कमरे की छोटी सी खिड़की से आती हल्की रोशनी में सुहानी की आँखें और भी सतर्क हो गई थीं। वो जानती थी — बाहर खतरा है, पर अब पीछे हटने का कोई रास्ता नहीं था।
सुहानी मन ही मन खुद से कहती है, “आज नहीं… आज मैं पीछे नहीं हटूँगी। चाहे कुछ भी हो जाए, मुझे माँ की सच्चाई जाननी है। जिस दिन उनका ऐक्सिडेंट हुआ, उस दिन यहाँ जो लाश लाई गई थी… वो किसकी थी? कौन था वो, जिसे बदले की आग में बली चढ़ा दिया गया, अगर कोई और… तो माँ को गायब किसने किया?”
मीरा को शक तो हो रहा था कि सुहानी यहीं कहीं है पर वेशभूषा बदलने के कारण उसे पहचानना आसान नहीं था।
मीरा फोन पर गौरवी से कहती है, “अभी तक कुछ मिला नहीं। अगर वो यहाँ है, तो मैं उसे ढूँढ निकालूँगी।”
गौरवी कड़वी हँसी के साथ कहती है, “ढूँढो, मीरा। अगर वो कागज़ मिल गए… तो हम सब कुछ खो देंगे।”
परछाई में खड़ा वो लंबा आदमी, काले कोट और टोपी में, बेहद खामोशी से अस्पताल की फाइल रूम के पास मंडरा रहा था। उसकी जेब में एक फोटो थी — सुहानी की।
फ़ोन पर फुसफुसताए हुए, “Target inside. Awaiting order.”
“तुमसे ये काम हों पायेगा?” फ़ोन के दूसरे ओर से एक आदमी की जानी मानी आवाज़ आई।
“सर आप जानते हैं, मैं क्या कर सकता हूं क्या नहीं। सालों पहले अगर आपने मुझे सही खबर दी होती कि उनके साथ और भी कोई गाड़ी में था, तो आज ये नौबत ही नहीं आती।
खैर, राठौर साहब का फ़ोन आया था मुझे। इस बार कोई गड़बड़ नहीं होगी। जैसे माँ को किडनैप किया इसे भी रास्ते से हटा दूंगा। ये सच तक कभी नहीं पहुंच पाएगी।”
वहीं सिक्योरिटी रूम में सुहनी की सुरक्षा करने वाला वार्डबॉय, शमशेर राठौर का आदमी, जो अब तक सुहानी की हिफाज़त कर रहा था, CCTV पर नज़र गड़ाए बैठा था।
“ये आदमी कौन है, जो सुहानी मैडम के पीछे पड़ा है?
सुहानी ये सुन कर स्क्रीन के पास आती है, और देखती है, कि मीरा भी अस्पताल में उसे ढूंढ़ रही है।
“ये क्या कर रही है यहाँ?” सुहानी खुद से कहती है।
“सुहानी मैडम, आपका यहाँ रहना खतरे से खाली नहीं है। आपको जाना होगा।”
“नहीं, मैं बिना वो फ़ाइल लिए यहाँ से नहीं जा सकती। मुझे जानना है कि उस दिन मेरी माँ की जगह किसे बली चढ़ाया गया और किसने उन्हें आर्डर दिया कि उस लाश को मेरी माँ की लाश declair की जाए? ये सब जाने बिना मैं यहाँ से नहीं जा सकती।” सुहानी ने अपने कदम पीछे लेते हुए कहा।
“मैडम, मैं आपके सवालों का जवाब नहीं दे सकता मगर हाँ, ये देने के लिए कहा था शमशेर सर ने आपको।”
वो सुहानी को एक pendrive देता है।
सुहानी उसे कुछ देर घूरती है, फिर धीरे से हाँथ बढ़ा कर pendrive ले लेती है।
“इसमें क्या है?” सुहानी अपनी हथेली पर रखे pendrive को देखते हुए वार्डबॉय से पूछती है।
“मैं नहीं जानता सुहानी मैडम, मगर शमशेर सर ने किसी पर भी भरोसा करने से आपको मना किया है….यहाँ तक की उनके बेटे यानी आपके पति, आरव पर भी। वो नहीं जानते की आरव सर पर किस तरह का असर है उन लोगों का, तो आप किसी पर भी भरोसा नहीं कर सकतीं।”
ये सब तुम कैसे जानते हो?
