“मैं उसे कभी जानना नहीं चाहता था और न ही कभी समझना...”
आरव राठौर की सख़्त और बेरहम आवाज़ मीडिया कैमरों की चमक में गूंज रही थी। उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं थे—बस एक ठंडी, नियंत्रित नफरत। कोर्ट की सीढ़ियों पर खड़ा होकर उसने जो कहा, वह पल भर में न्यूज़ चैनलों की सुर्खियाँ बन गया।
“सुहानी राठौर ने मेरे पूरे खानदान के साथ धोखा किया है। यह एक सोची-समझी साज़िश थी—मेरे खिलाफ, मेरी माँ के खिलाफ, और मेरे पिता की विरासत के खिलाफ...”
पत्रकारों के माइक और पास आ गए, कैमरे उसकी हर बात को लाइव दिखा रहे थे। लेकिन आरव का चेहरा पत्थर-सा था—बिलकुल भावशून्य। उसकी आँखों में वही पुरानी जलन, वही ज़हर। सुहानी के लिए कोई हमदर्दी नहीं—सिर्फ नफरत।
राठौर हवेली के ड्राइंग रूम में टीवी चालू था। टीवी स्क्रीन पर आरव के बयान की क्लिप्स बार-बार चल रही थीं। वहीं, गौरवी राठौर लाल साड़ी में सजी हुई, मीडिया को अपना अलग इंटरव्यू दे रही थी।
“सुहानी ने सिर्फ़ आरव को ही नहीं, हम सबको बेवक़ूफ़ बनाया। उसने अपने पिता के बहकावे में आकर, पूरे प्लान के साथ इस घर में कदम रखा। उसका मक़सद था हमारे वारिस, हमारी जायदाद पर क़ब्ज़ा जमाना।”
स्पष्ट था कि गौरवी अपने शब्दों से सुहानी के लिए समाज का हर दरवाज़ा बंद करना चाहती थी। उसकी शातिर मुस्कान, उसके शब्दों का चयन—सब कुछ सुहानी को एक चालाक, चालबाज़ औरत के रूप में दर्शा रहा था। सुहानी के कमरे में भी टीवी चल रहा था, रोज़ की तरह वो भी एक अकेली रात थी। कमरे में सिर्फ़ एक टेबल लैम्प जल रहा था, दीवारों पर आरव के शब्द गूंज रहे थे।
सुहानी ज़मीन पर बैठी थी, पीठ दीवार से टिकी हुई, चेहरा आंसुओं से भीगा, आँखों में वो सूनापन जो सिर्फ़ टूटी आत्माओं में दिखाई देता है।
“आरव... तुम्हें कभी मेरी आँखों में सच दिखाई ही नहीं दी...”
उसके हाथों में कोर्ट के दस्तावेज़ थे, और टीवी की आवाज़ अब शोर बन चुकी थी। तभी, अलमारी के पीछे से एक पुरानी, धूल से सनी डायरी गिरती है…सुहानी चौंक जाती है।
"ये... डायरी कहाँ से आई?"
