कमरे में पसरा सन्नाटा अब गहराता जा रहा था। तीनों की नज़रों में एक अजीब सा डर तैरने लगा था—ऐसा डर, जिस में इंसान सोचता बहुत है, कहीं सामने वाले से किसी ने कुछ कहा तो नहीं, मगर किसी के कुछ कहने न कहने में ही हर राज़ छिपा होता है।

गौरवी की आँखों की चमक अब घबरा कर धुंधली पड़ने लगी थी, रणवीर की अंगुलियाँ अब टेबल से हट चुकी थीं और अब वो अपनी कनपटी सहला रहा था— मानो उस के दिमाग़ में उबाल आ रहा हो। दिग्विजय का चेहरा अब भी वही कठोरता ओढ़े था, मगर उसकी तेज़ होती साँसें बता रही थीं, कि सुहानी की चुप्पी उसकी धड़कनों पर भारी पड़ रही है।

और सुहानी? वो अब भी पूरी शांति से खड़ी थी— आँखों में सुकून… पर लहजे में तल्ख़ी लिए।

विक्रम जो बीच में सुहानी को देखने आया था। जिससे रणवीर ने वापस बाहर जाने को कहा था, जो विक्रम जानता भी था, कि ऐसा ही होगा, मगर उस ने कमरे से निकलने से पहले, दरवाज़े के पास रखे एक table पर उसने एक रिकॉर्डर रख दिया और सुहानी को इशारे से बताया की बाहर निकलते वक़्त उसे चुपके से उठा ले। 

विक्रम अभी कमरे के बाहर ही इधर-उधर भटक रहा था, उसे सुहानी की चिंता थी। लेकिन उसे क्या मालूम था, बचाने की ज़रूरत अभी राठौरों को सुहानी से थी।

“मैं जानती हूँ कि आप तीनों को झटका लगा है,” उसने कहा, जैसे किसी अदालत में जज बोल रहा हो, “पर ये तो बस एक शुरुआत है।”

तीनों के चेहरे पर हल्की हरकत हुई। किसी ने कुछ कहा नहीं, मगर अब उन के दिल की धड़कनों में सुहानी की आवाज़ गूंज रही थी।

“आप को ये भी जान लेना चाहिए…” सुहानी ने ज़रा रुक कर कहा, “…कि मैंने टेंडर की फाइल में बस हिसाब नहीं लगाया है, बल्कि हिसाब माँगने का वक्त तय किया है।”

रणवीर का चेहरा अब तमतमा उठा। “तू हमें धमका रही है?”

सुहानी ने उसकी ओर देखा, और बस मुस्कुरा दी। “धमकी?”

उस ने धीरे से दोहराया, “नहीं रणवीर… अभी तो सिर्फ इशारा है।”

कमरे में सन्नाटा गहराया। फिर उस ने कुछ शब्द बेहद ठंडे स्वर में कहे— “क्या आपने कभी सोचा, अगर कोई किसी दिन ये सब जोड़ने लगे—फैक्ट्रियों के पीछे केमिकल वेस्ट, अनरजिस्टर्ड ट्रांसपोर्ट्स, गायब हुए मज़दूरों की लिस्ट, और अचानक बढ़ी संपत्तियों की डिटेल्स—तो क्या तस्वीर बनेगी?”

गौरवी ने अब झल्ला कर कहा, “तेरे पास सबूत क्या है?”

सुहानी ने उसकी ओर सिर झुका कर देखा—एक हल्की मुस्कान के साथ, जैसे कह रही हो: तुम्हें खुद ही डर है, तभी तो पूछा।

“आप को सच में लगता है कि मैं खाली हाथ ही ये टेंडर फाइल लेकर आई हूँ?” उसने संयम से कहा।

तीनों अब बेचैन होकर एक-दूसरे की तरफ़ देखने लगे। उन्होंने ये नहीं कहा कि उन्हें डर नहीं है। उन्होंने ये भी नहीं कहा कि सुहानी झूठ बोल रही है।क्योंकि डर में सब से बड़ा हथियार होता है— संदेह। और सुहानी ने वही बोया था। अब तक उन्होंने सुहानी को एक भोली, मासूम लड़की समझा था, जिसे व्यापार और दुनिया की समझ नहीं थी। मगर आज पहली बार उन्हें लगा… कि यह लड़की न केवल सब समझती है, बल्कि खेल को उन्हीं के मैदान में, उन्हीं के हथियारों से खेलने लगी है।

