“क्या बकवास कर रही हो, लड़की?” दिग्विजय का चेहरा तमतमा उठा। उसकी आँखों की लाली और मुँह से फूटी आग—जैसे सदियों से दबे किसी सच को कोई अनजान हाथ अचानक उधेड़ने लगा हो।

“ज़ुबान संभाल कर बात करो!” उसने टेबल पर हथेली मारते हुए कहा, और कुर्सी पीछे सरक गई। उसके गुस्से की गूंज कमरे की दीवारों से टकरा रही थी। वहीं पास खड़े रणवीर का चेहरा एकदम फीका पड़ चुका था। उसकी साँसें तेज़ चल रही थीं, आंखों में घबराहट और माथे पर पसीने की एक महीन परत साफ़ बताती थी—वो डर गया था….बहुत ज़्यादा।

“कु... कुछ नहीं, बस... ये बकवास कर रही है, भाई, कोई साज़िश है इसकी। आप इस की बातों में मत आओ। इसे कुछ भी नहीं पता।” मगर उस वक्त रणवीर की आवाज़ में जो कँपकँपी थी, जो हड़बड़ाहट थी, वह दिग्विजय की अनुभवी निगाहों से छुप न सकी। दिग्विजय ने रणवीर की तरफ देखा…देर तक, बिना पलकें झपकाए। उसकी आँखों में अचानक एक सवाल उभरा—एक शक और सुहानी ने उसी शक के बीज को मुस्कुराकर सींच दिया।

“सच डरावना होता है, नहीं? इतना कि कोई उसे झुठलाने के लिए अपनी पूरी दुनिया दांव पर लगा देता है।”

रणवीर ने निगाहें झुका लीं। उसे अब ये यकीन हो चुका था कि सुहानी को सच का पता है—कम से कम इतना कि वो सब कुछ उधेड़ सकती है। और इस बार उसका चुप रहना, उसकी सबसे बड़ी मजबूरी थी।

दिग्विजय ने धीमी लेकिन भारी आवाज़ में पूछा, “रणवीर... क्या कुछ ऐसा है जो मुझे नहीं पता?”

रणवीर की उंगलियाँ आपस में उलझ गईं। उसने कोई जवाब नहीं दिया, सिर्फ एक लंबी साँस छोड़ी। कमरे की हवा में अब न धमकी बची थी, न सत्ता का भय—बस सन्नाटा था… और एक लड़की की वो मुस्कान, जिस ने दोनों राठौर भाइयों को हिला कर रख दिया था।

“ताज्जुब की बात है...” सुहानी ने अपनी जगह से हटे बिना, उन्हीं की तरफ देखते हुए कहा, “जो लोग दिन-रात साज़िशें रचते हैं, उन्हें इस शब्द से ही कितना डर लगता है।”

उसकी आवाज़ में तंज था, और आँखों में चुनौती।

"साज़िश..." उसने शब्द को दोहराया, जैसे किसी पुरानी याद को चख रही हो, “जिसका जाल आपने बुना था, आज उसी में खुद फंसते दिख रहे हैं आप लोग।”

"बस करो!" रणवीर अचानक चीखा। उसकी आवाज़ में बौखलाहट थी, जैसे किसी ने उस का नकाब खींच कर उतार दिया हो।

“तुम्हारा हो गया हो, तो जाओ यहाँ से!” वो दाँत भींचते हुए बोला, फिर उसने अपनी आँखें सुहानी से हटा कर ज़मीन पर टिका दीं, मानो उससे और नज़र मिलाना अब मुश्किल हो रहा हो।

दिग्विजय और गौरवी, दोनों चौंक कर रणवीर की तरफ देखने लगे। एक पल को कमरे में सन्नाटा छा गया।

गौरवी की भौंहें टेढ़ी हो गईं, और उस ने धीमे स्वर में पूछा, “जाओ?”

दिग्विजय की आँखों में भी अब सवाल थे— रणवीर का व्यवहार साफ़ इशारा कर रहा था कि कुछ है जो वो छुपा रहा है। और सुहानी ने जान बुझ कर, उनके बीच शक का बीज बो दिया था। सुहानी ने एक आखिरी बार उन तीनों को देखा। एक मुस्कान उस के होठों पर अब भी टिकी हुई थी, मगर अब वो सिर्फ तंज़ नहीं था—विजय का संकेत था।

फिर वो बिना कुछ कहे मुड़ गई और कमरे से बाहर निकलते हुए उसके कदमों की आवाज़, उन तीनों की धड़कनों से ज़्यादा तेज़ सुनाई दे रही थी।

जैसे ही सुहानी कमरे से बाहर निकलने को मुड़ी, गौरवी की तीखी आवाज़ ने हवा को चीर दिया— “जाना चाहती है ये? कैसे?”