काँपते हाथों से उसने डायरी को उठाया। ऊपर लिखा था — काजल। पहले पन्ने ने ही उसके होश उड़ा दिए।
25 जनवरी
आज रणवीर फिर से आया था। वही गहरी आँखें, वही पुरानी चाहत…जैसे वक़्त की गर्द भी उस प्यार को धुंधला नहीं कर सकी। मगर उसकी आँखों में जो नफ़रत की लपटें उठ रही थीं, वो मेरी रूह तक को जला गईं। उस नज़र में सवाल थे, इल्ज़ाम थे, और सबसे ज़्यादा — बदले की आग थी।
मैंने चाहा कि सब कुछ कह दूँ। बता दूँ कि मैं अब भी उसकी वही काजल हूँ, जो हर सुबह उसकी हँसी के साथ जगती थी और हर रात उसके ख्वाबों में सोती थी। मगर नहीं…अब सब कुछ बदल चुका था।
गौरवी ने मुझे धमकाया है। उसकी आँखों में दीवानगी है — एक जुनून जो डरावना हो चला है। उसने साफ़ कहा है कि अगर मैंने रणवीर से अपने पुराने रिश्ते नहीं तोड़े, तो वो मेरे बच्चे को नुकसान पहुंचाएगी। उस दिन जब उसने मेरी बेटी की तस्वीर को फाड़ कर मेरे सामने फेंका था, तब मेरे अंदर माँ की ममता काँप उठी थी।
मैं शिव को सब कुछ बताना चाहती थी। मेरा मन चिल्ला रहा था कि उसे सारी सच्चाई बता दूँ। मगर…दिग्विजय राठौर ने मुझे रोक लिया। उसकी आवाज़ में वो ठंडापन था, जो किसी अपराधी के इरादों में होता है। उसने कहा, “अगर शिव को कुछ बताया, तो उसे धोखाधड़ी के केस में जेल भिजवा दूँगा।”
मैं डर गई थी। औरत हूँ… माँ हूँ… और अब एक पत्नी भी। मगर सबसे पहले, मैं अपनी बेटी की सुरक्षा चाहती हूँ।
गौरवी अब भी रणवीर से प्यार करती है। शायद खुद रणवीर को भी इस बात का इल्म नहीं। मगर गौरवी का प्यार प्रेम नहीं, एक जुनूनी सनक है — पागलपन की हद तक। उसे पाने के लिए वो किसी की भी बलि दे सकती है। और दिग्विजय — वो तो अपनी विरासत के लिए खून से भी हाथ रंग सकता है।
रणवीर की आँखों में जो बदले की आग मैंने देखी, वो मुझे आज भी डराती है। उसने मंदिरा और उसके बेटे को अगवा कर लिया था — सिर्फ इसलिए क्योंकि वो उन्हें दिग्विजय से जोड़ कर देखता है। मुझे ही उन्हें बचाकर वापस लाना पड़ा। मंदिरा कांप रही थी, और उसका बेटा — वो मासूम — डरा-सहमा मेरी गोद में छुप गया था।
अब मैं सबकी दुश्मन बन गई हूँ। गौरवी मुझसे जलती है — शायद इसलिए कि रणवीर अब भी मुझसे प्यार करता है, मगर गौरवी को वो देखता भी नहीं। दिग्विजय अब शिव और मेरी बेटी के पीछे पड़ा है। उसे लगता है कि शिव ने विभाँश राठौर को किसी तरह बहला-फुसलाकर वो वसीयतनामा बनवाया है, जिसमें लिखा है कि मेरी बेटी बड़ी होकर राठौर परिवार की बहू बनेगी — यानी आरव राठौर की पत्नी। और इसी शादी से सारी जायदाद उसके और आरव के नाम हो जाएगी। ये बात दिग्विजय के सीने में कील बन कर चुभती है।
अगर कोई मुझसे पूछे, तो मैं अपनी बेटी को इन सब लोगों से दूर — बहुत दूर ले जाना चाहती हूँ। जहाँ ना कोई साज़िश हो, ना कोई झूठ, ना कोई लालच। जहाँ सिर्फ़ उसकी मासूमियत सलामत रहे।
शिव… विभाँश राठौर के वफादार रह चुके हैं, इसीलिए उन्होंने तब कुछ नहीं कहा जब विभाँश राठौर वो वसीयतनामा लिख रहे थे। मगर मैं जानती हूँ, शिव कभी अपनी बेटी को कुछ नहीं होने देंगे। सुहानी में उनकी जान बस्ती है।
