राठौर हवेली का मुख्य हॉल, जहां कभी शाही दावतें और भव्य पारिवारिक समारोह होते थे, आज सन्नाटे में डूबा हुआ था। माहौल में तनाव की एक ठंडी परत बिछी हुई थी। सुहानी सधे कदमों से अंदर दाख़िल हुई, उसके पीछे दो वकील – एक पुरुष और एक महिला, भारी-भरकम फाइलों के साथ चल रहे थे। उसकी आँखों में कोई भय नहीं था, बस एक शांत दृढ़ता थी, मानो वो हर पल को पहले ही अपने मन में जी चुकी हो।
राठौर परिवार के सदस्य – दिग्विजय सिंह राठौर, गौरवी राठौर, और इस घर का मास्टर माइंड, रणवीर राठौर– बड़े सोफों पर बैठे हुए थे। सबकी नज़रें सुहानी पर टिकी थीं, जिनमें अविश्वास, क्रोध और बेचैनी झलक रही थी। और तभी, वकील ने धीरे-धीरे दस्तावेज़ खोले, और गला साफ़ कर बोलना शुरू किया।
“दिनांक 3 मई 2025, वसीयतनामा क्रमांक 786/2023 के अनुसार…राठौर परिवार की यह हवेली, राठौर एंड संस इंडस्ट्री में 75% हिस्सेदारी, देश-विदेश में मौजूद राठौर परिवार की सारी संपत्तियाँ, ज़ेवरात, बैंक खातों, निवेश और शेयर – ये सब आज से Mrs. Suhani Aarav Rathore के नाम ट्रांसफर किए जाते हैं। यह निर्णय स्वर्गीय विभांश राठौर जी द्वारा किए गए अंतिम वसीयतनामे के अनुसार लिया गया है, जिसे कानूनी रूप से वैध और मान्य घोषित किया गया है।”
पूरा कमरा जैसे स्तब्ध हो गया हो।
वकील ने बात जारी रखी – “और जैसे ही Mr. Aarav Rathore स्वास्थ्य लाभ के बाद होश में आएँगे, वसीयतनामे के दूसरे चरण के तहत ये सम्पत्ति Mr. और Mrs. Aarav Rathore के संयुक्त नाम पर दर्ज हो जाएगी।”
गौरवी के चेहरे का रंग उड़ चुका था। दिग्विजय सिंह की मुट्ठियाँ सख्ती से भींच गईं। उनकी आंखों में जली-कटी नाराज़गी साफ दिख रही थी, मानो किसी ने उनसे उनकी बादशाहत छीन ली हो।
सुहानी ने एक पल के लिए सभी की ओर देखा – उनकी आँखों में सवाल थे, पर वो जवाब देने नहीं आई थी। वो वहाँ अपना हक़ लेने आई थी। अब वो बेबस, डरी हुई लड़की नहीं थी जो कुछ हफ़्ते पहले इस हवेली में लाई गई थी। आज वो अपने नाम की ताकत और अपने हक़ की विरासत का अधिकार लेकर खड़ी थी – ठोस, मजबूत, और अडिग।
उसने धीरे से दस्तावेज़ पर दस्तखत किए, और फिर उसी सधे हुए अंदाज़ में कहा, “ये घर अब मेरा है और इस घर में अब मेरे नियम चलेंगे।”
जैसे ही सुहानी ने दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर किए, रणवीर राठौर अपनी जगह से उछल पड़ा, “क्या बकवास है ये सब?” वो गरजा, “हमें बिना कोई जानकारी दिए, इतने बड़े फैसले कैसे लिए जा सकते हैं? हम इसे कभी अपनी मंज़ूरी नहीं देंगे।”
कमरे में अचानक सबकी नज़रें रणवीर पर टिक गईं। उसकी मुट्ठियाँ कांप रही थीं, जैसे वो किसी पल दस्तावेज़ फाड़ने ही वाला हो। पर उससे पहले, सुहानी के वकील ने पूरी शांति, किंतु बेहद तीखे कानूनी लहज़े में जवाब दिया।
“दरअसल, राठौर साहब, इस पूरे ट्रांसफर के लिए आपकी या आपके परिवार के किसी भी सदस्य की मंज़ूरी की आवश्यकता नहीं थी। क्योंकि आपके पिता, स्वर्गीय श्री विभांश राठौर ने अपनी मृत्यु से पहले ये वसीयत कानूनी रूप से पंजीकृत करवा दिया था। इसमें साफ़ तौर पर लिखा गया है कि उनकी तमाम सम्पत्ति उनके पोते आरव राठौर और उनकी बहू सुहानी आरव राठौर के नाम की जाएगी।”
