कहने लगी​ - ​Madam, breakfast कर लीजिए। लेकिन नाश्ता रखकर जैसे ही वह पलटी, वह डर गई क्योंकि नीना उसके बेहद करीब खड़ी होकर उस नाश्ते को देखते हुए बेहद डरावने तरीके से मुस्कुरा रही थी। उस लड़की के मुंह में चीख़ आकर अटक गई।​ 

​​सामने लुची, शादा आलू​​र तौरकारी, बेगुन भाजा और मिष्टी ​​देखकर उसकी जीभ अजीब तरीके से लपलपाने लगी। 
वह लड़की अपनी आँखें नीचे किए, आँखों के कोरों से उसे देख रही थी, लेकिन कुछ कह नहीं रही थी। अगले ही पल वह नीना को नाश्ते के सामने बैठी देख सकती थी, जो उसकी खुशबू लेते हुए अजीब​​-सी ख़ुशी ​​महसूस कर रही थी।​ 

​​ 
लुची का पहला कौर तोड़कर सब्ज़ी में डुबोकर मुंह में रखते ही उसने आँखें बंद कर लीं और उसका स्वाद इस तरह लेने लगी, मानो उसने यह नाश्ता अरसे बाद खाया हो।​ 

**  

​​अगले दो दिनों तक नीना ने ​painting​ को आगे नहीं बढ़ाया। वह खाना खाती और हवेली में घूमती रहती। वह नियमित रूप से खाना खा रही थी, फिर भी उसकी हड्डियाँ दिखने लगी थीं, मानो उसका शरीर धीरे-धीरे energy खो रहा हो। इन एक-दो दिनों में उसके शरीर में आए बदलाव वाकई चिंताजनक थे।​ 

​​उसे लगने लगा मानो उसका शरीर उसका नहीं रहा, कोई और उस पर काबू पा चुका है। इन दो दिनों में जब भी वह अपने शरीर को ध्यान से देखती, उसे नई-नई जगहों पर नए तरीके के निशान मिलते। शुरुआत में उसने इन्हें नज़रअंदाज़ करने की कोशिश की, यह सोचकर कि यह उसकी थकान या कोई स्किन इन्फेक्शन होगा। लेकिन जब उसने इन निशानों की तुलना वसुंधरा के गाउन पर पेंट की गई बनावट से की, तो उसे एक अजीब सा डर महसूस हुआ। निशान बिल्कुल वैसे ही थे। छोटे, पर इतने स्पष्ट कि इन्हें किसी भ्रम का हिस्सा नहीं कहा जा सकता था।​ 

​​आज कल वह वसुंधरा के कमरे में जाकर न जाने क्या ढूँढती रहती, उसका यह व्यवहार हवेली के ​staff​ ने भी देखा। उन्होंने ध्यान दिया कि नीना पिछले कुछ दिनों से एक अलग ही दुनिया में खोई हुई है। वह अक्सर वसुंधरा के कमरे की ओर जाती, वहाँ घंटों बिताती और कभी-कभी उसकी आँखों में चिंता और बेचैनी की छाया भी दिखाई देती। लेकिन वह ढूँढती क्या रहती थी?​ 

​​सत्यजीत इस दौरान ​business trip​ पर थे। तीन दिनों के बाद, जब वह वापस लौटे, तो उन्होंने अपनी पहली नज़र में ही हवेली के वातावरण में बदलाव महसूस किया। उन्हें कुछ बदलने का एहसास हो रहा था। उन्होंने सोचा कि portrait के काम को देख लिया जाए। वे ​studio​ में पहुंचे तो उन्होंने देखा कि portrait का काम वहीं रुका हुआ है, जहाँ तीन दिन पहले था। 
यह देख कर उन्हें गुस्सा आना स्वाभाविक था, क्योंकि उन्होंने नीना की हालत देखी नहीं थी। 
​ 

​​"आखिर तीन दिनों से इस ​painting​ में कोई काम क्यों नहीं किया गया?" यह सवाल उनकी आँखों में साफ़-साफ़ देखा जा सकता था।​ 

​​उन्होंने शंभू को बुलाया और उसे नीना के पास जाकर यह संदेश भिजवाने के लिए कहा​​ की आज रात को dinner  करेंगे।​​ यह सुनकर शंभू ने सहमति में सिर हिलाया और जल्दी से नीना की ओर बढ़ गया। 
​ 

