नीना ने washroom में जाकर अपनी dress पर गिरे सूप को साफ़ करने के लिए नल चालू किया। उसने देखा कि उसकी ड्रेस और गंदी हो गई थी; वह लाल रंग से रंग गई थी। यह देखकर वह हैरान रह गई। उसके हाथ लाल हो चुके थे, और नल से लाल रंग का पानी आ रहा था। उसने अपने हाथ नाक के करीब ले जाकर सूँघा, तो पता चला कि उसके हाथों पर खून लगा है। उसका दिल तेजी से धड़कने लगा, और उस पर मंडराता खतरा अब और ज़्यादा dangerous बनता जा रहा था। 


नीना (खुद से पूछते हुए): 'यह खून कहाँ से आया? 
उसकी आँखों की पुतलियाँ बड़ी होने लगीं, मानो उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि उसके हाथ खून से रंग गए हैं।
उसने देखा कि नल से आने वाला पानी अब सामान्य हो गया था। उसने अपने लाल हाथों को पानी के नीचे ले जाकर धोने की कोशिश की, उन्हें बार-बार रगड़ा, लेकिन खून की लाली उसके हाथों से हटने का नाम ही नहीं ले रही थी।

उसके हाथ बुरी तरह काँप रहे थे। नल से पानी लगातार बह रहा था, लेकिन उसकी हथेलियों से टपकता खून सफेद बेसिन को गहरे लाल रंग में बदल चुका था। माथे पर बंधी सफेद पट्टी पसीने से पूरी तरह भीग चुकी थी। कानों के पास से पसीना बह रहा था, लेकिन वह रुकी नहीं और लगातार हाथ साफ़ करने की कोशिश करती रही। 

नंदिनी वहाँ से जा चुकी थी, लेकिन उसके कमरे की सफ़ाई के लिए staff का एक सदस्य अभी भी वहाँ मौजूद था। वह कमरे में बिखरे सामान को समेट रहा था। नीना अपने हाथों को झटकते हुए कमरे से बाहर आई। उसकी आँखें थकी हुई थीं, लेकिन मन में एक अजीब सी बेचैनी थी। उसने देखा कि staff का सदस्य उसके bed की bedsheet बदल रहा था।
नीना ने उस आदमी की ओर देखते हुए कहा, 

नीना:भैया, आपके पास extra कपड़ा है? मुझे ये हाथ साफ़ करना है, देखिए ना, ये साफ़ ही नहीं हो रहे ।” 

उसकी आवाज़ में थोड़ी चिंता थी। 
नीना को यूं उखड़े हुए देख कर उसने पूछ लिया कि क्या वो ठीक तो है? वह काफ़ी  confuse नज़र आ रहा था। 
नीना कभी भी किसी से तेज़ आवाज़ में बात नहीं करती थी, लेकिन आज वह बेवजह ही उस पर गुस्सा होने लगी। गुस्से में अपने हाथ दिखाते बोली, 

नीना: "ये देखिए, आपको दिख नहीं रहा? इन्हें साफ़ कैसे करूं?"
उस आदमी ने नीना के हाथ पर नज़र डाली - वो तो सामान्य से ही दिख रहे थे। वह कुछ सोचते हुए धीरे से बोला कि आपके हाथ तो ठीक लग रहे हैं।

नीना (गुस्से में): "मैं पागल हूँ जो ऐसा कह रही हूँ? दीखता नहीं है आपको? जल्दी से कुछ ला दो, ताकि इसे साफ़ कर सकूं।

वह बेचारा आदमी झटपट अपने साथ लाए तौलिये को नीना को दे देता है। नीना ने झटक कर तौलिया लिया और अपने हाथों को रगड़ने लगी।

उसकी नज़र उन हाथों पर लगे खून को साफ़ करने की कोशिश में थी। और वह व्यक्ति उसे ये सब करते देख रहा था।

तभी, अचानक washroom से एक डरावनी घुर्राने की आवाज़ आई, जो कि उस आदमी को साफ़-साफ़ सुनाई दी। उस आदमी के चेहरे पर घबराहट दिखाई देने लगी। वह नीना की हरकतों की वजह से पहले से ही डरा हुआ था, और अब उस अजीब आवाज़ ने उसकी घबराहट को और बढ़ा दिया।
उसने जल्दी से नीना को एक नज़र देखा और वहाँ से बाहर निकलने की कोशिश की, लेकिन  इसी दौरान वह किसी दूसरे व्यक्ति से टकरा गया।

दूसरे व्यक्ति ने पहले की आँखों में उभरे डर को देखा। कमरे से बाहर आए आदमी के चेहरे पर हल्की घबराहट थी, मानो कुछ ऐसा देखा या सुन लिया हो जो बेहद डरावना हो। उसने जल्दी से इशारा किया कि अंदर कुछ सही नहीं था, खासकर वॉशरूम से आई अजीब आवाज़ के बाद उसे डर लगने लगा। उसकी हल्की कंपकंपी बता रही थी कि वह अब और अंदर जाने का साहस नहीं जुटा पा रहा था।

