सुहानी ने नज़रें घुमा कर नीचे और दूर तक देखा। वह नीचे झांकने की हिम्मत नहीं कर पाई, क्योंकि उस खाई से भी गहरी डर की भावना उसके दिल में घर कर चुकी थी। फिर उसने नज़रें फेरते हुए खुद से कहा, "मैं नीचे नहीं देखूंगी। मंज़िल तक पहुँचने के लिए मुझे नज़रें ऊपर ही रखनी होंगी।" अपने इरादे को मजबूत करते हुए, उसने खिड़की के छज्जे पर कदम रखा।

एक गहरी साँस ली, और धीरे-धीरे उसने अपने शरीर को खिड़की से बाहर निकाला। वह हल्की सी कांप रही थी, लेकिन उसने फिर से खुद को हौसला दिया और धीरे-धीरे खिड़की के छज्जे पर चढ़ने लगी। उसके हाथों में पसीना था, और वह अपने हर कदम को सोच-समझकर उठा रही थी। जैसे ही वह छज्जे पर आ गई, उसने नज़रें फिर से ऊपर की ओर की और खुद को समझाया, “अब मुझे पीछे नहीं मुड़ना है।”

खिड़की धीरे से बंद करते हुए उसने आख़िरी बार खिड़की से बाहर की दिशा को देखा। एक शांति, एक अजीब सी शांति उसकी शारीरिक स्थिति में थी, लेकिन मन के अंदर तूफान मच रहा था। फिर उसने अपने पैर बढ़ाए और धीरे-धीरे खिड़की के छज्जे से अपनी मंज़िल की ओर की ओर खिसकने लगी।

हर कदम के साथ उसकी नज़रे उसके लक्ष्य पर थी, मंज़िल वो कमरा था। करीब 35 मिनट बाद, वह उस कमरे के खिड़की तक पहुँच गई जहाँ आरव को रखा गया था। उसके मन में एक अनकहा दर्द था, एक ऐसा दर्द जिसे कोई शब्द नहीं समझा सकता था। 

 

कमरे में उसकी नज़र सबसे पहले मीरा पर पड़ी, जो लगातार आरव को देख रही थी। मीरा की आँखों में एक अजीब सी मायूसी और पछतावा था, जैसे वह आरव की हालत के लिए खुद को दोषी मानती हो। लेकिन उसके पास कुछ भी कहने का हौसला नहीं बचा था।

कमरे में एक नर्स भी खड़ी थी, जो बेपरवाह अपने काम में लगी हुई थी। लेकिन सुहानी की नज़रें सिर्फ आरव पर थी। वह अपने आंसुओं को अपने अंदर छिपाने की पूरी कोशिश कर रही थी, लेकिन वह खुद को रोक नहीं पाई। उसकी आँखों में गहरी नमी थी, जो उसकी आत्मा से निकल कर उसकी आँखों में भर आई थी।

धीरे-धीरे उसने अपनी उंगलियाँ शीशे पर फेरनी शुरू की, जैसे वह दूर से ही आरव के चेहरे को छूने की कोशिश कर रही हो। उसकी उंगलियाँ शीशे पर ही थीं और जैसे वह आरव को देखकर खोई हुयी थी, उसकी यादों की लहरें ताजगी के साथ उभरने लगीं। वह पूरी तरह से शांत थी, मगर अंदर से टूटी हुई थी।

सुहानी की धड़कन तेज़ हो रही थी, और उसकी उँगलियाँ शीशे पर ऐसी ठहरी हुई थी जैसे वह आरव तक अपनी मौजूदगी पहुँचाना चाहती हो, लेकिन शब्दों की कमी थी। उसकी आँखों में आँसुओं के साथ एक गहरी उम्मीद थी, एक वादा था कि अब वह कभी भी आरव को अकेला महसूस नहीं होने देगी, चाहे जो भी हो।

आँसुओं के बावजूद उसकी आँखों में एक जलती हुई उम्मीद की चमक थी, एक ऐसा संघर्ष जो उसकी आत्मा में था, और जो वह आरव के सामने बयां करना चाहती थी।

 

