नीना की चीख सुनाई पड़ती है। उसको एक अदृश्य शक्ति, उसे हवा में एक पैर से खींचते हुए studio के अंदर ले जाती है।
नीना (चिल्लाते हुए): "आहssss.. बचाओ! कोई मुझे खींच रहा है… मुझे यहाँ से बाहर निकालो, please help!"
नीना हवा में लटकी हुई चिल्लाई जा रही थी।
नीना (चिल्लाते हुए): "कोई तो मदद करो, please..."
नीना की चीखें studio में गूंज रही थीं, लेकिन मजाल है कि वे आवाज़ें studio से बाहर जाएं।
देर रात गए जब उसने studio का दरवाजा खुला देखा, तो वह पहले कुछ पलों तक बाहर खड़ी रही, यह सोचते हुए कि क्या करना चाहिए। उसने बाहर से ही काफ़ी देखने की कोशिश की, लेकिन कोई नज़र नहीं आया। अचानक studio से हल्की सी आवाज़ आई, जैसे किसी चीज़ को सरकाया जा रहा हो। नीना की साँसें रुकने सी लगीं, लेकिन उसने हिम्मत जुटाई और studio की ओर कदम बढ़ाए।
दरवाजे के पास पहुँचकर उसने हल्के हाथों से उसे थोड़ा और धकेला। अंदर का नज़ारा देखकर उसकी आँखें चौड़ी रह गईं। अंदर लाइट चालू थी और ब्रश हवा में उछल रहे थे। नीना के अंदर कदम रखते ही, मानो किसी ने उसका एक पैर पकड़कर ज़ोर से खींच लिया , और अगले ही पल वो हवा में एक पैर से उल्टी लटक रही थी। उसकी चीखों से studio गूंज उठा।
तेज़ हवा का झोंका आया और वह दीवार से टकरा गई। उसके सिर से खून का क़तरा निकला और फर्श पर टपकने लगा। नीना बेहोश हो चुकी थी।
studio का माहौल काफ़ी डरावना हो चुका था।
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होश में आने के पहले से, नीना को वसुंधरा की ज़िंदगी के कुछ पल दिखाई देने लगे।
वसुंधरा एक सुंदर हाथों की नक्काशी से बने शीशम की लकड़ी के couch पर अपने खुले लंबे घुँघराले काले बालों को फैला कर लेटी थी। नंदिता उसके बालों में धुनी का धुआं दे रही थी। चंदन, अगर, और कपूर की मनमोहक खुशबू फिज़ाओं में फैली हुई थी।
नंदिता उसके बालों को प्यार से सहलाते हुए कुछ कह रही थी, और उसके हाव-भाव से लग रहा था कि शायद वो इस धुनी से वसुंधरा की थकान को दूर करने की कोशिश कर रही थी। वसुंधरा खोई हुई सी अपने हाथों पर लगे आलते को देख रही थी।
अचानक ही उसका जी घबराया और वह बाथरूम की तरफ़ लपकी। नंदिता बाथरूम के बाहर ही खड़ी उसका इंतजार कर रही थी।
कुछ वक़्त में सुजाता भी उसके कमरे में नज़र आई और वह वसुंधरा को कहीं ले जा रही थी।
वसुंधरा, सुजाता के साथ डॉक्टर दास के clinic से बाहर आती दिखाई दी।
कुछ वक्त पहले जो मायूसी वसुंधरा के चेहरे पर पसरी थी, उसकी जगह अब उसके चेहरे पर एक अनूठी चमक आ गई थी, मानो उसकी सारी दुनिया ही बदल गई हो। ऐसा लग रहा था कि यह पल वसु की ज़िंदगी का सबसे अनमोल पल था।
Clinic से घर तक के सफर में, वसुंधरा अपने आप में खोई हुई थी। चारों ओर फैले बाज़ार, चहल-पहल और सड़कों पर दौड़ते लोग, सब उसे अब अलग नज़र आ रहे थे। उसके कानों में खुश कर देने वाली डॉक्टर की वह आवाज़ अब भी गूंज रही थी।आज उसका दिल किसी मीठे सपने में डूब गया था। उसका पूरा जीवन हमेशा के लिए बदलने वाला था।
घर पहुँचते ही उसने दरवाजा खोला और अपने सजे-संवरे कमरे में आकर बैठ गई। उसकी आँखों में आँसू थे, लेकिन ये आँसू खुशी और आश्चर्य के थे। उसने अपने पेट पर हल्के से हाथ रखा, मानो किसी से बात करने की कोशिश कर रही हो।
फिर वह उठी और अपने घर में बने मंदिर में गई और देवी माँ के सामने हाथ जोड़कर दीप जलाया। धीरे-धीरे मुस्कुराते हुए वह उन्हें कुछ बताने लगी। नीना ये सब सुन नहीं पा रही थी, लेकिन उसकी खुशी, उसका ग़म, सब कुछ भली-भाँती महसूस कर पा रही थी।
उसने देखा कि शंभू 5-6 लोगों के साथ हाथों में तरह तरह की मिठाइयाँ, मिष्टी-दोई, रसगुल्ले और ना जाने क्या-क्या पकड़े खड़ा है। वसु ने सब पर अपने हाथों से छूँआ और बागान बाड़ी के आस-पास के परिवारों में बंटवाने को कहा। कुछ देर बाद वह सामने आईने में खड़ी खुद को निहार रही थी। वसुंधरा को कोई खुशी की खबर मिली थी, ये नीना आसानी से महसूस कर सकती थी।
नीना बेहोश पड़ी थी। अचानक बाहर से studio का दरवाजा खुला और नंदिता दौड़कर उसके पास आती है। उसे हिलाते हुए उसने आवाज़ लगाई, “दीदी, आप ठीक तो हैं?" फिर ज़ोर से चिल्लाई ताकि आवाज़ बाहर जा सके, "कोई मदद करो... दीदी, उठिए!”
