नीना का चौधरी बागान बाड़ी में अब तक का सफर बहुत ही रहस्यमयी गुज़रा था। हर बीती रात उसे कुछ बता कर जाती और हर आने वाली रात अपने साथ एक नया किस्सा लेकर आती।

आज भी रात गहराती जा रही थी और नीना अपने काम में खोई हुई थी। वह बागान बाड़ी के स्टूडियो में देर रात तक काम कर रही थी। कमरे में हल्की रोशनी और सन्नाटे के बीच, कैनवास पर उसके ब्रश की नरम खरोंच की आवाज़ साफ़ -साफ़ सुनाई दे रही थी। उसने वसुंधरा की तस्वीर में बालों का रंग देखा और मैच करने के लिए काले रंग में सफ़ेद का हल्का सा हिस्सा मिलाकर उसे हल्का किया। फिर उसमें पिगमेंट मिलाया। जैसे ही उसने वसुंधरा के लहराते बालों पर स्ट्रोक मारा, उसे लगा मानो बालों का वह स्ट्रोक सच में उसकी लट बने हवा में उसके माथे पर हिलने लगा। 

उसकी भौहें तन गईं, जो स्वाभाविक था। मन में सवाल उठा कि आखिर ऐसा कैसे हो सकता है? उसने अपना चेहरा थपथपाया। आँखें बंद कीं और फिर खोलीं, तो देखा कि उसके सामने कैनवास पर कुछ भी नहीं था। उसने पलटकर देखा तो एक परछाई कमरे से निकलकर बाहर जा रही थी और रात के अंधेरे में विलीन हो गई।


नीना पलटी, लेकिन अचानक उसे महसूस हुआ कि जैसे उसके पीछे कोई खड़ा है— कहें तो कोई परछाई या आकृति। लेकिन जब वह देखने के लिए मुड़ी, तो वहाँ कुछ नहीं था। उसे ऐसा लग रहा था, मानो कोई उसके साथ छुपन-छुपाई का खेल, खेल रहा हो। जिस जगह पर वह खड़ी थी, उसके दोनों तरफ़ खिड़कियाँ थीं। पहले उसे दाईं तरफ़ एक हल्का सा reflection दिखाई दिया। जब वह उसे देखने पलटी, तो वहाँ कोई नहीं था। अब वह reflection बाईं तरफ़ आ चुका था, और जब वह बाईं ओर देखने को मुड़ी, तो वह दाईं तरफ़ चला गया। स्टूडियो में एक अजीब तरह का खेल शुरू हो गया था।
नीना: “यह क्या हो रहा है?” 

उसने घबराते हुए ज़ोर से अपनी आँखें बंद कर लीं।
बंद आँखों से वह बुदबुदाई, 
नीना: "ऐसा कुछ भी नहीं हो रहा है! मैं बस यह इमैजिन कर रही हूँ। लगता है बहुत रात हो गई है, मैंने कुछ ज़्यादा ही प्रेशर ले लिया है इसलिए यह सब हो रहा है... मुझे अभी इस पेंटिंग को बंद कर देना चाहिए।"


यह सोचते हुए उसने अपना काम बंद कर दिया। ऐप्रेन उतारा, लाइट बंद की, और रूम में  जाकर लेट गई।

**

अगली सुबह नीना की नींद सतीश के वीडियो कॉल से खुली। उसने आँखें खोलकर देखा और फिर रिसीव करते हुए आँखें बंद कर लीं। और बोली

नीना: "सुबह-सुबह मुझे याद करने के सिवाय तेरे पास और कोई काम नहीं है? मेरी मान तो कोई गर्लफ्रेंड ही बना ले।" 

सतीश: "तुझसे फ़ुर्सत मिले तो बनाऊँ ना! सारा दिन सतीश ये, सतीश वो.. यहाँ कुछ है, वहाँ कुछ है... करती रहती है। खुद तो टेंशन लेती है, सबको देती भी है।" 

नीना: "अच्छा, तुझे इतनी तकलीफ़ है? तो आज के बाद मत उठाना मेरा कॉल!"
भैया, ये लगा नीना जी के तन-मन में तेवर का तड़का।
अब सतीश को भी एहसास हुआ कि उसने कुछ ज़्यादा ही कह दिया। 

