सुहानी ने राहत की सांस ली, लेकिन उसकी धड़कन अभी भी तेज़ थी, जैसे अभी भी खतरा सिर पर था। उसकी आँखों में आँसू थे, लेकिन यह आँसू उसकी राहत और डर का मिश्रण थे। वह घबराहट से झिझकते हुए कुछ कदम पीछे हट गई। उसकी साँसें तेज़ हो गईं, और हर एक साँस उसके शरीर को थकान और दर्द से भर रही थी। उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि जो कुछ भी अभी-अभी हुआ, वह वास्तविक था।

क्या यह एक बुरा सपना था, या फिर यह सच था? उसका दिल कह रहा था कि वह अभी भी जागी हुई है, लेकिन उसका शरीर कह रहा था कि वह उस दर्दनाक पल को कभी नहीं भुला सकती, ठीक एक बुरे सपने की तरह।

मीरा ने सुहानी को देखा और जल्दी से कहा, "तुम्हें बाहर जाना होगा, जल्दी करो।"

सुहानी ने बिना कुछ कहे खिड़की की ओर रुख किया, और उसका दिल अभी भी आरव की चोटिल हालत के बारे में सोचते हुए टूट रहा था।

"सुहानी, तुम्हें यहाँ से जल्दी निकलना होगा, वो लोग आते ही होंगे। प्लीज़!" मीरा ने पूरी ताकत से उसे धकेलते हुए खिड़की की ओर बढ़ाया, उसकी आवाज़ में घबराहट और चिंता साफ़ झलक रही थी। हर पल कीमती था, और सुहानी के पास अब समय नहीं था।

"तुम्हें जल्दी करना होगा, नहीं तो हम दोनों मुसीबत में पड़ सकते हैं!" मीरा ने उसकी हालत देखी और एक बार फिर उसे खिड़की के पास ले जाकर मदद करने लगी। वह जानती थी कि अगर सुहानी ने तुरंत कुछ कदम नहीं उठाए, तो वे दोनों एक साथ बड़े खतरे में फँस सकते थे।

 

सुहानी की आँखें सूजी हुई थीं, चेहरे पर आँसुओं की लकीरें थीं, और उसके शरीर में जैसे कोई ताकत ही नहीं बची थी। वह बेहोशी हालत में ही हर कदम उठा रही थी, जैसे उसे पता भी नहीं हो कि वह क्या कर रही थी। उसका मन, उसका दिल, सब कुछ टूट चुका था। आरव की हालत, उसका सुहानी का इस तरह से गर्दन पकड़ना, और फिर मीरा का खौफ़ — यह सब मिलकर सुहानी को जैसे चूर कर चुका था।

मीरा ने उसे खींचते हुए खिड़की से बाहर का रास्ता दिखाया, और सुहानी की हर चाल में एक अजीब सी चुप्पी थी, जैसे वह किसी और ही दुनिया में खो गई हो। जैसे उसने अपनी सारी ताकत खो दी हो। फिर, जैसे ही सुहानी बाहर खिड़की से चली गई, मीरा ने फुर्ती से खिड़की को बंद किया और पर्दा गिरा दिया, ताकि किसी को भी यह न लगे कि कोई वहां से अंदर आया था। सब कुछ इतनी तेजी से हुआ कि सुहानी को इसका एहसास भी नहीं हुआ। वह खिड़की से बाहर निकलने के बाद एक अजीब सी खामोशी में खो गई थी।

वह वहीं खड़ी रही, जैसे कुछ सोचने की कोशिश कर रही हो, लेकिन उसके दिल में कुछ नहीं बचा था। आँखों में लालिमा थी, जैसे लगातार रोने के बाद भी आँसू खत्म नहीं हुए थे। उसकी साँसें तेज़ चल रही थीं, हर श्वास के साथ दर्द महसूस हो रहा था। वह बस खड़ी रही, अपनी भावनाओं को समेटने की कोशिश करती रही, लेकिन उसका दिल अंदर से बिखर चुका था।

उसका मन आरव की घायल हालत के बारे में सोचकर और भी टूट गया। वह एक पल के लिए अपनी स्थिति समझने की कोशिश कर रही थी, लेकिन उसे अंदर से गहरा खालीपन महसूस हो रहा था। उसकी आँखें कहीं शुन्य में देख रही थीं, लेकिन कुछ भी साफ़ नहीं दिख रहा था। हर एक सेकंड जैसे उस पर भारी हो रहा था, और वह उस खिड़की से बाहर की दुनिया से पूरी तरह कटी हुई थी।

 

