जब हमें लगता है कि सब कुछ ठीक हो रहा है, तभी अचानक से मुसीबत हमारे कंधे पर हाथ रख देती है और हमें सोचने का मौका भी नहीं मिलता। पार्थ, डॉक्टर रामानुजन के घर से उनकी लिखी किताबें लेकर अपने घर लौट आया। जैसे ही उसने किताबें अपने कमरे की स्टडी टेबल पर रखीं, वैसे ही किसी ने उसका नाम पुकारा और वह एकदम से चौंक गया।
प्रकाश- पार्थ.. ये किताबें.. कहां से लाए?
पार्थ ने मुड़कर देखा तो पीछे प्रकाश खड़ा था। पार्थ जानता था कि अब उसके मामा किताबों के बारे में कई सवाल करेंगे। वह मन में कोई अच्छा बहाना सोचने लगा।
प्रकाश- बोलो भई.. कैसी किताबें हैं ये? किसी प्रोजेक्ट के सिलसिले में रिसर्च कर रहे हो क्या? दिखाओ ज़रा..
पार्थ- अरे मामा जी, ये तो बस ऐसे ही हैं। ओह! मैं आपको बताना तो भूल ही गया कि मेरी एक दोस्त से बात हुई है। वह तिजोरी ठीक करवा देगा कल। शायद कोई चोर आया था और ज़्यादा रुपए न देखकर उसका मूड बदल गया होगा। हा हा हा..
प्रकाश समझ गया कि पार्थ ने बात घुमा दी है। उसने इसके आगे कुछ नहीं पूछा। पार्थ, प्रकाश का हाथ पकड़कर रूम से बाहर, हॉल में ले आया। प्रकाश को समझ आ रहा था कि पार्थ उन किताबों से उसको दूर रखने की कोशिश कर रहा है। पार्थ ने फिर अपने कुरुक्षेत्र सर्वे का ज़िक्र छेड़ दिया।
पार्थ- जब से मैं कुरुक्षेत्र से आया हूँ, आपको बता ही नहीं पाया कि मेरा सर्वे कैसा रहा। आपको पता है मामा जी, वहां मेरी राहुल से कई बार बहस होते-होते रह गई। एक हफ्ता खून पसीना एक करने पर भी हमारे हाथ कुछ खास नहीं लगा था। वो तो अच्छा हुआ कि लास्ट डे हमें कृष्ण ने बचा लिया।
पार्थ की इस बात पर प्रकाश के कान खड़े हो गए। उसे लगा कि शायद पार्थ उसे जादुई डायरी के बारे में बताने वाला है। पार्थ ने आगे बताया कि कैसे उन्हें ज्योतिसार में लास्ट डे, कृष्ण की मूर्ति मिल गई थी और सेक्रेटरी सर खुश हो गए थे। प्रकाश, पार्थ के मुंह से जो सुनना चाहता था, वो पार्थ ने नहीं बताया। वो समझ गया कि पार्थ से बात उगलवाना आसान नहीं है। इसीलिए वह बिना अपनी एनर्जी वेस्ट किये, रूम में सोने चला गया। उसके जाते ही पार्थ ने राहत की सांस ली और वापस अपने रूम में आ गया। उसने सबसे पहले उन किताबों को छिपाया और फिर रागिनी को डॉक्टर रामानुजन और उन किताबों के बारे में बताने के लिए कॉल किया।
रागिनी- मिला कोई जवाब? डॉक्टर रामानुजन ने बताया कुछ?
पार्थ- न हाए, न हैलो। सीधे काम की बात, हाँ?
रागिनी- अरे, ये सब इम्पॉर्टन्ट नहीं है। इम्पॉर्टन्ट है कि तुम्हें कृष्ण की उस घटना के बारे में कुछ पता चला या नहीं, जिसे वो इतिहास से मिटाना चाहते थे?
