जयपुर से लौटने के बाद राजेंद्र ने जैसे ही अपने घर का लेटर बॉक्स खोला वैसे ही एक बहुत बड़ी मुसीबत उनके सामने आ खड़ी हुई। उनके नाम एक लेटर आया था जिसे पढ़ते ही वो बेहोश हो गए। उन्हें बेहोश देख प्रतिभा चिल्लाने लगी। दादी भी वाशरूम से भागी हुई आई। उन्होंने राजेंद्र के मुँह पर पानी के छींटे मारे तब राजेंद्र को होश आया। प्रतिभा ने पूछा ऐसा क्या देख लिया उन्होंने जो बेहोश हो गए। उनकी तबीयत तो ठीक है? क्या वो उन्हें डॉक्टर के पास ले चले। राजेंद्र ने कहा ये प्रॉब्लम डॉक्टर से भी सही नहीं होने वाली। इतना कहते हुए उन्होंने प्रतिभा की तरफ़ वो लेटर बढ़ा दिया जिसे पढ़ने के बाद वो बेहोश हुए थे।
लेटर पढ़ने के बाद प्रतिभा को भी चक्कर आने लगे थे। दादी ने कहा ऐसी क्या खबर है जिसे पढ़ कर हर कोई बेहोश हुए चले जा रहा है। प्रतिभा ने बताया कि उनका वाटर सप्लाई का बिल 12 लाख आया है। अब बेहोश होने की बारी दादी की थी लेकिन उन्होंने किसी तरह ख़ुद को संभाला। दादी ने कहा कि आख़िर इतना बिल आ कैसे सकता है। वाटर सप्लाई में काम करते हुए राजेंद्र का बिल माफ हो जाता था लेकिन जबसे वो रिटायर हुए थे तबसे उन्हें बिल भरना था मगर उन्हें वाटर सप्लाई का बिल भरने की आदत नहीं थी इसलिए वो भूल जाते थे। लास्ट टाइम जब बिल आया तो उन्होंने सोचा अगले महीने वो सारा बिल इकट्ठे ही भर देंगे लेकिन उन्हें क्या पता था कि उनके यहाँ बारह लाख का बिल आ जाएगा। ये तो तय था कि बकाया बिल बारह लाख नहीं हो सकता।
ख़ुद को हिम्मत देते हुए राजेंद्र ने कहा कि ऐसे कैसे इतना बिल आ सकता है? वो अभी वाटर स्प्लाई ऑफ़िस जा कर सबकी खबर लेंगे। इसके बाद वो जल्दी से तैयार हुए। प्रतिभा ने कहा वो भी साथ चलेगी। उसे डर था कि कहीं उसके पापा गुस्से में किसी से झगड़ा ना कर लें। थोड़ी ही देर में वो लोग जल विभाग के ऑफ़िस पहुंच गए थे। रास्ते भर राजेंद्र सोचते गए थे कि वो जाते ही सबकी क्लास लगा देंगे। वहाँ का सीनियर भी उनके एक्सपीरियंस के आगे उनको सलाम करेगा लेकिन सच्चाई उनकी ख़याली दुनिया से बिल्कुल अलग थी। वहाँ के चौकीदार तक ने उन्हें सलाम नहीं किया था। वो भी उसे नहीं पहचान पाये क्योंकि यहाँ तो उनका चहेता मंगनीराम बैठा करता था। उन्होंने सोचा कि शायद वो भी रिटायर हो गया हो। वो जैसे ही अंदर गए उन्होंने देखा कि उनके ऑफ़िस का तो नक़्शा ही चेंज हो चुका है। उसके साथ ही वहाँ काम करने वाला स्टाफ भी बदल चुका है। उनके टाइम का कोई वहाँ मौजूद नहीं था।
एक पल के लिए वो घबराए लेकिन फिर उन्होंने हिम्मत जुटायी और बिलिंग काउंटर पर बैठे एक कर्मचारी से कहा कि उनका लाखों में बिल आया है और उन्हें लगता है ये गलती से हुआ है। उन्हें एक बार उनका बिल चेक करना चाहिए। मोबाइल पर गेम खेल रहे कर्मचारी ने बिना नजरें उठाये कहा कि उनके यहाँ गलती की कोई गुंजाइश नहीं होती लेकिन फिर भी उन्हें अगर तसल्ली करनी है तो वो साहब से जा कर बात करें। वो इस मामले में कुछ नहीं कर सकता। राजेंद्र को उसका ये बेहेवियर बिल्कुल पसंद नहीं आया लेकिन वो कर भी क्या सकता था। उसके पूछने पर पता चला कि साहब सामने वाले कमरे में बैठते हैं। उसने प्रतिभा को बाहर ही रुकने के लिए कहा और ख़ुद बड़े साहब के केबिन का दरवाज़ा खटखटा कर अंदर चले गए। बड़े साहब लगभग 32 साल का एक शख्स था, जिसके चेहरे पर ही लिखा था कि उसे बड़े साहब होने का बहुत घमंड है। उसने राजेंद्र को बैठने के लिए भी नहीं कहा। बस बोला क्या बात है जल्दी बताए, उसे बहुत काम है। राजेंद्र खड़े खड़े ही बोले, ‘’सर मैंने इस ऑफ़िस में चालीस साल अपनी सेवाएँ दी हैं। मैं यहाँ क्लर्क था।''