सतीश: "अच्छा, सॉरी... वैसे आज इतना देर तक क्यों सो रही है?"
नीना (गहरी साँस लेते हुए कहा): "यार, कल फिर से बहुत कुछ अजीब फ़ील हुआ।"
सतीश: "इस बार क्या हुआ?"
नीना: "पक्का सुनेगा? बताऊँ कि नहीं? नहीं तो तू मुझे फिर से सुना देगा।"
सतीश: "अरे बोल न यार… क्या हुआ?"
नीना: "यार, कल जब मैं पेंट कर रही थी, मैं वसुंधरा के बाल बना रही थी… जैसे ही मैंने बाल पेंट किए, मुझे लगा मानो वे जिंदा लोगों के बाल की तरह हवा में हिल रहे हों... फिर ऐसा लगा मानो वह थोड़ा सा पेंट किया हुआ हिस्सा ही पोट्रेट से बाहर चला गया हो।"
सतीश: "देख नीना, मुझे लगता है तू उस पोट्रेट और हवेली में कुछ ज़्यादा ही घुस गई है। कोई और होता तो मैं पूछता कि क्या नशा कर रहा है भाई? मेरी मान, तो एक-दो दिन पेंट मत कर।"
नीना: "ऐसा करने से काम बनेगा?"
सतीश: "करके देखने में क्या बुराई है?"
नीना: "हम्म, पॉइंट तो है।"

सतीश ने उसे समझा तो दिया था, लेकिन फिर भी उसे तसल्ली नहीं हो रही थी।सतीश ने कोलकाता आने का प्रस्ताव रखा। सतीश को यहां देख, नीना को ज़रूर अच्छा लगता। पर उसने अपने मन को मार कर उसके प्रस्ताव को इंकार कर दिया. कहा कि सतीश का काम-काज रुक जायेगा। जब ज़रुरत होगी तो वो खुद बुलावा भेजेगी। इस पर सतीश ने टिपण्णी की कि उसके बिन-बुलाए आने से शायद रईसज़ादे को ऐतराज़ हो, आखिर घर तो उसका है, और बिन-बुलाया मेहमान होता सतीश। और उसके आने का परिणाम शायद नीना को भुगतना पड़ता। तो कोलकाता न जाना ही बेहतर है।इस पर नीना ने हलके झुंझलाहट से कहा की “कैसा परिणाम”? क्या कर लेगा सत्यजीत? सतीश ने अच्छे दोस्त की तरह उसे समझाया की शायद पेमेंट के झमेले करे, या फालतु में नीना पर ग़ुस्सा! मतलब, करने को तो रईसज़ादा कुछ भी कर सकता है नीना को परेशान करने के लिए। 

नीना: "इतना भी बुरा नहीं है वो।"

सतीश: "अच्छा बेटा।"


वे बात कर ही रहे थे कि नाश्ते के लिए बुलावा आ गया।

नीना (वीडियो कॉल पर): “चल, सॉरी हाँ, मुझे अब जाना होगा। मेरा डिलिशियस बंगाली ब्रेकफ़ास्ट मेरा इंतज़ार कर रहा है। कसम से,  वापसी में पक्का 7-8 किलो वजन तो बढ़ ही जाएगा मेरा ।” कहते हुए वह हंसने लगी।

सतीश: "हाँ, खा ले मोटी। और कुछ भी हो तुरंत कॉल करना"

 

दोनों हंसते हुए फोन काटते हैं ।

नीना तैयार हजोकर नाश्ते की मेज पर पहुँची, लेकिन सत्यजीत वहाँ नहीं थे। उसने शंभू से पूछा की चौधरी साब कहाँ हैं, तो शंभू ने जवाब दिया कि बड़े बाबू तो आज सुबह-सुबह ही टूर पर निकल चुके हैं।और नीना के लिए, एक काम सौंप कर गए हैं।

नीना (चौंकते हुए): "कैसा काम?"

शंभू ने नाश्ता सर्व करते हुए बताया कि बड़े बाबू ने कहा है कि नीना को वह कमरा दिखाया जाए जहाँ उनकी और बोउदी की बहुत सी खूबसूरत यादें हैं। यह कमरा तो डेफिनिटली देखना था नीना को। बागान बाड़ी के सभी लोग वसुंधरा को “बोउदी” याने के भाभी कहकर ही बुलाते थे।

नीना मुस्कुराते हुए बोली, "वाह, तो हमें जल्दी से नाश्ता खत्म करके वहाँ जाना चाहिए। क्या कहते हो?"

