पार्थ और रागिनी जादुई डायरी का सच जानने के लिए थानेसर के पास पहुँच तो गए थे लेकिन उनके लिए ये काम घास के ढेर में से सुई ढूंढने जैसे था| बस वाले ने उन्हें एक सुनसान रास्ते में उतार दिया था। दोनों चलते-चलते एक अनजान गाँव के अंदर आ गए, जहां अजीब से महक थी और कोई भी नज़र नहीं आ रहा था। इस दौरान उन्हें बार-बार ऐसा फील हो रहा था कि कोई उनका पीछा कर रहा है| काफी देर तक चलने के बाद रागिनी थक गयी थी| उसने पार्थ से कहा,
रागिनी – मैं अब और नहीं चल पाऊँगी पार्थ| कैसा गाँव है ये? यहां इतना सन्नाटा है। ऐसा लग रहा है जैसे यहां कोई रहता ही नहीं है। पार्थ तुम इंटरनेट पर देखो न आगे का रास्ता। हम सही जगह आए भी हैं या नहीं? अब तो मुझे ये भी लग रहा है कि कहीं वो बूढ़े अंकल सच में मानसिक रूप से बीमार तो नहीं थे। शायद वो सच में सबसे ही बहकी बहकी बातें करते हों और हम उनकी बात को सच मान कर यहां चले आए।
पार्थ- रागिनी अब जो भी हो, एक बार रिस्क तो लेना ही पड़ेगा न। वैसे यहां नेटवर्क ही नहीं मिल रहा है। मैं कई बार चेक कर चुका हूँ। अब तो मुझे भी ये जगह अजीब ही लग रही है। जैसे ये बाकी दुनिया से अलग हो। एक काम करते हैं, कुछ देर यहीं बैठ जाते हैं। कोई दिखा तो ठीक नहीं तो हम लौट जाएंगे।
पार्थ और रागिनी कुछ देर आराम करने के लिए एक बंद घर के बाहर बैठ गए| पार्थ रागिनी को ज़्यादा परेशानी में नहीं डालना चाहता था, लेकिन वह कर भी क्या सकता था। रागिनी की ज़िद्द के आगे वो कुछ बोल नहीं पाता। पार्थ और रागिनी बातें कर रहे थे। तभी पार्थ की नज़र थोड़ी दूर, एक घर पर गयी| उस घर की खिड़की से एक आदमी उन्हें देख रहा था| पार्थ और उस आदमी की नज़रें मिलीं| वह दौड़कर उस घर के पास गया| रागिनी को समझ नहीं आया कि पार्थ अचानक से कहां भागा जा रहा है। वो पीछे से उसे आवाज़ देने लगी लेकिन पार्थ काफी आगे निकल गया था|रागिनी भी उसके पीछे गई। पार्थ को अपने नज़दीक आता देख वो आदमी खिड़की से गायब हो गया| पार्थ उसके घर के बाहर पहुँच कर दरवाज़ा खटखटाने लगा, लेकिन कोई भी दरवाज़ा नहीं खोल रहा था|
पार्थ – सुनिए, अन्दर जो कोई भी है, प्लीज़ बाहर आइये| मुझे आपकी हेल्प चाहिए| हम लोग काफी देर से इस गाँव में भटक रहे हैं। प्लीज़ बाहर आइये|
पार्थ के कहने पर भी अन्दर से कोई आवाज नहीं आई, जैसे अन्दर कोई हो ही न| रागिनी भी वहां आ गयी थी।
रागिनी - क्या हुआ? इस घर में कोई है क्या पार्थ?
