"हम…हम कुछ कह नहीं सकते," डॉक्टर ने धीमे स्वर में जवाब दिया।
“कभी-कभी यादें खुद-ब-खुद लौट आती हैं... कभी किसी परिचित चीज़ को देख कर, किसी गहरी भावना को महसूस कर के, या फिर कोई चेहरा या जगह देख कर। मगर कभी-कभी... वो हमेशा के लिए खो भी सकती हैं।”
सुहानी की आँखों से आँसू बिना आवाज़ के बह निकले। वो कुछ बोलना चाहती थी, पर उसके होंठ हिल कर भी कुछ कह नहीं पाए। उसने बस एक दीवार को थाम लिया — खुद को गिरने से रोकते हुए। उसके अंदर एक तूफ़ान मच चुका था, क्योंकि इंतज़ार की कोई समय-सीमा नहीं थी…आरव अब भी ज़िंदा था — लेकिन उसकी यादों में "सुहानी" नाम की कोई जगह नहीं बची थी।
डॉक्टर ने सुहानी की आँखों में झाँका — वहाँ उम्मीद थी, डर था, और एक बेसब्र बेचैनी थी। मगर डॉक्टर जानता था कि अब जो वो कहने जा रहा है, वो सुहानी की रूह तक को झकझोर देगा।
“सुहानी, ये बताना बहुत मुश्किल है...” उसके स्वर अब बेहद नर्म थे, जैसे किसी बहुत नाज़ुक चीज़ को थाम रहा हो। “और जब तक उसे खुद सब कुछ याद न आ जाए... हमें उसे किसी भी तरह के मेमोरी ट्रिगर से दूर रखना होगा।”
सुहानी ने अपनी भौहें सिकोड़ीं, उसकी आँखों में हैरानी थी।
“क्या मतलब?”
डॉक्टर ने एक पल को आँखें बंद की, जैसे शब्दों को तौल रहा हो।
“मतलब ये कि अभी उसका दिमाग़ बेहद कमज़ोर स्थिति में है। कोई भी मानसिक झटका, कोई भी जबरन याद दिलाने की कोशिश…उसके लिए खतरनाक साबित हो सकती है। अगर हम ज़बरदस्ती उसे सब याद दिलाने की कोशिश करें…तो हो सकता है वो धीरे-धीरे अपनी बाकी यादें भी खो बैठे।”
सुहानी की साँस जैसे रुक सी गई थी। "नहीं... ये नहीं हो सकता..." उसने धीमे से कहा, जैसे खुद को समझा रही हो।
"इसलिए," डॉक्टर ने फिर आगे कहा, “हमें बहुत फूँक-फूँक कर कदम रखने होंगे। बहुत सोच-समझ कर हर चीज़ करनी होगी और सबसे ज़रूरी...” वो रुक गया...अगर तुम चाहती हो कि आरव की यादें वापस लौटें — तो तुम्हें उससे दूर रहना होगा। जितना दूर रह सकती हो…उतना। और अगर आमना सामना हो भी, तो उसे ये बिलकुल याद दिलाने की कोशिश मत करना कि तुम दोनों का रिश्ता कैसा था, उसकी यादाश्त खोने से पहले तक।”
वो शब्द सुहानी के सीने में किसी तलवार की तरह उतर गए।
“मतलब हमें फिर से दो दुश्मनों की तरह रहना होगा?” उसके चेहरे की सारी हरकतें जैसे थम गईं थीं। उसने दीवार का सहारा लिया, जैसे उसके पैरों तले ज़मीन खिसक रही हो। उसका दिल चीख पड़ा — “कैसे दूर रहूं उस से? जब उसकी हर धड़कन में मैं बसी हूँ?”
