नीना की आँखें धीरे-धीरे खुली, और वह अंगड़ाई लेते हुए बिस्तर पर पलटी खाने लगी। उसकी नज़र पास वाली दीवार पर लगी अपनी paintings पर गई। ये paintings उसके लिए सिर्फ़ कला नहीं हैं, बल्कि उस यात्रा का प्रतीक हैं, जिसमें उसने अपनी जिंदगी के सबसे खूबसूरत और सबसे दर्दनाक पल बिताए हैं। आज सुबह, वह उन paintings में खोई हुई है, जैसे वे उसे अपने अंदर समेट रही हों। फिर, अंगड़ाई लेते हुए उसने आवाज़ लगाई….
नीना: “सतीश, कॉफी तैयार है?”
सतीश: “हाँ, बस एक मिनट!”
सतीश ने जवाब दिया। उसकी आवाज़ में एक जान थी, और नीना को इस बात का एहसास हुआ कि वह अपने दोस्तों के बीच कितनी safe है।
नीना ने सोचा कि कैसे सतीश ने उसकी देखभाल के लिए उसके साथ रहने का फैसला किया। वह उसका सच्चा दोस्त है, जो हमेशा उसकी भलाई की परवाह करता है।
सतीश (तड़कते-भड़कते अंदाज़ में): “चलिये रानी साहिबा, आपकी कॉफी तैयार है। इसके साथ spicy paneer corn sandwich भी है।”
नीना: “Wow! Yumm!” कहते हुए नीना बेड पर ही उछल पड़ी और बिस्तर से बाहर निकली। वह पूरी तरह से तैयार होकर लिविंग रूम में पहुंची, जहाँ सतीश ने कॉफी और सैंडविच टेबल पर सजाकर रखा था।
वह कुर्सी खिसका कर उसे बैठने का इशारा करते बोला, “तुम्हारे लिए खास। तुम्हें नहीं लगता, तुमने मुझे अपना शंभू बना लिया है?”
“बिल्कुल!” नीना ने मुस्कुराते हुए कहा। सतीश की बात सुनकर उसे हल्की-सी हंसी आई। सतीश हमेशा उसे हंसाने में सफल रहता था, और यही तो उसकी खासियत थी।
नीना ने sandwich का पहला टुकड़ा चखा, और उसका मुंह स्वाद से भर गया।
नीना : “Hmm, tasty है यार, कितना बढ़िया बनाता है... तू जॉब छोड़कर मेरा permanent शंभू क्यों नहीं बन जाता,”
सतीश ने मुस्कुराते हुए कहा, “तेरे लिए कुछ भी...”
नीना: “ये सुनकर तो मुझे और भी खुशी हो रही है!”
नीना को लगा जैसे उसकी ज़िंदगी में एक नई रौनक लौट आई है। पिछले कुछ हफ्तों से जो मानसिक दबाव और घबराहट उसने झेली थी, अब वो धीरे-धीरे कम हो रही थी।
कॉफी का पहला घूंट लेते ही नीना ने महसूस किया कि मुश्किल समय में अच्छे दोस्तों का होना कितना ज़रूरी है।
सतीश: “अब तो नींद अच्छे से आ रही है ना? Ketchup?”
नीना: “Thanks…. हाँ, दवाइयाँ काम कर रही हैं...”
सतीश: “Hmm, good... लेकिन मुझे डर है कि ठीक होते ही तू मुझे फिर से बाहर निकाल देगी?”
नीना: “हट, पागल है क्या?”
और दोनों की ना थमने वाली चटर-पटर शुरू हो गई।
वो चिट-चैट कर ही रहे थे कि अंजली आई। उसने देखा कि सतीश और नीना कॉफी की चुस्कियों में खोए हैं।
सतीश उसे गेट खोलकर अंदर लाया।
सतीश: “देखो नीना, हमारे सैंडविच और कॉफी की खुशबू पहुँच गई।”
अंजली: “दोनों अकेले-अकेले खा रहे हो, मुझे ही बुला लिया करो, यहीं बगल में ही रहती हूँ।”
नीना: “आजा, मुझे लगा तू ऑफिस चली गई होगी।”
अंजली ने सैंडविच उठाया और बोली, “तुम ठीक हो?”
नीना (थोड़े खोये हुए और थोड़ी सी चिंता के साथ): “मुझे नहीं पता, अंजली। लेकिन लगता तो है कि सब ठीक है,”
अंजली: “मुझे पता है कि तू क्या महसूस कर रही है। क्या तू इस बारे में किसी से बात करना चाहती है?”
