रात का समय था, जब शहर की चहल-पहल थम चुकी थी। होटल के कमरे में सिर्फ हल्की सी टेबल लैम्प की रोशनी थी, जो दीवार पर दो सायों की कहानी बुन रही थी—आरव और सुहानी की।

उस दिन की भागदौड़, सच की तलाश, और सावित्री अम्मा से हुई मुलाकात ने दोनों को थका तो दिया था, लेकिन उनकी आँखों में अब भी नींद का कोई नामोनिशान नहीं था।

सुहानी और सावित्री अम्मा ने जो बातें बताई थीं—पुरानी यादें, अधूरी मोहब्बतें, और वो दर्द जो अब तक अनकहा था—उसने आरव को हिला कर रख दिया। लेकिन एक राहत ये थी कि उसके पास अब सुहानी थी—वो सुहानी, जिस से उसका रिश्ता अब पहले जैसा नहीं रहा था। वो बदला नहीं था, बस उसकी आंखों में अब सच्चाई झलकने लगी थी।

रात को होटल के उसी कमरे में, एक सुकून भरी खामोशी थी। आरव खिड़की के पास खड़ा बाहर झांक रहा था, जबकि सुहानी बिस्तर पर बैठी थी, तकिये से टेक लगाए।

"आरव…" सुहानी की आवाज़ में एक नरमी थी।

आरव ने उसकी ओर देखा “हां?”

“क्या आपको कभी डर नहीं लगा… कि कहीं हम जिस सच को ढूंढ रहे हैं, वो हमें और तोड़ न दे?”

आरव कुछ देर चुप रहा…फिर धीरे से बोला, “डर तो हमेशा लगता है, सुहानी। मगर झूठ के साथ जीना... उससे कहीं ज़्यादा डरावना है।”

सुहानी की आंखों में नमी थी। उसने मुस्कुराकर कहा, “आपको देखकर यकीन हो रहा है कि शायद मैं अब अकेली नहीं हूं।”

आरव उसके पास आकर बैठ गया। उसने हल्के से सुहानी का हाथ थामा “अब कभी अकेली नहीं रहोगी….जब तक मेरे अंदर सांसे चल रही हैं, मैं तुम्हारे साथ हूं।”

उस रात दोनों ने पहली बार दिल से बातें की—बिना किसी मुखौटे, बिना किसी फासले के। माँ-बाप से जुड़ी अधूरी कहानियाँ, प्यार और नफरत के बीच का संघर्ष, और वो अनकहा एहसास जो अब हर लम्हे में गहराता जा रहा था।

सुहानी धीरे-धीरे बात करते-करते थकने लगी थी। उसकी आँखें बंद हो रही थी, और फिर वो सिर झुका कर आरव के कंधे पर टिक गई। एक मासूम सी नींद उसकी पलकों पर छा गई।

आरव ने उसकी तरफ देखा—उसका चेहरा चांदनी रात जैसा शांत और मासूम लग रहा था।

"तुमने अकेले बहुत सहा है, सुहानी," उसने धीमे से कहा। "मगर अब मैं हूं तुम्हारे साथ, और मैं, थोड़ी देर के लिए ही सही, अब तुम्हें बेफिक्र सोने देना चाहता हूं।" उसने सुहानी का सर धीरे से तकिये पर रख दिया, और उसे एक चादर उढ़ा दी।

वो खुद वहीं, सामने की कुर्सी पर बैठ गया, और उसकी ओर देखते हुए उसके बालों को धीरे-धीरे सहलाता रहा। उस लम्हे में, वो सब भूल गया था—बदले की आग, रिश्तों का बोझ, और पुरानी कड़वाहटें, और वो सच जो किसी भी इंसान को तोड़ कर रख दें। 

मगर जैसे ही रात सुबह की ओर बढ़ने लगी, आरव का फोन अचानक बज उठा।

"हेलो?" उसने फ़ोन फौरन उठाया।

फोन पर उसका असिस्टेंट था, जो घबराई हुई आवाज़ में बोला, “सर, अर्जेंट खबर है। आज मिस्टर शिवप्रताप की कोर्ट में सुनवाई है... और इस बार केस में नया गवाह सामने आया है।”

आरव के चेहरे का रंग उड़ गया…. “क्या? कैसा गवाह?”