वकील ने एक हल्की साँस ली और आगे बोला, “और जैसा कि आप जानते हैं, विभांश जी ही इस वंश के संस्थापक और इन सारी जायदादों के विधिसम्मत मालिक थे। उन्होंने अपनी मेहनत से ये साम्राज्य खड़ा किया, और इसलिए उन्हें पूरा अधिकार था यह तय करने का कि उनका उत्तराधिकारी कौन बनेगा। यह कोई पुश्तैनी ज़मीन नहीं है कि खानदानी हक़ की दुहाई दी जाए। जब तक उन्होंने आपको कोई हिस्सा सौंपा नहीं, तब तक आपका इस पर कोई हक़ नहीं बनता।”
वकील की बातों में अब स्पष्ट चेतावनी थी। उसने कागज़ों की ओर इशारा करते हुए कहा, “और एक बात और, Mr. Ranveer Rathore, जब आरव राठौर को होश आएगा, और यदि ये पति-पत्नी एक मत होकर निर्णय लें, तो वे आपको और इस हवेली में मौजूद किसी भी सदस्य को इस संपत्ति से बेदखल करने का अधिकार रखते हैं। इस कानूनी दस्तावेज़ में इसका भी प्रावधान है।”
कमरे में सन्नाटा छा गया। दिग्विजय सिंह का चेहरा पत्थर-सा कठोर हो चुका था, जबकि गौरवी की सांसें तेज़ चल रही थीं। रणवीर, जिसकी आवाज़ से अभी तक हवेली गूंज रही थी, अब जैसे ज़मीन में गड़ा खड़ा था – अपमान, अविश्वास और क्रोध से लाल, लेकिन बेबस।
वकील ने दस्तावेज़ बंद किए और गंभीर स्वर में कहा, “अब यदि आप चाहें तो इस पर कानूनी आपत्ति दर्ज करा सकते हैं, पर परिणामस्वरूप परिवार के कुछ और राज़ सार्वजनिक हो सकते हैं, जो शायद आपके हित में न हों।”
सुहानी ने रणवीर की आँखों में देखा – डर और क्रोध की वो झलक अब उसे डरा नहीं रही थी, अब वो कमजोर नहीं थी। वो उस विरासत की मालकिन थी, जिसकी बुनियाद उसके अपनों के खून-पसीने पर खड़ी की गई थी।
मीरा को लगा कि अब उसके ड्रामा करने का वक़्त आ गया है, अगर उसने अभी कुछ नहीं कहा, तो शक उस पर भी जाएगा इसलिए, चेहरे पर क्रोध और पीड़ा की मिली-जुली परछाईं ला कर, सबके सामने वो अब और चुप नहीं रह सकती थी। उसके बेहतरीन काला प्रदर्शन का वक़्त आ गया था।
“ये सब… आप लोगों की गलती है!” उसने लगभग चिल्लाते हुए कहा, “सब कुछ… हर एक चीज़… आप लोगों ने मुझसे छीन ली है।”
सभी चौंक कर उसकी ओर देखने लगे। उसकी साँसें तेज़ चल रही थीं, जैसे वो खुद से ही लड़ रही हो – भीतर के ज्वालामुखी को रोकने की कोशिश में नाकाम। “आप लोगों ने ही मुझे मजबूर किया था आरव को मनाने के लिए…उसे शादी के लिए राज़ी करने के लिए।” उसकी आवाज़ काँप रही थी, पर हर शब्द तेज़ और कटार की तरह था, “मैंने तो सिर्फ़ वही किया जो आप लोगों ने मुझसे करने को कहा और फिर भी… सब कुछ छिन गया मुझसे!”
उसने सुहानी की ओर देखा, उसकी आँखों में एक ऐसी जलन थी जो बरसों की तमन्ना टूटने के बाद पैदा होती है।
“वरना… वो तो मुझसे प्यार करता था” मीरा की आवाज़ अब कंपकंपाने लगी थी, “आरव सिर्फ़ और सिर्फ़ मुझसे शादी करना चाहता था, वो मेरा था। अगर उस दिन… अगर उस दिन… मेरी शादी आरव से हो जाती… तो आज ये सब कुछ – ये हवेली, ये ताकत, ये नाम, ये रुतबा – सब कुछ मेरा होता। मुझे मिलना चाहिए था ये सब।
रणवीर चिढ़कर मीरा पर बरस पड़ा, “चुप हो जा मीरा….तुझे जो करना था वो कर लिया, अब और नौटंकी मत कर।”
मीरा कुछ पल को सहमी हुई नज़र आई, लेकिन तभी वो धीमे से बोली — “अरे मैं तो ये सब इसलिए कह रही हूं, क्योंकि अगर ये सब मेरा होता... अगर मेरी शादी आरव से हो जाती, तो आरव भी अब आपके काबू में होता, और प्रॉपर्टी भी। मैं आप लोगों को धोखा थोड़ी देती?”