“मेरा नाम रमेश है और नीलेश मेरा भाई था” रमेश बताता है।
“क्या? फिर उसे क्या हुआ? कहाँ है वो? मुझे मिलना है उससे, बात करनी है उससे।” सुहानी उत्सुकता से पूछती है।
“अब वो किसी काम का नहीं। उसे पागल और गूंगा कर के, उन लोगों ने पागल खाने में डाल दिया जिन्होंने आपकी माँ को मारने की कोशिश की थी। वो आपको अब कुछ नहीं बता सकता। उसे अब तो अपना नाम भी याद नहीं।
उसकी हालत देखने के बाद ही मैंने कसम खायी थी, कि मुझसे जो बन पड़ेगा करूँगा, मगर उन लोगो को बर्बाद करने में पूरी मदद करूंगा जिन्होंने मेरे भाई के साथ ये किया।” रमेश अपने हाँथ कस्ते हुए कहा।
“I am sorry, Ramesh. उम्मीद करती हूं तुम्हें, तुम्हारा बदला ज़रूर मिले। मुझसे जो हो पाएगा मैं करुँगी” सुहानी ने उससे भावुक होकर कहा।
“मुझसे भी सुहानी मैडम जो होगा मैं करूँगा। मगर अभी आपको यहाँ से बाहर निकलना बहुत ज़रूरी है, दोनों ही इस ओर बढ़ रहे हैं….जल्दी चलिए।”
अब मीरा तेज़ी से पास आती है, और वो लंबा आदमी रुकने को तैयार ही नहीं। तभी रमेश, पीछे से आकर उसे धक्का देता है और सुहानी को इशारे से निकलने को कहता है।
सुहानी हाथ में pendrive लिए, अपनी साँस थामे, मीरा की नज़रों से बचती हुई पिछली सीढ़ियों से भागती हुई गेट से बाहर निकल जाती है— बाहर एक कैब उसका इंतज़ार कर रही थी।
वहीं कैफे में आरव ने रणवीर से डील करने के बाद फोन उठाया और सुहानी को कॉल किया— पर सुहानी unreachable थी।
आरव परेशान होकर बोला, “तुम्हें नहीं पता, तुम कितनी बड़ी मुश्किल में हो सुहानी… और अगर मैं तुम तक पहुँच ही नहीं पाऊंगा, तो तुम्हें बचा कैसे पाऊंगा?”
घर पहुंच कर सुहानी पिछली गेट से चुप चाप मेंशन में घुस जाती है, और सबकी नज़रों से बचकर अपने कमरे में चली जाती है, वो जल्दी से अपने कपड़े बदलकर उन कपड़ो को छुपाकर बाथरूम से बाहर आ जाती है, और तभी मीरा उसके कमरे में पहुंच जाती है….
“तुम कहा थी, तुम अस्पताल से इतनी जल्दी यहाँ तक कैसे पहुंची?”
मीरा हाँफ्ते हुए पूछती है, “अस्पताल? कौन सा अस्पताल, तुम्हें ध्यान भी है या नहीं कि मुझे बाहर निकलना मना है?” सुहानी मीरा को चकमा देने के लिए कहती है, और तभी उसकी नज़र मीरा के पीछे रखी हुई टेबल पर जाती है, जिसके कोने पर वो pendrive रखी थी।
“मुझे पागल समझा है क्या तुमने?” मीरा चिढ़कर सुहानी की ओर बढ़कर कहती है, जैसे सुहानी का होना भी उसके बर्दाश्त से बाहर है। वो उसका वजूद मिटा देना चाहती है।
“क्या हुआ मीरा? इतनी परेशान क्यों हो? हाँथ से अब कुछ फिसल रहा है क्या?” सुहानी हँसते हुए पूछती है। और धीरे-धीरे आगे बढ़ते हुए, मीरा का ध्यान अपने सवालों पर रखते हुए टेबल के पास जाकर खड़ी हो जाती है, और pendrive को मीरा की नज़रों से छुपा लेती है।
मीरा जल भून कर राख हो जाती है।
“तुम्हें तो मैं देख लूंगी” मीरा अपने दाँत पीसते हुए कहती है।
“Okay! देख लेना!” इस बार सुहानी आगे बढ़ कर मीरा के बिलकुल करीब आकर कहती है।
मीरा गुस्से में हल्की सी चींख के साथ, अपने पैर पटकते हुए कमरे से बाहर निकलने लगती है, कि तभी आरव सामने से आ जाता है और उसे यूँ देख कर, जेब में हाँथ रखे हुए, दो कदम पीछे हट जाता है।
मीरा के जाने के बाद, आरव सुहानी से अपनी आँखों के इशारों में सवाल करता है, ये सब अभी क्या हुआ?
