जब सुहानी कमरे से बाहर निकली थी, आँसुओं की परछाइयों को पीछे छोड़ती हुई… आरव के भीतर जैसे कुछ टूट गया था। उसका दिल, जो अब तक दिमाग की कैद में था, अचानक बेड़ियां तोड़ कर चीख उठा—"जाओ मत, सुहानी!"
वो खुद को रोक न सका। तेज कदमों से वो कमरे से बाहर निकला, उसकी आँखें बस एक झलक पाना चाहती थीं—सुहानी की, उसके बिखरते वजूद की, उसकी खामोश चीखों की। मगर तभी… सामने से मीरा को आता देख उसके कदम थम गए।
दिल सुहानी की तरफ भागना चाहता था… पर दिमाग मीरा की ओर खिंचने लगा। उसने खुद को समझाया… जैसे किसी मजबूरी का शपथ ले रहा हो। आरव के चेहरे पर कई भाव एक साथ दौड़ने लगे—पछतावा, उलझन, अपराधबोध… और दर्द। मगर दिल… सुहानी की खाली परछाई को अब भी देख रहा था।
“मीरा… कहाँ थी तुम?” उसकी आवाज़ में एक अजीब सी हिचक, एक भारीपन था।
मीरा भी थोड़ी संकोच में थी। वो जानती थी, आरव की नजरें किसी और को ढूंढ रही थीं। मगर फिर भी उसने मुस्कराने की कोशिश की।
“मैं… अपने कमरे में थी… तुम्हारे पास ही आ रही थी, तुम्हें देखने की तुम्हरी तबियत ठीक है या नहीं।” उसकी आवाज़ भी बेजान सी थी, जैसे वो खुद किसी डर से भाग कर आरव की शरण में आ रही हो।
आरव ने सिर हल्के से हिलाया। वो अब पूरी तरह दिमाग के अधीन था—वही दिमाग जो उसे मीरा की तकलीफ याद दिला रहा था, और सुहानी की सच्चाई को झूठ में बदल रहा था। मगर उसके सीने के भीतर धड़कते दिल को… कोई आदेश सुनाई नहीं दे रहा था।
वो अब भी सुहानी को महसूस कर रहा था—उसका रोना, उसकी खामोशी, और वो तड़प… जो बस उसी के लिए थी। अब मीरा और आरव दोनों ही एक-दूसरे के सामने खड़े थे, मगर आँखें जैसे कहीं और भटक रही थीं।
आरव की नजरें मीरा के चेहरे से बार-बार फिसल रही थीं। वो उसकी आँखों में नहीं झाँक पा रहा था। मीरा की आँखें भी अब जमीन को ताक रही थीं, जैसे वो पहले से ही कुछ महसूस कर चुकी हो, मगर पूछने का साहस नहीं जुटा पा रही थी।
आरव के मन में हलचल मची थी…“अगर मीरा को पता चल गया कि सुहानी रात मेरे कमरे में थी…वो मुझे कभी माफ़ नहीं करेगी।”
वो मीरा की नज़रों से बच रहा था, जैसे कोई बच्चा गलती करने के बाद अपनी माँ से नज़रें नहीं मिला पाता। गले में फँसी बात बाहर नहीं आ पा रही थी, और दिल धड़कता जा रहा था—किसी तूफान की आहट की तरह।
मीरा, जो खुद बहुत कुछ छुपा रही थी… फिर भी चुप थी। शायद वो आरव के झूठ को सच बनने देना चाहती थी। या शायद वो टूट चुकी थी… लेकिन अपने टूटने की आवाज़ को उसने भीतर ही कहीं दफ़न कर दिया था। आरव के अंदर गुनाह का बोझ था, और मीरा के भीतर… अनकहे राज़।
दोनों ने एक-दूसरे से नज़रें चुराईं…और वो चुप्पी… जो उनके बीच खड़ी थी, वो अब हर शब्द से बड़ी हो चुकी थी। मगर आरव नहीं जानता था कि मीरा तो सब जानती थी। उसे ये भी पता था कि सुहानी रात उस के कमरे में थी। पर वो फिर भी नज़रे चुरा रही थी… उस डर से नहीं कि आरव उस पर सवाल उठाएगा, बल्कि उस डर से… कि अगर आरव ने पूछ ही लिया, और वो जवाब देने पर मजबूर हो गई—तो उसका सालों से संजोया हर झूठ चूर-चूर हो जाएगा, एक बार फिर से।
मीरा की नज़रों में आँसू थे, मगर वो उन्हें पलकों के पीछे ही रोक रही थी। आरव अगर पूछता, तो उसे बताना पड़ता कि वो सुहानी के साथ मिली हुई है। और अगर वो ये जान गया… तो वो ये भी जानने की कोशिश करेगा कि क्यों?