उसने गहरी सांस ली, फिर जोड़ा, “सुहानी को लाना भी तो मेरी ही कोशिश थी। मगर क्या करूं... किस्मत तो आप लोगों की भी देख लीजिए। सब कुछ पास आकर छिन गया।”
रणवीर बेचैनी से उठ खड़ा हुआ। उसका चेहरा क्रोध और असमंजस से तमतमाया हुआ था। वह बार-बार अपने बालों में हाथ फेर रहा था, जैसे कुछ समझने की कोशिश कर रहा हो, मगर उसके मन में उठते तूफ़ान ने उसे पूरी तरह घेर लिया था।
एक झटके में उसने अपनी नज़रें सुहानी की ओर घुमाईं। उसकी आँखों में अब तक जो घमंड, जो नियंत्रण था, वो अब डर और अपमान में बदलता दिख रहा था। "तो ये तुम्हारी चाल थी?" रणवीर की आवाज़ गूंजते हुए हॉल में फैली, जैसे कोई विस्फोट हुआ हो।
“उस दिन तुम जिन कागज़ों की बात मुझसे छुपा रही थी, जो काजल के उस संदूक में थे… वो यही थे, है ना? तो ये था तुम्हारा प्लान? शुरू से ही। सब कुछ जान बूझ कर किया तुमने? बड़ी चालाक निकली तुम तो!”
सुहानी अब अपनी जगह से एक कदम आगे बढ़ी। उसकी आँखों में ज्वाला थी, आवाज़ में कंपकंपी नहीं — बल्कि वो स्थिरता जो तूफ़ान से पहले आती है। उसने अपनी नज़रें एक-एक कर के हॉल में मौजूद सभी लोगों पर घुमाईं — शमशेर, गौरवी, रणवीर और मीरा, जैसे वो सबको कटघरे में खड़ा कर रही हो।
"मेरा प्लान?" सुहानी की आवाज़ भारी और दृढ़ थी।
“मैं चालाक हूँ?” उसने रणवीर की ओर इशारा करते हुए कहा, "तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई ये कहने की? तुम सब ने कितनों का जीवन बर्बाद कर दिए, और आज जब तुम्हारे पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक रही है, तो तुम्हें मेरी चालाकी दिख रही है? मेरी माँ — काजल। जिनकी ज़िंदगी तुम सबने छीन ली। उनकी सबसे करीबी दोस्त, पूर्वी — आरव की माँ, जिनकी मौत के पीछे की सच्चाई तुम सबने छुपाई। मेरे बाउजी — शिव प्रताप, जो पूरी ज़िंदगी अपनी पत्नी और बेटी को बचाने के लिए लड़ते रहे, मगर कभी खुलकर साँस नहीं ले पाए। शमशेर अंकल, जिनका वजूद ही तुम लोगों ने मिटा दिया।"
उसका गला भर आया, मगर वो रुकी नहीं।
“प्रणव — जो सिर्फ़ अपनी माँ और अपने परिवार का प्यार चाहता था, लेकिन तुम सब ने उसे उसकी पहचान तक से वंचित कर दिया।”
रणवीर कुछ कहने ही वाला था, लेकिन शब्द जैसे उसके गले में अटक गए। उसने एक बार फिर सुहानी की आँखों में देखा — और इस बार उसे पहली बार अपने बराबरी की नहीं, बल्कि अपने से कई कदम आगे चलने वाली औरत नज़र आयी।
“और आरव… मेरा आरव… जिसे तुमने एक मोहरे की तरह इस्तेमाल किया, उसके पिता की मौत का बदला लेने के नाम पर, उसे झूठी कहानियों में उलझा कर, उस से उसकी सच्चाई, उसका बचपन, उसका प्यार… सब छीन लिया। क्या वो इंसान नहीं था? क्या वो तुम्हारे बेटे समान नहीं था?”
"तुम लोगों ने इंसान को इंसान नहीं समझा, सिर्फ़ इस हवेली की दीवारें देखीं, इस प्रॉपर्टी का सपना देखा। तुम सबको सिर्फ़ वारिस चाहिए था, इज़्ज़त नहीं….रिश्ते चाहिए थे, प्यार नहीं।"
वो एक पल के लिए रुकी, और फिर धीमी आवाज़ में बोली, “और आज… जब मैं वो आईना दिखा रही हूँ, जिसमें तुम सबके चेहरे बेनकाब हो रहे हैं — तो तिलमिला रहे हो? डर रहे हो? अब ज़रा सा तुम्हारा खेल बिगड़ा तो मैं चालाक बन गयी? तो सुन लो… अब सुहानी राठौर ना ही झुकेगी, ना रुकेगी और ना ही चुप रहेगी।”
"तुम सब के चक्कर में जो कुछ भी झेला है मैंने इन बीते दिनों में… क्या वो सब भूल गए हैं आप लोग?"