मगर सुहानी बस मुस्कुराती हुई अपने कामों में लग जाती है। वो pendrive को तुरंत अपने अलमारी में जाकर रख देती है। समय मिलते ही, अकेले बैठ कर वो ये pendrive खोल कर देखेगी।
आरव पर सच में अभी भरोसा नहीं किया जा सकता…वो कहता कुछ है और करता कुछ।
अपनी सोच में गुम सुहानी अलमारी बंद कर के पीछे जैसे ही मुड़ी, तो आरव उसके ठीक पीछे खड़ा था, और वो सीधा उसके सीने से टकरा जाती है।
वो तुरंत उसे पीछे धकेलने के लिए अपने हाँथ ऊपर करती है, मगर आरव उसकी कलाई अपने दोनों हाथों से पकड़ लेता है।
“सुहानी, तुम कहाँ थी?” आरव उससे सवाल करता है।
“क्या अब सबको एक एक कर के बताना पड़ेगा मुझे कि मैं पूरा पूरा दिन अपने कमरे में होती हूं” सुहानी कड़वी आवाज़ में उसे जवाब देती है।
“सुहानी, मेरी तरफ देखो।” सुहानी की नज़रें आरव के अलावा बाकी सब जगह होती हैं।
“प्लीज, बेबी।” ये सुनकर सुहानी की तीखी नज़रें आरव पर थी और उनमे और कड़वाहट भर जाती है।
“बेबी, अगर तुम मुझे मौका तक नहीं दोगी, तो मैं तुम्हें कैसे सब से बचाकर रख पाऊंगा?” आरव सुहानी के माथे पर अपने अंगूठे से सहलाते हुए, उसकी तीखी नज़रों को आराम देने की कोशिश कर रहा होता है।
“मुझे आपकी प्रोटेक्शन की ज़रूरत नहीं है और मुझे बेबी बुलाना बंद करिये।” सुहानी उसके हाथों को झटके से हटाते हुए उससे दूर जाने की कोशिश करती है।
मगर आरव फिर से उसका हाँथ पकड़कर उसे रोक लेता है।
“तो क्या कहूं? बाबू, हनी, शोना…बच्चा?” आरव उसकी ओर बढ़ कर उसके चेहरे को अपने हाथों के बीच लेकर उसके माथे को चूमते हुए पूछता है।
उसके छूने से, सुहानी की आँखें बंद हो जाती हैं, और जब वापस खुलती हैं, तो वो नम होती हैं।
“आप मुझे कुछ भी बुलाने का हक़ कई बार खो चुके हैं आरव। आप मुझसे बात ही ना करें तो अच्छा होगा।”
सुहानी की बेरुखी से आरव का दिल टूट जाता है। वो उसका हाँथ छोड़ देता है, और जैसे ही सुहानी को लगता है कि वो उसकी पकड़ से छूट गई है, आरव उसे तुरंत पीछे से आकर अपनी बाहों में भर लेता है। अब सुहानी की पीठ, आरव के सीने से लगी हुई है।
दोनों की सांसे तेज़ हों जाती है।
आरव उसके कानों के पास आकर कहता है….
