सर्द रात का सन्नाटा हवेली की दीवारों पर धीरे-धीरे उतर रहा था। चाँद की रौशनी बालकनी की जाली से छनकर फ़र्श पर जाल बुन रही थी। हवा में एक अजीब सी घुटन थी—जैसे हवेली खुद अपने सीने में सदियों पुराने राज़ों को दबाकर कराह रही हो।
सुहानी धड़कते दिल के साथ अपने कमरे की बालकनी की दीवार लांघकर अंदर उतरी। पाँव ज़मीन पर रखते ही उसने एक बार फिर पीछे मुड़कर देखा—जहाँ से वो आई थी... तहख़ाना।
लेकिन वो सिर्फ तहख़ाने से नहीं लौटी थी, वो लौटी थी उन स्याह परछाइयों से, जिनमें इंसानियत साँस लेना तक भूल चुकी थी।
उसका मन अब भी वहीं अटका हुआ था... उस जंजीर में जकड़े चेहरे पर, जिसकी आँखों में अपना सब कुछ खो देने का ग़म था— तो अब अपने पापा और जुड़वा भाई के लिए ज़िंदा रहने का सपना।
“चलो मेरे साथ... मैं तुम्हें इस ज़ंजीर से छुड़ाकर ले जाऊँगी।”
उसने आखिरी कोशिश की थी। उसकी आवाज़ भावनाओं से भरी हुई थी, और आँखें नम।
लेकिन प्रणव बस मुस्कराया था। नहीं, वो मुस्कान नहीं थी—वो एक थक हार चुके इंसान की झलक थी, जिसे अब एक उम्मीद से ज़्यादा अपनों की सलामती प्यारी थी।
“अगर मैं इस ज़ंजीर से निकल भी गया... तो भी मैं सुरक्षित नहीं रहूँगा। और तुम भी फंस जाओगी, सुहानी।”
वो एक चेतावनी नहीं थी, एक सच्चाई थी, जिसे हवा में भी महसूस किया जा सकता था। हवेली में रहकर, कोई सुरक्षित नहीं रह सकता था... ख़ासकर वो, जो सच्चाई बाहर लाना चाहता हो।
थोड़ी देर की ख़ामोशी के बाद उसने धीमे से कहा था,
“तुम जाओ। आरव को सब कुछ बताओ। उसके साथ मिलकर एक पुख़्ता प्लान बनाओ। जब, सब तय हो जाए... तब मुझे लेने आना। ताकि किसी की जान को ख़तरा न हो।”
सुहानी ने सिर हिलाया था, लेकिन उसका दिल जानता था—ये इतना आसान नहीं है। हवेली की दीवारें सिर्फ ईंटों से नहीं बनी थीं, उनमें लालच, धोखा और ख़ून की दास्तां सींची गई थी। कोई भी सच, यहाँ आसानी से ज़ुबान तक नहीं पहुँचता।
वो जानती थी कि आरव तक सच्चाई ले जाना एक खेल नहीं, एक जंग होगी। आरव... जो खुद अपनी माँ की मौत का बदला लेने निकला था, क्या उस पर भरोसा किया जा सकता है? या शायद... अब यही एकमात्र रास्ता बचा था।
उसने तुरंत अपने दिमाग़ में एक प्लान बनाना शुरू किया।
“मैं आरव को सब कुछ बताऊँगी... अभी, इसी वक़्त। और फिर हम मिलकर ऐसा रास्ता निकालेंगे कि प्रणव को इस नरक से निकाल सकें।”
लेकिन सिर्फ़ इतना काफ़ी नहीं था।
उसने अपने फ़ोन में एक पुराना नंबर निकाला—अस्पताल के उस वॉर्डबॉय का, जिसने शिव प्रताप के कहने पर उसकी मदद की थी।
"मैं उसे प्रणव के जिंदा होने की खबर दूँगी। ताकि ये बात शमशेर राठौर तक पहुँच सके। वो कम से कम अपने बेटे की सुरक्षा का बंदोबस्त तो कर ही सकते हैं..."