“सर... ये कोई जान-पहचान वाला ही लगता है और इस बार सबूत भी पक्के हैं।”

आरव की धड़कनें तेज़ हो गईं। फोन की आवाज़ से सुहानी की नींद टूट गई थी। उसने आंखें मलते हुए देखा कि आरव सामने की कुर्सी पर बैठा है, चेहरे पर तनाव की लकीरें उभर आई थीं।

"क्या हुआ, आरव? आप इतने परेशान क्यों हैं?" उसने चिंतित होकर पूछा।

आरव ने उसकी तरफ देखा, जैसे वो कुछ कहने से डर रहा हो।

"तुम्हारे पापा..." उसने मुश्किल से कहा।

सुहानी का दिल धक से रह गया। "क्या हुआ मेरे पापा को?" अब उसकी आवाज़ में स्पष्टता थी।

आरव ने नजरें झुका लीं “आज उनके खिलाफ धोखाधड़ी के केस में सुनवाई है… और इस बार कोई नया गवाह सामने आया है।”

सुहानी के होंठ सूखने लगे। “इस बार? इस बार का मतलब?”

आरव की आंखों में पश्चाताप की लहर दौड़ गई।

वो नीचे ज़मीन पर बैठ गया, और उसके हाथ थामते हुए बोला, “I am so sorry, Suhani… मुझे पहले सच का पता नहीं था। मुझे लगता था तुम्हारे पापा ने वाकई कुछ गलत किया है, लेकिन अब...”

"आरव, क्या किया आपने?" सुहानी ने उसका चेहरा ऊपर उठाया, उसकी आंखों में देखकर सच्चाई खोजने की कोशिश करते हुए पूछा।

आरव की आवाज़ टूटने लगी, “ताऊजी के कहने पर मैंने ही तुम्हारे पापा पर केस किया था। लेकिन सबूत न होने के कारण केस बंद करना पड़ा… और अब लगता है, मुझे बिना बताए किसी ने वो केस वापस खुलवाया है। और इस बार सबूत और गवाह—दोनों हैं।”

कुछ पल की खामोशी रही। फिर सुहानी ने एकदम से उठकर कहा, “मुझे कोर्ट ले चलिए।”

आरव उसे देखता रहा—गिल्ट, अफसोस और बेबसी उसकी आंखों में साफ झलक रहे थे।

"अभी!" सुहानी ने इस शब्द पर ज़ोर लगा कर कहा, और इस बार उसकी आवाज़ में वो दर्द था जिसे कोई और नहीं समझ सकता था—सिवाय एक बेटी के, जो अपने पिता के लिए लड़ने निकली हो।

 

कोर्टरूम में उस दिन भारी भीड़ थी। देश की दो जानी मानी बिज़नेस फैमिली के बीच हो रहे बिज़नेस युद्ध का सवाल था। एक फैमिली ने दूसरे पर धोखा धड़ी का केस किया था… और अब सबूत एक गवाह भी था जिसने पूरे मामले को पलट दिया।

सुहानी, आरव के साथ कोर्ट पहुंच चुकी थी। चेहरे पर चिंता और आंखों में असमंजस साफ झलक रहा था। 

आरव उसका हाथ थामे, उसे संभालने की कोशिश कर रहा था, लेकिन वो जानता था—आज जो होने वाला है, उसके लिए कोई भी तैयारी काफी नहीं होगी।

जज साहब ने जैसे ही केस नंबर का ऐलान करवाया, कोर्ट रूम में एकदम सन्नाटा छा गया।

 

सरकारी वकील खड़ा हुआ, “माई लॉर्ड, आज हमारे पास वो गवाह मौजूद है जिसने इस केस को नई दिशा दी है। मैं अनुरोध करता हूं कि उन्हें गवाही के लिए बुलाया जाए।”

जज ने इजाज़त दी “गवाह को बुलाया जाये।”

दरवाज़ा खुला… और गवाह के आने की आहट हुई। हर कदम के साथ उसके जूतों की टाप अदालत में गूंज रही थी।

सभी लोग चौंक गए, मगर सबसे ज़्यादा हक्का-बक्का खड़ी थी — सुहानी। 

गवाह कोई और नहीं—विशाल था।

उसका भाई… उसका अभिमानी, उसूलों वाला, उसके लिए लड़ जाने वाला भाई… आज उसके ही पापा के खिलाफ गवाह बनकर खड़ा था।

सुहानी का सिर चकरा गया। वो चाहती थी कि धरती उसी वक़्त फट जाए और उसे निगल जाए। विशाल आगे बढ़कर जज के सामने कटघरे में जाकर खड़ा हो गया और कहा,

“जज साहब, मेरा नाम विशाल प्रताप है। मैं आज इस अदालत में सच का साथ देने आया हूँ। जो कुछ भी आज मैं यहाँ कहूँगा, होश-हवास में कहूंगा और वो पूरी तरह सच होगा। मैं अदालत से निवेदन करता हूँ कि मेरी गवाही को दर्ज किया जाए।”

 

सरकारी वकील ने सवाल किया, “कृपया बताएं कि आप मिस्टर शिवप्रताप के बारे में क्या जानते हैं?”

