राजेंद्र उसूलों वाले इंसान थे। उन्हें सरकारी दामाद चाहिए था जिसके लिए वो लड़के की पर्सनैलिटी, उसकी लुक्स जैसी चीज़ों से भले ही समझौता कर सकते थे लेकिन उसके बिहेवियर, कैरेक्टर और मॉरल वैल्यूज़ से उन्हें किसी तरह का समझौता मंज़ूर नहीं था। जब उन्होंने प्रतिभा के बचपन के दोस्त कौशिक के बारे में ये सुना कि उसकी सरकारी जॉब है तो उन्होंने ये सोच लिया कि वो उसकी शादी अपनी बेटी से करवा कर ही मानेंगे। लेकिन जब कौशिक और धीरज की बात हो रही थी तो कौशिक ने कई बातें ऐसी कहीं जिन्हें सुन राजेंद्र का मन बदल गया और उन्होंने उसे घर से निकालते हुए कहा कि वो आज के बाद उनकी बेटी के कांटेक्ट में ना रहें। अपनी बेइज्जती करवाने के बाद कौशिक गुस्से में वहाँ से चला गया।
धीरज और प्रतिभा मन ही मन अपनी जीत की ख़ुशी मना रहे थे और दादी सालों बाद अपने बेटे के किसी काम पर प्राउड फ़ील कर रही थीं। उन्हें उम्मीद नहीं थी कि राजेंद्र सरकारी नौकरी के आगे कौशिक की कोई भी बुराई देख पायेगा लेकिन उन्होंने कौशिक को भगा कर सबको चौंका दिया था।
उस दिन के बाद राजेंद्र अपने मिशन को लेकर थोड़ा शांत हो गए थे। धीरज का घर आना जाना कुछ ज़्यादा ही बढ़ गया था जिस पर राजेंद्र का रिएक्शन मिला जुला था। वो अब उसे कुछ कहते नहीं थे लेकिन इसका ये मतलब भी नहीं था कि उन्हें वो पसंद आने लगा था। फ़िलहाल उन्हें उसकी ज़रूरत थी। एक वही था जो इस समय उनकी कई ज़रूरतें पूरी कर सकता था। इस वजह से वो कुछ बोल भी नहीं पाते थे। बेड पर पड़े पड़े उनके क़रीब ढाई महीने बीच चुके थे। उनका प्लास्टर उतर चुका था और वो अच्छे से चल फिर पा रहे थे। उनकी हालत में सुधार आने के बाद धीरज का भी उनके घर आना जाना थोड़ा कम हो गया था। वो अब बस उनका हाल चाल पूछने जाया करता था। राजेंद्र ने उससे पिछले दिनों बहुत मदद ली थी, वो उस पर ऐसे हुक्म चलाते थे जैसे वो उनका बेटा हो हालांकि वो उसे बेटा मान लेते तब तो धीरज उनके लिए कुछ भी कर जाने को तैयार होता। मगर ऐसा था नहीं, वो बस हुक्म चलाने भर के ही पिता थे।
एक दिन तो दादी और प्रतिभा को किसी ज़रूरी फंक्शन में जाना था, तब धीरज ने पूरा दिन उनका ध्यान रखा था। वो अपनी बुक्स अपने साथ ही ले आया था। जिस लगन से वो पढ़ रहा था, उसे देख राजेंद्र भी उससे थोड़ा बहुत इंप्रेस तो हुए थे, उन्हें ये तो दिख रहा था कि धीरज बहुत मेहनत कर रहा है। लेकिन इसके बावजूद उन्होंने कभी धीरज की तारीफ़ में दो शब्द नहीं कहे। एक दो बार उनके मन में ये ख्याल भी आया कि ये लड़का कितना अच्छा है, काश उनका दामाद भी ऐसा ही होता लेकिन ये ख्याल ऐसा था जिसके लिए राजेंद्र ख़ुद पर ही गुस्सा हो गए थे। उन्होंने ख़ुद को ही डांटते हुए कहा कि जिस लड़के के बारे में वो पूरे मोहल्ले में बुराई करते नहीं थकते थे उसे वो दामाद बनाने के बारे में सोच भी कैसे सकते हैं। ये उनका ऐसा ख्याल था जिसके बारे में कोई नहीं जानता था।
राजेंद्र अब पूरी तरह से ठीक थे। आज वो तीन महीने बाद घर से निकल रहे थे। आज अच्छे से तैयार होकर उन्होंने जैसे ही हेलमेट उठाया दादी ने उन्हें टोक दिया। उन्होंने पूछा कि इतना सज धज कर वो कहाँ जा रहा है? दादी के टोक लगाते ही राजेंद्र चिढ़ गया। उसने दादी से गुस्से में कहा कि उसने कितनी बार मना किया है कि जब वो कहीं जा रहा हो तो उसे टोके ना। दादी ने प्यार से कहा कि माँ की टोक नहीं लगती। अब जब पूछ ही लिया है तो बता दे कि वो कहां जा रहा है?