उसका मन काँप गया।
शमशेर राठौर, जो सालों पहले सारे रिश्तों की चिता पर खड़े थे, अब अपने बेटों को बचाने की पूरी कोशिश करेंगे।
वो जानती थी।
आज पहली बार, डर से ज़्यादा उसके अंदर जिम्मेदारी की ज्वालामुखी जाग रही थी।
शायद, आज वो सिर्फ़ सुहानी नहीं थी—वह, आज वो औरत थी, जो किसी की ज़िंदगी के लिए लड़ने निकली थी... और पीछे हटना अब उसके लिए मुमकिन नहीं था।
सुहानी ने जैसे ही बालकनी से कमरे में कदम रखा, उसकी साँसे तेज़ चलने लगी थी। ठंडी हवा उसके पसीने से भीगी पीठ को छूकर जा रही थी, मगर अंदर की बेचैनी उससे कहीं ज़्यादा ठंडी थी। उसका दिल अब भी तहख़ाने की जंजीरों में अटका हुआ था।
धीरे से, उसने अपने कंधे से बैग उतारा—सावधानी से, जैसे कोई विस्फोटक हो उसमें।
उसने प्रणव को रैपर उतार कर सारे energy bars, पानी की छोटी सी बोतल, और एक जोड़ी दवा की गोलियाँ दे दिए थे, जो उसने अपने बैग में रखा था।
लेकिन जैसे ही उसने बैग नीचे रखा—
कमरे के भीतर कुछ हलचल हुई।
शायद परदे की सरसराहट?
या फिर किसी के जूतों के खिसकने की आवाज़?
सुहानी एक पल को थम गई।
उसका दिल तेज़ धड़कने लगा। उसने एक भी कदम आगे नहीं बढ़ाया।
ना ही पीछे मुड़कर देखा।
बस धीरे से—अपने बालों में खोंसी हुई वो पतली, काली hair stick निकाली, जो बाहर से सिर्फ़ एक सजावट लगती थी, मगर असल में उसके पास वो एकमात्र हथियार था जो उसने अपनी सुरक्षा के लिए रखा था।
धातु की बनी हुई, नुकीली और भरोसेमंद।
उसने उसे कसकर अपनी हथेली में पकड़ा।
उसकी साँसें अब धीमी और गहरी हो चुकी थीं। आंखें धीरे-धीरे कमरे के अंधेरे में उस कोने की ओर जा रही थीं जहाँ वो हलचल हुई थी।
वो आहट को पहचानने की कोशिश कर रही थी।
और तभी—
कमरे के उस कोने से एक चेहरा उभरा।
आरव।
वो बिस्तर पर बैठा था, कोहनियाँ घुटनों पर टिकी हुई थी और आँखें सुहानी की तरफ...
चाँद की रौशनी खिड़की से छनकर आई और उसके चेहरे पर पड़ी।
वो चेहरा... थका हुआ था।
पर उसकी थकावट देर रात तक काम करने से नहीं हुई थी।
उसकी आँखों में... कुछ टुटा हुआ था।
लेकिन उनमें ग़ुस्सा नहीं था।
न शक।
न बदले की आग।
बल्कि... एक अजीब सी हार।
जैसे उसके अंदर का तूफ़ान अब थक चुका हो।
वो कुछ नहीं बोला।
बस यूँ ही उसे देखता रहा।
सुहानी के हाथ में अब भी हेयर स्टिक थी, लेकिन उसकी पकड़ उस पर ढीली पड़ गई थी।
एक लम्हे के लिए दोनों के बीच सिर्फ़ चाँदनी थी... और वो ख़ामोशी, जो किसी शोर से भी ज़्यादा loud था।
फिर आरव ने नज़रें झुका लीं।
और वो हल्के से बुदबुदाया...
"तुमसे कहा था मैंने... कहीं मत जाना। किसी ख़तरे में मत पड़ना। पर तुमने मेरी एक भी नहीं सुनी," उसकी आवाज़ थकी हुई थी, दर्द से भरी।
सुहानी उसके पास जाकर खड़ी हो गई।
खामोशी इतनी गहरी थी कि सुहानी को अपने दिल की धड़कनों की आवाज़ साफ़ सुनाई दे रही थी।
उसका दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा जब आरव ने कहा—
“तुम कहती हो मैं फिक्र नहीं करता... पर मेरी दुनिया तो अब बस तुम्हारे चारों ओर घूमती है, सुहानी।”
वो एक पल को रुका, जैसे गला भर आया हो।
"मैं सब कुछ खो चुका हूँ। माँ, पापा, भाई... हर कोई। हर रिश्ता मेरी आँखों के सामने मुझसे छिन गया। पर एक तुम ही हो... बस एक तुम। तुम्हें नहीं खो सकता। तुम्हें नहीं खो सकता... तुम ये क्यों नहीं समझती?”
