प्रकाश को लग रहा था कि वो अपनी मंजिल तक पहुँचने ही वाला है। उसने तिजोरी तोड़ने की कोशिश की, लेकिन तभी पार्थ घर आ गया। उसने प्रकाश को पीछे से आवाज़ लगाई, 

पार्थ – मामाजी, ये तिजोरी के साथ क्या कर रहे हैं आप?

पार्थ की आवाज़ सुनकर प्रकाश के हाथ सुन्न पड़ गए| वो धीरे से उसकी तरफ मुड़ा| प्रकाश को डर था कि अगर उसने कोई अच्छा बहाना नहीं दिया तो पार्थ उसे पकड़ लेगा और उसके लिए डायरी हासिल करना मुश्किल हो जायेगा| वो हिचकिचाते हुए बोला,

प्रकाश– कुछ नहीं बस अपने कपड़े अलमारी में रख रहा था, तभी मेरी नज़र तिजोरी पर गयी| मेरा छोड़ो। ये बताओ तुमने तिजोरी लॉक क्यों की है? इतने सालों में मैंने कभी भी तिजोरी लॉक नहीं देखी। तुमने मेरे आते ही तिजोरी लॉक कर दी क्या? चल खोल अभी इसे, देखूँ ऐसा कौन सा खज़ाना छुपा रखा है यहां। 

प्रकाश ने इस तरह से बिहेव किया जैसे उसे नहीं पता की तिजोरी में क्या है। अब पकड़े जाने का डर पार्थ पर था क्योंकि अगर उसने तिजोरी खोल दी तो कृष्ण की डायरी के बारे में प्रकाश को सब बताना पड़ेगा और नहीं खोली तो मामा नाराज़ हो जायेंगे|

पार्थ – ऐसी बात नहीं हैं मामाजी| तिजोरी तो बहुत पहले से लॉक है| इसमें कुछ पैसे पड़े हैं इसलिए लॉक है| आप तो जानते हैं, आजकल दिन दहाड़े चोरियां होने लगी हैं। 

पार्थ अपनी बात ख़त्म करता उस से पहले ही रागिनी का कॉल आ गया। पार्थ ने सोचा कि बिलकुल सही वक्त पर रागिनी ने कॉल किया है| वो बात करने के लिए बाल्कनी में चला गया| प्रकाश भी हॉल की तरफ चला गया। पार्थ ने रागिनी को फ़ोन पर सारी बातें बताई जो उस बुड्ढे आदमी ने बताईं थीं| पार्थ की तरह रागिनी भी सोच में पड़ गयी और पूछने लगी,

रागिनी – अब तुम क्या करोगे? 

पार्थ – करना क्या है रागिनी, मुझे एक बार उस जगह तो जाना ही होगा। उस बुड्ढे आदमी ने कहा था कि मुझे उस जगह जाना है जहां पांडवों ने कौरवों को मात दी थी, यानि वो कुरुक्षेत्र की ही बात कर रहा था। देखो रागिनी, लोग उस आदमी को पागल बताते हैं, लेकिन कुछ चीजें हैं जो मेरे और तुम्हारे अलावा कोई नहीं जानता। इसलिए मैं उसकी बात पर विश्वास करने पर मजबूर हूँ। मैं दो दिन बाद ही कुरुक्षेत्र जाने की सोच रहा हूँ| जब तक मुझे इस जादुई डायरी का पूरा सच नहीं पता चल जाएगा, मैं चैन की नींद नहीं सो सकता| 

पार्थ अपने ऊपर खुद ही दुनिया को बचाने की जिम्मेदारी का भार महसूस करने लगा था।  उसने मान लिया था कि जादुई डायरी का हकदार सिर्फ वही है और वही इस दुनिया को बचा सकता है| दूसरी तरफ रागिनी पार्थ को उसके इस मिशन में अकेला नहीं छोड़ना चाहती थी| 

रागिनी – ठीक है फिर मैं भी तुम्हारे साथ चलूंगी| इस जादुई डायरी ने मेरी भी हेल्प की है, इसलिए मेरी भी रिस्पॉन्सिबिलिटी बनती है कि मैं तुम्हारा साथ दूँ। 

