वही प्रणव, जिसे उन्होंने अंधेरे तहख़ाने से निकाला था, जिसकी साँसे उस दिन कमज़ोर पड़ रही थीं, जिसका चेहरा पीला पड़ चुका था, जिसे बचाते हुए आरव को गोली लगी थी।
आज वो उनके सामने खड़ा था — मगर पूरी तरह बदले हुए रूप में। आरव ने उसे देखा, एक पल के लिए उसके चेहरे पर उलझन थी। यादें जैसे धुंधली तस्वीरों की तरह आँखों के सामने घूमने लगीं।
आरव (धीरे से, जैसे खुद से पूछ रहा हो), “प्रणव...?”
प्रणव की आँखें भी नम थीं। वो कुछ कह नहीं पाया, बस धीरे-धीरे कदम बढ़ाता हुआ आरव के सामने आकर खड़ा हुआ।
प्रणव (काँपती हुई आवाज़ में) बोला, “भाई...” उसकी आँखों से आँसू टपकने लगे थे।
आरव ने उसे कस कर गले से लगा लिया और कहा, “तू... तुझे ज़िंदा देख कर मैं बता नहीं सकता कि कितना खुश हूं। इतने साल... मैं... हम...” आरव की आवाज़ लड़खड़ाई। आरव ने कहा “तू ही है... मेरा भाई... मेरा जुड़वां... मेरा अक्स...”
दोनों भाई एक-दूसरे से लिपटे हुए थे, वो सालों का दर्द, वो बिछड़न, वो अन्याय — सब जैसे बह कर निकल गया। सुहानी एक कोने में खड़ी उन्हें देख रही थी। उसकी आँखों में राहत थी, संतोष था, और एक अनकहा गर्व — कि उसने इन दोनों को फिर से मिला दिया।
सुहानी (मन में) कहती है, "आज पहली बार... आरव को मुकम्मल देखा है। उसके टूटे हुए हिस्से आज फिर से जुड़ रहे हैं। और प्रणव… उसमें आरव की परछाई आज साफ़ दिखाई देती है।"
शमशेर भी अपने दोनों बेटों को एक साथ देख कर रो पड़े। वो दृश्य एक परिवार के पुनर्जन्म का था — एक नई शुरुआत…जहाँ बदला नहीं, बस बिछड़े हुए रिश्तों की वापसी हो रही थी।
कमरे में एक अजीब सी खामोशी थी। बाहर की दुनिया से कट कर, उस छोटे से पहाड़ी बंगले में आज सिर्फ़ दिल की आवाज़ गूंज रही थी।
शमशेर राठौर दीवार के पास रखी कुर्सी पर धीरे से जाकर बैठ गए। उनकी आँखें सामने खड़े अपने दोनों बेटों — आरव और प्रणव पर टिकी थीं, मगर दिल बीते वर्षों की आग में झुलस रहा था।
शमशेर ने धीमी और काँपती हुई आवाज़ में बोला…"तुम लोग सोचते हो, मैंने तुम्हें छोड़ दिया था… मगर क्या कभी कोई पिता अपनी ही औलाद से यूं मुंह मोड़ सकता है?"
उसकी आवाज़ में दर्द था, उसकी आँखों में सालों की वो रातें थीं — बिना नींद की, बिना चैन की।
शमशेर ने कहा, "उस दिन जब... जब मैंने तुम्हें वहां छोड़ा था, आरव…मेरी रूह हर दिन वहीं अटकी रही। तुम्हारी मासूम आंखें... मुझसे जवाब मांगती थीं — ‘क्यों बाबा... क्यों मुझे उन लोगों के बीच छोड़ आए?’ मगर मैं चुप था... मजबूर था..."
आरव ने पूछा, “कौन सी मजबूरी बाबा?”