पार्थ – इस खिड़की पर मुझे एक आदमी खड़ा दिखाई दिया था। उस से बात करने के लिए ही मैं दौड़ कर आया, लेकिन वो गायब हो गया और अब कोई अंदर से जवाब नहीं दे रहा है।
पार्थ के साथ रागिनी भी घर के अंदर रहने वालों को आवाज़ लगाने लगी। कुछ देर बाद घर का दरवाज़ा खुला और वही आदमी बाहर आया| पार्थ और रागिनी ने सुकून की सांस ली| आखिरकार उन्हें इस गाँव में कोई मिल ही गया|
पार्थ – हेलो, मेरा नाम पार्थ है| हमें आपसे कुछ बात करनी थी|
आदमी ने गुस्से में पूछा, “क्या बात करनी थी? तुम्हें पता नहीं इस गाँव में दोपहर को घर से बाहर निकलना मना है।”
पार्थ और रागिनी समझ नहीं पाए की उस आदमी ने ऐसा क्यों कहा। लोग रात को बाहर निकलने के लिए मना करते हैं लेकिन यहां दोपहर में इतनी पाबंदी है।
रागिनी – दोपहर को घूमना क्यों मना है? और इस गाँव का नाम क्या है? देखिए हम शहर से आए हैं और हमें इस बारे में कुछ नहीं पता था।
आदमी ने कहा, “इस गाँव का कोई नाम नहीं है। यहां दोपहर और रात के वक्त काली शक्तियों का आतंक मचता है। कोई उनकी चपेट में आ जाए तो उसका ज़िंदा बच पाना नामुमकिन हो जाता है। तुम दोनों को भी मरना है तो घूमो फिर।”
उस आदमी ने जो बताया, उसे सुन पार्थ और रागिनी के रोंगटे खड़े हो गए। दोनों डर के मारे एकदूसरे को देखने लगे और मन ही मन सोचने लगे कि उन्हें आगे बढ़ना चाहिए या लौट जाना चाहिए? पार्थ ने गहरी सांस ली और डिसाइड किया कि वो वापस नहीं जाएगा। इतनी दूर तक आया है, तो अपना काम कर के ही लौटेगा| उसने बैग से जादुई डायरी निकाली और उस आदमी को दिखाते हुए पूछने लगा,
पार्थ – आप इस डायरी के बारे में कुछ जानते हैं? मुझे ये डायरी यहीं कुरुक्षेत्र से मिली थी।
वो आदमी हैरान होकर डायरी देखने लगा| उसने डायरी हाथ में ली और माधव शब्द पर अपनी उँगलियाँ फेरने लगा| उस आदमी को देख कर लग रहा था कि वो ज़रूर डायरी के बारे में कुछ न कुछ तो जानता है| फिर वो आदमी पार्थ को शक की नज़रों से देखते हुए पूछने लगा, “सच बताओ, तुम्हें ये डायरी मिली है या कहीं से चुरायी है?”
पार्थ – मैं सच बोल रहा हूँ| मैं एक आर्कियोलोजिस्ट हूँ| सर्वे करते वक्त मुझे ये डायरी ज़मीन के नीचे से मिली थी, वो बड़ा सा बरगद का पेड़ है न ज्योतिसार में, वहीं से।
उस आदमी को पार्थ पर भरोसा हो गया था। वो शायद जानता था कि डायरी उसी पेड़ के नीचे थी, लेकिन कैसे? ये तो समझ के परे था। उसने पार्थ को डायरी लौटाई और कहा, “इस डायरी को संभाल कर रखना| सदियों से यह किसी इंसान के हाथ नहीं लगी थी। अगर ये तुम्हें मिली है तो ज़रूर कोई बड़ी बात होगी। इस डायरी का गलत इस्तेमाल भी किया जा सकता है, इसलिए ध्यान रहे ये किसी गलत हाथों में ना लग जाये|”
पार्थ और रागिनी की क्यूरियोसिटी और भी बढ़ गयी| उन दोनों ने डायरी के बारे में और भी सवाल किये लेकिन उस आदमी ने ज़्यादा देर तक घर के बाहर रुकने से मना कर दिया| हालाँकि उसने दोनों को गाँव के एक मंदिर में जाने के लिए कहा, जहां उन्हें उनके सवालों के जवाब मिलने वाले थे। जब पार्थ ने मंदिर जाने का रास्ता पूछा तो वो आदमी घर के अंदर चला गया और दरवाज़ा बंद कर दिया। अब पार्थ और रागिनी को खुद ही मंदिर ढूँढना था| दोनों मंदिर ढूंढने के लिए वहां से निकले। रागिनी बार-बार पीछे देख रही थी।
रागिनी – पार्थ, मुझे अभी भी फील हो रहा है कि कोई हमें फॉलो कर रहा है। कहीं ये वही काली शक्तियां तो नहीं जिसके बारे में उस आदमी ने कहा था?