शिव…वो अब मुझसे नाराज़ रहने लगे हैं। मंदिरा और उसके बेटे की मौजूदगी उन्हें खलने लगी है। मेरा ये फ़ैसला कि हम मंदिरा के बेटे को गोद ले लें — उन्हें मंज़ूर नहीं। मगर मैं नहीं चाहती कि एक और मासूम, राठौर हवेली की साज़िशों में कुर्बान हो जाए। इसलिए लड़ती हूँ — रोज़। कभी शिव से, कभी अपनी किस्मत से।
आज रणवीर का कॉल आया था। उसकी आवाज़ में वही साज़िशें सुनाई दे रही थीं। वो अब भी किसी चाल को बुन रहा है। मंदिरा ने कहा कि अब बस दिग्विजय ही उसे रोक सकता है — बड़ा भाई ही छोटे भाई के गुनाहों को काबू में ला सकता है।
इसलिए हम दोनों ने फैसला लिया — हम दिल्ली जा रहे हैं। शायद वहाँ जाकर सच्चाई किसी कोने से निकल आए। शायद फिर सब ठीक हो जाए…या फिर, कोई और तूफान मेरा इंतज़ार कर रहा है…
— काजल
सुहानी पन्ने पलटती रही... काजल की लिखी हर बात उसके दिल को चीरती रही।
“तो ये था उस पल का सच…जिस दिन मेरी माँ, हमें छोड़ कर चली गई थीं। एक सच की तलाश में, जिसने हमारे जीवन को और अँधेरे में ही धकेल दिया।”
उसके होंठ काँपे, आँसू नहीं बहे—बस एक सन्नाटा उसके अंदर उफनने लगा। “यह डायरी... यहाँ कैसे आई?” उसने खुद से पूछा।
सुहानी ने गौर से डायरी के किनारों को देखा। हल्के से एक कोने पर कुछ खरोंच के निशान थे, जैसे किसी ने इसे जल्दबाज़ी में छुपाया हो। तभी एक स्मृति कौंधी—आरव।
यह वही डायरी थी, जिसे आरव कभी रणवीर राठौर के घर से चुरा कर लाया था। वह जानता था कि यह डायरी सच के उस आइने की तरह थी जो झूठ की हर परत को चीर सकती है। और शायद इसी डर से, उसने उसे अलमारी के पीछे छिपा दिया था। ताकि कोई इसे न पढ़ सके…यहाँ तक कि सुहानी भी नहीं।
उसे डर था कि अगर सुहानी ने यह सब पढ़ लिया, तो वह खुद को संभाल नहीं पाएगी, वह टूट जाएगी। और आरव... वो तब उससे बेइंतहा मोहब्बत करता था, इसलिए उसने इंतज़ार किया—सही वक्त का।
मगर अब…उसे कुछ याद नहीं। उसकी यादें, उसका प्यार, उसका सारा सच…सब किसी धुंध में खो चुका था। लेकिन क्या ये इत्तेफ़ाक़ था कि आज यही डायरी अचानक सुहानी के सामने आ गई? नहीं, यह कोई इत्तेफाक़ नहीं था। यह ईश्वर का इशारा था। जैसे खुद ऊपरवाला सुहानी से कह रहा हो—
“आरव को आज शायद कुछ याद नहीं…और वह दूसरों के बहकावे में आ गया है। लेकिन वही आरव, जिसने यह डायरी छुपाई थी, वह तुम्हें सबसे ज़्यादा चाहता था। वह जानता था कि तुम टूट जाओगी, इसलिए उसने तुम्हारी हिफ़ाज़त के लिए सच को खुद से भी दूर रखा...”
उसका दिल धड़क उठा। हाँ, शायद आरव अब अलग इंसान हो चुका है, लेकिन वह जो आरव था…जिसने यह डायरी छुपाई थी, वह उससे प्यार करता था। वह सुहानी को कभी चोट नहीं पहुँचा सकता था और आज यह डायरी उसके सामने गिरकर…उसे वही एहसास फिर से दिला रही थी।
सुहानी अब अपने बिस्तर पर है, डायरी सीने से लगाए हुए। बाहर तेज बारिश शुरू हो चुकी थी, बिजली की गड़गड़ाहट के बीच खिड़की से आती ठंडी हवा कमरे में उम्मीद की खुशबू फैला रही थी। सुहानी की आँखें बंद थीं, लेकिन चेहरा शांत था।
“माँ... अब मैं सिर्फ अपने लिए नहीं, तुम्हारे सच के लिए लड़ूंगी। आरव के लिए... उस आरव के लिए भी, जो अब कहीं खो गया है। मगर मैं उसे फिर से तलाश लूंगी...”