पार्थ- एक अच्छी खबर है और एक बुरी खबर। बताओ, पहले क्या सुनोगी?
रागिनी- ये कोई गेम खेलने का समय है? तुम्हें जो सही लगे वो पहले बताओ।
रागिनी, पार्थ के इस सवाल पर थोड़ा इरिटेट हो गई और वह ज़्यादा इरिटेट न हो जाए, इसलिए पार्थ ने बताया कि डॉक्टर रामानुजन 4 महीने पहले ही गुज़र चुके हैं। रागिनी को भी ये सुनकर झटका लगा और वो सोचने लगी कि अब पार्थ कैसे सच का पता लगाएगा, तभी पार्थ ने बताया कि डॉक्टर रामानुजन के बेटे मानव ने उसे उनकी कुछ किताबें दीं हैं। जो उन्होंने मरने से पहले लिखीं थीं और उनमें कृष्ण के बारे में बहुत सी ऐसी बातें हैं जो दुनिया में किसी को नहीं पता।
रागिनी- वाह! ये तो बढ़िया हुआ।
पार्थ- कैसी बातें कर रही हो रागिनी? डॉक्टर रामानुजन मेरे प्रोफेसर थे। वो अब इस दुनिया में नहीं हैं और तुम वाह कह रही हो?
रागिनी- अरे, मैं तो किताबें मिलने की खुशी में वाह कह रही हूँ। पार्थ, तुम मेरे बारे में ऐसा कैसे सोच सकते हो? तुम्हें मैं इतनी इन्सेन्सिटिव लगती हूँ क्या?
पार्थ रागिनी की बस टांग खींच रहा था, लेकिन रागिनी उस पर गुस्सा ही होने लगी। पार्थ ने उसे ऐसा मज़ाक करने के लिए सॉरी कहा और फिर बताने लगा कि कैसे उसने प्रकाश मामा से इन किताबों को छुपाया है। रागिनी ने उससे पूछा भी कि वह अपने मामा को सच क्यों नहीं बता देता? जिस पर पार्थ ने कहा कि वह अपने मामा को फ़िज़ूल का स्ट्रेस नहीं देना चाहता है। रागिनी ने इस बात पर पार्थ की टांग खींची।
रागिनी- ओह! तो इसका मतलब है कि तुम मुझे स्ट्रेस देना चाहते हो, इसीलिए मुझे डायरी के बारे में सच-सच बात दिया। हैं न?
पार्थ समझ गया कि ये दांव रागिनी ने अपना बदला लेने के लिए खेला है। वह ज़ोर-ज़ोर से हंसने लगा। रागिनी चिढ़ गई और उसने कॉल कट कर दी। पार्थ ने भी मोबाईल साइड में रखा और सोचा कि वह अगले दिन से डॉक्टर रामानुजन की किताबों को पढ़ना शुरू करेगा। वह बेड पर लेट गया और आँखें बंद कर लीं, लेकिन उसे नींद नहीं आई। उसके दिमाग में बहुत सी बातें चल रहीं थीं। फिर वह उठ के बैठ गया और अपने बैग से उसने जादुई डायरी निकाल ली। जैसे ही उसने पहला पन्ना खोला, उसमें शब्द उभरने लगे।
“हे पार्थ, मैंने अपने जीवन में कई राक्षसों का सामना किया है| मेरा जन्म होते ही पूतना ने मुझे जान से मारने की कोशिश की| पूतना से जान बची ही थी कि तृणावर्त ने भी मुझ पर हमला किया| मेरा पूरा बालपन बुरी शक्तियों से लड़ने में बीत गया किन्तु पता नहीं क्यों सभी माएँ चाहती हैं कि उनके बालकों का बालपन मेरी तरह हो| मुझे आज भी ज्ञात है, बालपन में मेरे घर के बाहर हमेशा ही बुरी शक्तियां मंडराती रहती थीं लेकिन मेरी माइया के काले टीके की वजह से कोई भी बुरी शक्ति मेरा कुछ नहीं बिगाड़ पाईं|”