रागिनी काफी डरी हुई थी| उन्हें किसी भी अनहोनी से बचने के लिए जल्द से जल्द मंदिर पहुंचना था| कुछ समय बाद उन्हें एक मंदिर दिखाई दिया| शायद ये वही मंदिर था जिसके बारे में वो आदमी बात कर रहा था| दोनों मंदिर की ओर बढ़ रहे थे। तभी अचानक से किसी ने पीछे से रागिनी के बाल पकड़ लिए| रागिनी ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने लगी|
रागिनी- पार्थ.. पार्थ बचाओ! मेरे.. मेरे बाल.. पार्थ..
पार्थ ने पीछे देखा तो पीछे कोई नहीं था| रागिनी एक जगह ही खड़ी थी और अपने हाथों से अपने खुले बालों को पकड़े थी। मानो सच में कोई अदृश्य शक्ति उसे आगे बढ़ने से रोक रही हो। पार्थ ने रागिनी का हाथ पकड़ा और उसकी मदद करने की कोशिश की, लेकिन उसे खुद न कुछ दिखाई दे रहा था और न ही समझ आ रहा था। रागिनी जितना आगे बढ़ने की कोशिश करती उतना ही उसे दर्द होता| मंदिर कुछ क़दमों की दूरी पर ही था| पार्थ ने तुरंत कुछ सोचा और अपने बैग से एक कैंची निकाली और रागिनी के थोड़े बाल काट दिए| बाल काटते ही वो आज़ाद हो गयी। रागिनी का चेहरा आंसूओं से भरा था। पार्थ ने रागिनी का हाथ पकड़ा और दोनों जैसे-तैसे अपनी जान बचाकर मंदिर के अंदर पहुँच गए। रागिनी हाँफ रही थी और घबराई हुई भी थी।
रागिनी – थैंक यू पार्थ, मेरी जान बचाने के लिए| कोई मेरे बाल सच में खींच रहा था| मैं एक कदम भी आगे नहीं बढ़ पा रही थी| यह सब क्या हो रहा है? मुझे समझ नहीं आ रहा। कहीं.. कहीं हमारी जान खतरे में तो नहीं?
पार्थ – तुम घबराओ मत रागिनी, मैं तुम्हारे साथ हूँ। कुछ नहीं होगा हमें। इस जगह पर ज़रूर कोई साया या बुरी शक्ति है।
पार्थ ने जैसे-तैसे रागिनी को समझाया। उस मंदिर में उन दोनों के अलावा भी कोई था जो उनकी बातें सुन रहा था- मंदिर का पुजारी। तभी रागिनी की नज़र उस पुजारी पर गई और वो हैरान हो गई कि दोपहर के वक्त गाँव में कोई घर से बाहर नहीं निकलता तो ये पुजारी यहां क्या कर रहे हैं?
रागिनी- पार्थ ज़रा वहां उस पुजारी को देखो। वो हमें ही देख रहे हैं। तुम्हें कुछ अजीब नहीं लग रहे वो? उनकी हाइट कुछ ज़्यादा ही लंबी नहीं है?