डॉक्टर ने गहरी साँस ली। उसकी आँखों में अब अफ़सोस था, लेकिन कोई विकल्प नहीं। फिर वो बिना कुछ और कहे, मुड़ा…और कमरे की ओर चल पड़ा। जहाँ आरव अब भी बेचैन था — लेकिन उसकी बेचैनी में "सुहानी" का कोई नाम नहीं था। और पीछे... दीवार से लगी सुहानी खड़ी रही, एक ऐसी मोहब्बत की तस्वीर बनकर, जिसे अपनी पहचान साबित करने के लिए अब चुप रहना होगा। आरव की नज़र जैसे ही कमरे के दरवाज़े की ओर गई, उसकी आँखों में एक अजीब सी बेचैनी दौड़ गई। वो वहां नहीं थी, मगर वो जानता था कि वो कमरे के बाहर ही कहीं है। वो चेहरा, जिसे देख कर कभी उसकी साँसे ठहर जाया करती थीं, अब उसे उलझन में डाल रही थीं।
“क्या कर रही है ये यहाँ?” आरव की धड़कनें तेज़ होने लगीं, माथे पर शिकन और आँखों में एक गुस्से से भरी हैरानी।
“ये... आप लोग कह रहे हैं कि ये लड़की तो उस दिन मुझे इस हालत में छोड़ कर चली गई थी ना? फिर अब क्यों आई है वापस?”
उसकी याददाश्त में सुहानी के लिए कोई जगह नहीं बची थी। और वो अब उसी हवेली में खड़ी थी — उसकी दुनिया के बीच, एक परछाई की तरह। आरव की बौखलाहट बढ़ती जा रही थी।
“मीरा... उसे यहां से निकालो...” उसने मीरा से कहा, लेकिन आवाज़ में साफ घबराहट थी।
“ये सब गलत है... ये सब बहुत गलत लग रहा है...”
मगर वहीं दूसरी ओर, कमरे के कोने में खड़े गौरवी, दिग्विजय और रणवीर की नज़रों में हलचल थी — न डर, न हैरानी, बस एक संतोष भरी मुस्कान।
गौरवी ने धीमे से दिग्विजय के कान में फुसफुसाया — “इससे अच्छा वक्त नहीं हो सकता। उसकी याद्दाश्त ने खुद ही हमारी राह आसान कर दी है। अब सुहानी को रास्ते से हटाना मुश्किल नहीं होगा।”
रणवीर की आँखों में भी चालाकी की चमक थी, “अब खेल हमारे हाथ में है। अगर सुहानी कुछ कहेगी भी, तो सबको लगेगा कि ये एक पागल लड़की है, जो खुद को उसकी पत्नी बताती है — जबकि वो तो ऐसा मानता ही नहीं।”
तीनों के चेहरों पर जैसे जीत की परछाई फैल गई थी। आरव की याददाश्त ने नहीं, बल्कि उनकी किस्मत ने करवट बदल ली थी। और सुहानी...? वो इस नए जाल में फिर से अकेली पड़ चुकी थी।
उस दिन को एक हफ्ता बीत चुका था, जब आरव को होश आया था। अब वह पहले से बेहतर था। उस हादसे के बाद, पहली बार उसकी आँखों में हल्की सी ज़िंदगी की चमक लौट आई थी।
आरव अब थोड़ा-बहुत चलने-फिरने लगा था। सुबह की हल्की धूप में जब वह अपने कमरे से बाहर निकलता, तो उसकी चाल में अब भी कमजोरी झलकती थी, मगर इरादों में दृढ़ता थी। हर कदम मानो जज़्बे की एक नयी परिभाषा लिखता। वह धीमे-धीमे लॉन की पगडंडी पर चलता, कभी किसी पेड़ के नीचे रुककर गहरी साँस लेता, तो कभी बस आसमान की तरफ देख कर सोच में डूब जाता — जैसे ज़िंदगी को एक नए नज़रिए से देख रहा हो।
डाइनिंग हॉल में अब वो सबके साथ बैठकर खाना खाता। उसके चेहरे पर चुप्पी होती, लेकिन निगाहों में ढेर सारे सवाल तैरते रहते। परिवार के लोग उसके सामने मुस्कुराने की कोशिश करते, लेकिन सब जानते थे कि वह मुस्कान आरव की रिकवरी जितनी ही नकली और मजबूर थी।
डॉक्टर्स उसके इस प्रोग्रेस से बेहद खुश थे। रिपोर्ट्स भी सकारात्मक आ रही थीं। उन्होंने कहा कि जिस तेज़ी से उसका शरीर रिकवर कर रहा है, वो उम्मीद से बेहतर है। मगर इसके बावजूद, उसे अभी भी लगातार निगरानी में रखा गया था। दवाइयों का असर, उसकी मानसिक स्थिति, और शारीरिक थकान — ये सब चीजें अब भी डेली ऑब्जर्वेशन में थीं।
उसके कमरे के बाहर हर वक्त एक अटेंडेंट मौजूद रहता। CCTV कैमरे से भी उसकी गतिविधियों पर नज़र रखी जा रही थी। आरव को इस बात की इतनी भनक नहीं थी, मगर उसने अब इस निगरानी को अपनी दिनचर्या का हिस्सा मान लिया था — जैसे ये उसकी ज़िंदगी का नया नियम बन गया हो।