उसने अपने साथी स्टाफ मेंबर को कमरे के अंदर की ओर दिखाया। नीना अपने हाथ कुछ यूं साफ कर रही थी, मानो वह अपनी ही चमड़ी खींचने की कोशिश कर रही हो। उसकी हरकतें अजीब थीं।

दूसरे आदमी ने बाहर से झाँक कर देखा, नीना तौलिये से लगातार अपने हाथों को रगड़ रही थी।वह बोला कि “जिस दिन से बोउदी के कमरे को studio बनाया तभी से मुझे डर लग रहा था।”
पहले staff member ने भी थोड़ा दर के “हाँ” कहा। वे दोनों आपस में बातें कर रहे थे और जैसे ही पलटे, पीछे नीना को खड़े देखकर दोनों की जान हलक में अटक गई, वे गिरते हुए संभले। 


नीना ने सीधा सवाल किया, 
नीना: वो studio, जहाँ मैं काम करती हूँ, क्या वो वसुंधरा जी का कमरा था?
वह staff member आँखें झुकाए, मुँह बंद किए खड़े थे।
नीना (ज़ोर आवाज़ में): “जवाब दो!” 

नीना के ज़ोर आवाज़ से वो थोड़ा काँप गया। 
जी दीदी, उसने हलके स्वर में नीना को जवाब दिया। वह आगे बोला की वो कमरा बोउदी और बड़े बाबू का था। बोउदी के जाने के बाद से बड़े बाबू का बेडरूम भी चेंज हो गया, और वो कमरा तभी से खाली था, तो उसे studio बना दिया।


यह सुनकर नीना के चेहरे का रंग फीका पड़ गया। वो कमरा, जहां वो काम करती थी, वहाँ वसुंधरा ने अपने सबसे खूबसूरत और सबसे भयानक पल जिए!!! जो उसे वक्त-बेवक्त दिखाई देते रहते थे। उसे अभी-अभी ये बात पता लगी थी, उसका डरना लाज़मी था।
इस situation में उसे सतीश की याद आने लगी। काश, वह उसके साथ होता तो उसे संभाल लेता। उसने सोचा, "उसे कॉल कर लेती हूँ," लेकिन फिर मन में ख्याल आया कि अगर मेरे मुंह से कुछ निकल गया और उसे पता चल गया, तो वह उसे वापस आने के लिए मजबूर करेगा। “क्या करे, क्या न करे” वाली स्थिति में वह बुरी तरह फँस चुकी थी।


उसके हाथ काँप रहे थे, उसकी लाल उँगलियाँ फोन के स्क्रीन पर नंबर सर्च करने के लिए ठीक से सतीश का नाम भी टाइप नहीं कर पा रही थीं। सतीश को ये सब बताना है या नहीं, ये भी अपने आप में एक मुश्किल Decision था। आखिर उसने  फ़ैसला किया कि अभी बात ना की जाए; हो सकता है मैं बेवजह ही परेशान हो रही हूँ ।

नीना: “I wish कि मेरी याददाश्त goldfish की तरह होती। झटपट भूल जाती, ना कुछ याद रहता, ना ही कोई टंटा होता।”

 लेकिन कहते हैं ना, जहाँ दिल से रिश्ता होता है, वहाँ सामने वाले को इस बात की खबर खुद-ब-खुद लग जाती है कि उसे याद किया जा रहा है। सतीश उस वक्त अपने office  में बैठा कुछ art articles पर काम कर रहा था। वो  article देख कर उसे नीना की याद आ गई। नीना उसे कॉल नहीं मिल पा रही थी, तो क्या सतीश ने उसे कॉल कर ही दिया।

नीना ने फोन उठाया और थोड़ा संभलते हुए बोली, 

नीना: "हेलो।"

सतीश (थोड़े नाराज़ अंदाज़ में): "Hello की बच्ची,  ये बता कल से कहाँ मर गई थी? खुद को Princess Diana समझती है?" 
नीना (झिझकते हुए समझने की कोशिश में): "अरे, नहीं यार … पहले बात तो सुन।"

लेकिन सतीश कहाँ मानने वाला था, वह ताना मारते हुए बोला,  
सतीश: "हाँ, अब चिकनी-चुपड़ी बातें करके फिर मेरा गुस्सा शांत कर देगी!"
नीना (गंभीरता से): "तुझे मेरी बात सुननी है या नहीं?"
सतीश: "हाँ, शायद इसीलिए फोन किया है। सबसे पहले तो ये बता, तू कैसी है?"
नीना: "मैं ठीक हूँ... अब सुन मेरी बात … मुझे अभी-अभी पता चला है कि जिस studio में मैं काम कर रही हूँ, वो कभी वसुंधरा का कमरा हुआ करता था। Her bedroom!" 
सतीश: "ओह तेरी! अजीब बात है, लेकिन इसमें कोई डरने वाली बात…."
नीना (सतीश की बात काटते हुए): "मिस्टर चौधरी ने अपना बेडरूम बदल लिया। क्या तुझे इसमें कुछ अजीब नहीं लगता? 
सतीश: "नहीं, इसमें अजीब तो कुछ नहीं है। उसकी बीवी मरी है, याद आती होगी, इसलिए कमरा बदल लिया होगा। और हैं इतने कमरे कि वो ऐसा कर पाया। Middle class आदमी होता तो नहीं कर पता। इसमें इतना क्या सोचना?"
नीना: "Hmm, point तो है"
सतीश (फ़ोन में फुसफुसाते हुए): "अच्छा सुन, खड़ूस बॉस मुझे देख रहा है। मैं तुझे बाद में कॉल करता हूँ। जल्दी बता, कोई वापस का  plan है क्या?” 
नीना: "नहीं... अभी नहीं... अभी नहीं आ सकती।” 

