जल विभाग के ऑफ़िस में राजेंद्र की मदद करने के लिए दादी ने धीरज को आज रात डिनर पर बुलाया था। ये सब राजेंद्र की मर्जी के ख़िलाफ़ हो रहा था। लेकिन वो दादी की बात नहीं काट सकता था। प्रतिभा के पाँव आज ज़मीन पर नहीं लग रहे थे। वो आज दोपहर से ही किचन में लग गई थी। धीरज ने भी अपनी पढ़ाई का कोटा जल्दी निपटा लिया था और ठीक आठ बजे, तैयार होकर प्रतिभा के घर पहुँच गया था। उसके चेहरे की मुस्कान रुक ही नहीं रही थी लेकिन जैसे ही दरवाज़ा खुला वैसे ही उसकी ख़ुशी एक ख़ौफ़ में बदल गई। ये ख़ौफ़ राजेंद्र का था क्योंकि उन्होंने ने ही दरवाज़ा खोला था। राजेंद्र ने धीरज को ऊपर से नीचे तक देखा, वो ऐसे सज कर आया था जैसे अपने ससुराल आया हो। राजेंद्र के चेहरे पर ऐसे एक्सप्रेशन थे जैसे उससे कोई काम ज़बरदस्ती करवाया जा रहा हो।
उन्होंने धीरज से बस कहा ‘अंदर आओ’, इसके अलावा उन्होंने उससे कोई बात नहीं की। वो अंदर चला आया, जैसे ही उसकी नज़रें प्रतिभा से मिलीं उसका दिल धक से रह गया। धड़कनें बढ़ने लगीं। ऐसा लग रहा था जैसे दोनों कोई सपना देख रहे हों। दादी ने दोनों को एक दूसरे को ऐसे देखते हुए देखा तो माथा पीट लिया। उन्होंने मन ही मन सोचा ये दोनों अपना बेड़ा गर्क करा के मानेंगे। राजेंद्र ने अगर देख लिया तो अभी के अभी धीरज को घर से निकाल बाहर करेगा। और प्रतिभा की क्लास लगेगी सो अलग। इसलिए उन्होंने धीरज को आवाज़ देते हुए उसका हाल चाल पूछा। उनकी आवाज़ सुन कर दोनों का ध्यान टूटा और उन्हें अहसास हुआ कि यहां उनके अलावा भी दो और लोग मौजूद हैं। धीरज हड़बड़ाया हुआ दादी के पास गया और उनके पैर छुए। राजेंद्र ने मन ही मन सोचा कि ये अच्छा दिखने का कितना नाटक करता है। अभी दिन में ही तो इसने दादी के पैर छुए थे।
राजेंद्र इतना चिढ़ा हुआ था कि उसने धीरज से एक बात नहीं की। धीरज ख़ुद को पहले से ही तैयार कर के आया था कि उसे राजेंद्र की हर बात को बर्दाश्त करना है। वो प्रतिभा के घर में बैठा हुआ था यही बहुत बड़ी बात थी। खाना लग चुका था। ये राजेंद्र के ऑर्डर थे कि उसे बुलाया तो जा रहा है लेकिन उससे लंबी गप्पें मारने की ज़रूरत नहीं। बस खाना खिलाओ और चलता करो। प्रतिभा और दादी चाह कर भी कुछ एक्स्ट्रा नहीं कर सकते थे क्योंकि फिर राजेंद्र का शक बढ़ना तय था। इसीलिए प्रतिभा ने राजेंद्र के कहे मुताबिक़ जल्दी ही खाना लगा दिया था।
अभी घर में चार लोग तो मौजूद थे लेकिन कोई किसी से बात नहीं कर रहा था। धीरज का ध्यान अभी सिर्फ़ खाने की मेज़ पर था क्योंकि एक तो घर का खाना जो उसने लास्ट टाइम आठ महीने पहले खाया था जब वो घर गया था, उसके ऊपर ये खाना प्रतिभा ने बनाया था। ये वही खाना था जिसके बारे में धीरज फ़ोन पर सुन कर लार टपकाया करता था। आज वो उस खाने को चखने वाला था। इसलिए उसका ज़्यादा फ़ोकस मेज़ पर रखी डिशिज़ पर था। खाते हुए मुँह चलाने की आवाज़ को अगर इग्नोर कर दिया जाता तो वहाँ पूरा सन्नाटा पसरा हुआ था। दादी ने इस सन्नाटे को तोड़ते हुए बात शुरू की। वैसे तो उन्हें धीरज के बारे में थोड़ा बहुत पता ही था लेकिन उन्हें राजेंद्र को ये दिखाना था कि वो उसे लेकर अनजान है। उन्होंने पूछा कि वो आजकल क्या कर रहा है। जिसके बाद धीरज बताने लगा कि वो यहां एग्जाम की तैयारी कर रहा है। दादी ने उससे उसके घर परिवार के बारे में पूछा तो उसने बताया कि उसके परिवार में माँ पापा और उसकी छोटी बहन है जो अभी 12th में पढ़ती है।