“तुम्हें अगर ये लगता है, कि मैं तुम्हें अब खुद से दूर जाने दूंगा, तो तुम्हें बहुत बड़ी गलत फेहमी है सुहानी। मैं आज हो सकता है कोई गलत कदम उठा रहा हूं, तुम्हें और सच को बचाने के लिए, मगर जल्द ही ये सब ठीक हो जाएगा और तुम बस मेरी होगी।
तब तक मैं चाहता हूं कि तुम देखो, कि कोई दुश्मन बन कर भी किसी से कैसे टूट कर प्यार करता है।”
इतना कहकर आरव सुहानी को वहीं छोड़कर, कपड़े बदलने के लिए बाथरूम में चला जाता है।
सुहानी वहीं की वहीं खड़ी रह जाती है। वो सांसे लेना तक भूल जाती है। कुछ देर बाद जब खिड़की पर एक चिड़िया आकर अपनी चोंच से आवाज़ करती है, तब जाकर सुहानी को होश आता है, और उसकी सांसे तब भी थमने का नाम नहीं लेती।
वो बहुत बार अपनी पलकों को झपकती है और फिर अपनी मुठियों को कसकर टेबल के पास जाती है, और अपना लैपटॉप उठा कर अंदर के कमरे में चली जाती है।
सारा दिन उलझनों, सवालों और जख़्मों से भरा रहा। लेकिन रात के सन्नाटे में जब सारे दरवाज़े बंद हो जाते हैं, कुछ सच दस्तक देने लगते हैं।
सुहानी अपनी अलमारी से वो pendrive बाहर निकालती है और उसे लेकर कमरे में अकेली अब बिस्तर पर बैठी है। आरव कमरे में नहीं आता ठीक पिछली दो रातों की तरह। Pendrive insert करने के बाद वो देखती है कि उसमें कुछ documents, और एक ऑडियो फ़ाइल होती है। उसकी उंगलियाँ एक-एक दस्तावेज़ पर फिसल रही थीं, जैसे सच को छूने की कोशिश कर रही हों। तभी उसकी नज़रों के सामने आया एक दस्तावेज़ का स्कैन….
“Patient: Kajal S. Pratap — Postpartum Records — Status: Alive on Arrival”
ये लफ्ज़ उसके सीने पर हथौड़े की तरह गिरे।
“Alive…? मतलब मेरी माँ और वो औरत जिन्हे उनकी जगह लाया गया था, दोनों ज़िंदा थी फिर एक बेक़सूर की जान कोई कैसे ले सकता है? ” सुहानी की आँखों से आँसू बह निकले।
उसका ज़हन सुन्न हो गया। वो जिंदा थीं? फिर…?
तभी उसी फाइल में एक और पन्ना मिला।
उसकी धड़कन थम सी गई।
“Death Certificate issued on request of Dr. Hemraj (private orders)”
उसकी रूह काँप उठी।
“डॉक्टर हेमराज…”
उसका मन फुसफुसाया,
“ये वही आदमी है जो हादसे की रात ड्यूटी पर था और जिसने कहा था कि माँ की मौत हो गई है। लेकिन किसके कहने पर?”
उस रात, वो कमरे की दीवारों से पूछती रही —
किसे डर था माँ के जिंदा रहने का?
कौन था जो चाहता था कि काजल स. प्रताप की साँसे, उसकी सच्चाई के साथ दफ़न हो जाएं?
सुहानी की आँखें अब नमी नहीं, आग से भरी थीं।
अब यह सिर्फ उसकी कहानी नहीं थी — यह उसकी माँ की अधूरी लड़ाई थी और यह लड़ाई अब खत्म नहीं, शुरू होने जा रही थी।
अगले दिन सूरज निकलने से पहले ही… सुहानी ने फैसला कर लिया था — अब वो उस इंसान से मिले बिना नहीं रहेगी जिसने उसकी माँ को ज़िंदा होते हुए भी 'मरा हुआ' घोषित करवा दिया था।
उसका अगला कदम था — "डॉक्टर हेमराज" से आमना-सामना। पर क्या ये इतना आसान होगा?
क्या डॉक्टर हेमराज तक सुहानी पहुँच पायेगी या उससे पहले ही काम तमाम कर दिया जायेगा?
क्या आरव पर सुहानी कभी दोबारा भरोसा कर पाएगी, या फिर तोड़ देगी उससे सारे रिश्ते?
कौन हैं इस खेल के नए खिलाड़ी, जो सुहानी और आरव के साथ-साथ दिग्विजय और गौरवी को भी अपना शिकार बना रहे हैं?
इस दलदल में क्या सुहानी किसी नई मुसीबत का हिस्सा बन जाएगी?
आगे क्या होगा, ये जानने के लिए पढ़ते रहिये, रिश्तों का क़र्ज़।
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