शमशेर की आँखों में बीते दिनों की नमी आ गई थी। उन्होंने कांपते हाथों से अपने चेहरे को छिपाया।
शमशेर ने कहा, "मजबूरी थी — तुम्हारी ज़िन्दगी। तुम्हारी लंबी उम्र, तुम्हारा भविष्य…वो सब कुछ, जो मेरे पास नहीं था…मगर जिसे मेरे पिता — तुम्हारे दादा, विभांश राठौर अपने नाम के साथ जोड़ कर ले गए थे। उन्होंने तुम्हारे लिए एक योजना बना दी थी…एक ऐसी दुनिया, जिसमें तुम सुरक्षित तो रहोगे, मगर खुशियों के बिना और मेरे बिना। अगर मैं तुम्हें अपने साथ लाता… तो तुम्हें भी मेरी तरह एक छिपा हुआ जीवन जीना पड़ता। हर रोज़ डर के साए में, हर सांस कुछ छिन जाने वाले भय के साथ। मैं चाहता था कि तुम खुल कर जियो, चाहे मेरे बिना ही सही।"
शमशेर रुक गया। फिर अपने कांपते हुए स्वर में बोला — "मैंने अपनी पत्नी को खोया, एक बेटे को गवाया, और फिर सालों तक तुम्हें देखा… दूर से…पर पास नहीं आ सका। कभी कोई त्योहार मनाया तो बस तुम्हारे नाम की एक मोमबत्ती जलाई। हर जन्मदिन पर, बस आसमान की तरफ देख कर सोचा, 'कहीं तो खुश होगा मेरा आरव।'"
सुहानी की आँखें भर आईं थी, प्रणव की मुट्ठियाँ भींच गईं और आरव… वो स्तब्ध था। इतनी बड़ी सच्चाई, इतने सालों तक उससे छिपी रही थी।
आरव, आँखों में आँसू लिए बोला, “तो आप... हर वक्त पास ही थे?”
शमशेर ने धीरे से मुस्कुराते हुए कहा, "पास नहीं था बेटा…मगर हर रोज़ तुम्हारे लिए जीता था। तुम्हारे नाम से साँसें लेता था।"
फिर उन्होंने धीमे से कहा —"और फिर एक दिन जब मुझे खबर मिली की प्रणव भी जिंदा है…मुझे लगा भगवान ने मेरी अधूरी साँसें वापस कर दीं। और जब सुहानी प्रणव को यहाँ लाई — मैंने अपने जीवन की सबसे बड़ी हार जीत ली..."
उसके बाद कमरे में सन्नाटा था मगर वो सन्नाटा बहुत कुछ कह गया। शमशेर राठौर की आवाज़ में कंपन थी, शब्दों में एक थक चुकी आत्मा की सिसकियाँ थीं। वो अब बोल नहीं रहे थे — अपने घावों को शब्दों में उकेर रहे थे।
शमशेर की आँखें भींगी हुई थीं, जब उसने कहा, "जब मुझे ये खबर मिली कि प्रणव…प्रणव जिंदा है…तो मेरे पैरों तले ज़मीन ही खिसक गई थी। यकीन नहीं हुआ कि सालों से जिसे मैंने खो दिया था, वो आज भी इस दुनिया में साँसें ले रहा है। मगर जब उसकी असलियत सामने आई…जब सुहानी और आरव ने मुझे बताया कि वो इतने सालों से तैख़ाने में कैद था…तो मेरा दिल वहीं टूट गया।"
वो उठकर कमरे में टहलने लगे — हर कदम उसके भारी दिल की गवाही दे रहा था।
शमशेर ने आगे कहा, "मैं एक पिता हूँ…और ये जानना कि मेरा बेटा अंधेरे में, बिना सूरज की रोशनी के, बिना किसी इंसानी छुअन के, एक ज़िंदा लाश बन कर जी रहा था…ये... ये सोच कर मेरी रूह काँप उठी। मुझे खुद से घिन होने लगी थी, कि मैं उसका पिता होकर भी कुछ न कर सका।"
उसकी साँसें तेज़ हो गई थीं, जैसे दिल अब भी उस दर्द को दोहरा रहा हो। "जब सुहानी और आरव ने अपनी जान पर खेलकर उसे मुझ तक पहुँचाया, मुझे लगा जैसे भगवान ने मुझे मेरी जिंदगी वापस दे दी हो। मगर तभी खबर मिली — कि आरव को गोली लग गई है..."
एक थरथराहट सी उठी उसके शरीर में — जैसे पुराने ज़ख्म फिर से रिसने लगे थे।
"एक बेटा मेरी आंखों के सामने मौत से लड़ रहा था, दूसरा बेटा ज़िन्दगी और मौत के बीच झूल रहा था… और मैं... मैं बस देख रहा था। कुछ नहीं कर पा रहा था। क्या यही है एक पिता का भाग्य?"
उसकी आँखों में एक आँधी सी उठती है। "उस रात, मैं भगवान से बहुत लड़ा…कह दिया, 'क्यों ले रहा है तू मेरे बच्चों की परीक्षा? अगर सज़ा देनी ही है, तो मुझे दे, मेरे बेटों को नहीं। मेरे लिए दोनों ही बहुत अनमोल हैं — तेरे नाम पर भरोसा रख कर मैंने अपने बेटे को उन रक्षासों के बीच छोड़ दिया था। अब तू ही उन्हें क्यों तोड़ रहा है?'"
