प्रतिभा को ये नहीं पता था कि आख़िर धीरज मौके पर कैसे पहुँच गया था लेकिन वो खुश थी कि उसने उसके पापा के सामने अपनी एक पॉजिटिव इमेज बनाने की कोशिश की थी वो भी ऐसे टाइम पर जब उसके लिए एक एक मिनट क़ीमती है। हालांकि उसे ये सोच कर बुरा लग रहा था कि उसके पापा ने उसके साथ उतना अच्छा बिहेव नहीं किया जितनी बड़ी उसने मदद की थी। उसने धीरज को मैसेज कर के खूब सारे किसिंग इमोजी के साथ थैंक्यू और आई लव यू लिख कर भेजा था। धीरज बहुत खुश हुआ मैसेज देख कर। प्रतिभा ने उससे पूछा कि वो आख़िर वहाँ बिल्कुल मौके पर कैसे पहुंच गया था। धीरज ने उसे भी यही कहा कि वो सच में बिल जमा कराने गया था। हालांकि सच्चाई कुछ और ही थी।

कल जब राजेंद्र बेहोश हुए तो प्रतिभा बहुत ज़ोर से चिल्लायी। उसी वक्त उसके घर के आगे से गुज़र रहे धीरज ने ये आवाज़ सुनी। वो घबरा गया। वो तो घर के अंदर जाने की सोचने लगा लेकिन उसे लगा कि फ़ोन करना सही रहेगा। वो लगातार प्रतिभा को फ़ोन करने लगा। प्रतिभा फ़ोन नहीं उठा रही थी, असल में फ़ोन उसके पास ही नहीं था। वो पापा के साथ वाटर सप्लाई ऑफ़िस चली गई और हड़बड़ी में उसका फ़ोन घर पर ही रह गया।

इसी बीच दादी ने प्रतिभा का फ़ोन देख लिया जिस पर ज्योति के नाम से फ़ोन आ रहा था। उन्होंने जैसे ही फ़ोन उठाया, उधर से धीरज ने पूछा कि वो इतनी ज़ोर से क्यों चिल्लायी? दादी ने कहा क्योंकि उसका बाप बेहोश हो गया था। दादी की आवाज़ सुनते ही धीरज डर से काँपने लगा। उसे तो लगा कि उसका दाना पानी तो इस मोहल्ले से उठेगा ही, इसके साथ ही उसकी लवस्टोरी का दी एंड भी हो जाएगा। वो फ़ोन काटने ही वाला था कि इतने में दादी ने उसे कहा कि फ़ोन मत काटना। धीरज को पूरा यकीन था कि अब दादी उसे खूब सुनायेंगी। लेकिन दादी बोली, ‘’घबरा मत, तुम दोनों के बारे में मैं बहुत पहले से जानती हूँ प्रतिभा को भी ये नहीं पता और उसे बताना भी मत। कैसे जानती हूँ क्यों जानती हूँ ये सब बातें नहीं करेंगे। अब काम की बात सुन, राजेंद्र की नजर में अच्छा बनने का मौक़ा है तेरे पास। पानी का बिल बारह लाख आया है, जिसकी शिकायत करने वो जल विभाग गया है। मैं उसे जानती हूँ वो पक्का वहाँ बवाल करेगा। तू जा और उसकी मदद कर और उसकी नज़रों में थोड़े नंबर बना। क्या करेगा कैसे करेगा ये तू जाने मगर समझ लेना इससे अच्छा मौक़ा तुझे नहीं मिलने वाला। बाक़ी काम मुझपर छोड़ दे। तू स्टूडेंट है और इस बात के बहुत फायदे होते हैं, तू कुछ भी कर सकता है। सोच ले कि इस वक्त तू किसी फ़िल्म का हीरो है और जो भी होगा वो तेरे इशारे पर ही होगा। अब जा और अपने होने वाले ससुर के आगे कुछ अच्छा कर के दिखा। बाक़ी बात फिर कभी मौक़ा मिलने पर करेंगे।

तो इस तरह दादी ने धीरज को राजेंद्र के पीछे भेजा था जिसके बारे में सिर्फ़ उन दोनों को ही पता था। धीरज को समझ नहीं आ रहा था कि वो वहाँ जा कर क्या करेगा फिर उसे साउथ की एक फ़िल्म का सीन याद आया जिसमें हीरो ऐसा ही कुछ करता है जैसा उसने बड़े साहब के ऑफ़िस में किया था। हालांकि उसे भी पता था इस आइडिया का सक्सेस रेट बहुत कम है लेकिन दादी का दिया हुआ पंप काम कर गया। वो दादी के कहने पर यही सोच रहा था कि वो इस फ़िल्म का हीरो है और वही होगा जो वो चाहेगा। इसके बाद की कहानी तो सबको पता ही है।