उसने रणवीर की ओर मुड़ते हुए कहा, “इसने अभी तक अपने टेंडर को वापस लेने की बात तक नहीं की है और जब तक वो मनज़ूरी नहीं देती, तब तक ये लड़की कहीं नहीं जाएगी।”

उसके स्वर में अब घबराहट की परतें भी थीं, जैसे उसे डर हो कि सुहानी कहीं वाकई कुछ बड़ा खुलासा न कर दे। रणवीर चुप था, उसकी उंगलियाँ फिर से टेबल पर दस्तक देने लगीं, माथे की नसें तन गई थीं।

दिग्विजय ने उसकी चुप्पी को भांप लिया। वो अपनी कुर्सी से थोड़ा आगे झुकते हुए गुर्राया— “और सुनो, रणवीर...”

"ये लड़की मंदिरा और..." उसने कुछ पल रुक कर, आँखें सिकोड़ते हुए कहा, “...मेरे बेटे के बारे में कुछ ज़रूर जानती है। लेकिन ये सब इसे तू क्यों बता रहा था?”

कमरे में एक बार और सन्नाटा सा छा गया। रणवीर की नजरें अब दिग्विजय से टकराने से बच रही थीं।

“मैंने कुछ नहीं बताया, भाई साहब...” उसकी आवाज़ अब उतनी सख़्त नहीं थी—कांपती हुई और बचाव की मुद्रा में सुनाई दे रही थी।

“शायद ये खुद से कुछ जोड़ कर बोल रही है। ये लड़की चालाक है... बस हमें भड़काने की कोशिश कर रही है।”

“इतनी चालाक?” गौरवी अब तक अपनी जगह से उठ खड़ी हुई थी, “तो क्या हम इतने मूर्ख हैं कि किसी भी बाहरी लड़की की बातों में आ जाएँ?”

“पर बात ये नहीं है, गौरवी...” दिग्विजय ने अब गहरी निगाहों से रणवीर को देखा। “बात ये है कि उसे किस ने क्या बताया, और क्यों बताया।”

“कहीं तुमने उसे खुद ही तो सच के क़रीब जाने का रास्ता तो नहीं दिखा दिया, रणवीर?”

रणवीर की पलकों में एक क्षण को झिझक उभरी। सुहानी अभी दरवाज़े पर ही थी, उस ने बिना मुड़े, धीमे स्वर में कहा— "कभी-कभी... ज़्यादा क़रीब लाना नहीं पड़ता…बस सामने वाला खुद ही सच कहने लगता है।"

और फिर, उसके कदम धीमे-धीमे दरवाज़े के अंदर वापस लौट आये थे, जो शक, जो दरार वह उन के बीच छेड़ कर आई थी— वो अब धीरे-धीरे तीनों राठौरों के रिश्ते को निगलने लगी थी।

कमरे में अब भी एक भारी सन्नाटा पसरा हुआ था, पर तभी सुहानी के कदम ठिठके। वो मुड़ी और धीमे-धीमे चलते हुए सीधा रणवीर के पास आकर खड़ी हो गई। उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान थी — न पूरी तरह दर्दभरी, न ही पूरी तरह तंज़ से भरी — बस, एक ऐसा भाव जो सामने वाले को भीतर तक हिला दे।

वो एक पल रणवीर की आँखों में झाँकती रही, फिर एक नर्म मगर तीखा सवाल पूछा — “हाँ, क्यों बताया था मुझे वो सब, रणवीर ‘चाचू’? मेरा विश्वास जीतने के लिए? या फिर आप को लगने लगा था कि मुझे पता चल गया है कि मेरी माँ ज़िंदा हैं, और आप मुझ से उनका पता चाहते थे?”