गहरी साँस लेते हुए वो रुकता है, “आरव उस वक़्त हवेली में बेसुध पड़ा था — बिलकुल निढाल। उसकी साँसें सिर्फ दवाओं की वजह से चल रही थीं।और प्रणव…उसे देख कर तो ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने उसकी आत्मा ही छीन ली हो। उसकी आँखों में डर, शरीर में कंपन, और चेहरे पर सवाल ही सवाल थे...”
"मैंने अपने दो बेटों को फिर से खो दिया था…भले ही वो मेरे सामने थे, मगर उनके भीतर जो टूट चुका था, वो किसी मूर्ति जैसा था — सजावट में सुंदर, मगर भीतर से खाली।"
कमरे में सन्नाटा छा गया था। आरव, प्रणव और सुहानी — तीनों की आँखें नम थीं। किसी ने कुछ नहीं कहा, क्योंकि उस क्षण — एक पिता की पुकार हर आवाज़ से ऊँची थी। शमशेर की आँखों में अभी भी पुराने ज़ख्मों की परछाइयाँ झलक रही थीं। आरव शमशेर की कहीं हुई बीती बातों को अपने दिल में उतार रहा था। सुहानी उसी के पास खड़ी थी और बीते सालों के बारे में सोच रही थी। और प्रणव एक कोने में शांत खड़ा था, कि तभी… दरवाज़े की ओर सबकी नज़रें मुड़ीं।
मुख्य दरवाज़ा खुला, और भीतर दाख़िल हुए — मीरा, विक्रम, और विशाल। उनके पीछे-पीछे, तेज़ कदमों से चलता हुआ — रमेश आ रहा था। पर उस क्षण, जैसे वक़्त कुछ सेकंड के लिए थम सा गया।
मीरा के कदम अचानक वहीं जम गए। उसकी आँखें सीधे सामने खड़े उस युवक पर टिक गईं — जिसे देखकर उसकी साँसें जैसे थम सी गईं।
मीरा ने धीरे से कहा, “प्रणव?”
वो अचकचा गई थी, उसकी आँखें हैरानी से फैल गई थीं। अब वो कोई कमज़ोर, सहमा हुआ लड़का नहीं था — उसके सामने खड़ा व्यक्ति, संभला हुआ और आत्मविश्वासी दिख रहा था। वो चुपचाप उसे देखती रही — प्रणव का बदला हुआ चेहरा, उसकी दृढ़ आँखें, वो हिम्मत जो अब उसकी चाल में झलकती थी।
प्रणव की आँखों में चमक आ गई। उसे मीरा याद थी, स्पष्ट और साफ़।
प्रणव ने मन ही मन में सोचा, "ये वही लड़की है…जिसने उस दिन मेरी खातिर अपनी जान दांव पर लगा दी थी। जिसने पहली बार मेरे लिए उन लोगों के खिलाफ जाकर वो कदम उठाये थे। अगर ये ना होती…तो शायद आज मैं जिंदा भी नहीं होता। और मेरे साथ-साथ आरव और सुहानी की भी बली चढ़ा दी जाती।"
वो कुछ सेकंड ऐसे ही एक-दूसरे को देखते रहे। फिर मीरा ने झिझकते हुए कदम आगे बढ़ाए, शमशेर को सिर झुका कर "नमस्ते" कहा। शमशेर ने एक हल्की मुस्कान के साथ सिर हिलाया, मगर उसकी नज़रें अब प्रणव और मीरा पर थीं।
प्रणव आगे बढ़ा। मीरा के सामने आकर अपना हाथ आगे बढ़ाया — और एक आत्मीय मुस्कान के साथ बोला, “शुक्रिया… उस दिन के लिए।”
मीरा ने थोड़ी हिचक के साथ उसका हाथ थामा, मगर उसकी आँखों में एक राहत थी — कि आज सामने खड़ा इंसान ठीक है, महफूज़ है। दोनों की हथेलियाँ जुड़ीं, और एक पल के लिए उनकी नज़रें आपस में टकराईं। उन नज़रों में था — सम्मान, कृतज्ञता और वो अनकहा रिश्ता, जो दो अजनबियों के बीच मुश्किल वक्त में बन जाता है।
कमरे में अब एक हल्का-सा तनाव पसरा हुआ था। मगर उस तनाव में अब उम्मीद की हल्की गर्माहट भी घुल रही थी। सब लोग एक-एक करके बैठ चुके थे — शमशेर, प्रणव, सुहानी, आरव, मीरा, विशाल, विक्रम और रमेश।
शमशेर अपने भारी स्वर में बोलता है — उसकी आँखें पूरे कमरे में घूम रही होती हैं, जैसे वो सबका मन पढ़ रहा हो।
“अब वक़्त आ गया है… हर मोहरे को अपनी जगह पर लाने का। जो-जो काम मैंने सौंपे थे, मैं एक-एक से उसका हिसाब चाहता हूँ। हमारे पास बहुत वक़्त नहीं है। सबसे पहले — विशाल, तुम्हें जो काम दिया था, शिव के रिहायी से जुड़ा हुआ, उस पर क्या अपडेट है?”