दादी कहने लगीं कि घर से दूर रहने में परेशानी तो होती होगी। धीरज ने कहा, बहुत परेशानी होती है क्योंकि घर पर उसे पढ़ाई के सिवा कुछ नहीं करना पड़ता लेकिन यहाँ हर काम उसे ख़ुद ही करना पड़ता है। उसके बाद एग्जाम का प्रेशर सो अलग। धीरज ने मज़ाक़ में कहा कि उसका भी इसी शहर में घर होता तो अभी तक वो यूपीएससी भी क्लियर कर चुका होता। उसे लगा इस बात पर सब हसेंगे और प्रतिभा-दादी हँसने भी वाले थे लेकिन उससे पहले ही राजेंद्र ने कहा, ‘’हलवा नहीं है सरकारी नौकरी पाना, जो बनाया और गप्प से मुँह में डाल लिया। मेहनत लगती है, पूरी लगन झोंकनी पड़ती है। फिर फ़र्क़ नहीं पड़ता इंसान किन परिस्थितियों में हैं। कम से कम घर वाले पैसे भेज रहे हैं ना, इतने अच्छे घर में रहते हो, मुझे लगता है सारी सुख सुविधाएं होंगी तुम्हारे पास फिर भी तुम्हारे पास बहाना है कि तुम घर से दूर हो इसलिए पूरी कोशिश नहीं कर पाते। अरे घर पर ही पढ़ लेते तो फिर यहाँ आने की ज़रूरत ही क्या पड़ती। पढ़ने वाले तो घर से ही ऑनलाइन क्लास कर आईएएस आईपीएस बन जा रहे हैं। सुना है तीन साल हो गए तुम्हें तैयारी करते, एक प्यून का भी एग्जाम निकाल पाये हो?''
धीरज को खाना बहुत अच्छा लग रहा था उसका मन हुआ कि वो राजेंद्र की बातों को इग्नोर मारे और खाने पर फ़ोकस रखें लेकिन उन्होंने उसके सेल्फ रिस्पेक्ट पर चोट मारी थी जिसके बाद उसका खाने का मन ही नहीं कर रहा था। उसने कहा कि वो तीनों बार कुछ एक नंबरों से ही रह गया वरना अभी तक किसी बड़ी सरकारी पोस्ट पर होता। उसने झूठ नहीं बोला था लेकिन जैसा कि सब जानते हैं, बात सिर्फ़ जीतने वाले की होती है, हारने वाला कितने प्वाइंट्स से हारा इसकी बात कोई नहीं करता। राजेंद्र ने भी यही बात कही कि जो पास नहीं होते उनके पास यही एक जवाब होता है कि वो एक दो नंबरों से रह गए। माँ बाप मेहनत कर के पैसा कमाते हैं, सपना देखते हैं कि उनका बेटा बाबू बनेगा और लड़के यहाँ आ कर घर से दूर आवारा गर्दी करते हैं, लड़कियों के पीछे इधर उधर घूमते रहते हैं। ये कोई स्कूल कॉलेज थोड़े ना हैं कि एग्जाम में परसेंटेज देखने को मिले यहाँ तो बस मुँह बना कर कह देना होता है कि एक दो नंबर से रह गया। माँ बाप बेचारे डाँट भी नहीं सकते क्योंकि आजकल वो नई धमकी चली है ना कि कुछ मत कहो नहीं तो कुछ ग़लत कर लेंगे लाट साहेब। राजेंद्र का कहना था कि लगभग 90% लड़के ऐसे ही माँ बाप के पैसे बर्बाद कर शहरों में अय्याशी करते हैं और फिर तीन चार साल बाद घर लौट कर कह देते हैं कि उनसे नहीं हो पाया और लग जाते हैं किसी छोटे मोटे काम में।
वैसे तो राजेंद्र ने ये बातें सभी लड़कों के लिए कहीं थीं लेकिन धीरज ने इन्हें अपने ऊपर ले लिया। उसको उनकी एक एक बात तीर की तरह चुभ रही थी। अगर वो अभी नहीं बोलता तो इन बातों का ज़ख़्म उसके लिए नासूर बन जाता। उसने बहुत प्यार से जवाब दिया, ‘’सर ,आपने सही कहा दिन के बारह घंटे किताबों के सामने बैठे हम जैसे लड़के अय्याशी ही तो करते हैं। एक दिन आपको भी चाय पर बुलाऊँगा और दिखाऊँगा कि हमारी अय्याशी कैसी होती है। पढ़ाई के साथ साथ ये प्रेशर ले कर चलते हैं कि अगर नहीं कर पाये तो फिर पापा किसी को क्या मुँह दिखायेंगे। हम लोगों के पास ना का कोई ऑप्शन ही नहीं है। और रही सुख सुविधाओं की बात तो एक छत एक बिस्तर एक पंखा और तीन टाइम के टिफ़िन को अगर सुख सुविधा कहा जाता है तो फिर हम पूरी ऐश ही कर रहे हैं। बाक़ी कुछ ग़लत करने का तो कभी सोचेंगे भी नहीं क्योंकि मुझे ग़लत नहीं बल्कि कुछ बड़ा करना है।''