कृष्ण की बातें पढ़कर पार्थ गहरी सोच में डूब गया। सभी लोग कृष्ण को उनकी लीला और चमत्कारों की वजह से याद करते हैं लेकिन पार्थ, कृष्ण के संघर्ष और उनकी तकलीफें जान रहा था| किताब में माँ का उल्लेख होने से पार्थ को भी अपनी माँ की याद आ गयी| उसे अपने माँ-बाप का चेहरा तक याद नहीं| लोग कहते हैं कि जब छोटी उम्र में माँ-बाप की मौत हो जाए तो बच्चे माँ-बाप के बिना जीना सीख जाते हैं लेकिन पार्थ की लाइफ उन सब से अलग थी| उसका एक दिन भी ऐसा नहीं गया जब उसने अपने माँ-बाप को याद ना किया हो| यही सोचते हुए, उसकी आँखों में आंसू आ गए|
पार्थ ने आंसू पोंछे और डायरी बैग में रखकर वापस सोने की कोशिश करने लगा। तभी उसके मोबाईल की घंटी बजी। पार्थ ने देखा तो रागिनी का कॉल था। उसने सोचा कि शायद रागिनी ने चिढ़कर कॉल काट दी थी इसीलिए उसने कॉल बैक किया होगा लेकिन कॉल रिसीव करते ही रागिनी घबराई आवाज़ में बोली,
रागिनी- पार्थ.. पार्थ मेरे कमरे के बाहर मुझे किसी की परछाईं दिख रही है। मम्मी पापा और भाई सो रहे हैं। मुझे बहुत डर लग रहा है।
रागिनी बहुत ज़्यादा घबराई हुई लग रही थी। पार्थ ने उससे आराम से सब कुछ बताने को कहा।
रागिनी- तुमसे बात करने के बाद मेरा मूड थोड़ा खराब हो गया था तो मैंने सोचा कि थोड़ी देर टी. वी देखकर सो जाऊँगी, लेकिन कुछ देर बाद मुझे दरवाज़े के बाहर से किसी की आहट महसूस हुई। जब मैंने दरवाज़ा खोलकर देखा तो वहां.. वहां किसी की परछाईं नज़र आई। पार्थ, वो अभी भी है। वो परछाईं अभी भी है पार्थ।
पार्थ- रागिनी.. सुनो, सुनो रागिनी.. घबराओ नहीं। तुम अपने पापा को आवाज़ लगाओ। डरने से काम नहीं चलेगा। मैं बस थोड़ी देर में तुम्हारे पास पहुंचता हूँ।
पार्थ ने रागिनी को हिम्मत रखने को कहा, लेकिन अचनाक से रागिनी की चीख सुनाई पड़ी और कॉल कट गई। पार्थ को समझ नहीं आया कि रागिनी के साथ क्या हुआ। उसने फिर से उसे कॉल लगाया लेकिन कॉल लगा नहीं। दूसरी तरफ़ रागिनी को अब वो परछाईं अपने रूम में नज़र आने लगी। उसके हाथ से डर की वजह से मोबाईल गिर गया। रागिनी रूम के एक कोने से सट कर खड़ी हो गई। उसने अपने पापा को आवाज़ें भी लगाईं, लेकिन कोई नहीं आया। वहीं पार्थ रागिनी की चीख सुनकर घबरा गया था। इसलिए वह तुरंत रागिनी के घर जाने के लिए निकल गया। उसने जैसे ही अपनी कार सोसाइटी के बाहर निकाली, वैसे ही उसकी कार बंद पड़ गई। 2-3 बार रिस्टार्ट करने पर भी कुछ नहीं हुआ। पार्थ ने कार वहीं छोड़ दी और टैक्सी ढूँढने लगा। उसने रागिनी का नंबर फिर से ट्राई किया लेकिन अब भी कॉल नहीं लगी। रात काफ़ी हो जाने की वजह से पार्थ को टैक्सी भी नहीं मिली।
