इंसानों की एक बड़ी खास बात है कि जो उनकी समझ से परे है, वो उनके लिए सच नहीं होता। हाँ, कुछ लोग चमत्कार में विश्वास रखते हैं लेकिन वहीं कुछ ऐसे भी लोग हैं जिनके लिए ये सब बकवास होता है। पार्थ के घर पर उसका दोस्त, यश उस से सवाल कर रहा है कि आखिर जिस डायरी को उसने संभालकर रखने के लिए दिया था, उसका सच क्या है?

हालांकि पार्थ नहीं चाहता था कि डायरी का सच यश को पता चले। ऐसा नहीं है कि उसे अपने दोस्त पर विश्वास नहीं, बल्कि वह रागिनी के बाद यश को भी मुसीबतों में नहीं डालना चाहता था। 

पार्थ- यश, तुम सच में जानना चाहते हो?

यश- पार्थ, मैं बहुत सीरीयस हूँ। अब मुझसे कुछ भी छिपाना यानि हमारी दोस्ती खत्म। 

पार्थ ने बड़ी हिम्मत कर के यश के हाथ में वो डायरी थमाई। यश ने वो डायरी जैसे ही खोलकर देखी, तो उसमें कुछ भी नहीं था। यश ने पार्थ की तरफ़ देखा। मानो कहना चाहता हो कि अब ये खेल बंद करो और इसका क्या राज़ है, ये बताओ। पार्थ, यश के करीब आया और उसके कंधों पर हाथ रखते हुए कहा कि ये डायरी, मामूली डायरी नहीं है बल्कि श्री कृष्ण की जादुई डायरी है। यश ने जैसे ही पार्थ की इस बात को सुना, वह ज़ोर-ज़ोर से हंसने लगा। 

यश- हा हा हा, और मैं हूँ दुनिया का सबसे बड़ा जादूगर। जादूगर यश... पार्थ, अब हम स्कूल में नहीं हैं जो तुम मुझे उल्लू बनाओगे और मैं बन भी जाऊंगा। 

यश की जगह कोई और भी होता तो उसे भी ऐसा ही लगता कि उसके साथ कोई मज़ाक किया जा रहा है। यश ने डायरी पास की टेबल पर रखी और पार्थ से कहा कि अगर उसने किसी की बातों में आकार ये डायरी खरीदी है, तो वो ठगा जा चुका है। पार्थ को समझ नहीं आ रहा कि वह यश को समझाए कैसे?

पार्थ- यश, जब मैं कुरुक्षेत्र में था, ये डायरी मुझे वहीं मिली थी। हमने सर्वे किया और ज़मीन के नीचे से ये डायरी निकली। तुम्हें ये अंदर से खाली दिख रही है लेकिन जब मैं किसी मुसीबत में होता हूँ तो ये डायरी मुझे रास्ता दिखाती है। 

यश- अच्छा, रास्ता दिखाती है? वो कैसे?

पार्थ- इसमें वर्डस उभरने लगते हैं। आई नो, ये तुम्हारे सिर के उपर से जा रहा होगा लेकिन सच यही है। कृष्ण के मेसेजस मिलते हैं मुझे इसमें। कृष्ण मुझे सपनों में भी मिलने आते हैं। इस डायरी का सच दुनिया में कुछ लोगों को पता है और उनके हिसाब से मुझे दुनिया को बुरी शक्तियों से बचाना है। 

पार्थ ने अपनी लास्ट लाइन में जो कुछ भी कहा, उसे सुनकर यश एक बार फिर से ज़ोर-ज़ोर से हंसने लगा। उसने हँसते हुए कहा कि पार्थ अगर ये कहानी किसी फिल्म डायरेक्टर को सुनाएगा तो इस पर बढ़िया फिल्म बनाई जा सकती है। पार्थ समझ गया कि यश इतनी आसानी से नहीं मानेगा। उसने फिर रागिनी को कॉल किया और रागिनी ने यश को पूरी बात बताई। 

रागिनी- यश, ये सच है कि ये डायरी कृष्ण की डायरी है। मैंने देखा है इसमें कैसे वर्डस अपने आप उभरने लगते हैं। कृष्ण ने पार्थ के ज़रिए मेरी भी हेल्प की है। ये डायरी कोई खिलौना नहीं है बल्कि बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी है। इसके पीछे कुछ बुरी शक्तियां भी पड़ी हैं। जिनके बारे में 

हमें कुछ नहीं पता। तुमको मानना है तो मानो, वरना रहने दो। पार्थ झूठ नहीं कह रहा है। 

