नीना तेज़ी से studio से बाहर निकली। नंदिता उसके पीछे-पीछे निकली और studio का दरवाज़ा बंद किया। वह इतनी हड़बड़ाहट में थी कि बरामदे में काम करने वाले staff के दो सदस्यों उसे घूर कर देखने लगे। उसके साथ बहुत कुछ घटित हो रहा था और उसकी खबर चौधरी बागान बाड़ी में काम करने वालों को काफ़ी समय से लग चुकी थी। अब तो मंजर यह था कि जितने मुँह, उतनी फुसफुसाहटें होने लगी थीं।
जब नीना यहाँ आई थी, तो कितनी खुशमिजाज़ और हंसमुख थी। सबसे प्यार से बात करती। लेकिन इस नीना को देखकर सभी को बुरा महसूस होने लगा था। आजकल नीना हमेशा उदास और खोई-खोई रहती थी। जब वह हवेली के गलियारों से गुजरती, तो उसके चेहरे की उदासी और आँखों में बसी बेचैनी देखकर हर कोई अपनी जगह पर रुक जाता। अब उसकी उपस्थिति में कोई सहज महसूस नहीं करता।
जब भी नीना studio की ओर जाती, या वहाँ से बाहर आती, हवेली के नौकर-चाकर आपस में फुसफुसाने लगते।
आज भी वही हो रहा था। एक नौकर ने उसका व्यवहार देखकर दूसरे से कहा, देखा? दीदी अब बहुत अजीब हो गई है।
दूसरे ने भी सहमति दिखाई और धीमी आवाज़ में कहा की एक रात मैंने देखा था, वह studio में घंटों अकेली बैठी थीं। लगता है, कुछ तो गड़बड़ है।
Studio अब हवेली के लिए एक रहस्यमयी जगह बन चुका था। वहाँ से अक्सर अजीब आवाज़ें आतीं—कभी हल्की सरसराहट, कभी किसी के चलने की धीमी आहट, और कभी-कभी तो दरवाज़े के खुद-ब-खुद खुलने या बंद होने की आवाज़।
staff के लोगों की यह फुसफुसाहट शंभू तक भी पहुँच चुकी थी। वह भी जानता था कि नीना के साथ कुछ अजीब हो रहा है। कल रात को उनका लाइट बंद करके खुद ही डरते हुए घबरा जाना कहीं से भी सामान्य नहीं था।
शंभू किचन में खाने का इंतजाम देखने जा रहा था, तो उसने रास्ते में देखा कि दो आदमी हवेली में सफाई करते हुए बतिया रहे थे।
एक बोला, "कल रात के समय studio की खिड़कियों से हल्की-हल्की रोशनी दिखाई दे रही थी, जबकि नीना मैडम तो रात में वहाँ जातीं ही नहीं।
तभी दूसरे ने कहा, हाँ, कल रात जब मैं लाइट्स बंद करने गया, तो मुझे लगा जैसे studio के अंदर कोई बात कर रहा हो, - लेकिन जब मैंने दरवाज़े के पास जाकर सुना, तो वहाँ कोई नहीं था।
पहले ने हामी भरी और कहा कि कुछ गड़बड़ तो है। मैंने तो पहले ही कहा था, वसुंधरा बोउदी की मौत असामयिक है, और जो समय से पहले चले जाते हैं, वे ऐसे ही काल चक्र में भटकते रहते हैं।
शंभू ने पीछे से दांत लगते हुए कहा कि ऐसे फालतू की बातें ना करके काम पर ध्यान दो, नहीं तो तुम दोनों को भी उसी काल चक्र में भेज दिया जाएगा।
शंभू जानता था कि जो भी हो रहा है, सही नहीं है, लेकिन उसका काम था हवेली की देखरेख करना और किसी भी तरह के भ्रम को फैलने से रोकना।
हवेली में काम करने वाली सुजाता यहाँ बरसों से काम कर रही थी। वह अक्सर बगीचे की देखभाल करती रहती थी और बरामदे में से नीना को कई बार टहलते या कभी डर कर studio से निकलते हुए देख चुकी थी।
काम करते हुए उसकी नज़र बरामदे में गई। नीना अभी भी वहीं ना जाने किस सोच में खड़ी थी। उससे रहा नहीं गया, और वह उसके पास गई और उसने नीना से पूछ ही लिया कि दीदी, आप कुछ दिनों से परेशान दिख रही हैं। कुछ हुआ है क्या?