पार्थ ने रागिनी को मना करने में एक सेकंड भी नहीं लगाया| उसने कहा,

पार्थ – नहीं रागिनी, तुम मेरे साथ नहीं चल सकतीं| पता नहीं वहां क्या होगा। शायद तुम्हारी जान को खतरा भी हो सकता है और फिर तुम अपने मम्मी पापा से क्या कहोगी? वो लोग तुम्हें मेरे साथ नहीं जाने देंगे|

रागिनी -  मैं कह दूंगी कि मेरी दोस्त की शादी है और जाना ज़रूरी है| मम्मी पापा से मैं बात कर लूंगी पार्थ। उसकी तुम चिंता मत करो, लेकिन मैं तुम्हारे साथ चल कर ही रहूंगी और ये फाइनल है। 

पार्थ उसे बार-बार समझा रहा था लेकिन वो मानने को तैयार ही नहीं थी| पार्थ आखिरकार रागिनी को साथ ले जाने के लिए मान ही गया| एक तरह से वो खुश भी था क्यूंकि अब उसे कुछ दिन रागिनी के साथ टाइम बिताने को मिलेगा। एक तरफ ख़ुशी थी लेकिन दूसरी तरफ एक बड़ा चैलेंज भी था। इस ट्रिप के बारे में पार्थ को अपने मामा से बात करनी थी। पार्थ को डर था कि कहीं प्रकाश बुरा ना मान जाये क्योंकि वो आज सुबह ही घर आये थे और पार्थ प्रकाश को एक हफ्ते के लिए घर पर अकेले नहीं छोड़ना नहीं चाहता था, लेकिन उसका जाना भी जरुरी था| वह प्रकाश के पास बात करने के लिए गया और हिचकिचाते हुए बोला,

पार्थ – मामाजी आप से बात करनी थी| मथुरा में मेरे एक दोस्त की शादी है| मैंने उस से वादा किया था कि मैं उसकी शादी में जरुर आऊंगा| अगर नहीं गया तो उसे बुरा लगेगा|

प्रकाश – हाँ तो जा ना किसने मना किया है? दोस्तों की शादी में तो जाना ही चाहिए वरना वो लोग भी तुम्हारी शादी में नहीं आयेंगे| वैसे कब है शादी?

पार्थ – शादी परसों है, लेकिन आप को अकेले छोड़ कर कैसे जा सकता हूँ? मुझे भी समझ नहीं आ रहा क्या करूँ?

पार्थ प्रकाश के मुंह से हाँ बुलवाना चाहता था ताकि उसे बुरा ना लगे| पार्थ को डर था की कहीं प्रकाश मना ना कर दे लेकिन प्रकाश खुश था| उसे यही तो चाहिए था| एक हफ्ते तक पार्थ घर में नहीं होगा तो प्रकाश आसानी से तिजोरी तोड़ कर डायरी ढूंढ पायेगा। उसे पक्का यकीन था पार्थ को वो डायरी  मिल गयी है और वो उससे छिपा रहा है ये बात। पार्थ को घर से दूर रखकर प्रकाश को लगा की उसका मकसद भी पूरा हो जायेगा और पार्थ को उस पर शक भी नहीं होगा| प्रकाश ख़ुशी-खुशी  बोला,

प्रकाश – अरे बेटा तुम मेरी चिंता मत करो| इस घर में मैंने तुमसे ज्यादा टाइम निकाला है| मुझे पता है कैसे अकेले रहते हैं| तुम बिना किसी टेंशन के अपने दोस्त की शादी में जाओ और एन्जॉय करो| घर की बिलकुल भी चिंता मत करना, मैं संभाल लूँगा|

प्रकाश और पार्थ दोनों खुश थे| दोनों जो चाहते थे वो ही हो रहा था| रागिनी ने भी अपने घर में दोस्त की शादी का बहाना बना कर परमिशन ले ली थी। पार्थ ने कुरुक्षेत्र जाने के लिए कैब भी बुक कर ली थी| दिल्ली से कुरुक्षेत्र सिर्फ तीन घंटा दूर था लेकिन पार्थ नहीं जानता था कि वहां उसे कितने दिन बिताने पड़ सकते हैं| दो दिन बाद दोनों कैब में बैठ कर दिल्ली से रवाना हुए| रागिनी को दो सूटकेसस के साथ देख कर पार्थ को बड़ा ताज्जुब हुआ था| उसने पूछा, 

पार्थ -  रागिनी हम कहां जा रहे हैं? लेह लद्दाख? तुम्हें पता है न कि हम किसी वैकैशन पर नहीं जा रहे? 