उसने अपनी सारी बात बड़े प्यार से कही थी। राजेंद्र ने कहा कि उन्होंने उसे नहीं बल्कि सभी लड़कों को कहा है। अगर उसे इसका बुरा लगा है तो इसका मतलब वो भी उन्हीं में से एक है। धीरज अब कुछ नहीं बोला। इतना कह कर राजेंद्र कुर्सी से उठ कर हाथ धोने चला गया। वो जब तक हाथ दो कर आया तब तक धीरज जा चुका था। उसने इतना भी टाइम नहीं दिया कि दादी और प्रतिभा उसे रोक सकें। राजेंद्र को इस बात का कोई अफ़सोस नहीं था। उसने कहा अरे चला भी गया। उसे बैठना चाहिए था। कुछ देर और बातें करते। दादी ने गुस्से में जवाब देते हुए कहा कि वो अपनी और बेइज्जती करवाने के लिए थोड़े ना बैठा रहता। घर आए मेहमान को ऐसे बेइज्जत कर के उसे बहुत सुकून मिल रहा होगा। दादी ने कहा अगर वो धीरज को चैन से खाना खा लेने देता तो उसका क्या चला जाता। राजेंद्र ने कहा उसने कौनसा उसके हाथ बांध दिए थे, जो सच था उसने वही कहा अगर वो इतना भी बर्दाश्त नहीं कर सकता तो इंटरव्यूज़ क्या ख़ाक देगा। राजेंद्र अभी भी कह रहे थे कि वो एक दम निकम्मा है, उससे कुछ भी नहीं हो पाएगा।
इतना सब बोल कर वो अपने कमरे में जा कर फ़ैल गए। प्रतिभा को धीरज के बारे में बहुत बुरा लग रहा था। वो अपने पापा पर गुस्सा भी नहीं कर सकती थी। उसने सोचा कि अपने पापा की तरफ़ से वही उससे माफी माँग लेगी। सब अपने अपने कमरे में सोने चले गए। प्रतिभा जब श्योर हो गई कि सब सो चुके हैं तब उसने धीरज को फ़ोन मिलाया। हमेशा की तरह पहली रिंग में फ़ोन उठ गया। प्रतिभा ने कहा कि उसे पता है अभी उसे गुस्सा आ रहा होगा। वो अपने पापा की एक एक बात के लिए उससे माफी माँगती है। धीरज को गुस्सा तो सच में आ रहा था लेकिन प्रतिभा के माफी मांगने पर उसका गुस्सा ग़ायब हो गया क्योंकि वो उसे उदास नहीं देख सकता था।
उसने कहा कि गलती तो उसने भी की है। उन्हें तो पहले से पता था कि उसके पापा का नेचर कैसा है। उसे जवाब नहीं देना चाहिए था। प्रतिभा ने कहा कि उसने कुछ ग़लत नहीं कहा, उसकी हर बात सही थी और उसने बड़े प्यार से अपनी बात रखी। बस इसी तरह बात करते हुए दोनों भूल गए कि आज घर में खाने की मेज़ पर क्या हुआ था। धीरज ने कहा कि लेकिन वो शादी के बाद उनका ये एटीट्यूट बर्दाश्त नहीं करेगा। वो भी जवाब दिया करेगा फिर प्रतिभा मुंह ना फुलाए। प्रतिभा ने कहा अगर उसकी सरकारी नौकरी लग गई तो ऐसी नौबत ही नहीं आएगी क्योंकि फिर उसके पापा उसको अपनी पलकों पर बिठा कर रखेंगे। इसी तरह दोनों अपने फ्यूचर को लेकर बातें करते रहे।
अब प्रतिभा का मन शांत हुआ था लेकिन वो इस बात से अनजान थी कि कल उसके ऊपर एक मुसीबत का बड़ा पहाड़ गिरने वाला है क्योंकि जब वो धीरज से फ़ोन पर बात कर रही थी तब कोई उसके कमरे के बाहर कान लगाए उसे सुन रहा था। ये राजेंद्र जी थे। उन्हें प्रतिभा के किसी से बात करने की आवाज़ आ रही थी और वो उन बातों को सुनने के लिए उसके दरवाजे पर कान लगाए खड़े थे।
क्या प्रतिभा और धीरज की प्रेम कहानी यहीं रुक जाएगी? क्या इन दोनों का सच राजेंद्र के सामने आ जाएगा?
जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
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