उसके हाथों ने समय रहते पोल को कसकर पकड़ लिया था, जिससे वह गिरने से बच गई थी। लेकिन उसका शरीर अभी भी सदमे में था। नीचे झूलते हुए, कुछ क्षणों तक धड़कनों की आवाज़ उसके कानों में गूंज रही थी, और पसीने की नन्हीं बूंदें उसके माथे से फिसल रही थीं।

धीरे-धीरे जब उसकी साँसें सामान्य होने लगीं, तब उसकी नज़रें धुंध से साफ हुईं। उसने नीचे झाँककर देखा — फ्लोर ज़्यादा दूर नहीं था, लेकिन एक गलत कदम उसके लिए जानलेवा साबित हो सकता था। उसने साहस बटोरते हुए पोल को और कसकर पकड़ा, उंगलियाँ सफेद पड़ने लगी थीं। अपने पैरों को पोल के चारों ओर लपेटते हुए, उसने धीरे-धीरे खुद को नीचे सरकाना शुरू किया। मेटल की ठंडी सतह से रगड़ खाते हुए, उसके हाथों की त्वचा छिलने लगी थी, लेकिन उसने दर्द को नजरअंदाज किया। बस एक ही लक्ष्य था — ज़मीन तक सुरक्षित पहुँचना।

जब वह निचले फ्लोर तक पहुंची, तो उसने सामने एक कमरे की बालकनी देखी। अपनी पूरी ताकत समेटते हुए उसने हल्का सा खुद को झूलाया और अगले ही पल, जान जोखिम में डालते हुए, बालकनी की मुंडेर पर छलांग लगा दी। उसका शरीर ज़ोर से हिला, लेकिन उसने खुद को गिरने नहीं दिया।

कुछ पल तक वह वहीं जमी रही, सांस रोक कर। फिर धीरे से उसने बालकनी के काँच के दरवाज़े से अंदर झाँका। कमरा खाली था — न कोई आवाज़, न कोई हलचल। वक्त बर्बाद करने का जोखिम वो नहीं उठा सकती थी। उसने अपने उलझे बालों में से एक पतली, नुकीली पिन निकाली, जिसे वह आपात स्थिति के लिए हमेशा छिपा कर रखती थी। झुककर, अत्यंत सावधानी से उसने पिन को लॉक में डाला और धीमी गति से उसे घुमाने लगी। कुछ सेकंड के भीतर एक हल्की सी 'क्लिक' की आवाज़ हुई — दरवाज़ा खुल गया।

 

वह बेहद नर्मी से, किसी बिल्ली की तरह कमरे में दाखिल हुई। हर कदम सोच-समझकर, बिना ज़रा भी आवाज़ किये। कमरे के अंदर हल्की सी महक थी — शायद किसी पुरुष के परफ्यूम की। लेकिन इंसानी उपस्थिति नहीं थी। 

वह दबे पाँव, कमरे के मुख्य दरवाज़े की ओर बढ़ी। कान चौकन्ने थे, हर आहट को पकड़ने के लिए। उसने धीरे से दरवाज़े का हैंडल घुमाया और हल्के से दरवाज़ा खोलकर बाहर झाँका। बाहर का कॉरिडोर सुनसान था, उसने जल्दी से मौका भाँपा और बाहर कदम रखा। पीछे पलटकर, बेहद नर्मी से दरवाज़ा बंद कर दिया ताकि कोई आवाज न हो। 

 

अब वह गलियारे में थी — जहां रोशनी मद्धिम थी और दीवारों पर परछाइयाँ लंबी होकर डरावनी लग रही थीं। वह एक किनारे बने संकुचित रास्ते में सरक गई, जब उसने किसी भारी बूटों की आवाज़ सुनी।

एक गार्ड पास आ रहा था।

मीरा ने सांस रोक ली, अपने शरीर को दीवार से सटा लिया, उसने लगभग खुद को छुपा ही लिया था। गार्ड बिना उसे देखे आगे बढ़ गया। अपने दिल की धड़कनों को काबू में करते हुए, वह धीरे-धीरे गलियारे में आगे बढ़ी, हर कोने को जांचती, हर कदम फूंक-फूंक कर रखती। उसे बस अपने कमरे तक पहुँचने की देर थी।

लेकिन जैसे ही वह अपने कमरे के करीब पहुंची, उसकी उम्मीदों पर पानी फिर गया। कमरे के सामने एक गार्ड मुस्तैद खड़ा था — सीना ताने, आँखें सतर्क।

 

"तो रणवीर ने अभी भी गार्ड तैनात कर रखा है..." उसने मन ही मन सोचा, “...शायद इस डर से कि हममें से कोई वापस लौट न आए।”

अब उसके सामने दो रास्ते थे — या तो इंतज़ार करे सही मौके का, या फिर जोखिम उठाकर अगला कदम उठाये। उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक उभरी — हार मानने का सवाल ही नहीं था। सुहानी ने तेज़ी से इधर-उधर निगाहें दौड़ाईं। उसके दिमाग ने बिना समय गंवाए एक योजना बना ली थी। पास ही एक छोटी सी टेबल पर एक सुंदर, लेकिन भारी फूलदान रखा था।

सुहानी ने दबे पाँव आगे बढ़कर फूलदान को हल्के से धक्का दिया।

"टन्न्न!"