लेकिन नीना बेहोश थी, उसे कुछ सुनाई नहीं दे रहा था।नंदिता ने तुरंत बाहर दौड़कर staff के लोगों को बुलवाया, और वे उसे studio से निकालकर उसके कमरे में ले गए। आनन-फानन में तुरंत डॉ दास को बुलवाया गया।
डॉ. दास ने आने में देरी नहीं की। उन्होंने नीना को देख कर नंदिता से पूछा कि यह सब कैसे हुआ?
नंदिता ने कहा "मुझे नहीं पता। मैं तो नीना दीदी को रात में एक बार देखने जाती हूँ। नीना के कमरे का दरवाज़ा खुला था और वह वहाँ नहीं थीं। आगे चलकर नंदिता ने देखा कि studio का दरवाज़ा खुला था, और वहाँ उसने देखा की नीना दीदी बेहोश ज़मीन पर पड़ी थीं।
डॉ. दास ने उसके सिर की चोट को गौर से देखा और उस पर पट्टी की। हवेली में कुछ हुआ और खबर सत्यजीत को न मिले, ऐसा हो ही नहीं सकता। सत्यजीत के कानों तक खबर पहुँच चुकी थी, और वे भी कमरे में पहुँच चुके थे।
जब सत्यजीत आस-पास होते थे, staff के किसी सदस्य को कुछ कहने की हिम्मत नहीं होती थी। वहाँ staff के कई लोग खड़े थे, सभी के मन में सवालों का पहाड़ था, लेकिन सभी आँखें नीचे किए, हाथ बंधे खड़े थे।
डॉ. दास ने घड़ी देखी और पाया कि रात का तीसरा पहर खत्म होने को था। रात का तीसरा पहर, यानी रात 12 बजे से 3 बजे के बीच का समय होता है। इस समय में लोग तांत्रिक और तामसिक क्रियाएँ ज़्यादा करते हैं।
वो अनुमान लगा सकते थे कि तीसरा पहर खत्म होते ही शायद नीना को दोबारा होश आ जाए। डॉ. दास भूत-प्रेत में यकीन तो नहीं रखते थे, लेकिन उन्होंने अपने करियर में जादू-टोने के बारे में बहुत कुछ सुना और आँखों से देखा भी था। और आजकल जिन हालातों में नीना मिलती है, उन्हें लगने लगा था जैसे किसी ने उन पर कोई जादू टोना किया है। और उनकी सोच के मुताबिक, 3 बजते ही नीना को होश आ जाना चाहिए।
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अगली सुबह नीना अपने सिर पर बंधी पट्टी को सामने लगे शीशे में देख सकती थी। सतीश ने उसे वीडियो कॉल किया, लेकिन इस वक्त तो वह उससे वीडियो कॉल पर बात नहीं कर सकती थी। अगर उसने उसके सिर की चोट देख ली, तो तो नीना की क्लास लगा देगा, सोचते हुए उसने कॉल काट दिया और बिस्तर पर लेट गई। उसे अपनी माँ की गोद में सिर रखकर सोने का बहुत मन कर रहा था।
नीना को आज भी वो दिन बिल्कुल साफ़ याद है, जब उसकी माँ उसके पास थी और गर्मियों के दिन थे। हर बार की तरह, उस दिन भी फालसे बेचने वाला अपनी साइकिल पर आया था, उसकी टोकरी में ताज़े फालसों के ढेर लगे हुए थे। नीना की नज़र जैसे ही उन छोटे, खट्टे-मीठे फलों पर पड़ी, उसकी आँखों में एक चमक आ गई थी। उसने तुरंत अपनी माँ से ज़िद शुरू कर दी, "मम्मा, पैसे दो न, फालसे लेने हैं!"