उसकी आँखें भर आई थीं।
उसके हर लफ़्ज़ जैसे सुहानी के सीने में उतरता गया।
उसके होंठ थरथराने लगे, पर वो कुछ नहीं बोली।
वो बस देखती रही — आरव की आँखों में, जो अब किसी गहराई में डूब चुकी थीं।
वो कुछ पल चुप रहा।
और फिर उसने धीमी आवाज़ में अपना सवाल को दोहराया—
"तुम ये क्यों नहीं समझती?"
वो धीरे से आरव के सामने ज़मीन पर बैठ गई।
आरव का चेहरा अपने दोनों हथेलियों के बीच लिया।
और फिर... बहुत ही नरमी से, उसके माथे को चूम लिया।
"मुझे माफ़ कर दो, आरव..."
उसकी आवाज़ काँप रही थी,
"मेरी वजह से तुम इतने परेशान हो गए..."
आरव की पलकें डबडबा उठीं।
वो कुछ नहीं बोला।
बस एक गहरी साँस ली।
उसका माथा अब भी सुहानी की हथेलियों में था — वहां उसे शान्ति मिली, जिसकी उसे सख्त ज़रूरत थी।
जब सुहानी रात को अपने कमरे में नहीं मिली, आरव की जैसे साँसें बंद सी हो गई थी।
बिना किसी को बताए वो पूरे महल में ढूँढता रहा।
हर कोना, हर बालकनी, हर अँधेरा रास्ता...
उसका फोन बार-बार मिलाने की कोशिश करता रहा। लेकिन वो बंद था।
उसके भीतर कही एक डर ने घर कर लिया था—
कि कहीं फिर से... वो किसी को ना खो दे।
और अब...
जब वो सामने थी—
तो वो समझ नहीं पा रहा था, की वो उसे अपने मन में उठ रहे बवंडर को कैसे शब्दों में समझाए।
आरव अब भी बिस्तर पर बैठा था, माथे पर सुहानी के होठों के स्पर्श को महसूस करते हुए। लेकिन उसकी आँखों में अब भी सुकून नहीं था — वो सवालों से भरी हुई थीं।
जैसे ही उसने सुहानी की आँखों में झाँका, एक अजीब बेचैनी से भर गया।
"कहाँ थी तुम?"
उसकी आवाज़ काँप रही थी।
लेकिन इस बार उसकी आवाज़ में गुस्सा था।
उसके भीतर का डर गुस्से में बदल चुका था।
"मैं पूछ रहा हूँ, सुहानी... कहाँ थी तुम?"
अबकी बार वो लगभग गिड़गिड़ा रहा था।
जैसे उस जवाब पर उसका सब कुछ टिका हो।
सुहानी की जुबान मानो तालू से चिपक गई हो।
वो कुछ भी कहने से पहले कई बार हिचकी — दिल धड़क रहा था इतनी तेज़ कि जैसे कमरे में उसकी धड़कनें ही गूंज रही हों।
कैसे बताऊं उसे?
कैसे कहूँ कि वो उस तहख़ाने में गई थी — उस जगह, जो इस हवेली का शाप है।
लेकिन फिर... उसने खुद को क़ाबू में किया।
उसने गहरी सांस ली।
और ज़मीन पर नज़रें गड़ाए हुए धीमे लेकिन ठोस लहजे में कहा—
"आरव... मुझे तुमसे कुछ कहना है। बहुत जरूरी बात है। ध्यान से सुनना..."
वो रुकी, फिर सिर उठाकर उसकी आँखों में देखा।
"मैं... उस तहख़ाने में गई थी।"
एकदम सन्नाटा।
आरव का चेहरा पल भर को जैसे पत्थर हो गया था।
फिर— वो एक झटके से खड़ा हो गया।
"क्या?"
उसकी आवाज़ इतनी तेज़ थी कि कमरा कांप उठा।
"क्या तुम पागल हो गई हो?" वो आग बबूला था।
"तुम्हें अंदाज़ा भी है कि वहाँ कितना ख़तरा है? मैं तुम्हें हज़ार बार मना कर चुका हूँ!"
