(आरव का ऑफिस)
आधी रात हो चुकी थी। हवा में ठंडक घुल चुकी थी, लेकिन आरव के सीने में जो जलन थी, वो किसी ठंडी हवा से नहीं बुझ सकती थी। वो बालकनी में खड़ा था, हाथ में अधूरी सिगरेट, जिसे जलाने की हिम्मत भी अब उसमें नहीं बची थी।
“मैंने उसके साथ बहुत गलत किया...”
वो बुदबुदाया, लेकिन कोई सुनने वाला आस-पास नहीं था।
उसके गाल पर अब भी सुहानी के थप्पड़ का निशान था, जो अब तक जल रहा था — जैसे किसी ने उसकी आत्मा पर अपने दिल का दर्द निकाल कर छाप दिया हो। लेकिन वो थप्पड़ उसे दर्द नहीं दे रहा था। दर्द में थी वो नज़रे — जो कभी भरोसे से देखती थीं, और अब उन में नफ़रत थी।
“पर क्या कोई और रास्ता था?” वो खुद से सवाल कर रहा था।
“अगर मैं उसे न रोकता… अगर मैं वो नाटक न करता… तो वो लोग उसे खत्म कर देते। जैसे उसकी माँ को मिटा दिया गया, और मेरे पिता के वजूद को ही ख़तम कर दिया।”
आरव की मुट्ठियाँ कस गईं।
“मैंने उसके दिल को तोड़ा ताकि उसकी जान बचा सकूं। क्या ये गुनाह है?”
उसी पल, उसके फोन पर एक मैसेज आया — “कल दोपहर तक ‘वो चीज़’ हमारे पास आ जानी चाहिए, वरना सब कुछ खत्म कर देंगे…”
आरव ने मैसेज देखा और फोन जेब में डाल लिया। उसके चेहरे पर अब एक नई कठोरता थी।
“अब समय आ गया है, गेम को रिवर्स करने का।”
(सुहानी का कमरा)
कमरे की खामोशी अब सुहानी को निगलने लगी थी। लेकिन वो अब डर में नहीं, रणनीति की आड़ में थी। टेबल पर उसकी माँ की तस्वीर के सामने एक खुली हुई डायरी पड़ी थी, और साथ में कई कागज़, फोटोज़ और नोट्स।
"अगर मुझे सच तक पहुंचना है, तो भावनाओं को दरकिनार करना होगा। आरव पर भरोसा करने की गलती, मैं दोबारा नहीं कर सकती।”
उसकी आँखों में अब आँसू नहीं थे — सिर्फ एक लक्ष्य था।
"कल मुझे उस आदमी से मिलना है, जो माँ के एक्सीडेंट के दिन हॉस्पिटल में नर्स था। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में उसका भी नाम दर्ज़ है।”
उसने एक नाम लिखा — “नीलेश।”
सच का पता लगाना ज़रूरी है, अब तो सच सफ़ेद होगा या फिर काला।
एक तरफ आरव — जो अपने हाथों से उसके भरोसे को तोड़ रहा है ताकि दुनिया उसे न तोड़ सके।
दूसरी तरफ सुहानी — जो आरव की हर बात को झूठ मानकर अपनी जंग अकेले लड़ रही है।
दोनों के रास्ते अब पूरी तरह अलग हैं।
लेकिन मंज़िल एक — सच।
अब देखना ये है कि जब रास्ते टकराएंगे… तो क्या दिलों की दरारें मिटेंगी या फिर नफ़रत की दीवार और ऊँची हो जाएगी?