कमरे में अब डर, संशय और एहसास की गंध थी—कि राठौरों की नींव दरकने लगी है… और उसकी पहली दरार थी— सुहानी की मुस्कान।

सुहानी ने भीतर ही भीतर खुद को समझाया, जब तीनों की नज़रों में गुस्से, हैरानी और तिलमिलाहट का मिला-जुला भाव देखा। उसका मन कर रहा था कि उन लोगों के सारे पोल अभी ही खोल दे— हर काला सच, हर काली कमाई का हिसाब, हर गैरकानूनी सौदे का दस्तावेज़…मगर वो जानती थी कि वक़्त अभी सही नहीं है।

“यही मेरा प्लान था,” उस ने मन में दोहराया।

“मगर, अगर मैंने अभी इन्हें सब कुछ बता दिया कि मुझे उन के काले धंधों की पूरी खबर है, तो न जाने और कितने मासूमों की जान दांव पर लग जाएंगी।”

उस की माँ… उसका भाई… उसके पिता, आरव, आरव के पिता और भाई, रमेश, मीरा, विक्रम और office के सारे workers जैसे मरियम, और जो लोग मरियम के कहने पर सुहानी की मदद करना चाहते हैं। यहाँ तक कि वो लोग भी, जो बेखबर उन राठौरों के ज़रिए संचालित गैरकानूनी संस्थानों में अभी भी कैद हैं।

“गौरवी, दिग्विजय और रणवीर,” वो तीनों जो सामने baithe हुए थे—अपने आप को राजा समझने वाले लोग, मगर जिन के दिल अब हिलने लगे थे।सुहानी जानती थी, कि सिर्फ उनके चेहरे नहीं, बल्कि उनके पूरे साम्राज्य की नींव ही झूठ पर टिकी है। और अगर उसने अभी उन लोगों के सारे काले चिठ्ठे खोल दिए—तो वो लोग एक ही झटके में सबूत मिटा देंगे, ठिकानों को खाली कर देंगे, और फिर से नई जगह, नया नाम, नया खेल शुरू कर देंगे।

“नहीं,” उस ने खुद से दोबारा कहा। “ये खेल अभी थोड़ा और चलाना होगा…जब तक मैं उन के सभी अड्डों तक न पहुँच जाऊँ, जब तक मैं उन मासूमों को वहाँ से निकाल न लूँ, जब तक मैं हर एक दस्तावेज़ को कानूनी सुरक्षा में न पहुंचा दूँ—तब तक मुझे रुकना होगा।”

उस ने चेहरे पर शांति का मुखौटा ओढ़ लिया, अपनी आँखों में मौजूद आँधियों को अंदर ही दबा दिया। और शांत स्वर में बोली— “मैंने जो किया, सोच समझ कर किया। अगर आप सबको लगता है कि मैंने कोई गलती की है, तो मैं उस पर जवाब देने के लिए तैयार हूँ।”

रणवीर ने उसकी तरफ घूरते हुए कहा— “बहुत बोलने लगी है तू…”

मगर सुहानी बस मुस्कुरा दी। क्योंकि वो जानती थी— वो लोग अभी नहीं जानते, कि असली धमाका कब होगा। और जब होगा…तो सारा अंधेरा उसी रोशनी में जलकर राख हो जाएगा।

सुहानी के शब्दों ने कमरे में एक ऐसा तूफ़ान खड़ा कर दिया था, जिस में राठौर साम्राज्य की नींव हिलती सी महसूस हो रही थी। गौरवी अब तक चुप थी, उसका चेहरा सफेद पड़ चुका था, पर अब दिग्विजय और रणवीर जैसे जाग चुके थे। उनके चेहरे पर अब डर नहीं था—बल्कि क्रोध और रणनीति थी।

दिग्विजय ने अपनी कुर्सी से धीरे-धीरे उठते हुए कहा—“बहुत बोल लिया तुम ने… बहुत।”

उस की आवाज़ धीमी थी, मगर हर शब्द में ज़हर था। उसने टेबल के किनारे पर हाथ रखा और झुक कर सुहानी की आंखों में देखा।

“तुम सोचती हो, कि इन दो-चार शब्दों से हमारे इरादों को हिला दोगी? तुम्हें लगता है कि हमें किसी ने पहले ब्लैकमेल नहीं किया होगा?”