विशाल थोड़ा आगे झुककर कहता है, “जी अंकल। मैंने अपने सारे सोर्सेज को एक्टिवेट कर दिया है। पापा के केस से जुड़ी सारी फाइलें — उनका पिछले दस सालों का लॉयर रिकॉर्ड, पैसे का लेन-देन, और यहाँ तक कि जिन पुलिस वालों ने उन्हें पकड़ा था — उनके भी कॉल रिकॉर्ड्स निकलवा लिए हैं।”
शमशेर एक संतोषजनक स्वर में कहता है, “शिव प्रताप को जेल से बाहर निकालना हमारे मिशन की रीढ़ है। एक भी कड़ी छूटी तो सब कुछ ढह जाएगा। अब… रमेश तुम बताओ, मिले तुम मेरे associates से?”
रमेश थोड़ी जल्दी में, उत्साहित लहजे में कहता है, “सर, मैंने आपके सारे पुराने contacts से मुलाक़ात कर ली है। जो लोग कभी उनके सिस्टम का हिस्सा रहे थे मगर वफादार आपके लिए थे — अब चुपचाप छुप कर जी रहे हैं…उनमें से ज़्यादातर अब हमारे साथ आने को तैयार हैं। मैंने उन्हें यकीन दिलाया है कि ये लड़ाई अब कमज़ोर नहीं है। सुहानी और आरव को वो लोग अब खुल कर सपोर्ट करेंगे। मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक —जहाँ भी ज़रूरत होगी, आवाज़ उठेगी।”
प्रणव ने धीरे से मुस्कुरा कर कहा, “बहुत अच्छा काम किया रमेश तुम ने। अब हमारी कहानी सिर्फ हवेली के अंदर ही नहीं, बाहर भी गूंजेगी।”
शमशेर ने सिर हिलाते हुए हामी भरी और फिर बात को आगे बढ़ाते हुए कहा, “अच्छा। अब तीसरा और सबसे ज़रूरी हिस्सा…सिक्योरिटी।”
विक्रम आगे बढ़ते हुए बोला, “इस पर मैंने और रमेश ने मिलकर काम किया है। रमेश के कई sources हैं, वो कई लड़को को जानता है, जो हमारा साथ देने को तैयार हैं, क्योंकि कभी ना कभी उनके परिवार में से भी कोई राठौर परिवार के काले धंधों का शिकार बना है। धीरे-धीरे, और बारी-बारी से पुराने गार्ड्स को ड्यूटी से हटाया जा रहा है। किसी को भनक तक नहीं लग रही। हमारे अपने लोग अब हर मुख्य पॉइंट पर तैनात हैं — मुख्य गेट, गुप्त निकलने वाले रास्ते, तहखाना, हॉल, ऑफिस, और बाकी भी जो जो राठौरों के एस्टेट हैं, वो भी। और मैंने तो कुछ लड़को को, रणवीर के ठिकानो पर भी तैनात कर दिया है।”
आरव गंभीर आवाज़ में कहता है, “तो यानी, जब समय आएगा…तो पूरे घर की कमान हमारे पास होगी।”
शमशेर, सधी हुई मुस्कान के साथ कहता है, “बिलकुल। अब अगला कदम है — गौरवी, दिग्विजय और रणवीर को उनके ही खेल में फँसाना। हम उन पर हमला नहीं करेंगे, हम उन्हें उनकी ही चालों में उलझाएंगे। और ये सब शुरू होगा — एक सार्वजनिक सच्चाई से।”
मीरा - “कौन सी सच्चाई?”
शमशेर कहता है, “वो सच…जिसे दुनिया अब तक एक झूठ मानती आई है — मेरे ज़िंदा ना होने की सच्चाई।”
प्रणव कहता है, “अब हम छिप कर नहीं जीएंगे,
आगे की कहानी जानने के लिए पढ़ते रहिये, रिश्तों का क़र्ज़।
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