(आरव का ऑफिस)
सालों पहले…रात के सन्नाटे में हवेली की दीवारें भी सिसकती थीं। आठ साल का आरव अपनी पतली चादर में लिपटा, ज़मीन पर सिकुड़ा पड़ा था। पेट में भूख से दर्द हो रहा था।
"माँ..." उसकी फुसफुसाहट हवा में खो गई।
गौरवी राठौर, उसकी माँ... वो केवल नाम की माँ थी। जब से शमशेर की मौत हुई थी, वो अपनी ही दुनिया में बंद हो गई थी। और आरव...? वो बस एक ज़िम्मेदारी था, शायद एक बोझ।
“तेरे बाबूजी होते तो…” ये वाक्य गौरीवी अक्सर दोहराती थी और हर बार जैसे आरव के दिल में एक दरार पड़ जाती थी।
दिग्विजय राठौर का उस पर साया था — मगर एक ज़हरीले बादल की तरह। उस रात, खाने की टेबल पर दिग्विजय को किसी बात पर गुस्सा आया था।
“जब तक तू सीखेगा नहीं, खाना नहीं मिलेगा!” ये कहकर उसे टेबल से उठवा दिया गया था।
एक पूरा दिन बीत चुका था, बिना कुछ खाये…भूख हद से ज्यादा बढ़ चुकी थी।
उस रात, जब सब सो रहे थे, आरव चुपचाप उठा। नंगे पाँव, सांस रोककर रसोई की ओर बढ़ा। उसकी आँखों में डर था, लेकिन पेट की ज्वाला उस डर से कहीं बड़ी थी।
रसोई में रखे ताजे पराठों का ढक्कन वो उठा ही रहा था कि—
“कौन है वहां?”
घर के नौकर की आवाज़ गूंजी, जो दिग्विजय का एक चमचा भी था, उसके अंदर कोई दया ना थी।
आरव ने भागने की कोशिश की, पर पकड़ लिया गया।
अगली सुबह, हवेली के आँगन में दिग्विजय राठौर का हुक्म था —
“सबको सबक सिखाना ज़रूरी है। खाना चुराने वालों को और ज़्यादा भूखा रखना चाहिए।”
उसी दिन आरव को बाँधकर बगल के कमरे में फेंक दिया गया। न पानी, न खाना — सिर्फ़ दीवारों की चुप्पी और दिल की चीखें।
गौरवी...? आरव ने देखा था माँ को खिड़की से झांकते हुए, पर वो पीछे हट गई थीं — एक बार फिर।
वहीं से आरव ने सीख लिया — “इस दुनिया में ममता भी सौदे में बिकती है… और इंसान को अपना रक्षक ख़ुद बनना पड़ता है।”
Present day…
“मैंने उस दिन अपने अंदर की मासूमियत को दफना दिया था। अब अगर मुझे झूठ भी बोलना पड़े... सुहानी को तकलीफ भी देनी पड़े... तो करूँगा। क्योंकि मैं जानता हूँ, इन राक्षसों से लड़ने के लिए सिर्फ़ सच्चाई नहीं... चालाकी भी चाहिए।”
अगला दिन…
हवेली का वही कमरा… वही दीवारें… बस अब हालात बदल चुके हैं।
सुहानी बिस्तर के एक कोने में बैठी थी — चुप, सिमटी हुई। उसकी आँखें अब भी भीगी थीं, लेकिन उनमें आँसू सूख गए थे। उस पर नज़र रखते हुए, आरव खिड़की के पास खड़ा था… खामोश।
उसके अंदर कहीं कुछ चुभ रहा था — एक हल्की सी टीस, एक बहुत पुराना ज़ख्म, उसने अपनी आँखे बंद कर लीं।
आरव खुद के बचपन से बात कर रहा था,
“माफ़ कर देना आरव…मैं जानता हूँ, तू रो रहा था उस रात — अकेले, भूखे, डरे हुए। तुझे उम्मीद थी कि कोई आएगा…माँ शायद आकर गले लगाएंगी, पर तू जान गया था — कोई नहीं आएगा।
आज जब मैं सुहानी की आँखों में डर देखता हूँ, मुझे तेरी वही आँखें याद आती हैं।
तू जिस तरह चुपचाप सहता रहा…आज वैसा ही कुछ सुहानी को करते देख रहा हूं, और ना चाहते हुए भी उसे दर्द देने में मैं हिस्सेदार हूं।
कितनी अजीब बात है न?