उसकी नज़र धीरे-धीरे खिड़की से बाहर जाती है, और बाहर से आती रोशनी में दिखाई देती है—एक टूटी हुई, मगर मजबूत लड़की। अंधेरे कमरे में एक हल्की रोशनी की तरह—सुहानी। जो अब सिर्फ शिकार नहीं, किसी बड़े तूफ़ान की शुरुआत थी।
सुहानी की आँखें अब तक डायरी के आख़िरी शब्दों पर अटकी हुई थीं — “...या फिर, कोई और तूफान मेरा इंतज़ार कर रहा है…”
और शायद वो तूफान अब उसके चारों तरफ़ सिर उठाने लगा था। उसने अपनी हथेलियों को भींचा, उसका दिल तेज़ धड़क रहा था। वह सब कुछ किसी से कह देना चाहती थी — विक्रम से, मीरा से, शमशेर अंकल से, या कम से कम रमेश भैया से ही... लेकिन अब यह इतना आसान नहीं था।
अब उसके पास कहने के लिए लफ़्ज़ थे, पर सुनने वाला कोई नहीं था। क्योंकि अब उसके फोन पर निगरानी रखी जा रही थी। हर कॉल, हर मैसेज, हर नोट… दिग्विजय राठौर और रणवीर राठौर की नज़र से कुछ भी छिपा नहीं था। इसलिए उसे नए रास्ते ढूँढने पड़ रहे थे — हर एक अपने नए ख़तरे के साथ। वो किसी तरह मीरा, विक्रम, शमशेर या रमेश से संपर्क करने के तरीके खोज रही थी। इशारों में बात करनी पड़ती थीं, या किताबों के पन्नों में चुपचाप संदेश छुपाने पड़ते थे। वो अब तिजोरी में बंद कोई रहस्य नहीं थी — बल्कि खुद एक ऐसा राज़ बन चुकी थी, जिसे सब अपनी-अपनी तरह से इस्तेमाल करना चाहते थे।
तभी दरवाज़ा एक झटके से खुला।
“और मेरे आरव को मुझसे छीनकर कैसा लग रहा है तुम्हें, Mrs. Gold Digger?” मीरा की आवाज़ कमरे में गूंज उठी — ताने, जहर और नाटक से भरी हुई।
सुहानी एक पल को चौंकी, उसकी आँखें मीरा की आँखों से टकराईं। पर अगले ही पल मीरा ने दरवाज़े को धीरे से अंदर की ओर से बंद कर दिया — इस बार सावधानी और समझदारी के साथ। मीरा की आंखें अब नफरत से नहीं, बल्कि कुछ और कह रही थीं। वो धीरे से आगे बढ़ी, और सुहानी की कलाई पकड़ कर उसे अपने गले से लगा लिया।
"I’m so sorry, सुहानी," मीरा फुसफुसाई। “मुझे ये सब करना पड़ रहा है… नहीं चाहती थी कि तुम से यूं मिलूं, पर घर में बहुत हलचल मची हुई है। हर कोना, हर नज़र, हर फोन — सब देखे जा रहे हैं।”
सुहानी स्तब्ध थी।
“अगर मुझे तुम से मिलना है, तो ऐसे नाटक करने पड़ेंगे, और बार-बार करने पड़ेंगे। ये लो — मेरा फ़ोन। अभी-अभी शमशेर अंकल का कॉल आया था। वो तुम से बात करना चाहते हैं। उन्हें तुम्हारी चिंता सता रही है… और सच कहूं तो हम सब को भी।”
मीरा ने धीरे से मोबाइल उसकी ओर बढ़ा दिया।
“विक्रम तो आज इतने गुस्से में था कि एक पल को भूल गया कि उसका भी पर्दाफ़ाश हो सकता है। वो आज आरव से लड़ने ही जा रहा था… जब उसने सुना की आरव ने मीडिया के सामने तुम्हारे बारे में जो भी कहा, वो उस से बर्दाश्त नहीं हुआ।”
मीरा की आँखों में भावनाओं का सैलाब था।
“और… शिव अंकल के बारे में भी पता चला हमें… I am so सॉरी सुहानी, तुम अकेली कैसे संभाल रही हो ये सब?”
मगर सुहानी चुप रही। उसकी आँखें खुली थीं, पर उनमें कोई प्रतिक्रिया नहीं थी। उसके दिल और दिमाग में एक साथ दो आवाज़ें गूंज रही थीं-
आरव की वो बेरहम बातें…और उसकी माँ काजल की डायरी में दर्ज वो दर्द भरे सच। वो चाह कर भी कुछ नहीं कह सकी। उसकी सांसें भारी थीं और उसकी खामोशी, एक और तूफ़ान की दस्तक बन चुकी थी।
क्या आरव को सुहानी के साथ बिताये पल याद आएंगे?
या आरव अपने बदले की आग में, सुहनी को और झूलसाता चला जाएगा?
जानने के लिए पढ़ते रहिये, रिश्तों का क़र्ज़।
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