असल मायने में देखें तो इस कहानी की असली हीरो तो हमारी दादी ही हैं। आगे भी उन्होंने धीरज काम बनाना था। घर आने के बाद उन्होंने राजेंद्र से पूछा कि काम हुआ। राजेंद्र ने कहा हाँ हो गया। दादी बोली वो तो जानती ही थी कि उस ऑफ़िस में उसके बेटे का रौब चलता है वो काम करा ही लेगा। ये सुन कर राजेंद्र की छाती चौड़ी हो गई लेकिन फिर उन्हें याद आया कि रौब वाला तो उन्होंने कोई काम ही नहीं किया। इसके बावजूद भी वो सारा क्रेडिट ले लेते लेकिन प्रतिभा एक गवाह के रूप में सामने खड़ी थी जो अभी उन्हें ही घूर रही थी। इसके बाद उन्हें सच बोलना पड़ा। उन्होंने कहा, ‘’नहीं वो मेरे वाला सारा स्टाफ अब चेंज हो गया है और नए वाले मुझे पहचान नहीं पाये। वो तो एक लड़के की वजह से सारा काम हुआ।''

राजेंद्र ने ये नहीं बताया कि उनको सम्मान देने की बजाये बड़े बाबू के केबिन से धक्के मार कर बाहर निकाला गया था। दादी ने पूछा कौन लड़का? राजेंद्र ने कहा वही यादव जी के यहाँ रहने वाला। दादी ने आगे कहा अच्छा वही जिसे वो लोफर कहता रहता है। दादी कहने लगी कि इतने भले लड़के को वो कितना सुनाया करता था। उन्होंने पूछा कि क्या उसने उस लड़के को कुछ खिलाया पिलाया। राजेंद्र गुस्से में बोले वो कोई उनका दामाद लगता है जो उसे खिलाए पिलाएं। राजेंद्र ने भले ही ये गुस्से में कहा था लेकिन उनके मुँह से धीरज के लिए दामाद वर्ड सुन प्रतिभा अंदर ही अंदर खिल उठी। दादी ने कहा उसे पता है ना बारह लाख रुपए कितने होते हैं? उस लड़के की वजह से उसका इतना बड़ा नुक़सान होने से बच गया और वो उसे अच्छे से थैंक्यू भी नहीं कह पाया। उसे तो उस लड़के को घर खाने पर बुलाना चाहिए। दादी उन्हें समझा ही रही थी तभी किसी ने उनकी डोर बेल बजायी। प्रतिभा ने दरवाज़ा खोला तो उसके रंग उड़ गए। सामने धीरज खड़ा था। वो सोचने लगी कि ये लड़का पागल तो नहीं हो गया। वो ऐसे उसके घर कैसे आ सकता है। राजेन्द्र ने अंदर से पूछा कि कौन है, प्रतिभा ने हड़बड़ाते हुए कह दिया पापा धीरज है। राजेंद्र ने पूछा कौन धीरज, तब तक धीरज अंदर आ गया। दादी भी उसे देख कर हैरान थी लेकिन उन्होंने उसकी टाइमिंग की मन ही मन तारीफ़ की। उसने दादी के पैर छुए तो दादी ने उसे बड़े प्यार से आशीर्वाद दिया। राजेंद्र को समझ नहीं आ रहा था कि आख़िर वो लड़का उनके घर क्या कर रहा है। वो धीरज से पूछते कि वो यहाँ क्या कर रहा है उससे पहले ही उसने जेब से उनका बिल निकाल कर आगे बढ़ा दिया। उसने कहा कि वो अपना नया बिल वहीं ऑफ़िस में भूल आए थे। बिल देकर वो जाने लगा।

तभी दादी ने उसे रोकते हुए कहा कि उसने उनके परिवार की बड़ी मदद की है इसलिए वो चाहते हैं कि आज रात का खाना वो उनके ही घर खाये। ये बात तो धीरज और प्रतिभा के लिए किसी सपने के सच होने जैसी थी। धीरज को प्रतिभा के हाथ का खाना बहुत पसंद था, वो लोग अक्सर अपने फ्यूचर प्लानिंग में प्रतिभा के खाने का ज़िक्र करते थे कि कैसे वो कोई डिश बनाएगी तो धीरज उसकी हेल्प करेगा और फिर वो ख़ुद से परोस कर उसे खाना खिलाया करेगी। वो ये सब सपने में सोचा करते थे कि एक दिन धीरज प्रतिभा की फैमिली के साथ बैठ कर खाना खायेगा। आज वो सपना अचानक से सच हो रहा था।