नीना ने केवल सूनी आँखों से उसकी ओर देखा और हल्के से सिर हिलाकर चली गई।
ऐसा रूखा जवाब पाकर सुजाता और अधिक चिंतित हो गई। वह शंभू के पास गई और उसे बताया कि नीना मैडम काफ़ी उदास और डरी-डरी रहने लगी हैं। शंभू और सुजाता दोनों काफ़ी वक़्त से बागान बाड़ी में थे और दोनों अपनी बातें साझा भी किया करते थे।
सुजाता के कहने पर शंभू बोल पड़ा कि नीना दीद अब वैसी नहीं रहीं जैसी आई थीं। वह बदल गई हैं, जैसे उनके अंदर कोई अजीब सी बेचैनी घर कर गई हो।
इस पर सुजाता ने पूछ लिया कि क्या इसका सम्बन्ध वसुंधरा बोउदी की मौत से तो नहीं है?
शंभू ने यहाँ खामोश रहना उचित समझा। वह क्या कहता, क्योंकि जो वह देख सकता था, वह सामान्य नहीं था।
हवेली के हर कोने में इस तरह की चर्चाएँ फैलने लगीं। staff अब नीना से दूर रहने लगे थे। जब वह हवेली के किसी भी हिस्से से गुजरती, नौकर-चाकर तुरंत उसके सामने से हट जाते। वे उसकी निगाहों में छिपे डर को महसूस कर सकते थे और उसे इस हालत मे देख खुद भी डर जाते थे। अब वो ऐसा बर्ताव करते कि नीना वहां है ही नहीं।
studio का रहस्य और नीना का बदलता स्वभाव पूरे हवेली में फैले डर को और बढ़ा रहा था। दिन हो या रात, हवेली अब एक अलग ही माहौल में डूबी हुई थी। हर कोने में अजीब सी ठंडक थी, और किसी अनजान साये का एहसास सभी को सताने लगा था।
नीना के चारों ओर रहस्यों का जाल बुनता जा रहा था, और वह चाह कर भी कुछ नहीं कर पा रही थी।
नीना बरामदे में खड़ी नीचे के दरवाजे को देख रही थी। सुजाता ने हिम्मत की और दोबारा उसके करीब आई और उससे बात करने लगी। नीना ने सोचा, यही अच्छा मौका है वसुंधरा के बारे में जानने का। उसने सुजाता से पूछा,
नीना: "आप मुझे वसुंधरा जी के बारे में कुछ बताइए।"
सुजाता ने हल्की मुस्कान के साथ बताना शुरू किया कि जैसे कल ही की बात हो जब वसुंधरा बोउदी शादी करके इसी दरवाजे से अंदर आई थीं।
नीना ने देखा, अचानक ही हवेली का दरवाज़ा फूलों से सजने लगा, मानो वह खुद वसुंधरा के आने की साक्षी हो। उसने देखा, एक चमचमाती Mercedes से वसुंधरा को नीचे उतारा गया।
लाल बनारसी साड़ी, माथे पर सजा नया-नया सिंदूर, आँखों में लाज लिए, हाथों में शंखा-पौला याने के शंख और मूंगे की चूड़ियाँ चमकाते हुए, वह कार से उतरकर हवेली को निहारने लगीं।
आगे कुछ औरतें उनके स्वागत के लिए खड़ी थीं। उन्होंने चावल से भरी लोटे को पैर से उल्टा किया, उसके बाद उन्होंने अपने पैर किसी बर्तन में रखे जिसमें अलता था और वो अपने पैरों के निशान छोड़ते हुए हवेली में दाखिल हुईं। फिर वे सब गुरुजनों के पैर छूने लगीं। किसी ने उनकी आरती उतारी, तो कोई उन्हें मीठा खिला रहा था। वसुंधरा बड़े आदर से सभी का मान रखते हुए खा रही थीं।