बड़े साहब ने राजेंद्र की बात सुने बिना ही उनका मज़ाक़ उड़ाते हुए कहा कि फिर वो क्या चाहते हैं कि उनका बाजे गाजे के साथ स्वागत किया जाए। उसने कहा कि यहाँ सब एक बराबर हैं। उन्हें एक्स इंप्लॉयी होने का कोई बेनिफिट नहीं मिलेगा। वो सीधे सीधे बताए कि काम क्या है। ये राजेंद्र के लिए बहुत बड़ी बेइज्जती थी। जब वो यहाँ काम करते थे तो कभी बड़े बाबू ने भी उनसे ऐसे बात नहीं की थी। इसके बावजूद उन्होंने सब्र का घूँट पिया और बोले कि उनका बिल बारह लाख आया है। बड़े बाबू ने कहा कि उन्होंने इतना यूज़ किया होगा तभी बारह लाख बिल आया है। राजेंद्र कहने लगे कि ये तो कॉमन सेंस की बात है कि एक साधारण सा परिवार बारह लाख का पानी कैसे खर्च कर सकता है। जब तक वो इस विभाग में रहे तब तक उनका बिल माफ ही था, तो कुछ सालों में इतना बिल कैसे आ सकता है।
बड़े बाबू इस पर भड़क गए उन्होंने राजेंद्र से कहा कि उनका कहने का मतलब है उन्हें या उनके स्टाफ को कोई सेंस नहीं है? राजेंद्र ने कहा उनका ये मतलब नहीं था वो तो बस बता रहे थे। बड़े बाबू ने कहा उन्हें उनसे सलाह लेने की ज़रूरत नहीं है। उनका इतना ही बिल होगा जो उन्हें किसी भी हाल में भरना पड़ेगा नहीं तो पानी की सप्लाई बंद कर दी जाएगी। इसपर राजेंद्र भी भड़क गए। उन्होंने गुस्से में चिल्लाते हुए कहा कि जितनी उसकी उम्र नहीं उससे ज़्यादा उनका एक्सपीरियंस है इस ऑफ़िस में। उन्हें भी पता है कि ग़लत बिल भेज कर कैसे घपले होते हैं और आम जानता को कैसे परेशान किया जाता है। उसने तो कभी दूसरों के साथ ऐसा जुल्म नहीं होने दिया अब तो बात उनके ख़ुद पर आ गई है। वो इतना बिल नहीं भरेंगे और देखते हैं कौन उनकी वाटर सप्लाई बंद करता है। बड़े बाबू ने इस बात को चैलेंज की तरह लिया और कहा कि उन्हें जो करना होगा वो कर लेंगे, फ़िलहाल वो यहाँ से निकले। उसने तुरंत ही सिक्योरिटी को बुलाया और राजेंद्र जी को ऑफ़िस से बाहर निकालने के लिए कहा। राजेंद्र जी भी शोर मचाने लगे और कहने लगे कि ये सबके सब चोर हैं। देखते ही देखते वहाँ का माहौल गर्म हो गया। भीड़ इकट्ठी हो गई। प्रतिभा तो डर के मारे रोने लगी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो ये सब कैसे ठीक करे।
तभी वहाँ एक लड़के ने एंट्री मारी और राजेंद्र जी को बाहर ले जा रहे गार्ड का हाथ पकड़ उसे उनसे दूर कर दिया। उसके ऐसा करते ही सब शांत हो गए। वो लड़का अपना हीरो धीरज था। उसने बड़े साहब से कहा, ‘’मेरा नाम धीरज शर्मा है। आपको बता दें कि इस आगरा शहर में एक यूनियन है, हम जैसे तैयारी कर रहे स्टूडेंट्स का यूनियन। मेंबर्स ज़्यादा नहीं हैं लेकिन सबके सब ऐसे हैं जो एक बार फ़ोन करने पर इकट्ठा हो जाते हैं। अब सोचिए आपके इस ऑफ़िस के बाहर 500 स्टूडेंट्स का धरना लगा हो तो आप अपने ऊपर क्या जवाब देंगे? ज़्यादा ज़ोर ज़बरदस्ती करेंगे तो सबके सब ऐसे हैं जो ऑफ़िस के अंदर घुस कर अपना विरोध प्रदर्शन करने में एक बार भी नहीं सोचेंगे। इसलिए अच्छा होगा कि शांत रहें और अंकल की जो प्रॉब्लम है उसे सॉल्व करें। आपको ये कुर्सी इसीलिए दी ही गई है नहीं तो इस दफ़्तर का काम करने वाले बाहर बहुत बैठे हैं। और हाँ मैं ये बताना भूल गया कि मैं उस यूनियन का प्रेसिडेंट हूँ। मेरी बात महज एक धमकी लग रही हो तो आज़मा कर देख लीजिए। और इसके साथ ही ये बात भी याद रखिए कि आने वाले सालों में आप भी रिटायर होंगे और आपको भी इस ऑफ़िस में कोई काम पड़ सकता है तब हम जैसे ही तैयारी करने वाला कोई लड़का इस कुर्सी पर बैठा होगा। आप आज जैसा बिहेव करेंगे, हम भी आपके साथ वैसा ही बिहेव करेंगे। ‘’