राजेंद्र ने कहा कि तीन महीने से वो बेड पर पड़ा था तो उनकी बैंक कॉपी अपडेट नहीं है, वही अपडेट कराने वो बैंक जा रहा है। इसके साथ ही उसे ये भी चेक करना है कि अपना टांग तुड़वाना उन्हें कितना महंगा पड़ा है। मतलब वो जानना चाहते थे कि उनके पूरे इलाज के दौरान कितना खर्च हुआ है। दादी ने कहा कि वो बहुत कंजूस। राजेंद्र ने भी जाते हुए जवाब दे दिया कि उसकी इसी कंजूसी की वजह से उनका घर अब तक इतने अच्छे तरीक़े से चल रहा है। दादी ने कहा कि वो ये ना भूले कि उसका घर चलाने में उसके पिता जी की मिलने वाली पेंशन का भी बहुत बड़ा हाथ है। राजेंद्र ने हँसते हुए कहा कि वो यही तो उन्हें हर बार समझाने की कोशिश करता है कि सरकारी नौकरी इसीलिए इतनी स्क्योर है कि आज भी और ज़िंदगी के बाद भी। यूँ ही नहीं वो सरकारी दामाद ढूँढने की ज़िद पर अड़ा हुआ है।
दादी को अचानक अहसास हुआ कि बातों बातों में राजेंद्र एक पॉइंट ले गया था। दादी अपना सिर पकड़ कर बैठ गई कि आख़िर उसने राजेंद्र को इस बहस में कैसे जीतने दिया। राजेंद्र अपनी जीत पर खुश होता हुआ बैंक निकल गया। दरअसल, राजेंद्र कोई अकाउंट अपडेट करवाने नहीं जा रहे थे। ये सब तो वो फ़ोन से ही कर लेते थे। और जिस बैंक में वो जा रहे थे वहाँ तो उनका खाता भी नहीं था। वो तो बेड से उठते ही दोबारा अपने मिशन में लग गए थे। वो इस बैंक में एक लड़के से मिलने जा रहे थे। उनके एक दोस्त ने ये रिश्ता बताया था। ये लड़का सरकारी बैंक में असिस्टेंस्ट मैनेजर की पोस्ट पर था। राजेंद्र के दोस्त ने उन्हें सलाह दी थी कि वो लड़के से बैंक में ही मुलाक़ात कर ले तो ज़्यादा बेहतर रहेगा। क्योंकि इससे उन्हें अंदाज़ा लग जाएगा कि लड़के की इमेज कैसी है।
राजेंद्र मन ही मन बहुत खुश थे, ये अब तक मिले सभी रिश्तों में से बेहतर था। लड़का इतनी बड़ी पोस्ट पर था वो भी सरकारी बैंक में और क्या चाहिए था उन्हें। इसीलिए तो आज राजेंद्र बनठन के आए थे। उन्होंने पार्किंग में अपनी गाड़ी लगा दी और बैंक के अंदर चले गए। बैंक में ठीक ठाक भीड़ थी। मैनेजर का केबिन खाली था, और वो लड़का फ़ोन भी नहीं उठा रहा था। उन्होंने सोचा कि किसी बैंक एम्प्लॉई से पूछा जाये कि उनके असिस्टेंस्ट मैनेजर नितेश पांडे कहाँ मिलेंगे। जैसे ही वो कैश काउंटर पर गए और उन्होंने कुछ पूछना चाहा तभी वहाँ बैठा कर्मचारी बोला ‘लंच ब्रेक हो गया है घंटे भर बाद आइए।’ इसके बाद वो तुरंत उठ कर चला गया। उनका मुँह जो सवाल पूछने के लिए खुला था वो खुला का खुला ही रह गया। वो सोच रहे थे कि वो कौनसा बैंक के काम से आए हैं जो उन्हें लंच ब्रेक से मतलब (Added-होगा) लेकिन ये बात कर्मचारियों को थोड़े ना पता थी। उनके लिए तो लंच ब्रेक से आधा घंटा पहले ही ब्रेक शुरू हो गया था।
वो जिस भी काउंटर पर जा रहे थे उन सबके पास एक ही जवाब था लंच ब्रेक है बाद में आइए। यहाँ तक कि प्यून ने भी उन्हें यही डायलॉग चिपका दिया था। अब उनके पास एक ही शख्स बचा था जिससे वो पूछ सकें कि नितेश पांडे कहाँ मिलेंगे। वो था इस बैंक का गार्ड। उनकी उम्मीद सही हुई, आख़िरकार इस बैंक में उन्हें एक शख्स तो ऐसा मिल गया था जिसने कम से कम उनकी बात तो सुनी। हालांकि बात सुनते ही उसने अपनी जेब आगे करते हुए कहा कि वो इसमें सौ का नोट रख दें और जवाब ले लें। राजेंद्र ने हैरानी से कहा कि उन्हें तो बैंक का कोई काम भी नहीं करवाना तो वो पैसे क्यों दें? गार्ड ने कहा इससे उसे कोई मतलब नहीं अगर बैंक के अंदर कोई उससे कुछ भी पूछता है तो वो जवाब देने के सौ रुपए लेता ही लेता है। उसका ये फिक्स रेट है फिर सवाल चाहे जैसा भी हो। उसने कहा कि अगर वो पूछते टाइम कितना हुआ है तो वो उसके भी पैसे माँग लेता। हार कर राजेंद्र को उसे सौ रुपए देने ही पड़े।