विशाल के चेहरे पर किसी तरह का भाव नहीं था, 

“शिव प्रताप मेरे पिता हैं, और उनके बेटे होने के नाते मैं बहुत कुछ जानता हूं… और बहुत कुछ अनजाने में देखता रहा हूं। सालों पहले पापा ने एक डील की थी जिसमें उन्होंने फर्जी दस्तावेजों का इस्तेमाल किया था। मैं खुद गवाह हूं उस मीटिंग का… और मेरे पास एक पुरानी रिकॉर्डिंग भी है।”

सुहानी जोर से चिल्लाती है, “विशाल भाई! ये झूठ है! आप झूठ बोल रहे हैं!”

कोर्ट में एक हलचल मच जाती है।

जज सुहानी की ओर देख कर आदेश देता है, “मिस सुहानी, कृपया खुद को संयमित रखें।”

सुहानी रोती हुई कहती है, “नहीं! मुझे कुछ कहने दीजिए, माई लॉर्ड। मेरा भाई झूठ बोल रहा है। मैं नहीं जानती ये ऐसा क्यों कर रहे हैं, मगर मेरे पापा एक बहुत अच्छे इंसान हैं, उन्होंने कभी ऐसा कुछ नहीं किया जो गलत है। इसमें कोई गड़बड़ है… कोई ब्लैकमेल कर रहा है इन्हें!”

जज गंभीर होकर बोले, “मिस सुहानी, अभी सिर्फ गवाह की सुनवाई हो रही है। अगर आपको कुछ कहना है, तो आपके वकील इसके लिए अर्ज़ी देंगे।”

इस दौरान, विशाल की नज़रें झुकी रहीं। उसके चेहरे पर एक भाव था—पछतावे और मजबूरी का।

सुहानी उसकी ओर बढ़ी, लेकिन तभी आरव ने उसका हाथ पकड़ लिया।

“बस, सुहानी। अभी नहीं।”

"नहीं आरव! मुझे जानना है! मेरे भैया ऐसा क्यों कर रहे हैं? क्या मजबूरी है? क्या किसी ने उन्हें…" उसकी आवाज़ टूट गई।

आरव ने उसे समझाते हुए कहा, “मैं वादा करता हूं, हम इसका सच सामने लाएंगे। लेकिन अभी तुम्हें खुद को संभालना होगा। ये कोर्ट है सुहानी, यहाँ भावनाओं पर फैसले नहीं होते।”

आरव उसे पकड़कर कोर्ट रूम से बाहर ले आया। हॉलवे में आकर सुहानी फूट-फूट कर रोने लगी।

“भाई ने ऐसा क्यों किया, आरव? क्या मैंने उनका भरोसा तोड़ा? क्या पापा ने?”

आरव ने उसका चेहरा अपने हाथों में लिया, “मुझे नहीं पता कि ये किसकी चाल है… लेकिन ये तुम्हारा भाई है। और जब कोई अपना ही सामने खड़ा हो जाए, तो लड़ाई बहुत मुश्किल हो जाती है। पर सुहानी, हम ये लड़ाई हार नहीं सकते।”

सुहानी आंसुओं के बीच बोली, “मुझे विशाल भाई से मिलना है... अकेले।”

आरव ने धीरे से उसका सिर सहलाया, “मैं इंतज़ाम करता हूं। लेकिन एक बात याद रखना… अगर कोई भी तुम्हारे परिवार को तोड़ने की कोशिश कर रहा है, तो अब हम दोनों मिलकर उसे रोकेंगे। अब तुम अकेली नहीं हो सुहानी।”

 

कुछ देर बाद,  

सुहानी अब भी हॉलवे में बैठी थी, उसकी आंखों में सवाल थे—बेशुमार और जवाबों से खाली। आरव थोड़ी दूरी पर खड़ा, फोन पर किसी से धीमी आवाज़ में बात कर रहा था। कुछ मिनट बाद वह उसके पास आया, और धीरे से बोला, “मैंने विशाल से बात की है। उसने मिलने के लिए हामी भर दी है… लेकिन अकेले में।”

सुहानी गहरी सांस लेते हुए कहती है, "ठीक है। मैं तैयार हूं, मुझे उनसे खुद पूछना है कि उन्होंने ऐसा क्यों किया?”

एक पुरानी पार्किंग के पीछे की गली…ढलती शाम के दौरान, वहां एक कार रुकी। सुहानी कार से उतरी और सामने खड़े विशाल की ओर बढ़ी।

सुहानी धीमी लेकिन आक्रोश से भरी आवाज़ में, “आपने ये कैसे कर दिया, भैया? आप तो कहते थे कि पापा से बढ़कर कुछ नहीं… फिर उनके खिलाफ कैसे खड़े हो गए?”

विशाल ने आंखें नहीं मिलाईं….“मैं मजबूर था, सुहानी। मेरे पास कोई रास्ता नहीं था।”

सुहानी तेज आवाज़ में बोली, “झूठ! अगर मजबूरी थी, तो मुझसे कहते! आरव से कहते! अरे पापा से कहते! लेकिन कोर्ट में झूठ बोलना?”