मगर आरव की आँखों में कहीं न कहीं अब भी वो बेचैनी थी। जैसे किसी अधूरी कहानी का बोझ उसके सीने में कहीं दबा हुआ था। हर शाम जब वो अकेले बैठता, तो आँखें किसी अनकहे दर्द की कहानी बुनने लगतीं। उसके दिल में जो जंग चल रही थी — वो अपनों से, खुद से, और बीते कल से — वो अभी बाकी थी।
दिग्विजय और गौरवी की साज़िश फिर से रंग लाने लगी थी। बीते एक हफ्ते में, गौरवी ने एक बार फिर दिग्विजय के साथ मिल कर आरव के ज़हन में ज़हर घोलने का काम शुरू कर दिया था। उन्हें जैसे ही ये महसूस होता कि आरव, सुहानी को लेकर ज़्यादा सवाल जवाब करने लगा है, वैसे ही वो लोग अपनी चालें चलना शुरू कर देते।
गौरवी की आँखों में सुहानी के लिए नफ़रत साफ़ झलकती थी—वो नफ़रत जो वक्त के साथ और गहरी होती जा रही थी। दिग्विजय, जो पहले ही सुहानी को एक मोहरे की तरह देखता था, अब गौरवी के दिए तिल-तिल ज़हर से पूरी तरह से यक़ीन कर बैठा था कि सुहानी एक सुनियोजित साज़िश के साथ ही इस घर में दोबारा आई थी। और फिर उसने वो बात आरव तक पहुँचा दी—काफ़ी ज़्यादा तोड़-मरोड़ कर, ताकि आरव का भरोसा हमेशा के लिए बिखर जाए।
आरव का ग़ुस्सा और अविश्वास अब एक नई ऊँचाई पर था। वो हर उस पल को भूलने लगा जो उसने सुहानी के साथ कभी बिताये थे —वो मासूम सी मुस्कान, वो नम आँखें, और वो तकलीफ़ जो उसने सुहानी में देखी थी। अब वो सब कुछ उसकी यादों में कहीं खो सा गया था।
आरव को बताया गया कि रणवीर की वापसी उसी दिन मुमकिन हो पाई जब घर पर सबसे बड़ा तूफ़ान आया था।
शिव प्रताप के आदमी अचानक राठौर हवेली पर टूट पड़े थे। बंदूकें, छुपे हुए हथियार, और एक हमला—जिसका इशारा किसी और ने नहीं, बल्कि खुद सुहानी ने दिया था। उस वक़्त सुहानी को एक बड़ा सच पता चल चुका था—विभंश राठौर, आरव के दादा, ने अपनी सारी जायदाद आरव और उसकी होने वाली पत्नी के नाम कर दी थी। सुहानी जान चुकी थी कि अगर राठौर परिवार को रास्ते से हटा दिया जाए, तो पूरी दौलत उसी की हो जाएगी।
रणवीर, जो अब तक परछाइयों में था, अचानक सामने आया। उसे भनक लग चुकी थी कि हमला होने वाला है। उसने अपने भरोसेमंद लोगों को इकठ्ठा किया और समय पर हवेली पहुँचा। अगर वो ना पहुँचता, तो शिव प्रताप के आदमी न सिर्फ़ दिग्विजय और गौरवी को, बल्कि खुद आरव को भी मार डालते…पूरी राठौर हवेली लाशों से बिछ जाती।
वो एक लम्हा था जब रणवीर ने दुश्मन को हराकर दुश्मन के ही बेटे को बचा लिया। पर उसके बाद जो कहानी दिग्विजय ने आरव को सुनाई, वो बिलकुल अलग थी।
"सोच आरव," दिग्विजय ने कहा था, “अगर रणवीर ना आता, तो तू आज ज़िंदा नहीं होता। और क्यों आया वो? क्योंकि उसे सब पता चल चुका था... सुहानी की असली मंशा।”
"तू समझता क्या है उसे? मासूम है? प्यार करती है तुझसे?" गौरवी की आवाज़ में ज़हर था। “वो तो सिर्फ़ दौलत चाहती थी। उसी के इशारे पर हमला हुआ था और अब जब सब नाकाम हो गया, तो फिर से मासूम बन कर तेरे क़रीब आने की कोशिश कर रही है।”
आरव का चेहरा पत्थर-सा हो गया था। उसकी मुट्ठियाँ भींच गईं। अब उसे हर मुस्कान, हर आंसू, हर स्पर्श एक नक़ाब लगने लगा था। उसे यक़ीन हो चला था—सुहानी ने सिर्फ़ दौलत के लिए ही उस से शादी की थी और इसी विश्वास ने उसकी आत्मा में एक बार फिर से नफ़रत की आग भड़का दी… उस आग की लपटें अब मोहब्बत को जलाने लगी थी।
आरव बिलकुल भी इस रिश्ते से खुश नहीं था। उसके चेहरे की कठोरता और आँखों की चुप्पी यही बयान करती थी कि यह शादी सिर्फ एक ज़रूरी समझौता थी—एक सौदा। उसे बार-बार यही खलता था कि एक लालची, चालाक और स्वार्थी लड़की—सुहानी—को उसकी ज़िंदगी में जबरन घुसाया गया।
“मैंने इस शादी का विरोध किया ज़रूर होगा!”