रणवीर की आँखों में हलचल साफ दिख रही थी। उसकी पलकों के नीचे छिपा डर अब सतह पर आने लगा था।

“जो पता आपको मिल भी गया…बेशक़, आपने फिर से उन्हें मुझ से दूर कर दिया।”

कमरे का तापमान जैसे एकाएक गिर गया। दिग्विजय और गौरवी अब रणवीर को उलझन भरी निगाहों से देखने लगे थे। उन्हें पहली बार लगा कि शायद कुछ बातें उनसे भी छिपायी गई थीं। रणवीर की जुबान जैसे तालू से चिपक गई। सुहानी ने एक बार फिर उसकी ओर देखा — इस बार बिना किसी मुस्कान के। उसकी आँखों में अब कोई ताज्जुब नहीं था, बस एक कड़वा निश्चय था।

उसकी निगाहें कह रही थीं — “अब मेरा खेल शुरू हुआ है।”

“क्या?”

“काजल ज़िंदा है?” दिग्विजय गुर्राया — उसकी आवाज़ में हैरानी नहीं, डर और ग़ुस्से की मिलावट थी।

“रणवीर, ये लड़की क्या बक रही है? सच है ये?”

रणवीर अब तक खामोश खड़ा था, पर दिग्विजय की आवाज़ में उठता शक और गुस्सा सुन कर उसका सब्र टूट गया।

वो पलटा और एक तीखे स्वर में बोला — “अपना मुँह बंद रखो! तुम लोगों को मैं क्या बताऊँ और क्या नहीं, इसका फ़ैसला मैं करूँगा। ज़रूरत नहीं है हर बात का जवाब देने की — भूलो मत, मैंने कहाँ कहाँ से और कैसे बचाया है... ये तुम अच्छे से जानते हो। तुम्हारे गुनाहों की परतों पर अगर मैंने चुप्पी न साधी होती, तो आज तुम जेल में सड़ रहे होते। अब अगर मैं चुप हूँ, तो सिर्फ इसलिए कि वक्त का तकाज़ा है — पर इसका ये मतलब बिल्कुल मत समझो कि मुझे कुछ नहीं पता या मैं डरता हूँ!”

कमरे में एक दम घनघोर सन्नाटा छा गया। गौरवी की साँसें तेज़ हो चुकी थीं, और दिग्विजय फिर से रणवीर का वो भयंकर रूप देख कर उसके सामने खुद को कमजोर महसूस कर रहा था। सुहानी एक किनारे खड़ी सब देख रही थी — उसकी नज़रें अब रणवीर पर थीं, पर मुस्कान दिग्विजय की हालत पर खिली थी। रणवीर की आँखों में अब उबाल था — पर वो जानता था, अगर आज उसके मुंह से काजल का नाम दोबारा निकला, तो सब कुछ उजागर हो जाएगा।

“और अब खेल शुरू हो चुका है...” सुहानी मन ही मन मुस्कराई….उसकी आँखों में चमक थी — चालें चली जा चुकी थीं, मोहरे हिल चुके थे, और अब सिर्फ़ सामने बैठे खिलाड़‍ियों का तमाशा देखना बाकी था।

वो चुपचाप अपनी कुर्सी की ओर बढ़ी, बिल्कुल किसी दर्शक की तरह जिस ने सब से महंगा टिकट लिया हो। उसने कुर्सी खींची, बड़े इत्मीनान से बैठी, और अपने सामने सजे इस ‘पारिवारिक महाभारत’ को देखने लगी। बड़े मज़े से, उसकी आँखों के कोनों में हल्की मुस्कान अब भी खेल रही थी। कभी दिग्विजय की तमतमाई आँखें, कभी रणवीर के चेहरे पर आता-जाता पसीना — हर दृश्य उस के भीतर एक नई संतुष्टि भर रहा था।

अब खेल उस के पाले में था और वक़्त भी। महल के उस आलीशान, मगर इस वक्त बेहद भारी पड़े office के कमरे में एक अजीब सा सन्नाटा छा गया था। सुहानी कुर्सी पर बैठी थी, मगर उसकी आँखें पैनी निगाहों से उन सब को परख रही थीं। वहीं दूसरी ओर, दिग्विजय, गौरवी और रणवीर के बीच की बहस अब एक उबाल पर पहुँच चुकी थी।

“काजल अगर ज़िंदा है, तो तुम्हें लगता है, कि ये बात तुम्हें हम से छुपानी चाहिए थी?” दिग्विजय की आवाज़ में अब सख़्त गुस्सा नहीं, बल्कि डर और संशय भरने लगा था।

“ये लड़की अगर सच कह रही है, तो तुम ने अब तक हम से ये क्यों छुपाया, रणवीर?” गौरवी का चेहरा सफेद पड़ गया था, उसके होंठ काँप रहे थे।

“और अगर काजल ज़िंदा है, तो फिर वो इतने सालों से कहां थी? तुम क्या कुछ और भी हम से छुपा रहे हो रणवीर?”