रणवीर अब उसके बगल में आकर खड़ा हो गया। उसका चेहरा गुस्से से तमतमा रहा था, मगर उसकी आवाज़ बेहद संतुलित थी—जैसे किसी जहरीले सांप की फुफकार।

“एक बात याद रखो, सुहानी,” उसने कहा, “तुम्हारे बाप ने जो हमारे साथ किया था, वो हम आज तक भूले नहीं हैं। हमारे पास बहुत सारे क़ानूनी तरीके हैं—अगर चाहें तो उसे अगले बीस साल के लिए जेल की सलाखों के पीछे सड़ा सकते हैं।”

सुहानी की मुस्कान अब धीरे-धीरे गायब हो रही थी, पर उसकी आंखें अब भी डरी नहीं थीं।

दिग्विजय ने अब फाइल उठाई, जिस में वो टेंडर के कागज़ात थे, और उसे ज़ोर से टेबल पर पटका।

“अगर ये वापस नहीं लिया, तो हम तुम्हारे पूरे खानदान को खत्म कर देंगे—क़ानूनन।”

उसने एक और कागज़ दिखाया—शिव प्रताप के पुराने केस की फाइल। एक केस जो कभी पूरी तरह बंद नहीं हुआ था, एक केस जिस में राठौरों ने गवाही नहीं दी थी— मगर अब अगर वो गवाही दें, तो शिव प्रताप सलाखों के पीछे लम्बे समय तक के लिए चला जाएगा।

“सोच लो,” रणवीर ने कहा, “तुम एक टेंडर के लिए अपने पिता को खो दोगी?”

कमरे में अब एक गहरा सन्नाटा फैल गया। सुहानी ने एक पल के लिए आंखें बंद कीं। उसके चेहरे पर अब ना मुस्कान थी, ना क्रोध—बस शांति। फिर उसने धीरे से आँखें खोलीं। उसकी आवाज़ में अब भी कोई घबराहट नहीं थी, बल्कि अब वो निश्चिन्त दिख रही थी—इतनी ठंडी कि रणवीर और दिग्विजय दोनों को भीतर तक चीर गई।

“तुम्हें लगता है मैं डर जाऊंगी?” उस ने धीरे से कहा, “कितनी आसानी से तुम लोग भूल जाते हो… कि तुम्हारे पास सिर्फ ताक़त है, और मेरे पास… सच्चाई।”

दिग्विजय के चेहरे की नसें फड़कने लगीं।

“बकवास बंद कर, सुहानी,” वो गरजा। “तेरा बाप अभी भी हमारे रहमोकरम पर है—

और तुम अभी भी इस भ्रम में हो,” सुहानी ने उसकी बात बीच में ही काट दी, “कि तुम्हारा रहम किसी को बचा सकता है।”

उसने टेबल की ओर इशारा किया—“ये फाइल वापस नहीं जाएगी। और अगर मेरे पिता को कुछ भी हुआ, तो तुम्हारी काली दुनिया की हर ईंट मैं उजाले में ले आऊँगी—इस तरह से एक्सपोज़ करुँगी तुम लोगों को कि खुद तुम्हारा सिस्टम भी तुम्हें नहीं बचा पाएगा।”

रणवीर एक कदम आगे बढ़ा, मगर गौरवी ने उसका हाथ थाम लिया। शायद उसे एहसास था कि अब सुहानी वो लड़की नहीं रही जो कभी डरा करती थी—वो अब वो ताक़त बन चुकी थी, जो चुप रहकर भी सब कुछ कह जाती है। कमरे की हवा जैसे फिर से ठहर गई थी।