जिस दर्द ने मुझे पत्थर बना दिया…आज मैं वही दर्द किसी और को दे रहा हूँ…और सबसे अजीब बात?
मुझे मालूम है, ये करना ज़रूरी है।”
आरव की मुट्ठियाँ कस गईं।
“तू डर गया था… इसलिए चुप था। मैं अब डरता नहीं…मगर कुछ बोल भी नहीं सकता। सच बोलूँ तो सब कुछ खत्म हो जाएगा। सुहानी मुझसे नफ़रत करेगी…जो शायद अब भी करती है, पर अगर मैंने उसे अभी नहीं संभाला…तो वो टूट जाएगी और मैं अब किसी को नहीं टूटने दूँगा।
न सुहानी को…
न खुद को।”
आरव ने सुहानी की ओर देखा — जो अब भी अपनी माँ की तस्वीर थामे बैठी थी, शायद किसी जवाब की तलाश में।
उसने खुद से वादा किया —
"जो मैं अपने लिए नहीं कर पाया…वो अब उसके लिए करूँगा। चाहे वो मुझसे नफ़रत ही क्यों न करे?”
(गौरवी का कमरा)
गौरवी अपने कमरे में बैठी थी, जब घर के एक सेवादार आकर उसे बताती है कि सुहानी पिछले हफ्ते कुछ घंटों के लिए घर से गायब थी।
गौरवी की आँखें सोचते हुए सिकुड़ जाती हैं।
गौरवी ठंडी आवाज़ में कहती है, “किस से मिलने गई थी ये लड़की… और आरव कुछ क्यों नहीं बता रहा?”
वो तुरंत मीरा को बुलाती है।
गौरवी कहती है, “उस लड़की की परछाई बनने को कहा था ना तुम्हें? तो पिछले हफ़्ते वो छुपकर किस से मिलने गई थी?
मुझे लगता है आरव हमें अंधेरे में रख रहा है। कोई राज़ है जो वो छुपा रहा है…और मुझे शक है कि वो सुहानी की तरफ झुक रहा है।”
मीरा ने कहा, “तो अब क्या करना है?”
गौरवी आदेश देते हुए कहती है, “जाओ पता करो कि वो कहाँ-कहाँ घूम रही है, किस से मिलती है? और हाँ…उसका फोन मुझे वापस चाहिए, किसी भी हाल में।”
मीरा हामी में सिर हिलाती है, लेकिन उसकी आँखों में एक नई जलन है — सुहानी से ज्यादा आरव के बदले हुए बर्ताव से।
वहीं इन सबके पीछे का मास्टरमाइंड…
दिग्विजय अपनी स्टडी में बैठा होता है जब घर का एक नौकर उसे एक ब्लैक पैकेज वाला कोरियर आकर देता है।
अंदर एक USB होती है — न पता, भेजने वाले का कोई नाम नहीं।
वो प्लग इन करता है — और जो सुनता है, उससे उसका चेहरा पीला पड़ जाता है।
ऑडियो क्लिप में आवाज़ थोड़ी घरघाराती है। फिर शमशेर की आवाज़…
"…अगर मुझे कुछ भी हुआ, तो ये ऑडियो सबूत बनेगा दिग्विजय राठौर और गौरवी राठौर के विनाश का, उस षड्यंत्र का जिसने कितने लोगों का जीवन तबाह कर दिया।”
और उसके बाद….