शंभू ने मुस्कुराकर अपनी सहमति दे दी।


** 

वक़्त के साथ-साथ हालात ऐसे बनते जा रहे थे कि नीना खुद भी वसुंधरा के बारे में जानना चाहती थी। वह जानती थी कि वसुंधरा उसके लिए एक रहस्य है, जिसका सुलझना बहुत ज़रूरी है, नहीं तो वह खुद उसमें उलझ कर रह जाएगी।
शंभू ने नीना को नाश्ता करवाकर, वहाँ की सफाई का ज़िम्मा दुसरे स्टाफ को दे दिया और वहाँ पास ही बनी एक पुराने अलमारी से एक चाबी निकाली। फिर नीना को अपने पीछे आने का इशारा किया।
शंभू दादा, खुद को इस बड़े से बागान बाड़ी का कर्ता-धर्ता मानकर आगे-आगे चल दिए और नीना उनके पीछे-पीछे।

शंभू उसे ग्राउंड फ्लोर पर बने एक कमरे में ले गया और एक दरवाज़े के सामने खड़ा होकर ताला खोलने लगा। नीना ने आस-पास नज़र घुमाई और मन में बुदबुदाई, 

नीना: “सच में, ये बागान बाड़ी बहुत बड़ी है। तीन दिन से देख ही रही हूँ, लेकिन फिर भी खत्म नहीं होती। और एक हमारा घर, यहाँ शुरू और एक छलांग में वहाँ खत्म! यहाँ रोज़ कुछ न कुछ नया देखने को मिल जाता है। कितना कुछ छुपा हुआ है इस हवेली में... इन दीवारों ने न जाने कितनी पीढ़ियाँ देखी हैं, कितनी खुशियाँ, कितने ग़म, और न जाने कितने राज़ दफ़न होंगे…”

वह सोच ही रही थी कि शंभू ने दरवाजा खोलकर कमरे का बड़ा सा लैंप ऑन किया और उसे अंदर आने का इशारा किया। 
बाहर से ही उसने देखा इतना खूबसूरत नज़ारा कि उसके उसके मुँह से 'वाव' निकल गया और आँखें देखकर चौड़ी हो गईं।

अंदर जाकर नीना ने देखा कि कमरा बहुत खूबसूरती से सजाया गया था। सत्यजीत और वसुंधरा की शादी की सुन्दर-सी, बड़ी तस्वीरें लगी हुई थीं। शंभू बता रहा था कि बोउदी और बड़े बाबू ने खुद अपने हाथों से इस कमरे को तैयार किया था। शादी की हजारों तस्वीरें ली गई थीं, उनमें से चुनिंदा तस्वीरें उन्होंने select की और दीवारों पर सजाई थीं। बड़े बाबू और बोउदी अक्सर यहाँ आते थे और यहाँ एक दुसरे के साथ सुन्दर समय बिताते थे। दोनों साथ में कितने अच्छे लगते थे। फिर शंभु सिर हिलाते हुआ बोलै की आजकल तो बड़े बाबू सिर्फ़ काम में उलझे रहते हैं।


नीना को यह सुनकर दुख हुआ। सच ही तो है, किसी एक के जाने से सब खत्म हो जाता है, और सत्यजीत इसका जीता-जागता उदाहरण थे। उसने भी उन्हें सिर्फ़ काम में उलझे हुए ही देखा है.. कभी चैन से बैठे हुए नहीं। एक वक़्त होगा जब वो भी वसुंधरा जी के साथ हँसते होंगे, अपने फेवरेट गाने सुनते होंगे, उनके भी सुकून भरे पल होते होंगे।" 

नीना: “कितना मुश्किल है, जिसके साथ ताउम्र किस्से बनाने की ख़्वाहिश हो, कभी वो सिर्फ़ यादों में बस कर रह जाना…’
वो सत्यजीत और वसुंधरा में खोती जा रही थी।
 

शंभू ने अलमारी से एक खूबसूरत सी बंगाली सिल्क की साड़ी दिखाई और उसे बताया कि ये बोउदी  की सबसे प्रिय साड़ी थी। जब भी पहनती थीं, बहुत खुश लगती थीं।'
उसने आगे बताया कि वसुंधरा ये साड़ी अपने मायके से लाई थीं। उनके मायके वाले भी बहुत रईस लोग हैं, और ये साड़ी उनकी दादी ने उन्हें दी थी।
नीना की नज़र साड़ी पर गई। वो बेशकीमती और बेहद आकर्षक थी। उसने बाकी लगी हुई साड़ियों को देखा— बंगाली हैंडलूम कॉटन, सैटिन सिल्क, जैकार्ड ज़री सिल्क, कांजीवरम, सॉफ्ट लीची सिल्क, फुकोली वोवन साड़ी.... उफ़्फ़, क्या कुछ नहीं था उस कमरे में! साड़ी की ऐसी कोई वैराइटी नहीं थी जो वसुंधरा के पास न हो।
नीना को लगा जैसे वो यादों और साड़ियों के म्यूज़ियम में खड़ी हो। 
शंभू उसे बता रहा था कि बड़े बाबू जब भी कहीं जाते, वसुंधरा के लिए कोई न कोई तोहफ़ा ज़रूर लाते, और वो उन्हें इस बक्से में रखती थीं। कहते हुए उसने एक बॉक्स की तरफ़ इशारा किया।
 

नीना ने आखिरकार सवाल कर ही लिया, 

नीना: 'उन्हें क्या हुआ था? मेरा मतलब, उनकी मौत का कारण क्या था?'