रागिनी – ओ हो, चिल पार्थ। ये मेरी मम्मी भी न, उन्होंने सारी पैकिंग की है| सारे भारी-भारी लहंगे पैक कर दिए| बोल रहीं थीं कि सब को पता चलना चाहिए कि मैं दुल्हन की दोस्त हूँ| तुम शायद भूल गए कि मैंने दोस्त की शादी का बहाना बनाया है घर में। 

पार्थ रागिनी की हालत देख कर ज़ोर से हंसने लगा| उसे रागिनी पर दया आ रहा थी और खुद पर भी क्योंकि अब उसे इन दोनों बैग्स का बोझा उठाना पड़ेगा। 

पार्थ – मेरा बैग देखो, ऐसा लग रह है कि मैं कॉलेज जा रहा हूँ और एक तुम हो जो बिना शादी के लहंगा लेकर घूम रही हो। अब लहंगा साथ में लिया है तो कुरुक्षेत्र में अच्छा सा लड़का देख कर शादी भी कर लेना|

पार्थ रागिनी को तंग करने का कोई भी मौका नहीं छोड़ता था। हां, रागिनी को भी उसका ऐसे तंग करना अच्छा लगता था| वो शरमाते हुए बोली,

रागिनी – कुरुक्षेत्र के लड़के से क्यों शादी करुँगी? दिल्ली के लड़कों में क्या कमी है? अगर शादी करुँगी तो दिल्ली के लड़के से ही करुँगी| तुम अपना फोकस डायरी के बारे में इन्फॉर्मेशन निकालने में रखो,कहीं वहां किसी लड़की पर लट्टू मत हो जाना। 

पार्थ -  तुम साथ हो तो किसी और लड़की के पीछे कैसे लट्टू हो सकता हूँ? 

रागिनी- क्या कहा?

पार्थ- मतलब तुम मुझे किसी लड़की से बात भी नहीं करने दोगी| याद है कैसे कॉलेज में, किसी लड़की की हिम्मत भी नहीं होती थी मेरे आसपास भी भटकने की और ये सब होता था तुम्हारी वजह से। सबको लगता था कि हम दोनों पार्टनर्स थे।  

पार्थ की बातों से रागिनी के गाल शर्म के मारे लाल हो गए थे| ड्राईवर भी उन दोनों की बातें सुन कर मुस्कुरा रहा था, लेकिन पार्थ और रागिनी को कोई फर्क नहीं पड़ रहा था| पूरे रास्ते में दोनों इसी तरह एकदूसरे को तंग करते रहे। तीन घंटे बाद वो कुरुक्षेत्र पहुँच गए थे, जहां एक होटल में उन्होंने चेक-इन किया। पार्थ ने दो रूम्स बुक किये थे ताकि रागिनी को कोई दिक्कत न हो| दोनों अपने अपने रूम्स में फ्रेश होने चले गए। पार्थ को अभी तक नहीं पता था कि उसे जाना कहां है| उसने सोचा कि उस बुड्ढे आदमी ने कहा था कि जहां युद्ध हुआ था, वहां जाना है। पार्थ के हिसाब से वो जगह ज़रूर कुरुक्षेत्र की सबसे पुरानी जगह होगी। उसने होटल के ओनर से आसपास के गांवों के बारे में पूछा| ओनर ने बहुत लंबी लिस्ट सहरे कर दी, जिससे पार्थ उलझ गया। उसने फिर युद्ध भूमि के पास के गाँव के बारे में पूछा तो ओनर ने थानेसर बताया। अब पार्थ को पता चल चुका था कि उसे कहां से शुरू करना है अपना मिशन। 