"मुझे पता है..." सुहानी की आवाज़ काँप रही थी, लेकिन आँखों में कोई पछतावा नहीं था।
"मगर मुझे वहाँ कुछ दिखा, आरव... कुछ ऐसा जो तुम्हें अपनी आँखों से देखना चाहिए। सिर्फ़ मेरी बातों से तुम यकीन नहीं करोगे।"
आरव की साँसे तेज़ चलने लगीं।
उसके चेहरे पर चिंता और क्रोध की लकीरें गहरा गईं।
"मेरे साथ चलो," सुहानी ने धीरे से हाथ आगे बढ़ा कर उसका हाथ थाम लिया।
"प्लीज़, मुझे यकीन है कि अगर तुमने खुद देखा, तो..."
लेकिन आरव ने झटके से अपना हाथ पीछे खींच लिया।
"हम वहाँ वापस नहीं जा रहे!"
उसकी आवाज़ अब सख़्त और फौलादी थी।
"मैं देख चुका हूँ, सुहानी! वहाँ कुछ भी नहीं है। सब कुछ देखा मैंने — हर कोना, हर दराज़... कुछ नहीं था वहाँ!"
सुनते ही सुहानी का धैर्य टूट गया।
उसके भीतर दबा आक्रोश अब बाहर फूट पड़ा।
"तो फिर तुमने वो पेन ड्राइव गौरवी को क्यों दे दिया?"
उसकी आवाज़ काँप रही थी, मगर अब डर नहीं था उसमें, बस गुस्सा।
"अगर वो आज हमारे पास होती, तो मैं तुम्हें सबूत दिखा सकती थी! तुमने ऐसा कैसे किया, आरव?"
आरव चुप हो गया।
कमरे में अचानक से एक अजीब सी ठंडी खामोशी फैल गई।
सुहानी की आँखें अब सवाल पूछ रही थीं।
और फिर...
आरव ने धीरे से कहा।
"क्या तुम उस वीडियो की बात कर रही हो?"
उसकी आवाज़ धीमी, मगर बहुत सधी हुई थी।
"जिसमें वो रहस्यमयी आदमी दिखा था?"
सुहानी सन्न रह गई।
उसने आरव की आंखों में देखा।
आरव की आँखों में अब भी सवालों का सैलाब था, पर उनके नीचे छुपा डर साफ़ झलक रहा था। वही डर जो एक चाहने वाले का होता है — खो देने का डर।
“मैंने उसका बैकअप लिया था,” उसने गहरी साँस लेते हुए कहा, “और मैं वही वीडियो दिखाने गया था रणवीर और विक्रम से मिलकर... उन्होंने मुझसे वादा किया है कि वो हर तरह से मेरी मदद करेंगे।”
यह सुनकर सुहानी जैसे सन्न रह गई। उसके चेहरे पर हैरानी, चिंता और गुस्से का अजीब सा मिश्रण था।
वो झटके से उसकी ओर आई — “तुमने क्या किया? तुमने वो वीडियो उन्हें दिखा दिया? रणवीर चाचू को? पर क्यों? तुम्हें तो उन पर भरोसा नहीं था।
आरव की आँखें अब सख्त हो गईं — “मगर तुम्हें था। लेकिन… अब नहीं है?”
“तुमने बताना भी ज़रूरी नहीं समझा... तुम मुझसे किसी भी चीज़ में बात क्यों नहीं करते, आरव?” उसकी आवाज़ अब गुस्से से काँप रही थी।
आरव का चेहरा थोड़ी देर के लिए भावशून्य रहा, फिर उसने कहा — “जैसे तुम करती हो?”
सुहानी की रग-रग सुलग उठी। उसकी आवाज़ काँपी, लेकिन उसमें दर्द के साथ आक्रोश भी था —
“क्योंकि मुझे तुम पर भरोसा नहीं है। लेकिन अब... अब तुमने जो किया है, उससे सब कुछ और भी उलझ गया है, आरव!”
एक चुप्पी खिंच गई। दोनों की साँसे तेज़ थीं, लेकिन फिर सुहानी ने अपने भीतर के डर और असमंजस को किनारे कर एक स्पष्टता के साथ कहा —
“हमें अभी उस तहख़ाने में वापस जाना होगा... और उसे वहाँ से निकालना होगा।”
आरव ने उसकी तरफ चौंककर देखा। माथे पर लकीरें गहरा गईं — “किसे निकालना होगा?”