जैसे ही दादी ने उसे डिनर के लिए इन्वाइट किया वैसे ही राजेंद्र ने उन्हें ऐसे घूरा जैसे उन्होंने कोई अनर्थ कर दिया हो। जिस लड़के की वो हर जगह बुरायी करते आ रहे थे उसे आज अचानक उनके घर में खाना खाने का इन्विटेशन मिल गया था। वो ये सोच कर डर गए कि जब ये बात यादव जी को पता चलेगी तो वो उसका कैसे मज़ाक़ उड़ायेंगे। वो धीरज को अभी के अभी मना कर देते लेकिन उनके कुछ बोलने से पहले ही वो वहाँ से चला गया। उसके जाते ही राजेंद्र अपनी माँ से चिल्लाते हुए बोले कि वो लोग किसी राह चलते को ऐसे कैसे डिनर के लिए इन्वाइट कर सकते हैं। दादी ने भी पलट कर जवाब दिया कि वो राह चलता कम से कम उन दोस्त कहे जाने वालों से तो अच्छा है जो अचानक से उनसे रास्ते में मिलते हैं और फिर उनके ही पैसों से पूरा जयपुर घूम कर उनकी ही बेटी को रिजेक्ट कर के चले जाते हैं। कम से कम हम इस राह चलते के बारे में इतना तो जानते हैं कि वो पिछले तीन साल से इसी मोहल्ले में रह कर मेहनत से पढ़ाई कर रहा है और आज उसी ने उसका इतना बड़ा नुक़सान होने से बचाया है। कम से कम वो एक डिनर तो डिज़र्व करता ही है।

माँ की बातों से राजेंद्र कुछ हद तक तो शांत हुए थे लेकिन उन्होंने फिर से कहा कि जवान बेटी घर में है ऐसे किसी लड़के को बुलाना कैसा लगेगा। दादी ने फिर से राजेंद्र के यॉर्कर पर एक सिक्स मरते हुए कहा उससे तो कम ही बुरा लगेगा जैसा अपनी बेटी को किसी अनजान लड़के के साथ एक अनजान शहर घूमने भेजने पर लगता है। राजेंद्र इसके आगे कुछ नहीं बोल पा रहे थे। उन्हें ना चाहते हुए भी ये ज़हर भरा घूँट पीना पड़ा और  वो वहाँ से चले गए।

राजेंद्र सोचने लगे कि पता नहीं धीरज किस किस्म का लड़का होगा। पता नहीं धीरज को घर बुलाना सही है या नहीं, पता नहीं धीरज ने उनकी मदद क्योंकि, इतनी बार धीरज नाम रिपीट होने के बाद अचानक उन्हें याद आया कि आज जब धीरज उनके घर आया तो प्रतिभा ने दरवाज़ा खोला, जब उन्होंने पूछा कि कौन है तो उसने उसका नाम लेकर कहा धीरज है। राजेंद्र सोचने लगे कि प्रतिभा को भला उसका नाम कैसे पता? मोहल्ले के कई लड़कों का नाम प्रतिभा नहीं जानती होगी फिर धीरज का नाम उसे कैसे पता है? हालांकि राजेंद्र ने इस बात पर बहुत ज़्यादा नहीं सोचा। उनको अपनी बेटी पर भरोसा था इसलिए उन्होंने ये सोच कर इस बात को इग्नोर कर दिया कि शायद हो सकता है उसने किसी के मुँह से उसका नाम सुना हो।

प्रतिभा आज दादी पर इतनी खुश थी कि वो जो माँगती उन्हें दे देती। वो इतनी खुश थी कि दोपहर से ही रात के खाने की प्लानिंग करने लगी थी। धीरज को जो कुछ भी पसंद था वो सब बनाना चाहती थी लेकिन उसे इस बात का भी ध्यान रखना है कि उसके पापा इस बात पर शक ना करने लगें कि उसने बिना जाने सब धीरज की पसंद का खाना क्यों बनाया। इसलिए उसने समझदारी से बस वही डिश चूज़ की जो पापा और धीरज दोनों को पसंद थीं। जैसे कि मशरूम दोनों को पसंद था और पनीर के मुक़ाबले मशरूम कम लोग पसंद करते हैं। इधर धीरज जाते ही पढ़ने बैठ गया था। उसने कोई ब्रेक नहीं लिया था क्योंकि उसे पता था रात को प्रतिभा के घर उसका काफ़ी टाइम लगने वाला था। हालांकि पढ़ते हुए भी उसे बस वहीं के ख्याल आ रहे थे। कि वो कैसे वहाँ जाएगा और कैसे सबके बीच बैठ कर बातें करेगा। यही सब सोचते सोचते शाम के आठ बाज गए थे।

धीरज जल्दी जल्दी तैयार हुआ और प्रतिभा के घर पहुँच गया। उसने जैसे ही डोर बेल बजायी तो सामने से राजेंद्र ने दरवाजा खोला। उन्हें सामने देख धीरज की मुस्कुराहट डर में बदल गई।

राजेंद्र धीरज की खातिरदारी करेंगे या फिर उसकी क्लास लगेगी? क्या इस डिनर के मौके पर कोई बड़ी गड़बड़ होने वाली है? 

जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।

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