और जब एक बार सवालों की गिरह खुल गई, तो आखिरकार वो उस सच तक पहुँच ही जाएगा—कि मीरा ने गौरवी के कहने पर, सालों तक उसके साथ ‘प्यार’ का नाटक किया था। हर बार का वो लिपटा हुआ अपनापन… एक स्क्रिप्टेड झूठ बन गया था। एक ऐसा धोखा… जिसे मीरा ने पूरे विश्वास के साथ निभाया था। वो जानती थी…अगर आरव को कभी ये सच्चाई पता चली, तो वो उसकी आँखों में झाँकना तो दूर, शायद उसका तक चेहरा देखना भी बर्दाश्त नहीं करेगा।
इसलिए वो चुप थी।
इसलिए वो काँप रही थी।
इसलिए उसकी नज़रें आरव से बच रही थीं—
इसलिए नहीं कि वो शर्मिंदा थी… बल्कि इसलिए कि अब उसमें सच सुनने या कहने की हिम्मत नहीं बची थी।
आरव की याददाश्त जाने से पहले भी, वो उससे बहुत नाराज़ था। उसकी आँखों में कभी जो स्नेह झलकता था, वो धीरे-धीरे अविश्वास और कटुता में बदल गया था। उसके शब्द तीखे हो चले थे, और मौन… और भी घातक।
मीरा जानती थी—अगर आरव को सब कुछ दोबारा याद आ गया, तो सिर्फ उसका दिल ही नहीं टूटेगा, बल्कि उसकी मानसिक स्थिति भी बुरी तरह से डगमगा सकती है।
और इसलिए…वो हर दिन, हर क्षण, अपने भीतर एक गुमनाम सज़ा भोग रही थी। न अपराध स्वीकारा, न क्षमा माँगी—पर दिल में जलता रहा पछतावे का दीपक।
अब जब सुहानी उस टूटे हुए विश्वास की कड़ियों को जोड़ने की कोशिश कर रही है, तो मीरा भी—चुपचाप, पर पूरी ईमानदारी से—उसका साथ दे रही थी। किसी प्रतिशोध के लिए नहीं, किसी स्वार्थ के लिए नहीं…बल्कि इसलिए कि शायद इसी राह पर चल कर वो कभी खुद को माफ़ कर पाए।
मीरा जानती थी, की वो सुहानी की तरह साहसी नहीं है। वो न तो लड़ सकती है, न किसी को मनवा सकती है। पर वो अब झूठ के उस दलदल से निकल चुकी है, और हर कदम पर सच्चाई के उस कठिन रास्ते पर सुहानी के साथ चल रही है…शायद, अपने भीतर के अपराधबोध से मुक्ति पाने के लिए।
“तुम कहाँ जा रहे थे, वो भी इस वक़्त?” मीरा की आवाज़ में चिंता साफ़ झलक रही थी।
वो जानती थी आरव सुहानी के पीछे जा रहा था, लेकिन अभी समय सही नहीं था कि वो अभी उससे मिले। सुहानी जब कमरे में आई, थकी हुई और कुछ बोझिल सी लग रही थी। जैसे पूरे दिन की तकलीफें उसके कंधों पर भार बन कर टिक गई हों। वो सीधे बिस्तर पर जा कर लेट गई।
मीरा ने उसे देखते हुए धीरे से पूछा, “क्या हुआ, सुहानी? तुम ठीक तो हो ना?”