रणवीर ने अपने बालों में हाथ फेरा, जैसे खुद को संभालने की कोशिश कर रहा हो। लेकिन अगले ही पल, जैसे उसकी आँखों में कोई तूफान जाग उठा था।

“बस!!!”

उसकी गरजती हुई आवाज़ पूरे कमरे में गूंज उठी थी। “काफी हो चुका तुम्हारा ये दिखावा, ये झूठ, ये सवाल!”

गौरवी और दिग्विजय चौंक कर पीछे हटे। उनकी साँसें अटक गईं थीं।

“तुम मुझ से पूछते हो मैंने क्या छुपाया?” रणवीर अब पूरी तरह उग्र हो चुका था।

“तो सुनो, दिग्विजय राठौर — तुम वो इंसान हो जिसने अपने ही भाई को जान देने पर मजबूर कर दिया था, क्योंकि उसकी पत्नी को मरवा दिया तुम लोगों ने, और उसके बच्चे को भी रास्ते से हटा देने की कोशिश की… एक को जीवन भर कैद रखा तहखाने में, वो भी अपने ही ऑफिस के नीचे और दूसरे को सालों तक अपनी उंगलियों पर नचाया। और तुम मुझ से पूछते हो कि मैंने क्या छुपाया?”

“गौरवी!” उसने उंगली उठा कर अब सीधे उसे निशाने पर लिया, “तुम्हारी ही नज़रों के सामने सब कुछ हुआ था। तुम्हारी ही बहन की मौत हुई, और तुम ने अपना मुँह सिल लिया। क्यों? क्योंकि तुम्हें कुर्सी चाहिए थी। तुम्हें राठौर ख़ानदान की ‘बहू’ बनने की भूख थी।”

दिग्विजय का गला सूख गया। “रणवीर, ज़बान संभाल—”

“नहीं! अब नहीं! बहुत हो चुका।” रणवीर की आँखों से आग निकल रही थी।

“तुम दोनों ने दुनिया से क्या क्या छुपाया है, वो अगर कहीं मैंने उगल दिया ना तो लेने के देने पड़ जाएंगे तुम्हें। तुम ने मेरे हाथों से मेरा सब कुछ छीन लिया। और अब जब मैं अपने सच को बचाने के लिए चुप था, तुम मुझे ही कटघरे में खड़ा कर रहे हो?”

“मैंने काजल को ज़िंदा देखा है। और हाँ, मैंने उससे मिलने की कोशिश भी की है। वो इतने सालों तक छुपी रही क्योंकि उसे यकीन था कि अगर वो सामने आई, तो तुम लोग उसे फिर से मार डालोगे। और अब…” रणवीर की आवाज़ धीमी पड़ी, मगर वो दर्द भरी थी, “तुम लोगों का कोई हक़ नहीं बनता, मुझ से ये सब पूछने का। समझे? तुम लोगों ने मुझ से वो छीन लिया, जिस के लिए मेरी कभी सांसें चलती थीं, और अब वो भी मुझ से घृणा करती है। मुझ से डरती है, नज़रें फेर लेती है।” 

गौरवी थर-थर काँप रही थी। दिग्विजय की आँखों में हार और डर साथ झलक रहे थे। उन दोनों को समझ आ गया था — रणवीर अभी उन के वश में नहीं है। दूर बैठी सुहानी हल्के से मुस्कराई।

‘शिकार अब खुद शिकारी बन चुका है’ उस ने मन ही मन सोचा।

“वो तुम्हारे पास है? कहाँ रखा है तुम ने सब से छुपा कर उसे इतने दिनों से?” दिग्विजय ने अपनी बची कुची हिम्मत जुटा कर, रणवीर से पूछा। और सुहानी की सांसें अटक गईं। 

यही वो मौका था, जब शायद उसे पता चल पाता की उस की माँ को कहाँ छुपा कर रखा गया है। लेकिन तभी… 

 

आगे की कहानी जानने के लिए पढ़ते रहिये, रिश्तों का क़र्ज़।

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