दिग्विजय की आवाज़ - अगर मुझे अपने हक़ के लिए अपने बाप को भी रास्ते से हटाना पड़ेगा तो मैं झिझकूंगा नहीं।
गौरवी की आवाज़ - हिम्मत तो देखिये उनकी, अपने बेटों को छोड़ कर प्रॉपर्टी में एक अनजान लड़की को हिस्सा दे दिया। उन्हें तो वैसे भी जीने का हक़ नहीं।
मैंने बहुत मेहनत की थी इस प्रॉपर्टी का हिस्सेदार बनने के लिए, अपनी सगी बहन और उसके बेटे को ख़तम करने में आपका साथ देने में एक पल के लिए भी नहीं झिझकी, तो ये करने में भी पीछे नहीं हटूंगी।
दिग्विजय की आवाज़ - हम इस प्रॉपर्टी का एक छोटा सा हिस्सा भी किसी और के हाथ नहीं लगने देंगे….चाहे हमें कुछ भी करना पड़े।
गौरवी की आवाज़ - मैं आपके साथ हूं।
और यहाँ ऑडियो बंद हो गया।
दिग्विजय की साँसें ये सब सुन कर अटक गईं।
दिग्विजय घबराकर बड़बड़ाता है, “ये कैसे… ये रिकॉर्डिंग… उसने कब कैसे चला… नहीं!”
हल्की बारिश की बूंदों से भीगते सरकारी अस्पताल की सफेद दीवारें स्याह रात में डरावनी लग रही थीं। नर्स की वेशभूषा में, पहचान छुपाती हुई सुहानी गेट से भीतर दाखिल हुई। नकली ID कार्ड पर नज़र पड़ते ही गार्ड ने कुछ संदेह से देखा, लेकिन सुहानी की गंभीर आँखों ने उसे कुछ पूछने से रोक दिया।
एक साधारण नर्स की ड्रेस में, बाल बंधे हुए, चश्मा पहने सुहानी धीरे-धीरे अस्पताल के गलियारों में चल रही होतीं है। उसके पास सिर्फ़ एक नाम है — नीलेश, जो काजल के वक़्त हॉस्पिटल में ड्यूटी पर था।
सुहानी सोचती है, "अगर निलेश मिल गया तो शायद माँ के सच से जुड़े कुछ और टुकड़े मिल जाएँ…और अगर आज भी सच हाथ ना लगा, तो शायद कभी नहीं लगेगा।”
वो धीरे-धीरे तीसरी मंज़िल की ओर बढ़ी, जहाँ पुराने कर्मचारियों की फाइलें रखी जाती थीं।
लेकिन उसे नहीं पता था... कोई पहले से ही उसकी हर हरकत पर नज़र रखे हुए था।
वो रिकॉर्ड रूम के पास पहुँचती है, लेकिन तभी एक अनजान आदमी पास के कमरे से मोबाइल पर बात करता हुआ बाहर आता है — उसकी निगाह सुहानी पर टिक जाती है।
(फोन पर),
“हाँ, वही लड़की… नर्स की ड्रेस में है… अब अंदर घुस रही है।”
दूसरी तरफ आरव और रणवीर एक पुराने कैफे में मिलते हैं…
आरव छुपते-छुपाते अंदर आता है। रणवीर पहले से वहाँ इंतज़ार कर रहा था, उसके माथे पर शिकन थी।
रणवीर चिंतित आवाज़ में कहता है, “अब क्यों आए हो? और अगर कोई तुम्हें देख ले…”
आरव कड़वी मुस्कान के साथ जवाब देता है, “मुझे आप आज भी ना पसंद हैं रणवीर चाचू … आज भी मैं आप से नफरत करता हूँ, पर सुहानी के लिए मैं कुछ भी करने को तैयार हूं, और वो आप पर बहुत भरोसा करती है।”
रणवीर चौंक जाता है।
आरव आगे कहता है, “उसके आसपास बहुत से शिकारी हैं… और मैं खुद भी एक बन गया हूँ…मगर मुझे उसे बचाना है — अपने तरीके से।”
रणवीर धीरे से सवाल करता है, “मैं तुम्हारी मदद क्यों करूँ?”
आरव सीधे उसकी आँखों में देखता है, “क्योंकि आप भी जानना चाहते हो ना… शमशेर की मौत का असली सच?”