सुहानी ने कुछ पल चुप्पी साधी, फिर भरी हुई आवाज़ में जवाब दिया, “तुम जाओ, मीरा। अपने कमरे में वापस जाओ। आरव तुम्हें वहाँ नहीं देखेंगे तो अच्छा नहीं होगा। उनकी तबियत अभी ठीक नहीं है। इतना तनाव लेना उनके लिए ठीक नहीं होगा। समझो न!”
मीरा ने उसके कंधों पर हाथ रखा और बड़ी ही नरमी से बोली, “पर सुहानी, तुम्हें हुआ क्या है? आरव को होश आ गया क्या? उसने तुम से कुछ कहा क्या?”
सुहानी ने गहरी सांस ली, आँखें झुका कर धीरे-धीरे कहा, “कुछ नहीं, बस… बहुत कुछ उलझा हुआ है। अभी उन्हें परेशान करने का समय नहीं है। हम सब को अभी संभल कर चलना होगा।”
मीरा ने उसकी पीड़ा को महसूस किया, पर उसके दिल में सवालों का तूफ़ान उमड़ रहा था। वो जानती थी कि हालात अभी भी बेहद नाजुक हैं, और किसी भी पल कुछ भी बदल सकता है। पर उसकी दोस्ती ने उसे मजबूर किया था कि वो सुहानी के साथ हर कदम चलती रहे, चाहे सामने कैसी भी मुश्किलें हों।
“मीरा, प्लीज…” सुहानी की आवाज़ कंपकंपा रही थी, आँसू उसकी बातों में घुल रहे थे।
“मेरे पास अभी कुछ भी और कहने की हिम्मत नहीं बची है। बस इतना जानती हूं कि… मुझे उस कमरे में जाकर नहीं सोना चाहिए था। बिलकुल नहीं।”
उसकी आवाज़ में खुद से नाराजगी साफ़ झलक रही थी।
“मैं इतनी selfish कैसे हो सकती हूं? जब मैं जानती हूं कि आरव की हालत अभी कैसी है। फिर भी… मैंने सिर्फ अपने बारे में सोचा, अपनी ही खुशी को मोल दिया।”
सुहानी की सिसकियाँ अब रुकने का नाम नहीं ले रही थीं। वो खुद को समझाने की कोशिश कर रही थी, लेकिन दिल की बेचैनी उसे दबा नहीं पा रही थी।
“क्या ये सही था? क्या मेरा खुदगर्ज़ होना ठीक था?”
मीरा ने उसके पास आकर उसे आराम से गले लगाया, “सुहानी, तुम इतनी कठोर मत बनो अपने आपके लिए। हम सब इंसान हैं, गलतियां करते हैं।लेकिन ये ज़रूरी है कि हम उनसे सीखें और आगे बढ़ें।”
“सुहानी, और एक बात कहूं?” मीरा ने उठते हुए नरम लेकिन पक्के लहजे में कहा।
“तुम्हें जितना मैंने जाना है, अब तक, तुम कुछ भी हो सकती हो — लेकिन selfish कभी नहीं। तुम हमेशा सबकी ज़रूरतों को खुद से ऊपर रखा है। खुद को पीछे रखा है।”
मीरा की आवाज़ में सच्चाई और साथ देने की मजबूती दोनों झलक रही थी।
“मुझे नहीं पता कि तुम्हारे साथ ये सब क्यों हो रहा है, क्यों तुम्हें इतनी तकलीफें सहनी पड़ रही हैं। लेकिन मैं दिल से महसूस करती हूं कि ये सब जल्दी ठीक हो जाएगा। तुम्हारा जीवन जल्द ही आसान और खुशहाल होगा। मेरा दिल मुझ से ये कहता है।”
मीरा ने एक बार सुहानी की आँखों में देखा, जहाँ थोड़ी उम्मीद की झलक थी, फिर बोली, “तुम्हें अभी शायद सिर्फ अंधेरा दिख रहा होगा, मगर यकीन रखो, बहुत जल्द तुम्हारा जीवन फिर से उजालों से भर जाएगा।”
इतना कह कर मीरा धीरे से कमरे से बाहर निकल गई, पीछे मुड़ कर एक बार फिर उसने सुहानी की तरफ देखा, जैसे कोई वादा निभा रही हो।