धीरज की बातों में इतना कॉन्फ़िडेंस था कि बड़े साहब की हवा टाइट हो गई। हालांकि आगरा में ना ऐसी कोई यूनियन थी और ना धीरज की इतनी जानपहचान थी कि वो एक फ़ोन में इतने लोगों को इकट्ठा कर सके। ये तो किसी ने उसे चने के झाड़ पर चढ़ाया था। बड़े साहब ने कहा कि वो तो बैठे ही इसीलिए हैं, उन्होंने तो बस थोड़ा मज़ाक़ किया था जिसे अंकल जी ने सीरियस ले लिया। राजेंद्र ये चमत्कार देख कर हैरान था, अभी जो उसे धक्के मार रहा था वो उसे अंकल जी कह रहा है। अभी तक राजेंद्र जी ने उस लड़के को सही से नहीं देखा था जिसने अभी अभी आ कर उसकी मदद की थी।
इस सारे ड्रामे के बाद बड़े साहब ने तुरंत राजेंद्र जी का बिल दोबारा से चेक करने का ऑर्डर दिया। बिल की जाँच हुई तो सामने आया कि ये बस एक टाइपिंग एरर था। राजेंद्र का बिल सिर्फ़ 1200 रुपए आया था जिसे बारह लाख बना दिया गया था। राजेंद्र ने उस कैशियर को मुँह चिढ़ाते हुए कहा कि उनके यहाँ तो गलती की गुंजाइश ही नहीं होती ना, फिर ये इतनी बड़ी गलती कैसे हो गई। सामने बैठा कर्मचारी कुछ नहीं बोल सका। इसके बाद राजेंद्र उस लड़के को ढूंढने लगे जिसने उनकी इतनी बड़ी मदद की थी। जब उन्होंने उस लड़के को देखा तो उनके होश उड़ गए। ये तो वही था जिसे वो एक लोफर समझते थे और उसे अपने मोहल्ले से बाहर करने के लिए कई बार यादव जी को कंप्लेन कर चुके थे।
पहले उन्होंने सोचा था कि वो उस लड़के को थैंक्यू कहेंगे और उसे अपने घर बुलायेंगे लेकिन धीरज को सामने देखते ही उनका मूड बदलने लगा था लेकिन प्रतिभा ने उन्हें कहा कि उसने इतनी बड़ी मदद की है इसलिए उसे थैंक्स कहना तो बनता ही है। ना चाहते हुए भी राजेंद्र जी को धीरज के पास जाना पड़ा। उन्होंने उसे बेमन से थैंक्स कहा और पूछा कि वो अचानक यहाँ कैसे पहुँच गया। धीरज पहले तो ये सवाल सुन कर घबरा गया क्योंकि उसने नहीं सोचा था कि उससे ऐसा सवाल भी हो सकता है लेकिन फिर उसने ख़ुद को संभालते हुए कहा कि वो अपना बिल जमा करने आया था तभी उसने देखा कि उसके अपने लोग परेशान हो रहे हैं। इसीलिए वो मदद करने आ गया।
धीरज ने ‘अपने लोग’ कहते हुए प्रतिभा की तरफ़ एक हल्की नज़र घुमाई थी जिसे राजेंद्र देख नहीं पाये थे। धीरज इतने अच्छे तरीक़े से बात कर रहा था कि राजेंद्र के दिल में उसके कैरेक्टर को लेकर थोड़ी पॉजिटिव इमेज बनने लगी थी। सबसे ज़्यादा तो उन्हें उसकी वो स्पीच अच्छी लगी थी। उन्हें अपने कॉलेज के दिन याद आ गए थे। उन दिनों में वो भी तो ऐसे ही जोशीले थे। धीरज को ऐसे बातें करता देख कर एक हल्का सा ख्याल उनके दिमाग़ में आया कि अगर ऐसा लड़का उनका दामाद हो तो उनकी ताक़त कितनी ज़्यादा बढ़ जाये। जो हर समय उनके साथ खड़ा रहे। लेकिन जैसे ही उन्हें याद आया कि धीरज के पास सरकारी नौकरी नहीं है वैसे ही वो ख्याल भी फुर्र से उड़ गया। अब तो उन्हें वहाँ खड़ा होना भी टाइम वेस्ट करने जैसा लग रहा था। बात अगर सिर्फ सोचने की करें तो बड़े साहब की पहली झलक देखने के बाद भी उन्हें ऐसा ही ख्याल आया था।
क्या धीरज राजेंद्र की नज़रों में अच्छी इमेज बना पाएगा? आख़िर धीरज को कैसे पता चला कि राजेंद्र मुसीबत में हैं?
जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
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