नीना ने धीमी और असमंजस भरी आवाज़ में कहा। उसके शब्द जैसे खुद उसके भीतर उलझे हुए थे।
सतीश समझ नहीं पा रहा था कि नीना किस स्थिति से गुजर रही है, लेकिन वह जानता था कि वह काफ़ी समझदार है।
कॉल कट चुका था।  
नीना (मन ही मन बुदबुदाते हुए): "कुछ है यहाँ... कुछ तो है, और मुझे इसे जानना होगा।" 

अब उसकी आवाज़, पहले से कहीं ज्यादा डर और उलझन से भरी हुई थी।

**

नीना के कमरे में उसे अजीब तरीके से हाथ घिसते हुए देखने के बाद staff के उस आदमी ने सभी के बीच यह अफवाह थोड़ी मिर्च-मसाला लगा कर फैला दी थी कि नीना किसी काली ताकत के प्रभाव में आ चुकी है। उसने सभी से नीना से दूर रहने को कहा। staff के लोग भी उसकी बातों से डर चुके थे। अब वे उसके कमरे तक में जाने से कतरा रहे थे। एक अजीब सा भय और संशय सभी के दिलों में गहरे बैठ चुका था।

लेकिन सुजाता सबसे अलग थी। वह नीना से मिलने उसके कमरे तक गई और उससे पूछने लगी, "दीदी, अब आप कैसी हैं?"
 

नीना: "मैं ठीक हूँ लेकिन मुझे ये बताओ कि क्या studio पहले वसुंधरा जी का bedroom हुआ करता था?"
सुजाता ने कहा हाँ। वो उनका ही कमरा था, उनका और बड़े बाबू का।

नीना: "उनके बारे में कुछ और भी बताओ ना।"
सुजाता बताने लगी कि बोउदी को बच्चों से बहुत प्यार था। एक अनाथ आश्रम में अक्सर वो जाती थी। सुजाता बता रही थी और नीना वसुंधरा के साथ उस जगह खुद को महसूस कर सकती थी।

वसुंधरा बहुत सारे बच्चों से घिरी हुई थी। उन सभी बच्चों की आँखों उसे वहाँ देख कर चमक थी। वह हर रविवार को बच्चों के लिए painting workshop आयोजित करती थी। आज भी वो उन्हें सीखा रही थी। एक बच्चा अचानक रोने लगा क्योंकि उसके गाल पर रंग लग गया था, और वसुंधरा ने उसे चुप कराने के लिए अपने ही गाल रंगो से पोत लिए थे। फिर तो उसे देख कर सभी बच्चों ने रंगों की होली खेल ली और सभी एक दूसरे को रंगने लगे। 
नीना ये देख कर काफ़ी  हल्का महसूस कर रही थी। जो इंसान दूसरों के लिए जीता था, उसे इतनी निर्दयी मौत देने का हक तो ऊपर वाले को भी नहीं है।
सुजाता आगे बता रही थी कि उनकी मौत के बाद एक-दो नहीं, अनाथ आश्रम के पूरे 140 बच्चे फिर से अनाथ हो गए और वो तो बेचारी माँ बन ही नहीं पायी।
ये सब सुन कर नीना काफ़ी  दुखी हुई। जितना वो वसुंधरा को जान रही थी, उतना वो उसके करीब आती जा रही थी। उसकी अच्छाई से प्रभावित होती जा रही थी।

सुजाता बता रही थी लेकिन अच्छे लोगो के दुश्मन भी बहुत होते है..”

नीना ने चौंकते हुए पूछा उनके दुश्मन भी थे?

सुजाता इस बारे में बताने जा ही रही थी कि नंदिता कमरे में आई और नीना को दवाई दी। तब सुजाता वहाँ से चली गई। नीना ने दवाई ली।
अपना काम निपटा कर वहाँ से जाते हुए नंदिता ने उससे पूछा दीदी, लाइट बंद कर दूँ?'
 

नीना (घबराकर): “ना ना …. मैं खुद से बंद कर लूँगी।"
रात में, नीना ने बची हुई दवाई खुद से ली और वह बिस्तर पर लेट गई। उसे अपने कमरे की ओर आते हुए कदमों की आवाज़ सुनाई दी। दरवाज़ा धीरे से खुला, उसने चादर हटा कर देखा तो बाहर कोई नहीं था। अचानक उसे सिर्फ़ वसुंधरा की धीमी आवाज़ सुनाई दी, “तुम्हें पता है तुम्हें क्या करना है।”

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