मीरा के कमरे से बाहर निकलते ही, सुहानी ने गहरी सांस ली और अपनी आंखें बंद कर लीं। उसके दिल में एक अजीब सी हलचल उठ रही थी — उम्मीद और डर दोनों के बीच एक अनकही लड़ाई चल रही थी। वह जानती थी कि ये सफर आसान नहीं होगा, पर अब उसके अंदर कहीं एक छोटी सी रोशनी जल रही थी, जो उसे थामे रखी हुई थी।
धीरे-धीरे बिस्तर से उठते हुए उसने अपने हाथों से चेहरे को छुआ, जैसे खुद को यकीन दिला रही हो कि वह अब कमजोर नहीं रह सकती। "मैं अब डर नहीं सकती," उसने अपने आप से कहा। “चाहे जो भी हो, मैं लड़ूंगी। ये मेरा फैसला है।”
कमरे के बाहर से हल्की-हल्की आवाज़ें आ रही थीं, पर अब वह उन सब से परे थी। कुछ कदम चल कर वह खिड़की के पास आई। बाहर अंधेरा था, मगर दूर कहीं शहर की रोशनी धुंधली-सी चमक रही थी। जैसे जिंदगी के अनगिनत रास्ते, जो धुंध में छिपे हुए हों, पर फिर भी मौजूद थे। सुहानी ने खिड़की का शीशा थामते हुए खुद को कसम दी — वह उन रास्तों को खोजेगी, चाहे जितनी भी मुश्किलें आएं।
आरव के कड़वे शब्द उसके दिल पर एक चुभन की तरह छप गए थे, जो अभी तक उतर नहीं पाए थे। लेकिन अब वह जानती थी कि खुद को कमजोर नहीं पड़ने देना है। जितना भी दर्द हो, उसे खुद को संभालना होगा, ताकि कल का दिन बेहतर हो सके।
अगले दिन सुबह की पहली किरण से पहले ही सुहानी उठ गई। उसने अपने आप से कहा, “अब मैं पिछली बातों में नहीं उलझूंगी। ये मेरे लिए एक नया दिन है, एक नया मौका है।”
वो धीरे-धीरे बाथरूम की ओर चली गई। ठंडे पानी की बूँदें उसके चेहरे को छू रही थीं, जैसे उसके दिल की घुटन को बहा ले जा रही हों। उसने अपना ट्रैक पैंट और सूट पहना, जो उसके लिए आरामदेह था। शीशे के सामने खुद को देखते हुए वो मुस्कुराई — “तुम सक्षम हो, तुम मजबूत हो।”
धीरे-धीरे वह घर से बाहर निकली। महल की सीढ़ियां पार कर उस ने गेट के बाहर की सड़क पर कदम रखा। आसमान साफ़ था, हवा में एक ताजगी थी, और सुहानी को ऐसा लगा जैसे प्रकृति खुद उसके भीतर की उथल-पुथल को शांत कर रही हो।
वह तेज़ कदमों से चलने लगी, फिर दौड़ने लगी। दौड़ते हुए उसका मन हल्का होने लगा। कुछ देर बाद उसने योगा के कुछ आसन किए — हर एक आसन उसके तनाव को दूर कर रहा था, हर एक सांस के साथ वह खुद को फिर से जी रही थी।
घंटों तक चलने, दौड़ने और योगा करने के बाद, जब सुहानी वापिस लौटने लगी, तो उसकी ऊर्जा फिर से लौट आई थी। अंदर एक नई ताकत जाग उठी थी। और तभी, महल के गेट के पास, उसे एक जाना-पहचाना चेहरा दिखा — विक्रम। उसकी उपस्थिति से सुहानी का दिल अचानक तेज़ी से धड़क उठा।
विक्रम सुबह सुबह राठौर महल में क्या करने आया है?
सुहानी और उसकी मुलाक़ात क्या आरव को पसंद आएगी?
जानने के लिए पढ़ते रहिये, रिश्तों का क़र्ज़।
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