​​डिनर का संदेश पाकर नीना ने सोचा कि शायद यह एक अवसर है जहाँ वह अपनी चिंता और बेचैनी को साझा कर सके। 

​​नीना dinner के तैयार होती है, ​​लेकिन उसके दिल में एक अजीब सा संदेह था। क्या सत्यजीत उस पर गुस्सा करेंगे? जब वह ​dinner​ के लिए सत्यजीत के पास पहुँची, तो उसके मन में हलचल चल रही थी। वह जानती थी कि आज की शाम में बहुत कुछ तय होने वाला है। 
​dinner table ​पर पहुँचकर जब नीना ने सत्यजीत को देखा, उसकी आँखों में गहरी भावनाएँ थीं—गुस्सा, चिंता, और आशा का मिश्रण। उन्होंने एक-दूसरे की आँखों में देखा। 
वास्तव में, उस रात का ​dinner ​सिर्फ़​​ खाने के लिए नहीं था; portrait की जानकारी के लिए था।​ 

​​सत्यजीत की नज़र अभी तक उसके शरीर के जख्मों पर नहीं पड़ी थी। वह उससे काफी दूर, सामने वाली कुर्सी पर बैठी थी। 
शंभू और ​staff​ के लोग खाना सर्व कर रहे थे। और सत्यजीत ने नीना पर अपने सवालों की ​firing​ शुरू कर दी। ​ 


सत्यजीत: "पिछले 3 दिनों से portrait का काम रुका हुआ क्यों है?" 
नीना: "मैं बना नहीं पा रही हूँ।" 
सत्यजीत: "क्या मतलब है आपका? आपका मन नहीं होगा तो आप एक साल उसे नहीं बनाएंगी?" 
नीना: "जी.. वो ..”​​ नीना इससे ज्यादा कुछ नहीं कह पाई, लेकिन सत्यजीत की आँखों में अंगारे दहक उठे।​​ 
सत्यजीत: "एक बात कान खोलकर सुन लीजिए। किसी भी काम को करने की एक timeline होती है और आपको वो काम उसी के भीतर करना होता है। ना कि ​​फ़ालतू​​ के excuses बना कर काम को टालते रहो। आपको काम पूरा करना है और जितनी जल्दी हो सके करना है। सम​​झीं​​ आप?" 
​​नीना कुछ कहती, तभी उसे किसी बच्चे के रोने की आवाज़ आई। ​ 

​​नीना: "आपने आवाज़ सुनी?"​​ 
सत्यजीत का गुस्सा सातवें आसमान पर था क्योंकि वह नीना से कुछ और बात कर रहा था और वह बेफ़ालतू की बातों में उलझी थी। उसने गुस्से में खाने की थाली में चम्मच रखते हुए कहा, ​​सत्यजीत: "आपको मैं, मेरा वक्त या मेरी बातें फ़ालतू लगती हैं? आपको काम जल्दी करने को कहा जा रहा है और आप?" 
लेकिन नीना ने दोबारा कहा, "आपने आवाज़ सुनी?"​​ कहते हुए नीना वहाँ से बाहर दौड़ी।​ 

​​जैसे ही वह बाहर निकली, उस बच्चे की आवाज़ तेज होती गई। सत्यजीत और बाकी के लोग भी उसका पीछा करते हुए उसके पास पहुंचे, लेकिन उन्हें कोई आवाज़ नहीं सुनाई दी।​ 

​​हवेली के कोने में बने एक कमरे से उसे वह आवाज़ आती महसूस हुई, वह उस तरफ़ लपकी। 
नीना को वह आवाज़ साफ़ सुनाई देने लगी। यह एक छोटे बच्चे का रोना था—करुण, पीड़ा से भरी हुई आवाज़ थी।​ 

​​ 
नीना रुक गई। उसके कदम जैसे जम गए हों। उसने एक आस लिए वह दरवाजा खोला, लेकिन कमरे में दीवारों पर लगी पुरानी तस्वीरें और furniture के सिवाय कुछ नहीं था। लेकिन उस बच्चे की रोने की आवाज़ लगातार बढ़ती जा रही थी। नीना के शरीर में अजीब सी ठंडक दौड़ गई। उसकी साँसें भारी होने लगीं। उसे लग रहा था कि आवाज़ उसके आस-पास ही कहीं से आ रही है, लेकिन वह समझ नहीं पा रही थी कि यह कहाँ से आ रही है। 
उसने हिम्मत जुटाकर आगे बढ़ने की कोशिश की, लेकिन हर कदम के साथ वह रोने की आवाज़ और गहरी, और painful होती जा रही थी। उसकी धड़कनें तेज हो गईं।​ 