नीना: “नहीं, मैं इसे अपने ही तरीके से संभाल सकती हूँ,”
नीना की आवाज़ में थोड़ी स्थिरता थी, लेकिन अंजली को उसकी आँखों में छिपे डर का एहसास हो रहा था।
अंजलि ने मोबाइल दिखाते हुए कहा “फिर भी देखो... ये है डॉ. रेखा। वो एक well-known psychic और occult consultant हैं। इन्होंने कई लोगों की मदद की है। इनके बारे में बहुत से articles भी हैं,” अंजली ने सुझाव दिया।
नीना ने एक पल के लिए सोचा, लेकिन फिर उसने सिर हिलाते हुए कहा,
“नहीं, अंजली। मुझे किसी की जरूरत नहीं है।”
अंजली ने उसे गंभीरता से देखा और समझाया,
“नीना, देख, कभी-कभी हमें professionals की मदद की ज़रूरत होती है। और तू अकेली नहीं है, मैं हमेशा तेरे साथ हूँ। अगर तू चाहे, तो मैं तेरे साथ डॉ. रेखा के पास चलने के लिए तैयार हूँ।”
सतीश उनकी बातें खामोशी से सुन रहा था। वह चाहता था कि इसका फैसला खुद नीना करे।नीना, बस, थोड़ी-से मोहलत मांग रही थी। उसने अंजलि और सतीश के प्रति अपना आभार प्रकट करते हुए कहा कि वह सब कुछ खुद संभालना चाहती है।
सच्चे दोस्त आखिर एक आशीर्वाद की तरह होते हैं। जीवन में कुछ भी ठीक से न चले, पर सच्चा दोस्त किसी की ज़िन्दगी सुन्दर, और सशक्त करती है. अंजलि भी उसी category में आती थी। उसने नीना को याद दिलाया कि वह कभी भी, किसी भी भी चीज़ के लिए उसके साथ हमेशा है, और हमेशा रहेगी।
**
नीना धीरे-धीरे ठीक हो रही थी। क्या सच में? या ये महज़ एक दिखावा था? नीना जिन रंगों से बंध चुकी थी, वो इतनी आसानी से उसका पीछा छोड़ने वाले नहीं थे।
नीना ने कई बार अपने आप को समझाने की कोशिश की कि वह अब बेहतर है, लेकिन चौधरी बागान बाड़ी में बिताए गए पल और वसुंधरा की उपस्थिति ने उसे चैन से बैठने नहीं दिया। जब नीना वापस आ रही थी, तब उसका करुण आवाज़ में उसे रोकना, आज भी नीना का दिल कंपा जाता है।
नीना ने washroom जाते हुए सतीश की तरफ़ देखा। सतीश अपने कामों में उलझा था।
वह गेट खोलकर बेसिन के सामने लगे काँच में खुद को देख रही थी, तभी उसे अपने आस-पास किसी बच्चे के रोने की आवाज़ सुनाई दी। नीना ने ज़ोर से अपने कान भींच लिए। यह वही आवाज़ थी, जो उसे कोलकाता में भी सुनाई दी थी, और वह बेसुध हो गई थी। वह वहाँ से बाहर जा रही थी कि उसने देखा, washroom का दरवाजा खोलते ही वह किसी घने कोहरे वाले जंगल में आ गई है। यह कोई सपना नहीं था; नीना अभी अच्छी-खासी खुद से चलकर यहाँ आई थी।
उसने देखा अंधेरे में कुछ दूरी पर ज़मीन पर एक बच्चा सफेद कपड़ों में है। उसके हिलते हुए हाथ-पैर इस बात की ओर इशारा कर रहे थे कि उसकी उम्र कुछ महीनों की होगी। इतना छोटा बच्चा इस घने अंधेरे में क्या कर रहा है, यह सोचते हुए वह उसकी तरफ़ बड़ी कि एक तेज़ सफेद कोहरे का झोंका आया और देखते ही देखते उस बच्चे को अपने अंदर समेट कर ले गया।
नीना ज़ोर से चीखी, “बचाओ, कोई उस बच्चे को...”
अचानक बाहर से सतीश के ज़ोर से दरवाजा बजाने की वजह से वह चौकी।
सतीश: “नीना, दरवाज़ा खोल! क्यों चीख रही है?”
नीना ने खुद को संभालते हुए यह दिखाते हुए बाहर निकली कि वह बिलकुल ठीक है।
नीना: “डर गया ना? कैसी लगी मेरी एक्टिंग?”