भारी फूलदान फर्श से टकराते ही ज़ोरदार आवाज के साथ टुकड़ों में बिखर गया। मिट्टी और फूल चारों ओर बिखर गए, जैसे किसी ने जानबूझकर हंगामा किया हो।

बाहर खड़ा गार्ड तुरंत सतर्क हो गया। उसके बूट की आवाज़ गूंजती हुई सुहानी के कानों तक पहुँची। बिना एक पल गँवाए वह भागता हुआ आवाज की दिशा में आया। उसकी भारी साँसें, तेज़ क़दमों की गूँज, सब कुछ सुहानी के प्लान का हिस्सा था।

गार्ड बालकनी के पास पहुँचा और झुककर बिखरे हुए फूलदान को देखने लगा। उसकी आँखों में हैरानी थी — जैसे वह समझने की कोशिश कर रहा हो कि ये गिरा कैसे? इसी मौके का फायदा उठाते हुए, सुहानी ने अपने आप को अंधेरे में से सरकाया। वह बेहद सावधानी से, बिल्ली जैसी चपलता से दबे पाँव चलती हुई अपने कमरे की तरफ बढ़ी।

कमरे तक पहुँचते ही, उसने दरवाज़े का हैंडल थामा। उसकी हथेलियाँ पसीने से भीगी हुई थीं, लेकिन उसका हौसला मजबूत था। उसने बेहद नर्मी से दरवाज़ा खोला — इतनी सावधानी से कि दरवाज़े की चरमराहट तक न सुनाई दी।

 

जैसे ही वह अंदर दाखिल हुई, उसने बिना कोई आवाज़ किये दरवाज़ा पीछे से बंद कर लिया और गहरी सांसें लेते हुए दीवार से टिक गई। उसकी धड़कनें अब भी बेकाबू थीं, लेकिन उसके होंठों पर एक मुस्कान आ गई थी — उसने पहले चरण में जीत हासिल कर ली थी।

कमरे में हल्का सा अंधेरा था। खिड़की से आती मद्धम चाँदनी हर चीज़ को एक रहस्यमय चमक दे रही थी। अब अगला कदम शुरू होना था। पहले योजना साफ थी — वह पेन ड्राइव ढूंढेगी, बालकनी से नीचे फिसलकर खुले मैदान में पहुँचेगी और फिर वहां से छुपते-छुपाते बाहर निकल जाएगी।

लेकिन अब, हालात बदल चुके थे। बाहर सख्त पहरा था, और रणवीर की चौकसी पहले से कहीं ज़्यादा थी। सुहानी ने तेजी से निर्णय लिया।

"निकलना बाद में," उसने मन ही मन सोचा, "पहले सबूत सुरक्षित करना ज़रूरी है।"

 

उसने कमरे की खोजबीन शुरू कर दी। अलमारियाँ, बिस्तर के नीचे, मेज की दराज में — हर जगह उसकी उंगलियाँ घूमने लगीं। दिल हर सेकंड के साथ जोर से धड़क रहा था, मानो वक्त के खिलाफ कोई जंग चल रही हो। वो ढूंढ रही थी — एक छोटी सी काली पेंड्राइव, कपड़ों के ढेर के बीच छुपी हुई।

उसने सोचा कि वो पेन ड्राइव को ढूंढ कर अपने कंप्यूटर में लगाएगी और जो भी फाइलें खुलेंगी — वीडियोज़, डॉक्युमेंट्स, कुछ ऐसी बातें जो रणवीर, गौरवी और दिग्विजय के पूरे खेल का भांडा फोड़ सकती थीं, उन्हें चेक करके साथ ले जायेगी। 

यह महज़ कोई चोरी की जानकारी नहीं थी — ये ज़िंदगी बदलने वाले सबूत थे….मगर अब उसका प्लान बदल चुका था।

वह पेन ड्राइव में से जरूरी फाइलें निकालकर उन्हें सीधे ईमेल के ज़रिये शमशेर को भेजने का फैसला कर चुकी थी। उसने सोचा, जब तक शमशेर के पास सबूत पहुँचेंगे, और वो उनको सही इस्तेमाल में लाएंगे, तब तक वह यहीं अपने कमरे में छिपी रहेगी। कम से कम तब तक, जब तक भागने का सही मौका न मिल जाए।

वो जल्दी जल्दी कमरे का हर कोना छान रही थी, और उसके दिमाग में बस एक ही बात थी — “जल्दी करो, सुहानी... वक्त बहुत कम है...” 