उसकी माँ ने पहले तो थोड़ा टालने की कोशिश की, लेकिन नीना की मासूम ज़िद के आगे हार मानते हुए एक सिक्का निकालकर उसकी छोटी हथेली में रख दिए। नीना की खुशी का ठिकाना न था। उसने दौड़कर फालसे वाले को पैसे दिए और एक छोटा सा कागज़ का दोना फालसों से भरवा लाई। उसकी माँ ने मुस्कुराते हुए उसे आँगन में बुलाया और दोनों वहीं पंखे के सामने बैठ गए। वह उसके बालों में तेल लगाने लगी।
आँगन में हल्की धूप और हवा का मिलाजुला एहसास था। माँ-बेटी दोनों फालसे खाते हुए बातें कर रही थीं। माँ उसे हमेशा की तरह जीवन की छोटी-छोटी बातें सिखा रही थी। नीना के लिए ये पल बहुत खास थे, क्योंकि ये वो समय था जब उसकी माँ उसके सबसे करीब होती थी।
उसे याद है कि एक बार जब वो फालसे लेकर वापस आ रही थी, तो उसका ध्यान कहीं और था। वह साइकिल के पास से गुज़र रही थी कि अचानक उसका पैर फिसल गया और वह गिर पड़ी। फालसे वाले की साइकिल का हैंडल उसके सर से टकराया, जिससे उसकी आँख के ऊपर चोट आ गई थी। चोट तो छोटी थी, लेकिन दर्द उसके लिए बहुत बड़ा था। उसकी माँ ने उसे अपनी गोद में उठाकर प्यार से उसकी चोट पर मरहम लगाया और हल्की फूँक मारते हुए कहा, "कुछ नहीं हुआ, मेरी बच्ची। सब ठीक हो जाएगा।" माँ की गोद में बैठकर वह सब दर्द भूल जाती थी।
लेकिन आज, इतने सालों बाद, जब नीना फिर से उसी जगह चोट खाकर बैठी थी, तो उसे वह पुरानी चोट और वह दिन याद आ गया। आज की चोट भी ठीक उसी जगह लगी थी, जहां बचपन में उसे चोट लगी थी। पर आज, उसकी माँ उसके पास नहीं थी। उसे माँ के हाथों की वो नरमी और प्यार भरी फूँक बहुत याद आ रही थी।
बचपन में सब कुछ कितना आसान और सुरक्षित लगता था। उस दिन की यादें उसे माँ की गोद की गर्मी और सुरक्षा का एहसास करा रही थीं। अब तो फालसे बेचने वाला भी कभी नहीं आता था, न ही मम्मा लौटकर आई।
नीना की आँखों में हल्की नमी थी। उसे याद आया वो सीन जो उसने कल रात बेहोशी की हालत में देखा था।
उसने देखा नन्दिता पानी का ग्लास और सूप के कटोरे के साथ कमरे में आई। उसकी आँखों के सामने पानी का ग्लास रखते हुए बोली, "दीदी, दवाई खा लीजिए।"
नीना ने मेडिसिन हाथ में ली और बोली,
नीना: "शंभू ने बताया, तुमने मुझे वहाँ से बाहर निकाला था। Thank you!"
नंदिता उसे ग्लास थमाते हुए बोली कि वो तो उसका काम था।
नीना ने दवाई खाई और पानी पिया। कल रात की बातें याद करते हुए वो पूछ बैठी,
नीना: "अच्छा, ये बताओ, मिस्टर चौधरी के बच्चे नहीं हैं?"
नंदिता ने बताया कि उनके बच्चे तो नहीं हैं, लेकिन बोउदी गर्भवती तो हुई थीं। उसके बाद बीमार पड़ गईं और फिर हमें छोड़कर चली गईं।
नीना समझ गई कि कल रात जो उसने देखा और महसूस किया, वो माँ बनने की खुशी थी। "सच में, उन्होंने ज़िंदगी का हर दर्द सहा है। कुछ लोगों का जीवन सच में आसान नहीं होता। उन्हें माँ बनने की खुशी तो मिली, लेकिन माँ बन नहीं पाईं।"
नन्दिता ने नीना को सूप दिया। नीना पी ही रही थी कि वो थोड़ा सा उसके कपड़ों पर आ गया।
नीना: "Oh shit!"
सूप का कटोरा side में रखकर, वह bathroom की तरफ़ गई। जैसे ही नीना ने अपनी ड्रेस धोने के लिए नल चालू किया, उसने देखा कि उसकी ड्रेस और गंदी हो गई है; वो लाल रंग से सन गई थी। यह देखते ही उसकी हैरानी बढ़ गई। उसके हाथ लाल थे और नल से लाल रंग आ रहा था। उसने अपने हाथ नाक के करीब ले जाकर सूंघा। उस अजीब से गंध से उसे पता चला कि उसके हाथों पर खून लगा है। उसका दिल तेज़ी से धड़कने लगा और उस पर मंडराता खतरा अब और ज़्यादा dangerous रूप लेता नज़र आ रहा था।
अब और क्या होना बाकी था नाइन के साथ?
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