यश को अब भी पूरी तरह से यकीन हुआ तो नहीं है लेकिन वह ये भी जानता है कि पार्थ इतना बड़ा झूठ कभी नहीं बोलेगा। कुछ देर सोचने के बाद यश को याद आने लगा कि कैसे उसने भी अपनी बालकनी में किसी की परछाईं देखी थी और डायरी जब तक उसके पास रही, उसे बहुत कॉन्फिडेंट फ़ील होता रहा था। रागिनी ने कॉल ये कहते हुए काट दिया कि वह मथुरा जाने के लिए, सुबह 7 बजे पार्थ के घर पहुँच जाएगी। यश ने रागिनी की इस बात को पकड़ा और पार्थ से मथुरा ट्रिप के बारे में पूछने लगा। पार्थ ने बताया कि कृष्ण ने इस डायरी के ज़रिए पार्थ को अपनी कोई खोई हुई चीज़ ढूँढने के लिए कहा है। वो चीज़ बहुत पावरफुल है और अगर गलती से भी गलत हाथों में चली गई तो दुनिया खतरे में पड़ जाएगी। यश के ऊपर से ये बात भी निकल गई लेकिन उसने पार्थ से कहा कि वो भी उसके और रागिनी के साथ मथुरा चलेगा। पार्थ हैरान हो गया क्योंकि जो कुछ मिनटों पहले तक न डायरी पर यकीन कर रहा था और न ही कृष्ण के मेसेजस पर, उसे अब मथुरा चलना है.. पर क्यों?

पार्थ- यश, तुम मथुरा नहीं चल सकते और तुम क्या करोगे वहां? वहां खतरा हो सकता है और मैं तुम्हें इन चक्करों में नहीं डालने वाला हूँ। 

पार्थ ने साफ़ मना कर दिया लेकिन यश ने उसकी एक भी नहीं सुनी। उसने कहा कि जब रागिनी, अपनी चोट के होते हुए भी पार्थ का साथ देने, उसके विश्वास का साथ देने इतनी दूर जा सकती है तो यश तो पार्थ के बचपन का दोस्त है। वो ऐसा क्यों नहीं कर सकता? पार्थ ने यश को बहुत समझाया। उसने यश से ये भी कहा कि उसकी अभी नई जॉब लगी है और उसे काम पर फोकस रखना चाहिए। यश ने हर बात अनसुनी कर दी और उसी वक्त अपने घर मथुरा जाने की तैयारी करने चला गया। पहले रागिनी और अब यश की ज़िद्द ने पार्थ को परेशानी में डाल दिया। उसने तुरंत ही रागिनी को कॉल कर के यश के उनके साथ चलने के बारे में बताया। रागिनी तो खुश थी कि अब वह तीन हैं और एक साथ हैं। पार्थ को अभी भी रागिनी और यश के साथ चलने का आइडिया सही नहीं लग रहा लेकिन वह कुछ कर भी नहीं सकता। 

अगले दिन सुबह 7 बजे रागिनी पार्थ के घर समान समेत पहुँच गई। पार्थ और रागिनी ने कुछ 10-15 मिनट यश का वेट किया और फिर मथुरा जाने के लिए अपनी कैब में बैठ गए। पार्थ को लगा कि शायद यश ने अपना प्लान बदल लिया या फिर वो सोता रह गया। जो भी हो पार्थ के लिए तो अच्छा ही हुआ। जैसे ही कैब स्टार्ट हुई, किसी ने विंडो पर हाथ मारा। 

यश- रुको.. रुको.. मुझे क्यों छोड़कर जा रहे हो? 

पार्थ- तुम क्यों आए? बस निकल ही रहे थे हम। थोड़ा और लेट हो जाते तो सही होता। 

यश को देखकर पार्थ फिर से स्ट्रेस में आ गया। कुछ देर पहले तक उसने सोचा था कि चलो बढ़िया हुआ जो यश टाइम पर नहीं पहुचा लेकिन यश भी वादे का पक्का निकला। देर हुई, लेकिन दोस्त का साथ देने पहुँच ही गया। यश ने कैब में बैठते ही सबसे पहले रागिनी से उसकी चोट के बारे में पूछा और फिर पार्थ को एक टिफ़िन बॉक्स थमा दिया। 

यश- मम्मी ने तुम्हारे और रागिनी के लिए आलू की कचौड़ियाँ भेजी हैं। मैंने उनसे जब बताया कि हम सब मथुरा घूमने जा रहे हैं तो उन्होंने टिफ़िन पैक कर के दे दिया। अब मुंह मत फुला, कचौड़ी खा। 