"अब तुम अकेले नहीं हो, आरव। मैं तुम्हारा साथ अब कभी नहीं छोडूंगी। बाबा और प्रणव भी तुम्हारा इंतज़ार कर रहे हैं। अब तुम कभी अकेले नहीं होगे।" यह सिर्फ एक ख़ामोशी में बसा हुआ वादा था, जो सुहानी की आँखों से आरव तक पहुँच रहा था।

आरव ने गोली सिर्फ इसलिए खाई थी ताकि सब लोग सुरक्षित निकल सकें, ताकि कोई और आहत न हो, ताकि उस दिन की तंग गलियों में एक और शख्स की मौत न हो। उस दिन अपनी जान की परवाह किये बिना वो उन गोलियों के सामने ढाल बनकर खड़ा हो गया। सुहानी को यह देखकर चैन मिल रहा था कि वह ज़िंदा है, वह जीवित था। उसकी खुशी उसकी आँखों में से आँसुओं के रूप में छलक रही थी।

तभी, जैसे कुछ क्षणों की स्थिरता के बाद, अचानक खिड़की खुल गई।

सन्नाटा टूट गया और सुहानी की साँसें अचानक रुक सी गईं। वह सहम गई, और वह गिरते-गिरते बची। उसकी आँखों में डर की एक झलक थी, एक डर जो उसे हमेशा अपने आसपास महसूस होता था, लेकिन आज वह डर और भी बढ़ गया था। वह गिरने ही वाली थी, तभी किसी ने उसका हाथ पकड़ लिया।

वह मीरा थी….उसने सुहानी का हाथ मजबूती से थाम लिया, और सुहानी गिरने से बच गई। मीरा का चेहरा घबराया हुआ था, उसकी आँखों में चिंता और डर दोनों साफ झलक रहे थे।

"सुहानी! तुम यहां क्या कर रही हो? कोई तुम्हें यहां देख लेगा तो जानती हो क्या होगा?" मीरा ने घबराते हुए कहा, उसकी आवाज़ में हल्की सी घबराहट थी।

 

सुहानी के होंठ जैसे बेजान हो गए थे, शब्द उसके गले में अटक गए। वह सिर्फ़ मीरा को देखकर चुप थी, उसके होठों से केवल एक सिसकी निकल आई। उसकी आँखों में गहरी उलझन, दर्द और अनगिनत सवाल थे, लेकिन उन्हें शब्दों में बयां करने का साहस नहीं हो रहा था। वह चाहती थी कि वह किसी से कुछ कहे, मगर उसकी आवाज़ गले में ही अटक गई।

कुछ देर तक वह खामोश रही, लेकिन उसकी आँखों में ऐसे सवाल थे, जैसे वह उस पल को अपने अंदर ही घेरना चाहती हो, उस डर को अपनी धड़कनों में समेटना चाहती हो। उसे लगा कि सब कुछ बहुत तेजी से बदल रहा है, और वह इन बदलावों के साथ चलने की कोशिश कर रही है।

अब आरव, सुहानी की नज़रों के ठीक सामने था। उसकी हालत देखकर उसके दिल के जैसे चिथड़े-चिथड़े हो गए थे। वह यह नहीं सहन कर पा रही थी कि वह लड़का, जिसके साथ उसने अपनी ज़िंदगी के सबसे कठिन पल गुज़ारे थे, इस हालत में पड़ा हुआ था। आरव का चेहरा बेजान और बेरंग था, उसके चेहरे पर अब वह चमक नहीं थी जो कभी हुआ करती थी। उसकी त्वचा मुरझाई हुई थी, और उसकी सांसें इतनी गहरी नहीं थी। सुहानी का मन भारी सा हो गया, जैसे किसी ने उस पर बहुत भारी बोझ डाल दिया हो। उसकी आँखों में आँसुओं का सैलाब था, जो अब रोकना नामुमकिन सा हो गया।

जब मीरा ने सुहानी की ये हालत देखी, तो उसे सच में बहुत अफ़सोस हुआ। वह समझ गई थी कि सुहानी का दिल टूट चुका है। मीरा की आँखों में एक लम्हे के लिए पछतावा और करुणा दोनों थे। वह चाहती थी कि सुहानी को कुछ राहत मिले, कुछ सहारा मिले। उसने तुरंत एक हल्की सी आवाज़ में कहा, "अच्छा रुको," और फिर तेज़ी से दरवाज़े के पास जाकर, उसने चुपके से दरवाज़ा अंदर से बंद कर दिया।