​​कमरे के एक कोने में एक पुरानी लकड़ी की अलमारी थी, जो अब तक उसकी नज़र से छिपी हुई थी। नीना को लगा कि शायद आवाज़ वहीं से आ रही हो। उसने काँपते हुए कदमों से उस अलमारी के पास जाने का फ़ैसला किया। जैसे-जैसे वह पास पहुँचती गई, रोने की आवाज़ और स्पष्ट होती गई। उसकी उँगलियाँ अब ठंड से सुन्न हो रही थीं, मगर उसने डर पर काबू पाया और अलमारी का दरवाज़ा धीरे से खोला। 
जैसे ही उसने अलमारी खोली, रोने की आवाज़ अचानक से थम गई। 
अलमारी के भीतर कुछ नहीं था, सिर्फ़ पुराने कपड़ों और किताबों का ढेर। पर नीना का दिल जैसे उसके गले में अटक गया। नीना पीछे हट गई, उसकी आँखें भय से चौड़ी हो गईं। 
सत्यजीत यह सब देखकर काफ़ी विचलित हो चुके थे। जब नीना उनके करीब आकर उन्हें बताने लगी कि उसे एक बच्चे के रोने की आवाज़ सुनाई दे रही थी, तब वह उसके शरीर पर आए निशानों और उसकी आँखों को आसानी से देख सकते थे। उसका चेहरा और आँखें मानो कुछ कह रही थीं। नीना को चक्कर आने लगे, और उसे कमरे में ले जाया गया।​ 

** 
अगली सुबह नीना जागी। आज उसकी हालत वैसी ही थी। नीना ने आज खुद को देखते हुए फ़ैसला किया कि उसे कुछ समय के लिए इस माहौल से दूर जाना होगा। उसने सत्यजीत से बात करने का साहस जुटाया और उसके पास पहुँच गई।​ 

 
नीना: "मुझे लगता है कि मुझे थोड़े समय के लिए दिल्ली लौटना चाहिए। मैं बहुत थकान महसूस कर रही हूँ और मुझे आराम की सख्त ज़रूरत है। I am not able to work properly. कुछ medical check ups कराना चाहती हूँ। खुद को फिर से ठीक करने की ज़रूरत महसूस हो रही है।"​ 

​​सत्यजीत: "वैसे, चेकअप यहाँ भी हो सकता है। फिर भी, तुम्हें जो चाहिए, वो कर सकती हो। लेकिन... painting का ध्यान रखना। उसका जल्दी पूरा होना बहुत ज़रूरी है।” ​​सत्यजीत ने उसकी बात सुनकर गहरी सांस ली और सहमत हो गया।​ 

​​यह सुनकर नीना के दिल में एक हलचल हुई। सत्यजीत की आवाज़ में कुछ था जिसने उसे और सतर्क कर दिया। नीना को सत्यजीत की सहमति में भी कुछ अजीब सा महसूस हुआ।​ 

​​क्या वह वास्तव में उसकी चिंता कर रहा था, या फिर कुछ और योजना बना रहा था? यह सवाल उसके दिमाग में गूंजता रहा।​ 

​​सत्यजीत ने उसकी वापसी की ticket करवा दी। 
 
नीना ने जाने के लिए अपने bag pack करना शुरू किया। जाने से पहले वह studio में गई और जब वह वापस निकल रही थी, अचानक उसे महसूस हुआ कि कमरे का माहौल बदल गया है। उसे वसुंधरा की painting की ओर खिंचाव महसूस हुआ। उसने मुड़कर painting की ओर देखा। वसुंधरा की आँखें... उसे देख रही थीं। वो आँखें अचानक से काँपने लगीं, होंठ हिलने लगे, और उसे अपने कानों में एक धीमी फुसफुसाहट सुनाई दी, "मत जाओ ना... रुक जाओ। 
​​वसुंधरा: “जेयो न!”​  

​​नीना का दिल धड़क उठा उसकी करुण पुकार से। 
​​क्या नाइन वापस दिल्ली के लिए रावण होगी?  
या फिर वसुंधरा की गुहार उसको यहीं रोक लेगी?

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