पार्थ को यश की बात पर हंसी आ गई और इसी के साथ तीनों दोस्त मथुरा के लिए रवाना हो गए। सफ़र के अगले 3 घंटों तक किसी ने किसी से किसी भी तरह की बात नहीं की। तीनों ने कैब में अपनी नींद पूरी की और पहुँच गए मथुरा। मथुरा पहुँचकर उन्होंने होटल में चेक इन किया और कुछ देर बाद गोवर्धन पर्वत के लिए निकल पड़े। 

यश- पार्थ, मैं पहले भी गोवर्धन पर्वत के दर्शन करने आया हूँ। यहाँ उस चीज़ को, जो तुम्हारे हिसाब से कृष्ण की खास चीज़ है, उसे कैसे ढूँढेंगे? उस चीज़ के बारे में तुम लोगों को कुछ तो पता होगा न?

यश का सवाल सही है लेकिन पार्थ और रागिनी के पास जवाब नहीं है। पार्थ चुप रहा और गोवर्धन पर्वत तक पहुँचने का इंतज़ार करने लगा। कुछ देर बाद कैब ड्राइवर ने उन्हें वहाँ उतार दिया जहां से गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा शुरू होती है। पार्थ और रागिनी पहली बार यहां आए हैं। वो दोनों गोवर्धन पर्वत को देखकर मानो कहीं खो ही गए। पार्थ को अपना वो सपना याद आने लगा जब उसने बाल कृष्ण को इसी पर्वत को अपनी छोटी उंगली में उठाए देखा था। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि वह उस पर्वत के सामने खड़ा है जहां कभी कृष्ण ने अपनी लीलाएं दिखाईं थीं। यश ने बताया कि गोवर्धन पर्वत को बहुत पवित्र माना जाता है और इसकी चढ़ाई नहीं की जाती। उसने ये भी बताया कि उन लोगों को पर्वत की परिक्रमा करनी पड़ेगी। पार्थ, रागिनी और यश तैयार थे कृष्ण की खोई हुई खास चीज़ को ढूँढने के लिए। अब सवाल यहां ये उठता है कि शुरू कहाँ से किया जाए? 

रागिनी- मुझे लगता है कि हमें पहले परिक्रमा शुरू करनी चाहिए। फिर रास्ते में सोचेंगे क्या करना है। 

रागिनी की बात से पार्थ और यश सहमत थे। उन्होंने कृष्ण भगवान का नाम लिया और परिक्रमा शुरू की। कुछ देर पैदल चलने के बाद अचानक से उन्हें मौसम बदलता हुआ समझ आने लगा। भरी दोपहर में काले बादल मंडराने लगे। पहले तो उन तीनों ने इस पर ज्यादा कुछ ध्यान नहीं दिया लेकिन फिर जब तेज़ हवाएँ चलने लगीं तो यश को डर लगने लगा। 

यश- ये मौसम को क्या हो गया? ये तो बारिश का सीज़न भी नहीं है। 

पार्थ को जिसका डर था, वही हो रहा था। वह जानता था कि रुकावटें आएंगी और बुरी शक्तियां उन्हें रोकने की कोशिश भी करेंगी। रागिनी भी पार्थ की तरफ़ देखती है। मानो जैसे उसे आँखों से इशारा कर रही हो कि रुकना नहीं है। वो तीनों बिना रुके बढ़ते गए। अब रास्ते में उन तीनों को अपने अलावा दूर-दूर तक कोई भी नज़र नहीं आ रहा। यश की तो हालत ही खराब हो गई। उसने पार्थ और रागिनी को वहां से निकलने के लिए कहा लेकिन पार्थ और रागिनी चलते चले गए। वो तीनों गोवर्धन पर्वत के बहुत करीब थे तभी अचानक पर्वत से बड़े-बड़े पत्थर गिरने लगे। मानो कोई अदृश्य शक्ति उन तीनों का रास्ता रोक रही हो। तभी एक बड़ा सा पत्थर रागिनी के उसी पैर में ज़ोर से आकार लगा जिसमें उसे चोट आई थी। रागिनी दर्द में ज़ोर से चिल्ला पड़ी। यश, रागिनी के पैर से निकलते खून को देखकर और भी ज्यादा घबरा गया। पार्थ झुक कर रागिनी के पैर की चोट को देखने लगा तभी यश ने देखा कि एक पत्थर पार्थ की तरफ़ आ रहा है। 

यश- पार्थ… हटो वहां से.. पार्थ... 

क्या यश, पार्थ को बचा पाएगा?

क्या पार्थ, रागिनी और यश सफल होंगे अपने मकसद में?

आखिर कब तक बुरी शक्तियां, पार्थ का पीछा करेंगी?

आगे क्या होगा, जानेंगे अगले चैप्टर में!

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