नीना उनके पीछे खड़ी सब कुछ देख सकती थी। अचानक उसने देखा कि उसके सामने की सजावट बदलने लगी।
उसके सामने सत्यजीत बिस्तर पर सो रहे थे, और वसुंधरा नहा कर बाथरूम से निकलीं। उन्होंने लाल बनारसी साड़ी पहन रखी थी। उनकी आँखों में लाज और प्यार दोनों साफ़-साफ़ दिख रहे थे।
कमरे में रात को सजाए गए फूलों की भीनी-भीनी महक अब भी बरकरार थी।
अपने गीले बालों को तौलिये से लपेटे, वह शीशे के सामने खड़ी होकर अपनी आँखों में काजल लगा रही थीं, और सत्यजीत को चैन की नींद में सोते हुए देख रही थीं। वह शर्माते हुए हल्के से बुदबुदाईं, 'सारी रात सोने नहीं दिया, अब देखो कैसे सो रहे हैं।'
"अभी जगाती हूँ," कहकर उन्होंने अपने माथे पर बिंदी लगाई और माँग में सिंदूर सजाया।
वसुंधरा धीरे से bed के पास गईं, तौलिया हटाकर अपने गीले बाल सत्यजीत पर झटक दिए और ज़ोर से हंसने लगीं। सत्यजीत की आँखें खुलीं। सामने वसु का हँसता हुआ चेहरा देखकर उन्होंने मुस्कुराते हुए फिर से आँखें बंद कर लीं और चेहरे से पानी हटाते हुए बोले,
सत्यजीत: “'वसु, क्या है ये? देखो, गीला कर दिया।”
वसुंधरा (झूठ-मूठ का गुस्सा दिखाते हुए): "शोत्ती? ठीक है, अब आगे से नहीं करूंगी।"
सत्यजीत ने उसे खींच कर अपने पास ले लिया और बाहों में भरते हुए बोले,
सत्यजीत: "छोटी-छोटी बातों पर मुँह फूल जाता है।"
वसुंधरा: "छोड़िए, अब गीले नहीं हो रहे हो, आप?"
सत्यजीत: "अब माफ़ भी कर दो, वसु। लो, जितना गीला करना है, कर लो!"
सत्यजीत अपनी पकड़ मजबूत करते हुए हंसने लगे।
बस इतनी सी देर थी कि वसुंधरा की नाराज़गी छू-मंतर हो गई।
वह हंसते हुए बोली,
वसुंधरा: "अच्छा, चलिए, उठिए और स्नान कर लीजिए, आज मैं आपके लिए अपने हाथों से कुछ बनाती हूँ।"
सत्यजीत (प्यार भरे अंदाज़ में): “'लेकिन वसु, किचन में जाने की क्या ज़रूरत है? घर में इतने नौकर हैं। तुम्हें काम करने की ज़रूरत नहीं। तुम बस मेरा खयाल रखो।”
ऐसा कहते हुए, उन्होंने लेटे-लेटे ही उसके गालों पर आ रहे गीले बालों को कान के पीछे किया।
वसु ने मुस्कुराते हुए कहा, "इसे प्यार कहते हैं, आप नहीं समझेंगे।"
सत्यजीत (शरारत भरे अंदाज़ में): “अच्छा, तो आप समझा दीजिए, अभी समझाएँगी या रात में?”
वसुंधरा: “धत्त..कुछ भी कह देते हैं आप!”
वसु लजा गईं और उनकी छाती से अलग हो गईं।
सत्यजीत: “अरे, तुम तो डर गई..”