उसकी आवाज़ फट रही थी, मगर हर लहजे में एक काँपता हुआ कटाक्ष था। “मेरी ज़िन्दगी का सौदा कर दिया तुम लोगों ने — एक सौदे में जिसे मैं समझ भी नहीं पाई, उसमें मेरी दुनिया लूट ली गई। मेरे बाउजी… जो मेरे लिए सब कुछ थे, उन्हें जेल में डलवा दिया। उस आदमी को, जो अपनी बीवी और बेटी के लिए हर सीमा लांघ गया, उसके बदले तुमने उसे अपराधी बना कर दिया।”
“और मेरी माँ… जिनकी ममता के लिए मैं रातों को रोई, उन्हें तुमने किडनैप कर लिया…उस माँ को, जिन्हें मैं अपनी पूरी ज़िन्दगी मरा हुआ मानकर जीती रही… सोचिए, कैसा लगता है जब एक बच्ची को उसकी माँ की अस्थियां भी नसीब ना हो?”
उसकी आँखें रणवीर पर गड़ी हुयी थीं, मगर बात हर उस शख्स के लिए थी जो इस खेल में शामिल था। "मुझे मेरी माँ से दूर कर दिया, और आरव को उसके माँ-बाप से। दोनों को तुम सब ने जैसे भावनाओं से काट कर एक कठपुतली बना दिया। और प्रणव? उसका तो जीवन ही रोक दिया तुमने — एक ऐसी कालकोठरी में डाल दिया जहाँ साँस भी गुनाह लगती है। उसने क्या किया था? सिर्फ़ इतना कि वो उस दिन अपनी माँ के साथ उस गाड़ी में था? इसलिए उसे जीने का हक नहीं दिया तुमने?"
सुहानी ने एक लंबी सांस ली, और फिर तेज़, कड़वी आवाज़ में कहा — "तुम सब ने मुझे मोहरा समझा, मेरी भावनाओं का मज़ाक उड़ाया, मेरी पहचान छीन ली… लेकिन अब बहुत हो गया। अब मैं खड़ी हूँ — अपने लिए, अपनी माँ के लिए, प्रणव के लिए, आरव के लिए… और उनके लिए भी, जो अब इस दुनिया में नहीं हैं मगर जिनकी आत्माएं शायद आज चैन की साँस लेंगी कि कोई तो है, जो उनका सच दुनिया के सामने लाने को तैयार है।"
"और ये सब बात तो केवल हम लोगों की है" उसकी आवाज़ में अब एक भयानक सन्नाटा छा गया, जैसे आने वाली गूंज सबको झकझोर देगी। "इस घर की दीवारों के पीछे छुपे हैं वो गुनाह, जिनकी परछाइयाँ तक किसी आम इंसान को हिला कर रख देंगी। बिज़नेस के नाम पर तुम लोगों ने क्या-क्या नहीं किया? कितने illegal धंधे — तस्करी, ब्लैक मनी, धमकियाँ, फर्ज़ी डील्स। और वो लोग? जो तुम्हारे रास्ते में आए, जो तुम्हारे सामने सिर उठाकर खड़े होने की हिम्मत कर पाए — उनकी ज़िंदगियाँ छीन ली तुमने।"
वो एक-एक को घूरते हुए आगे बढ़ी — दिग्विजय, गौरवी, मीरा, और अंत में रणवीर…"तुम्हारे लालच की आग में कितनों की ज़िंदगी जल चुकी है, कितनों की दुनिया उजड़ चुकी है। जानें ली हैं तुम लोगों ने… सिर्फ संपत्ति के लिए, ताकत के लिए। और जब कोई तुम्हारा सच सामने लाने लगे, तो या तो उसे खरीद लेते हो, या मार डालते हो।"
"और आज तुम मुझे चालाक कह रहे हो?" उसने रणवीर की आँखों में आँखें डालते हुए कहा। "नहीं रणवीर राठौर — चालाक नहीं, मैं जाग चुकी हूँ। और तुम सब? तुम सब तो राक्षस हो… इंसानों की शक्ल में छुपे हुए राक्षस। जिनके लिए सिर्फ़ पैसा मायने रखता है — इंसान नहीं, रिश्ता नहीं, खून नहीं, और तो और… खुद का खून भी नहीं!"
क्या सुहानी का ये कदम नयी मुसीबत खड़ी कर देगा?
क्या रणवीर इतनी जल्दी हार मान लेगा?
आरव को होश कब आएगा?
जानने के लिए पढ़ते रहिये, रिश्तों का क़र्ज़।
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