रणवीर की आँखें भर आती हैं — एक पल को पुरानी यादें और खोया भाई उसके सामने आ खड़े होते हैं।
(अस्पताल में रिकॉर्ड रूम के पास)
सुहानी धीरे से दरवाज़ा खोलती है। अंदर की धूल भरी अलमारियाँ और फाइलों के ढेर में से वो पुराना रजिस्टर खोज रही होती है, जिसमें काजल की आखिरी admit details थीं….तभी दरवाज़ा ज़ोर से बंद होता है। सुहानी चौंककर पलटती है।
एक लंबा, डरावना आदमी सामने खड़ा था — वही शख्स जो फोन पर बात कर रहा था।
वो आदमी धीरे से कहता है, “आपको यहाँ नहीं होना चाहिए… Mrs. Rathore।”
सुहानी की धड़कन तेज़ हो जाती है। लेकिन वो डर को अपने चेहरे पर नहीं आने देती।
सुहानी अपनी साँस रोकते हुए कहती है, “मुझे सिर्फ़ एक आदमी से मिलना है — नीलेश…मैं फिर चली जाऊँगी।”
वो आदमी हँसते हुए कहता है, “नीलेश अब बोल नहीं सकता…और तुम भी शायद ज़्यादा बोलने की हालत में न रहो।”
वो आगे बढ़ता है, लेकिन तभी सुहानी एक अलमारी से भारी फाइल उठाकर उसे धक्का देकर भागती है।
अस्पताल की सीढ़ियाँ, गलियारे… वो दौड़ती है, उसके पीछे दौड़ते हुए कदमों की आवाज़।
आख़िरकार एक वार्डबॉय उसे एक पुराने स्टोर रूम में छुपा देता है।
वार्डबॉय धीरे से कहता है, “जल्दी में मत जाओ…नीलेश ज़िंदा है, लेकिन उसे छुपाकर रखा गया है, कुछ लोग नहीं चाहते कि वो फिर से बोले।”
सुहानी हैरान होती है।
सुहानी उससे पूछती है, “तुम कौन हो?”
वार्डबोय जवाब देता है, “मैं शमशेर राठौर का वफादार हूं, उन्होंने आप पर नज़र रखने को कहा था, कि कहीं आप यहाँ आये तो आप पर कोई खतरा ना आये, और मैं आपको आने वाले खतरों से आगाह कर सकूं।
आरव और रणवीर उस पुराने कैफे में….रणवीर अब भी चुप बैठा है, जबकि आरव गंभीरता से कुछ सोच रहा है।
रणवीर गंभीर लहजे में कहता है, “तुम्हें लगता है तुम खेल खेल रहे हो? जिस आग में तुम मुझे झोंकना चाह रहे हो, उसमें तुम खुद जलोगे।”
आरव धीमी आवाज़ में, “मैं तो पहले ही जल चुका हूँ, रणवीर। अब बस सुहानी को बचा लूं — इतना ही काफी है।”
रणवीर, “पर उस लड़की को तुमने खुद कैद में रखा है…उसकी आँखों में जो डर है, उसकी वजह भी तुम हो।”
आरव की आँखें कुछ नम सी हो जाती हैं, मगर वो रणवीर को महसूस नहीं होने देता, “जानता हूँ… लेकिन अगर मैं खुलकर उसका साथ दूँ… तो दिग्विजय उसे मार देगा… और मुझे भी।”
“तो फिर एक शर्त पर… मैं तुम्हारी मदद करूँगा। तुम हर उस सबूत को मेरे साथ बांटोगे — हर वो नाम, हर वो दस्तावेज़… जो शमशेर और काजल की मौत से जुड़ा है। या फिर किसी तरह से इस साजिश से जुदा है।”
आरव हिचकिचाकर कहता है,
“ठीक है… लेकिन सुहानी को कुछ नहीं होना चाहिए।”
क्या वो वार्डबॉय सच में सुहानी की मदद कर रहा है या फिर ये कोई नई चाल है?
आरव सुहानी को बचा पायेगा या फिर रणवीर से किया सौदा उसे भरी पड़ेगा?
नीलेश तक कैसे पहुंचेगी सुहानी?
जानने के लिए पढ़ते रहिये, ‘रिश्तों का क़र्ज़।’
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