पार्थ- हाँ यार, उनकी आँखों में भी एक अलग ही चमक दिख रही है। खैर, इस गाँव में सबकुछ अजीब है। चलो उनसे बात कर के देखते हैं, शायद हमारी कोई हेल्प हो जाए।
दोनों पुजारी के पास गए और उन्हें प्रणाम किया। पुजारी ने दोनों के सिर पर हाथ रख कर आशीर्वाद दिया और मुस्कुराकर बिना कुछ कहे वहां से चले गए। पार्थ और रागिनी को उनका ऐसा करना बड़ा ही अजीब लगा, लेकिन उन्हें मंदिर के बाहर जितना डर महसूस हो रहा था, अंदर सेफ फ़ील हो रहा था। रागिनी मंदिर की दीवारों को देखने लगी। मंदिर काफी पुराना लग रहा था। तभी पार्थ को मंदिर के पिछले हिस्से की तरफ़ एक दरवाज़ा दिखाई दिया। वो उस दरवाज़े की ओर बढ़ा| दरवाज़े पर कोई कुंडा नहीं था। ये एक अजीब बात थी क्योंकि दरवाज़े बिना कुंडे के कहां ही बनाए जाते हैं। पार्थ ने जैसे ही दरवाज़े पर हाथ रखा, वो खुल गया। रागिनी ने डर के मारे पार्थ की बांह पकड़ ली थी। उसे डर था कि कहीं कोई नई मुसीबत उनका इंतज़ार न कर रही हो। दरवाज़े की दूसरी तरफ काफी अंधेरा था। कुछ ठीक से दिखाई नहीं दे रहा था। पार्थ ने मोबाईल की टॉर्च जलायी तो देखा कि चौखट से नीचे की तरफ़ कुछ सीढ़ियाँ जा रहीं हैं। ये सब देखकर,पार्थ का गला सूख रहा था। उसने हिम्मत की और आगे बढ़ा, लेकिन रागिनी ने उसका हाथ पकड़कर पीछे खींच लिया। सने पार्थ को कोई भी जोखिम मोल लेने से मना किया। पार्थ ने रागिनी का हाथ पकड़ते हुए कहा,
पार्थ- तुम यहीं रुको, मैं देख कर आता हूँ। डरो नहीं, ये मंदिर है यहां तुम्हें कुछ नहीं होगा।
रागिनी- अगर तुम्हें सच में देखना है कि नीचे क्या है, तो मैं भी तुम्हारे साथ चलूँगी पार्थ।
एक बार फिर रागिनी की ज़िद्द जीत गई और दोनों एक दूसरे का हाथ पकड़कर सीढ़ियाँ उतरने लगे। जैसे-जैसे वे नीचे जा रहे थे, ठंडक बढ़ रही थी। करीब 20-25 स्टेप्स उतरने के बाद सीढ़ियाँ खत्म हो गईं और पार्थ ने टॉर्च पूरी जगह पर घुमा कर देखा तो वो, वो एक तहखाना जैसा मालूम पड़ रहा था। जिसकी दीवारों पर मकड़ियाँ और कीड़े नज़र आ रहे थे। पार्थ ने दीवारों के पास जाकर देखा तो उनमें कुछ पेंटिंग्स बनी नज़र आईं- रखक्षसों की विशालकाय पेंटिंग्स, ऐसी पेंटिंग्स आज से पहले पार्थ और रागिनी ने सिर्फ किताबों में देखी थीं। पार्थ सोच रहा था कि एक मंदिर में राक्षसों की पेंटिंग्स क्या कर रहीं हैं? लेकिन इस समय उसके पास कोई जवाब नहीं था। रागिनी उन्हें देख डर रही थी, उसने पार्थ से वापस चलने को भी कहा, लेकिन पार्थ वहाँ कुछ ढूँढ रहा था कि तभी तहखाने की ज़मीन हिलने लगी और ऊपर से मिट्टी गिरना शुरू हो गई। उन दोनों को कुछ समझ नहीं आ रहा था।
रागिनी- ये सब क्या है पार्थ? कहीं ये भूकंप तो नहीं? हमें यहां से निकलना होगा, अभी।
पार्थ- हाँ, जल्दी चलो यहां से।
दोनों तुरंत ही सीढ़ियों के पास आए लेकिन इससे पहले की वो चढ़कर ऊपर जा पाते, न जाने कहाँ से एक बड़ा सा पत्थर उनके सामने आ गया और बाहर निकलने का रास्ता बंद हो गया। पार्थ और रागिनी उस तहखाने में फंस गए।
अब कैसे निकलेंगे पार्थ और रागिनी उस अंधेरे तहखाने से बाहर?
क्या डायरी का सच जानने के चक्कर में उन दोनों को गंवानी पड़ेगी अपनी जान?
आगे क्या होगा, जानेंगे अगले चैप्टर में!
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