सुहानी ने उसकी आँखों में झाँका, जैसे किसी गहरे रहस्य की डोर अब खुलने वाली हो।
“क्या तुम्हें याद है,” उसने धीरे से पूछा, “वो रहस्यमयी आदमी तहख़ाने के मुख्य दरवाज़े से नहीं... एक दूसरे दरवाज़े से अंदर आया था?”
आरव के चेहरे पर भाव पत्थर बन गए थे। वो सोचने लगा — उस पल को, उस परछाई को जो उस वीडियो में अचानक एक अदृश्य रास्ते से आई थी।
“वो दरवाज़ा ऐसे नहीं दिखता,” सुहानी ने आगे कहा, “लेकिन बहुत तलाश के बाद... जब मैं दीवार टटोल रही थी... मैंने गलती से एक ईंट दबा दी। और वो दरवाज़ा खुल गया।”
आरव की सांसें थमने लगी। दिल की धड़कनें तेज़ होने लगीं।
“वहाँ एक कैदख़ाना है, आरव... और वहाँ कोई है।”
“कोई?” आरव अब बुरी तरह उलझ चुका था, “कौन है वहाँ?”
सुहानी एक पल के लिए चुप रही। उसकी पलकों पर नमी आ गई थी, पर आवाज़ में दृढ़ता बनी रही।
“चलो मेरे साथ,” उसने कहा, “मैं तुम्हें दिखाऊँगी।”
“नहीं, पहले बताओ — कौन है वहाँ?”
सुहानी की आँखें नम हो गईं। उसने होंठ भींचे और कांपती आवाज़ में कहा —
“तुम्हारा कोई बेहद अपना... जिसका ना होना तुमने सालों पहले सच मान लिया था।”
आरव की आँखें फैल गईं, और दिल जैसे किसी अनकहे डर से काँप उठा।
सुहानी ने उसकी ओर देखा और धीमे से बोली —
“तुम्हारा भाई... प्रणव।”
आरव की आँखें फटी की फटी रह गईं। होंठ सूख गए, और उसकी साँस जैसे बीच में ही अटक गई।
“हमें उसे वहाँ से निकालना होगा, आरव,” सुहानी की आवाज़ अब काँप रही थी, पर शब्दों में दृढ़ता थी।
“पता नहीं उसने उस अंधेरे, उस सन्नाटे में क्या-क्या सहा होगा… कितने ज़ुल्म सहे होंगे। वो जिंदा है, आरव… और अकेला है।”
आरव अब भी कुछ कह नहीं पा रहा था। हर शब्द जैसे उसके गले में अटक गया हो।
“हमें तुम्हारे पापा को भी खबर देनी होगी,” सुहानी ने आगे कहा, “ताकि वो प्रणव को अपने पास सुरक्षित रख सकें… उसे इस घर से दूर, इस षड़यंत्र से दूर कहीं छिपाकर रख सकें।”
एक पल को दोनों के बीच चुप्पी छा गई।
फिर सुहानी की आवाज़ में एक कटु सच्चाई उभरी —
“मगर रणवीर को वो वीडियो दिखाकर तुमने बहुत बड़ी ग़लती कर दी है, आरव। हमारे पास अब वक्त बहुत कम है। हमें जो भी करना है, जल्दी करना होगा।”
आरव चौंक पड़ा — “ग़लती? क्या मतलब? रणवीर चाचू का इससे क्या लेना-देना?”
सुहानी ने उसकी ओर देखा। उसकी आँखों में अब डर नहीं, बल्कि एक जलता हुआ सच था — ऐसा सच जो रिश्तों को जला सकता था।
उसने धीमे लेकिन साफ़ शब्दों में कहा —
“क्योंकि उस वीडियो में जो आदमी है…
जिससे तुम्हारी माँ और तुम्हारे ताऊजी डरे हुए थे…
जिसके नाम से वो कांप उठते हैं…
वो और कोई नहीं… तुम्हारे चाचू हैं… रणवीर राठौर।”
आरव को लगा जैसे ज़मीन उसके पैरों के नीचे से खिसक गई हो।
“He is the mastermind behind all this.”
अब आगे की कहानी जानने के लिए पढ़ते रहिये, रिश्तों का क़र्ज़।
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