आरव का यह वाक्य अब तक हवेली की दीवारों में गूंजता है। उसने तब भी दिग्विजय और गौरवी से साफ कह दिया था कि वो सुहानी को कभी स्वीकार नहीं करेगा, मगर उसकी एक ना सुनी गई। सत्ता और सम्पत्ति की चालें चलने वाले बड़े लोगों के सामने उसके मन की कोई कीमत नहीं थी। लेकिन फिर आया रणवीर—एक ठंडी हवा की तरह नहीं, बल्कि तेज़ आंधी बनकर।
रणवीर और आरव की मुलाक़ात एक गहरे तनाव भरे माहौल में हुई थी। रणवीर ने अपने संयमित और मर्मस्पर्शी लहज़े में आरव को एक ऐसी बात बताई, जिसने उसके भीतर की आग को और हवा दे दी।
"तुझे ये सब इसलिए मिला है क्योंकि सुहानी तेरी बीवी है, आरव," रणवीर ने कहा था।
“विभंश राठौर ने जो वसीयत छोड़ी है, उसमें सारी जायदाद तेरे नाम है—पर एक शर्त के साथ। वो शर्त ये थी कि तेरी पत्नी... सुहानी हो।”
आरव एक पल के लिए अवाक रह गया। उसके ज़हन में जैसे सब कुछ घूमने लगा।
रणवीर ने अपनी बात आगे बढ़ाई, “अगर किसी तरह ये साबित किया जा सके कि सुहानी इस परिवार के काबिल नहीं है, या ये रिश्ता टिक नहीं सकता—तो वो शर्त खत्म हो जाएगी। और फिर... सारी जायदाद दोबारा तेरे नाम हो सकती है, बिना किसी शर्त के।”
“क्या मतलब?” आरव की आवाज़ धीमी मगर सख्त थी।
रणवीर ने उसकी आँखों में देखते हुए कहा, “मतलब ये कि अगर सुहानी को ही इस रास्ते से हटा दिया जाए—कानूनी तौर पर, या किसी ऐसे तरीक़े से जिस पर सवाल न उठे—तो फिर जो तेरे हक़ का है, वो वापस तुझे ही मिलेगा। और उस वक़्त... हम सब तेरे साथ होंगे। इस हवेली, इस साम्राज्य को संभालने में हम तेरी मदद करेंगे।”
आरव की मुट्ठियाँ फिर भींच गईं। उसके सामने एक नया रास्ता खुल गया था—एक ऐसा रास्ता, जिसमें मोहब्बत के लिए कोई जगह नहीं थी, सिर्फ़ विरासत, वर्चस्व और बदला था। अब उसकी निगाहों में कोई भ्रम नहीं था। उसके दिल ने फैसला कर लिया था…सुहानी को रास्ते से हटाना होगा।
कैसे हटाएगा आरव सुहानी को अपनी ज़िन्दगी से?
क्या ये ज़हर खत्म कर देगा दोनों का रिश्ता?
सुहानी क्या ऐसा होने देगी?
आगे की कहानी जानने के लिए पढ़ते रहिये, रिश्तों का क़र्ज़।
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