 

फिर मीरा तुरंत खिड़की के पास आकर, सुहानी को अंदर आने में मदद करने लगी। वह जानती थी कि अभी सुहानी को आरव के पास रहने की ज़रूरत है, और उसे हर किसी की नज़रों से बचाने के लिए, उसे सबसे पहले सुरक्षित करना ज़रूरी था। मीरा ने सुहानी का हाथ थामते हुए धीरे-धीरे उसे अंदर खींचा, उसकी मदद से सुहानी खिड़की से भीतर आ गई।

सुहानी थोड़ी लड़खड़ाती हुई अंदर आई। वह खुद को पूरी तरह से संभालने की कोशिश कर रही थी, लेकिन आरव के सामने उसकी सारी ताकत जैसे जवाब दे गई थी। वह सीधे आरव के पास पहुंची, और धीरे से उसके सिर पर अपना हाथ फेरते हुए, उसकी काया को महसूस करने की कोशिश करने लगी।

आरव की हालत को देख कर सुहानी का दिल बार-बार टूट रहा था। उसकी दुनिया ही अब जैसे आरव में बसी हुई थी। उसकी आँखों से आंसू लगातार बह रहे थे, और उसने खुद को रोकने की लाख कोशिश की, लेकिन अब वह और नहीं रोक पाई। उसने फूट-फूट कर रोना शुरू कर दिया।

जैसे एक घायल शेर अपनी शेरनी को देखता है और वह शेरनी उसे फिर से हिम्मत देती है, ठीक वैसे ही सुहानी आरव के पास जाकर उसकी हिम्मत बनने की कोशिश कर रही थी। वह उसके लिए अब सिर्फ एक सहारा नहीं थी, बल्कि वह उसके लिए उम्मीद और प्यार की वह ताकत बन चुकी थी, जो उसके दिल में मरे हुए आत्मविश्वास को फिर से जगाने की कोशिश कर रही थी। आरव अब तक हर दर्द से अकेला ही लड़ा था, लेकिन सुहानी का प्यार उसे फिर से जीवन देने के लिए वहाँ खड़ा था, ठीक एक शेरनी की तरह।

 

"हमें तुम्हारा इंतज़ार है, आरव। बाबा को, प्रणव को, और मुझे। प्लीज़ वापस आ जाओ….प्लीज़," सुहानी ने धीरे से कहा, और फिर अपने आंसू रोकते हुए आरव के माथे पर किस किया। यह एक ऐसा प्यार था, जो उसकी आत्मा से निकलकर सीधे आरव के शरीर के हर अंग में जा पंहुचा था। सुहानी का दिल बेताबी से धड़क रहा था, वह चाहती थी कि आरव फिर से ठीक हो जाए, वापस उसी ताकतवर इंसान के रूप में, उसकी दुनिया के रूप में। 

तभी अचानक, एक हलचल सी हुई। आरव की आँखें कुछ धीमी सी खुली, और वह तंग हालत में अपनी आँखें सुहानी की ओर घुमाता है। सुहानी को लगा कि शायद अब उसे राहत मिलेगी, कि अब उसे देख कर आरव पूरी तरह से होश में आ गया है। मगर अगले ही पल, उसकी दुनिया पलट गई। 

आरव का हाथ तेजी से सुहानी की गर्दन पर कस गया….सुहानी घबराकर सांस रोकते हुए सहम गई। उसकी आँखों में डर था, दिल में एक अजीब सा खौफ। उसकी साँसें अचानक रुकने लगीं, क्योंकि आरव की पकड़ उसकी गर्दन पर लगातार कसती जा रही थी। सुहानी की आँखों में आँसू थे, लेकिन उस डर और दर्द से भरी स्थिति ने उसे शब्दों से भी चुप करा दिया। उसकी पूरी कायनात जैसे एक झटके में बिखर गई थी।

"ये क्या हो रहा है?" सुहानी की सोच में घना धुंआ सा छा गया, वह शॉक थी, उसे समझ में नहीं आ रहा था कि यह अचानक क्या हो गया। उसकी हर कोशिका कह रही थी कि यह आरव नहीं हो सकता। लेकिन क्यों? क्यों आरव, जिसने उसकी इतने लंबे वक्त तक परवाह थी, आज वही उसे मारने पर उतारू हो गया?