गार्ड ने कहा कि छोटे बाबू बाहर गए हैं कुछ देर में लौट आयेंगे। तब तक वो इंतज़ार करें। राजेंद्र हैरान रह गए कि गार्ड ने उनसे इतनी सी बात बताने के भी पैसे ले लिए। राजेंद्र जा कर एक बैंच के किनारे में बैठ गए। कुछ पंद्रह मिनट बाद नितेश पांडे एक और साहब के साथ बैंक लौटे। ये साहब देखने में ही नितेश के बॉस लग रहे थे क्योंकि उनके सामने नितेश की कमर झुकी और चेहरे पर ज़बरदस्ती चिपकी मुस्कुराहट थी। एक पूर्व सरकारी कर्मचारी होने के नाते राजेंद्र को पता था कि किसकी गर्दन किसके सामने तनी रहती है और किसके सामने झुकी रहती है।
राजेंद्र नितेश के पास गए, पहले तो उसे लगा कि वो कोई बैंक कस्टमर हैं और उससे किसी काम से आए हैं इसलिए उसने भी वही कहा जो राजेंद्र बैंक के हर कर्मचारी से पहले ही सुन चुके थे, लंच ब्रेक है, बाद में आना। राजेंद्र ने चिढ़ कर कहा, तो क्या लंच ब्रेक में रिश्ते कि बात नहीं हो सकती। तब नितेश को समझ आया कि ये तो वही हैं जिसका वो सुबह इंतज़ार कर रहा था। उसने उन्हें नस्मस्ते किया और अपने कैबिन में ले गया। उसकी कैबिन में पहले से ही वो साहब बैठे थे जिनके सामने उसकी कमर झुकी हुई थी। ये देख कर राजेंद्र को बहुत गुस्सा आया। वो उससे अकेले में मिलना चाहते थे जिससे वो उसके बारे कुछ बातें पूछ सकें लेकिन उन्हें नहीं पता था नितेश वॉशरूम भी जाता था तो उन साहब से पूछ कर ही, ‘सर मे आई गो टू टॉयलेट’ वाला ही पूरा हिसाब था उसके साथ।
नितेश ने कहा कि इस बैंक के सीनियर मैनेजर हैं। यहाँ उनकी मर्जी के बिना कोई काम नहीं होता। यहाँ तक कि यहाँ का स्टाफ शादी भी करता है तो इनकी अप्रूवल ले कर ही करता है। इसीलिए जब वो रिश्ते की बात करने आ रहे थे तो उसने अपने सर को रिक्वेस्ट कर के बुलाया है। इसलिए जो भी बात होगी उनके सामने ही होगी। उसने कहा कि वो अपने पापा की बात काट सकता है लेकिन अपने मैनेजर की नहीं। राजेंद्र ने गुस्से का घूँट पीते हुए पूछा कि उसकी सैलरी कितनी है? नितेश ने अपनी सैलरी बताते हुए कहा कि अगर सर की दयादृष्टि बनी रहेगी तो अगले साल तक उसकी प्रमोशन पक्की है। जिसके बाद उसकी पोस्ट और सैलरी दोनों बढ़ जायेंगे। ये कहने के बाद उसने अपने साहब से पूछा कि उसने सही कहा ना। साहब ने किसी महाराजा कि तरह हल्की मुस्कुराहट के साथ हाँ में गर्दन हिलायी। वो कुछ बोल नहीं रहे थे क्योंकि उनके मुँह में महंगा वाला गुटखा था, जिसे वो बिना किसी ज़रूरी बात के फेंक नहीं सकते थे।
नितेश से राजेंद्र ने जितने भी सवाल पूछे उसने उन सबका जवाब देने से पहले अपने साहब का अप्रूवल लिया। और जवाब देने के बाद हर बार पूछा कि उसने ठीक कहा ना। नितेश ने इस बातचीत को विराम देते हुए कहा कि आगे की बात वो उनके माता पिता से कर सकते हैं। जिस पर राजेंद्र के मुँह से निकल गया कि जब उसके असली माईबाप से बात हो गई तो फिर नाम के माता पिता से बात कर के क्या फ़ायदा। नितेश कुछ समझ नहीं पाया और राजेंद्र का चेहरा देखने लगा।
क्या राजेंद्र असिस्टेंस्ट मैनेजर नितेश पांडे को अपना दामाद बनायेंगे? अगर नितेश नहीं तो फिर कौन होगा उनका दामाद?
जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
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