विशाल की आंखों में अब आँसू थे, "मुझे धमकी दी गई थी…" उसने धीरे से कहा।

सुहानी चौक गई, “किसने?”

"गौरवी और दिग्विजय अंकल ने। उन्होंने कहा अगर मैं कोर्ट में गवाही नहीं दूंगा, तो… वो माँ को मार देंगे।”

सुहानी को गहरा सदमा लगा, “माँ को?”

"माँ ज़िंदा हैं सुहानी और वो इन लोगों के कब्ज़े में हैं। वो उन्हें मार देते अगर मैं ये गवाही नहीं देता। इस आरव पर कैसे भरोसा करता मैं, इसने तुम से धोखे से शादी की थी, ये भी उन लोगों से मिला हुआ है…मुझे इस पर भरोसा नहीं है।”

“आपको कैसे पता की माँ उनके कब्ज़े में हैं?” सुहानी ने विशाल से पूछा। 

“उन्होंने मुझे ये वीडियो भेजा था, देखो,” विशाल ने सुहानी को एक unknown नंबर से भेजा हुआ एक वीडियो दिखाया। जिसमें उनकी माँ काजल एक कुर्सी पर बैठी हैं, उनके हाँथ, पैर बंधे हुए हैं, और उनके मुंह पर एक कपड़ा बंधा हुआ है।” 

सुहानी सन्न थी….उसका गुस्सा, उसकी चीखें, सब जैसे बाहर आने को थीं।

“तो मतलब, माँ इनके हाथों लग गई हैं, आरव हमें जल्द ही कुछ करना पड़ेगा और तभी हमें आपके पापा के बारे में भी कुछ पता चलेगा।”

विशाल उन दोनों को स्तब्ध देखता रहा, “क्या बोल रही हो तुम? माँ इनके हाथों लग गईं मतलब? तुझे मालूम था कि माँ ज़िंदा हैं और शमशेर राठौर का क्या, वो तो मर चुके हैं ना?” 

“नहीं भईया, माँ और शमशेर राठौर ज़िंदा हैं, उन्होंने खुद को छुपा कर रखा था। मुझे लगता है, इन लोगों ने हमारा पीछा किया था, सावित्री अम्मा के घर तक। वहीं से इन्हें ये सब बातें पता चली हैं। आरव सावित्री अम्मा? वो ठीक तो होंगी ना?” सुहानी की आवाज़ में चिंता थी। 

“मैं अभी पता लगता हूं।” आरव इतना कहकर कुछ दूर चला गया और अपने फ़ोन से कुछ लोगों को मैसेज और कॉल करता रहा। 

“तुम दोनों क्या बातें कर रहे हो और तुझे कब से इस आदमी पर विश्वास होने लगा?” विशाल ने पूछा।

“जब से माँ ने कहा। भाई आरव ने भी मेरी तरह बहुत कुछ सहा है, infact कई ज़्यादा। मैं अब माँ को, और वो अपने पापा को ढूंढना चाहते हैं, सारे सच तभी सामने आएंगे। 

और बाकी बातें मैं आपको आराम से बताउंगी। अभी हमें माँ को ज़िंदा बचाना है, पापा को जेल से छुड़ाना है और सच को सबके सामने लाना है।” सुहानी ने विशाल को समझाते हुए कहा।

"मगर भैया… क्या कभी भी हम एक-दूसरे के लिए इतने पराये हो सकते हैं कि एक दूसरे से सच्चाई तक छुपाएं?" उसकी आवाज़ कांप रही थी।

विशाल ने आगे बढ़कर उसका हाथ पकड़ा “मुझे माफ कर दो, मेरी बहन। अगर कोई रास्ता होता…”

"रास्ता हम बनाते हैं, भैया और अब मैं वो रास्ता खुद बनाऊंगी। लेकिन इस बार चुप नहीं बैठूंगी। पापा को फंसाने वालों को और माँ को किडनैप करने वालों को बेनकाब करना होगा… चाहे वो कोई भी हों" सुहानी ने कहा।

और तभी आरव तेज़ी से उनकी तरफ आया, “सावित्री अम्मा भी कल से गायब हैं।” आरव और सुहानी एक दूसरे को देखते हैं, युद्ध का ऐलान हो चुका है। 

 

काजल का पता कैसे लगाया दिग्विजय और गौरवी ने? 

क्या सुहानी अपनी माँ को बचा पायेगी, अपने पापा को रिहा करवा पायेगी? 

विशाल क्या कभी आरव पर भरोसा कर पायेगा?  

आगे क्या होगा ये जानने के लिए पढ़ते रहिये, ‘रिश्तों का क़र्ज़।’

 

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