दोपहर के बारह बजे दोनों ने लंच किया और थानेसर की ओर जाने के लिए निकले| टैक्सी स्टैन्ड पहुँच कर उन्हें पता चला कि टैक्सी वालों की हड़ताल है। उन्हें मजबूरन फिर बस का इंतज़ार करना पड़ा, लेकिन ये इंतज़ार बहुत लंबा हो गया। कोई बस थानेसर की तरफ नहीं जा रही थी। कुछ देर बाद एक टूटी-फूटी, पुराने मॉडेल की बस उनके पास आकर रुकी। रागिनी ने बस ड्राइवर से थानेसर चलने के लिए पूछा तो उसेन एक बार में ही हाँ कर दिया। पार्थ को बस और ड्राइवर दोनों ही ठीक नहीं लग रहे थे। 

पार्थ- रागिनी किसी और बस में जाएंगे हम। इसमें नहीं.. 

रागिनी- पार्थ टाइम निकल रहा है। इसमें बुराई क्या है? ये हमें थानेसर पहुँचा देगी। अब तुम कुछ भी मत सोचो, बस चलो यहां से। 

पार्थ और रागिनी बस में चढ़ गए। जब अंदर जाकर देखा तो उसमें उनके और ड्राइवर के अलावा कोई भी नहीं था, लेकिन पार्थ रागिनी की वजह से चुपचाप बैठ गया। एक घंटे बाद ड्राइवर ने बस रोकी और कहा, “आ गई आपकी मंज़िल।” 

पार्थ और रागिनी बस से नीचे उतर गए। पार्थ को याद आया कि उसने बस वाले को रुपए तो दिए ही नहीं। जैसे ही वह रुपए देने मुड़ा, बस वहां से ऐसे गायब हुई जैसे हवा। पार्थ हैरान रह गया!

बस वाले ने उन्हें एक ऐसी जगह छोड़ दिया था जहां से कहां जाना है, वो उन्हें समझ ही नहीं आ रहा था। पार्थ अंदाज़े के हिसाब से पूरब की तरफ बढ़ने लगा, जहां उसे दूर से एक गाँव नज़र आया। पार्थ को लगा कि शायद यही वो जगह है जिसे वो लोग ढूंढ रहे थे। गाँव के करीब पहुँचकर पार्थ और रागिनी दोनों को बहुत अजीब लग रहा था। पूरे रास्ते में उन्हें गर्मी लगती रही लेकिन गाँव में एंटर होते ही ठंडी हवाएं चलने लगीं| जैसे-जैसे वो आगे बढ़ रहे थे गाँव का माहौल और भी अजीब होता जा रहा था| एक खामोशी जो शायद किसी चीख से भी ज़्यादा डरावनी लग रही थी। वो गाँव कौन सा था, ये पार्थ और रागिनी को पता नहीं चल पाया क्योंकि उन दोनों को अभी तक एक भी आदमी वहां नहीं दिखा था| सारे घर भी बंद थे। तभी अचानक से रागिनी को महसूस हुआ कि उसके पीछे कोई खड़ा है| उसने फ़ौरन मुड़कर देखा लेकिन पीछे कोई नहीं था| रागिनी ने पार्थ को इस बारे में बताया|

रागिनी – पार्थ पता नहीं क्यों लेकिन मुझे ऐसा लग रहा है कि कोई हमें फॉलो कर रहा है|

पार्थ – मैं बताना नहीं चाह रहा था लेकिन मुझे भी सेम फीलिंग आ रही है रागिनी| कुछ तो अजीब है इस जगह। हम सही लोकेशन पर आए भी हैं या नहीं? मैं पहले भी थानेसर या चुका हूँ। वो ऐसा तो नहीं लगता। यहां अभी तक एक आदमी भी नहीं दिखा है। क्या हमें वापस जाना चाहिए?

रागिनी ने पार्थ के इस सवाल पर उसकी ओर देखा और गहरी सोच में डूब गई। 

ये कौन सी जगह है जहां पार्थ और रागिनी आ गए हैं? 

क्या पार्थ को यहां डायरी का कोई छुपा राज़ पता चलेगा? 

आगे क्या होगा, जानेंगे अगले चैप्टर में!

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