वसुंधरा: “मैं नहीं डरती किसी से... अब आप उठिए, मुझे जाना है।"
कहते हुए वह कमरे से दौड़ते हुए बाहर निकल गई। सत्यजीत की हँसी से उनका कमरा महक उठा और वसुंधरा की पायल की झंकार से पूरी हवेली।
नीना, जो यह सब देख रही थी, उसके चेहरे पर डेढ़ मीटर लंबी मुस्कान आ चुकी थी। नीना (बुदबुदाते हुए): “हाय, नज़र न लगे इन दोनों को।”
लेकिन नज़र तो लग गई दीदी, सुजाता की अचानक आई आवाज़ से नीना चौंक गई। यह सब उसे सुजाता बता रही थी और उसे लग रहा था मानो वह सब कुछ आँखों से देख रही हो।
नीना ने इधर-उधर नज़र घुमाई और देखा कि वहाँ का मंजर बदल चुका था। उसके सामने सुजाता खड़ी थी।
सुजाता ने आगे बताया, कि जब तक बोउदी थीं, हवेली में हर दिन त्योहार लगता था। उनकी पायल और चूड़ियों की खनक से पूरी हवेली खुश लगती थी। अब देखो, सब अपने काम से काम रखते हैं। दादाबाबू भी उदास और उखड़े-उखड़े से लगते हैं। चौधरी बागान बाड़ी बोउदी उनके जाने के बाद से उदास हो गई।
सुजाता उसे बता ही रही थी कि तभी शंभू आया और dinner का न्योता दिया नीना को यह कहकर की बड़े बाबू आज उनके साथ dinner करेंगे।
नीना उसके साथ चली गई और जाकर कुर्सी पर बैठ गई। सत्यजीत किसी के फोन पर बात करते हुए वहाँ आए और उसके सामने बैठकर मुस्कुराए। नीना को डर था कहीं ये उससे वही सवाल न करें जो ये अक्सर करते हैं, और उसका डर सही साबित हुआ।
सत्यजीत ने पूछ ही लिया, "नीना, portrait का काम कितना हुआ?"
नीना: "जी, आज काफी कुछ कवर किया है। उनका दाहिना हाथ तक का हिस्सा बन चुका है।"
सत्यजीत: "जितना सोचा था, उतना जल्दी तो नहीं, लेकिन आप बना रही हैं, यह जानकर मुझे खुशी हुई।"
नीना: "जी।"
सत्यजीत: "आप खाना खाइए।"
नीना ने उसकी तरफ़ देखा। जो अभी-अभी वह देख कर आई थी, वो सत्यजीत कितना हंसमुख था और यह कितना बेजान।
नीना ने खाना खाया। उसने देखा उसे सतीश का कॉल आ रहा है। इस वक़्त वह सत्यजीत के सामने उससे बात नहीं करना चाहती थी, तो उसने कॉल कट कर दिया और अपना खाना खत्म करने लगी।
रात हो चुकी थी। नीना अपने बिस्तर पर लेटी हुई थी, जब उसे अचानक अपने कमरे के बाहर किसी के कदमों की हल्की सी आवाज़ सुनाई दी। मानो कोई उसके कमरे के बाहर चक्कर काट रहा हो। उसके दिल की धड़कनें थोड़ी तेज़ हो गईं। वह उठी, हल्के से चादर हटाई और धीरे-धीरे कमरे के दरवाज़े की ओर बढ़ी। दरवाज़े के पास पहुँचकर उसने सांस रोकी और कान लगाकर सुना। कदमों की आवाज़ अब बंद हो चुकी थी, बाहर एक अजीब सा सन्नाटा पसरा हुआ था।
नीना ने धीरे से दरवाज़ा खोला। बाहर झांकने पर देखा कि बरामदा बिलकुल खाली है। उसने इधर-उधर नज़र दौड़ाई, लेकिन कोई भी नज़र नहीं आया। तभी उसकी नज़र studio के दरवाज़े पर पड़ी, जो थोड़ा सा खुला था। यह देखकर उसके चेहरे पर चिंता की लकीरें उभर आईं, क्योंकि उसने बखूबी याद किया कि studio का दरवाज़ा तो नंदिता ने उसके सामने ही बंद किया था।
एक पल के लिए उसका दिल ज़ोर से धड़कने लगा। उसने सोचा कि आखिर दरवाज़ा किसने खोला होगा? क्या कोई अंदर है?
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