आरव की हालत देखने के बाद सुहानी का दिल बुरी तरह कांप उठा था। उसने सोचा भी नहीं था कि जो इंसान कभी उससे इतनी नफरत करता था, और अब जिसकी आँखों में वो अपने लिए प्रेम देखती थी, आज फिर से उसकी आँखों में वही नफरत उजागर हो जायेगी। 

उसके लिए सुहानी को देखकर आरव का दिया हुआ, वो आक्रोश से भरा रिएक्शन बहुत ही भयावह था। ना कोई सवाल, ना कोई जवाब — बस एक खाली, वीरान नज़र, जो सीधे उसके दिल के आर-पार हो गई थी। सुहानी का रोम-रोम सिहर गया था इसीलिए उसने तय कर लिया था — वो यहाँ रहेगी। आरव की नज़र से दूर ही सही, लेकिन उस पर नज़र रखेगी। क्योंकि जो जख्म आरव के शरीर पर थे, उससे कहीं गहरे जख्म उसकी आत्मा पर थे... और उन्हें नज़रअंदाज करना, सुहानी के बस में नहीं था।

 

साहस बटोर कर वह दोबारा उस कमरे की तलाश में जुट गई। हर कोने में, हर दराज में, हर छोटे से छोटे गुप्त स्थान में वह घंटों तक तलाशती रही। उसकी उंगलियाँ थक गई थीं, कपड़े, किताबें, फाइलें — सब कुछ अस्त-व्यस्त हो चुका था। लेकिन पेन ड्राइव का कोई नामोनिशान तक नहीं मिला।

झुंझलाकर वह बुदबुदाई, “कहीं पेन ड्राइव उन लोगों के हाथ तो नहीं लग गई?…..अगर ऐसा हुआ, तो बहुत बड़ी गड़बड़ हो जाएगी...” उसने अपने आप से फुसफुसाते हुए कहा, उसकी आवाज इतनी धीमी थी मानो खुद से भी कुछ छुपाना चाहती हो।

एक बार फिर उसने पूरा कमरा छान मारा, लेकिन नतीजा वही था — खालीपन, मायूसी और बढ़ती बेचैनी। आखिरकार, थक हार कर, सुहानी बिस्तर के किनारे आकर बैठ गई। वह खुद को और ज्यादा मजबूर, और अकेला महसूस कर रही थी।

उसने अपने घुटनों को अपने सीने में भींच लिया, जैसे अपने आप को किसी अनदेखे खतरे से बचा रही हो। सिर हल्के से अपने घुटनों पर टिकाया, और चुपचाप सामने की दीवार को घूरने लगी।

 

वहाँ एक तस्वीर टंगी थी — उनकी शादी की तस्वीर। वही तस्वीर, जो कभी उसके लिए ज़िन्दगी की नयी शुरुआत, उम्मीद का प्रतीक थी, और जो अब उसके लिए सिर्फ एक भारी बोझ बन गई थी। तस्वीर में नकली मुस्कान के साथ आरव और सुहानी खड़े थे — दो अजनबी, जिन्हें हालात ने एक बंधन में बांध दिया था। तस्वीर में जितनी मुस्कान थी, असल जिंदगी में उतना ही दर्द पसरा हुआ था।

“क्या हम कभी वाकई एक-दूसरे को समझ पाएंगे?” उसने मन ही मन सवाल किया।

कमरे में एक गहरा सन्नाटा पसरा था। सिर्फ उसकी हल्की साँसों की आवाज़ और दिल की धीमी धड़कनें सुनाई दे रही थीं।

लेकिन इस टूटे हुए पल में भी, सुहानी के अंदर एक नई जिद पलने लगी थी — "जब तक साँस है, मैं हार नहीं मानूंगी। आरव को भी नहीं हारने दूंगी।"

 

 

कहाँ मिलेगी सुहानी को पेन ड्राइव? 

आरव ने क्यों किया सुहानी पर हमला? 

आखिर सुहानी कब तक छुपकर रह पायेगी?

जानने के लिए पढ़ते रहिये, रिश्तों का क़र्ज़। 

Continue to next

No reviews available for this chapter.