रणवीर और दिग्विजय अपनी धमकियों की जंजीरें कस ही रहे थे कि तभी सुहानी के होंठों पर एक धीमी, रहस्यमयी मुस्कान उभर आई, वो अपनी कुर्सी पर पीठ टिकाकर बोली, “आप दोनों को साथ देख कर अच्छा लगा। वैसे मुझे ये देख कर भी हैरानी नहीं हुई कि कैसे आप दोनों एक ही स्क्रिप्ट पर काम कर रहे हैं… मगर मुझे ये भी लगा कि शायद अब वो वक़्त आ गया है, जब पुरानी कहानियों की धूल हटा कर, कुछ नए सवाल पूछे जाएं।”

रणवीर की भौंहें तन गईं। दिग्विजय की उंगलियाँ टेबल पर कस गईं।

“आपको अगर याद हो, Mr. रणवीर राठौर” सुहानी ने थोड़ा झुकते हुए कहा, “कभी आपने विक्रम का इस्तेमाल किया था—मेरा बचपन का दोस्त, जिसे आपने मेरे खिलाफ मोहरा बनाया था। कुछ याद आया?”

रणवीर की आंखें एक पल को झपकीं, और फिर उसने अपनी निगाह फेर ली।

“मुझे कई कहानियाँ सुनाई गई थीं उस दिन, कभी विक्रम के मुंह से, कभी छुपे सूत्रों से… और उन में एक किस्सा तो आज भी मुझे बहुत अच्छी तरह से याद है। विक्रम ने कहा था,”

उस ने एक-एक शब्द खींचते हुए कहा,

“कि दिग्विजय राठौर के खुद की कोई संतान नहीं हैं, फिर भी वो सत्ता के लिए इतने बेताब क्यों हैं?”

कमरे में एक ठंडी चुप्पी फैल गई। दिग्विजय का चेहरा अब कठोर हो गया था, और उसकी आंखें एकदम सीधी सुहानी पर टिकी थीं।

“और फिर…आप की पत्नी… मेरी काकी सा… जो वर्षों से अस्पताल में हैं… जिन से आप मिलने तक नहीं जाते। तो सवाल ये है कि अगर आप के पास परिवार नहीं, तो सत्ता की ये भूख किस के लिए है? या शायद आप के पास परिवार था… और अब आप उस सच्चाई को छुपा रहे हैं। क्योंकि मुझे बताया गया था… कि आप के पास भी था एक बेटा… एक नाजायज़ रिश्ता… एक छुपा हुआ सच…” आख़िरी पंक्ति उसने फुसफुसाते हुए कहा। 

अब दिग्विजय के चेहरे पर बेचैनी साफ़ थी। रणवीर की निगाहें उससे मिलने से बच रही थीं।

“मगर वो बच्चा अचानक गायब हो गया। क्या आप ने कभी उसकी खोज की? या फिर वो सच्चाई आज भी आपको डराती है? क्यों ताऊजी?”

उसने अब दिग्विजय की आंखों में आंखें डाल कर कहा, “क्या आप आज भी उसे नहीं ढूंढ पा रहे? या फिर वो सच आपके पूरे महल को हिला देने की ताकत रखता है?”

अब रणवीर और दिग्विजय एक-दूसरे की तरफ देखने लगे—संदेह, झुंझलाहट और अविश्वास की परछाइयों के साथ। सुहानी मुस्कराई….उसे पता था, उसकी बातों ने तीर की तरह काम किया है—अब उन में खामोश दरारें उभरने लगी थीं।

“खेल तो आप लोग खेलते हैं, अब देखिए, जब मोहरे आपस में ही भिड़ेंगे, तब कौन बचता है और कौन गिरता है।” सुहानी ने मन मन ही यह बात सोची।

 

क्या सुहानी रणवीर की पोल, दिग्विजय के सामने खोल देगी? 

और क्या सुहानी, गौरवी के उस लॉकेट की सच्चाई का इस्तेमाल उसके खिलाफ करेगी? 

जानने के लिए पढ़ते रहिये, रिश्तों का क़र्ज़।

 

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