पार्थ की टेंशन बढ़ने लगी और फिर उसने रागिनी के पापा को कॉल कर दिया।
पार्थ- अंकल, अंकल रागिनी ठीक तो है? मैं बस आ रहा हूँ।
रागिनी के पापा नींद से उठे थे और उन्हें इस समय पार्थ की बात समझ नहीं आई। उन्होंने उससे पूछा, “ये तुम क्या कह रहे हो पार्थ बेटा? रागिनी को क्या हुआ? वह तो अपने कमरे में सो रही है।”
पार्थ को लगा कि शायद रागिनी ने अपने पापा को आवाज़ लगा कर मदद के लिए बुलाया होगा लेकिन यहां तो उसके पापा को कोई खबर ही नहीं। पार्थ ने फिर रागिनी के पापा से कहा कि कुछ देर पहले उसकी रागिनी से बात हो रही थी और अचानक से उसका फोन कट गया। उसके बाद से उसका फोन लग ही नहीं रहा है। पार्थ ने रागिनी के पापा से रीक्वेस्ट की कि क्या वो अभी रागिनी से उसकी बात करवा देंगे? रागिनी के पापा भी मान गए और मोबाईल लेकर रागिनी के कमरे के बाहर पहुंचे। जैसे ही उन्होंने रागिनी के कमरे का दरवाज़ा खोलने की कोशिश की, उन्हें रागिनी की चीख सुनाई पड़ी। उन्हें ऐसा लगा जैसे रागिनी दर्द में है। रागिनी के पापा ने रागिनी को आवाज़ लगाते हुए कहा, “बेटा, रागिनी बेटा क्या हुआ? खोलो दरवाज़ा। तुम ठीक तो हो न? रागिनी, बेटा दरवाज़ा खोलो।”
पार्थ- क्या हुआ अंकल? रागिनी ठीक तो है?
रागिनी के पापा बहुत घबरा गए और उन्होंने पार्थ से कहा, “रागिनी दरवाज़ा नहीं खोल रही पार्थ और अंदर से उसके चीखने की आवाज़ आ रही है। कुछ गड़बड़ है, मुझे समझ नहीं आ रहा।”
पार्थ ने रागिनी के पापा से दरवाज़ा तोड़ देने के लिए कहा। रागिनी के पापा तुरंत रागिनी की मम्मी और भाई को लेकर आए और तीनों ने मिलकर दरवाज़ा तोड़ने की कोशिश की, लेकिन कुछ नहीं हुआ। मानो दरवाज़े की ताकत सौ गुना बढ़ गई हो।
वहीं अंदर रागिनी का बुरा हाल हो रहा था। वो परछाईं अब रागिनी को कभी अपने बगल में तो कभी अपने सामने नज़र आने लगी। रागिनी भी अंदर से दरवाज़ा खोलने की कोशिश कर रही थी लेकिन उससे भी कुछ नहीं हो रहा था। उसकी हालत खराब होने लगी। डर की वजह से उसे सांस लेने में तकलीफ़ होने लगी। उसे लगने लगा जैसे उसके सिर की नसें फट रहीं हों। रागिनी को लगने लगा कि अब वो नहीं बच पाएगी लेकिन तभी उसकी नज़र अपने कमरे की खिड़की पर पड़ी। उसने अपनी हिम्मत जुटाई और बिना कुछ सोचे, दौड़ते हुए खिड़की से बाहर कूद गई।
क्या उस परछाईं ने ले ली रागिनी की ज़िंदगी?
अगर रागिनी का ये अंत है, तो क्या पार्थ खुद को कभी माफ़ कर पाएगा?
आगे क्या होगा, जानेंगे अगले चैप्टर में!
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