तभी मीरा दौड़ती हुई आई। वह डर और घबराहट से घिरी हुई थी, उसकी आँखों में डर साफ़ झलक रहा था। उसने बिना कुछ सोचे-समझे आरव का हाथ सुहानी की गर्दन से हटाने की कोशिश की। वह अपने हाथों से उसकी पकड़ को छुड़ाने के लिए संघर्ष कर रही थी, लेकिन आरव की पकड़ इतनी मजबूत थी कि वह छोड़ने को तैयार नहीं था।

वह बेबस थी, और सुहानी की स्थिति देखकर उसके अंदर एक भय की लहर दौड़ गई। उसे डर था कि अगर यह कुछ देर और जारी रहा, तो सुहानी बेहोश हो सकती है। मीरा को इस अजीब स्थिति में जल्दी कुछ करना था, लेकिन वह समझ नहीं पा रही थी कि आरव ने यह अचानक क्यों किया। क्या यह कोई भ्रम था? 

आखिरकार, मीरा ने जोर लगाकर आरव के हाथ को हटाने की कोशिश की, जबकि सुहानी का शरीर कमजोर हो रहा था और वह सांस लेने के लिए संघर्ष कर रही थी।

 

मॉनिटर पर बीप-बीप की आवाज़ें तेज़ हो गईं। हर बीप में जैसे एक नया डर, एक नई आशंका समा गई थी। उस आवाज़ ने कमरे में एक अजीब सा तनाव भर दिया था, जैसे समय थम गया हो, जैसे एक लंबी घड़ी की टिक-टिक के बीच हर पल और भी भारी हो गया था।

सुहानी की गर्दन पर आरव का हाथ और भी कसता जा रहा था, उसकी साँसों में घबराहट साफ़ महसूस हो रही थी। आरव की आँखों में कोई पहचान नहीं थी, केवल एक खालीपन था। उसकी पकड़ इतनी ज़्यादा ताकतवर थी कि सुहानी को लग रहा था कि वह किसी भी पल दम तोड़ सकती है।

दूर से डॉक्टरों और नर्सों के कदमों की आवाज़ें आती हुई साफ़ सुनाई देने लगी, जो किसी बुरे संकेत की तरह सुहानी के कानों में गूंज रही थीं। हर कदम, हर हलचल, जैसे उसे घेर रही थी, और वह समझ नहीं पा रही थी कि क्या किया जाए। उसे जल्दी से बाहर निकलना था, ताकि कोई भी इस खतरनाक स्थिति का गवाह न बने।

मीरा का चेहरा पसीने से भीगा हुआ था, उसकी आँखों में घबराहट और घोर डर था। वह जानती थी कि अगर किसी ने कमरे में घुसकर यह दृश्य देखा, तो सुहानी का जीवन खतरे में पड़ सकता था। मीरा ने पूरी ताकत लगाकर आरव का हाथ सुहानी की गर्दन से हटाने की कोशिश की।

 

"आरव! छोड़ो!" मीरा ने जोर से कहा, वह खुद भी डर से काँप रही हो।

आखिरकार, कुछ देर की ताबड़तोड़ कोशिश के बाद, आरव की पकड़ सुहानी की गर्दन पर ढीली पड़ गई। जैसे किसी ने अचानक उसकी ताकत को उससे छीन लिया हो। आरव फिर से बेहोश हो गया, उसकी आँखें फिर से बंद हो गईं। 

 

 

आखिर क्यों आरव ने की सुहानी को मारने की कोशिश? 

क्या वो सब कुछ भूल चुका है या अभी होश में नहीं है?

सुहानी इस दर्द से बाहर कैसे निकलेगी? 

क्या कोई राठौर मेंशन में सुहानी को पकड़ लेगा? 

जानने के लिए पढ़ते रहिये, ‘रिश्तों का क़र्ज़।’

 

 

 

 

 

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