 

शंभू ने उसे बताया कि उन्हें काल खा गया। बेचारी बीमार पड़ गई थीं। बड़े बाबू ने उन्हें कितना संभाला, लेकिन वो नहीं संभलीं और सबको छोड़कर चली गईं।
नीना को यह सुनकर सत्यजीत के लिए बुरा लगा। जितना वो दिखाते हैं, उतने सख्त दिल भी नहीं हैं। सत्यजीत के लिए उसके दिल में हमदर्दी पैदा हुई।
वहीं शंभू उन्हें उनकी वेकेशन और ऑउटिंग्स की तस्वीरें दिखाने लगा। सत्यजीत और वसुंधरा को इतना खुश देखकर उसे लगने लगा कि सच में इस खूबसूरत जोड़े को किसी की नज़र लग गई।
वो वहाँ से सब कुछ अच्छे से देख कर जब बाहर आई, तो उसे नोटिफिकेशन आया। उसने देखा कि अंजली का मेल है।
वो जल्दी से अपने रूम में गई और लैपटॉप ऑन करके ईमेल देखने लगी।

"उसने देखा कि अंजली ने कुछ लिंक भेजी थीं, जिनमें सत्यजीत और वसुंधरा के बारे में कुछ खबरें और आर्टिकल्स थे।अंजली ने उस मेल में उसे चौधरी बागान बाड़ी के अतीत और इतिहास को खंगालने को कहा। उसने लिखा था कि हो सकता है इन अजीब घटनाओं का हवेली के अतीत या वसुंधरा की मौत से गहरा कनेक्शन हो। हमें इसका पता लगाना होगा। वो आगे की तहकीकात कर रही है और नीना को परेशान होने की ज़रूरत नहीं है। अंजली हर कदम पर उसके साथ है।"


 

नीना उन लिंक्स को खोलकर देखने लगी। आज का दिन देखते-देखते यूँ ही गुज़र रहा था। नीना ने सोचा कि अब उसे अच्छा फील हो रहा है, तो क्यों न पोट्रेट को थोड़ा आगे बढ़ाया जाए। वह स्टूडियो में गई, लाइट्स ऑन कीं और काम पर लग गई।

 

नीना आज वसुंधरा के माथे और बालों के हिस्से को फिनिश करना चाहती थी। उसने रंग और पिगमेंट मिलाए, ब्रश हाथों में लिया, और उसमें खोने लगी... मानो पेंटिंग खुद पूरी होने की चाह लिए बैठी हो। एक-एक डीटेलिंग ऐसी थी, जैसे वह किसी के शरीर में जान डालने का काम कर रही हो। उस पूरे हुए हिस्से को देखकर कोई यह नहीं कह सकता था कि यह जीवित नहीं है।

नीना ने माथे और बालों वाला हिस्सा समाप्त कर लिया था। पहली बार वह अपने काम से इतनी संतुष्ट नज़र आ रही थी। उसे अपनी आँखों पर यकीन नहीं हो रहा था कि यह मास्टरपीस वही बना रही है। 

उसने सोचा, 'यह पूरा होने के बाद तो क्या कयामत ही ढाएगा।'
उसने ब्रश और पैलेट साइड में रखकर उसे जी भरकर देखा। वह अपने किए हुए काम को सराह ही रही थी कि उसे अपने पीछे से फुसफुसाहट सुनाई दी।
नीना की भौंहें तन गईं। उसे लगा कि कोई है जो कुछ कह रहा है, लेकिन इस बार उसने पलटने की गलती नहीं की।
उसने पलटने की बजाय आवाज़ पर गौर किया, क्योंकि अगर वह पलट गई, तो वह चली जाएगी।
पीछे से एक महिला की आवाज़ आई, “तुमी के?" मतलब ‘कौन हो तुम’? 

 

यह किसकी आवाज़ थी? 

आखिर ये पोट्रेट इतना जीवंत क्यों लग रहा है?

कौन सा साया है जो नीना से बार-बार कनेक्ट कर रहा है? 

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