सतीश: “पागल है तू? चल, निकल बाहर।”
नीना वहाँ से बाहर आई और अपने दिमाग में 100 सवालों की एक इमारत खड़ी कर ली।
आखिर वो बच्चा कौन है? आखिर वसुंधरा उसे वापस क्यों बुला रही है? आखिर सत्यजीत को पेंटिंग पूरा करवाने की इतनी जल्दी क्या है? इतने सारे 'आखिर,' लेकिन जवाब एक का भी नहीं।
वह बैठे हुए सोच ही रही थी कि उसकी स्क्रीन पर एक मेसेज आया। यह सत्यजीत का मेसेज था: “नीना, उम्मीद है कि अब आप बेहतर महसूस कर रही होंगी। आप वापस कब आ रही हैं? मेरी वसुंधरा को पूरा करने..."
इस मेसेज को देखते ही नीना के अंदर यह भावना जागी कि उसे अभी दौड़कर कोलकाता चले जाना चाहिए और सारे 'आखिर' वाले सवालों के जवाब लेकर आना चाहिए।
क्या ये विचार नीना के अपने थे, या उसके अंदर कोई समाया हुआ था जो अभी खामोश था, और ये उसके ही विचार थे? उसने सतीश की तरफ़ देखा, जो कि लैपटॉप पर अपनी उँगलियाँ चला रहा था।
नीना: “सतीश, मुझे portrait पूरा करने जाना होगा।”
सतीश: “नहीं, बिलकुल नहीं।”
नीना: “देख, मैंने आज तक कोई काम अधूरा नहीं छोड़ा, तो ये भी नहीं छोड़ना चाहती। प्लीज...”
सतीश: “हाँ, पूछ तो ऐसे रही है जैसे मैं मना करूँगा और तू मान जाएगी। अगर तूने सोच लिया है और मैं मना करूँगा, तो तू बिना बताए चली जाएगी।”
नीना: “इस बार तू मना करेगा तो नहीं जाऊँगी, लेकिन अंदर ही अंदर घुटती रहूँगी।”
सतीश उसकी हालत समझ सकता था। वह उसे कभी किसी काम को करने से मना नहीं करता था।
सतीश: “ठीक है, लेकिन अगर थोड़ा भी बीमार महसूस करेगी, तो तुरंत वापस आ जाएगी?”
नीना: “हाँ, पक्का। देख, इस बार भी तो आई थी ना।”
नीना ने लौटने का मन बना लिया था और सतीश को समझा भी दिया था। अब बारी थी मिस्टर चौधरी को जवाब देने की। उसने की-पैड पर उँगलियाँ चलाईं और आने की सहमति दे दी।
**
अगले दिन नीना और अंजली नीना के apartment के कमरे में बैठी हुई थीं। सतीश किसी काम से ऑफिस गया हुआ था। नीना कोलकाता लौटने की तैयारी कर रही थी, लेकिन उस शहर से जुड़े उसके अनुभव और यादें उसे परेशान कर रही थीं। उसने सोचा कि शायद music उसे कुछ सुकून दे सके।
नीना ने पंचम दा के गाने सुनने की आदत सी बना ली थी। उसने अपने मन की बेचैनी को कम करने के लिए music का सहारा लिया था और अब उसे इसकी आदत लग गई थी।
इसलिए उसने अपना पसंदीदा गाना "फिर वही रात है" चालू किया।
जैसे ही गाना शुरू हुआ, नीना ने आँखें बंद कर लीं और गीत की लय में खो गई। लेकिन अगले ही पल, गाने की धुन के बीच, उसे एक हल्की फुसफुसाहट सुनाई दी। जैसे कोई उसे बुला रहा हो, “आए! फिरे आए!” यह शब्द उसके दिल को झकझोर गए। “आजा, वापस आजा।”
नीना की सांसें थम गईं। वह चौंकी और चारों ओर देखने लगी, लेकिन कमरे में केवल वह और अंजली थीं। उसने तुरंत अंजली से पूछा, "क्या तुमने कुछ सुना?"
अंजली ने बिना किसी हिचकिचाहट के कहा, "हाँ, गाना चल रहा है..."
नीना: "कोई आवाज़ सुनी गाने के बीच?"
अंजली: "नहीं, मुझे कुछ नहीं सुनाई दिया। You, OK?" उसकी आँखों में चिंता थी, लेकिन नीना जानती थी कि उसने जो सुना, वह साफ-साफ था। वह फुसफुसाहट उसे विचलित कर रही थी, जैसे कोई पुरानी याद फिर से जीवित हो गई हो।
उसे लगा, शायद वसुंधरा की आवाज़ उसे सिर्फ़ याद दिला रही थी कि उसे अपनी कला को पूरा करना है। “आए! फिरे आए!" यह सिर्फ़ एक बुलावा नहीं, बल्कि एक नई शुरुआत का संकेत था।
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